बुधवार, मार्च 13, 2013

आयो होरी को त्यौहार

आयो होरी को त्यौहार
लायो रंगों की बौछार
भीजी चुनरी तुम्हार
सुलगे जियेरा हमार
आओ मिल बांटे प्यार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
फागुन सुलगाये सांस
आयो देखो मधुमास
मारे हिलोरे आस
बसंत जिलावे प्यास   
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
खिलती कली कली
अरमानो में खलबली
गीत गावे मनचली
चली मैं पिया गली
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
कोकिला कूक लगाये
अमिया बौरायी जाये
अंतर्मन अग्न जगाये
प्रिये संग नेह बनाये
आयो होरी...

आयो होरी को त्यौहार
भंग लाओ मेरे यार
रंग चढे अब के बार
आई टेसू की फुहार
हुडदंग होवे सर पार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
ढोल मंजीरे बजाएं ताल
नाचें बाल, बाला, गोपाल
नभ उड़े अबीर-ओ-गुलाल
गरे डारे बइयाँ माल
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
शायरी, नज़्म, पान
कविता, शेर, पीकदान  
साहेबान, मेहरबान
क़द्रदान, खानदान
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
पकवान मज़ेदार
कांजी-बड़ा ज़ोरदार
आलू पोहा मिर्चमार  
ठंडाई चढ़ी नशेदार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
राजमा-चावल मांडमार
छोले भठूरे ज़ायकेदार
कढ़ी पकोड़ी झोलदार
पिंडी छोले हवादार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
सैंडविच, टिक्की, भेल, पापड़ी
स्नैक्स, उपमा, चकली, फाफ्ड़ी
नगौरी, ढोकला, मठरी, कचौड़ी
मेथी चटनी, भल्ले, समोसा, पूड़ी
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
मिष्ठानों से भरते थाल    
रसगुल्ला, गुंजिया, लड्डू, बर्फ़ी,
खीर, जलेबी, हलवा, कतली
सबरों देसी घी को माल
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
ज़न्खी बेरंगी सरकार
निगोड़ी से न दरक़ार
किसी की न वफ़ादार
बेमानी, चोर और बेकार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
मज़हबी दंगे फसाद
सुसरे सब अवसरवाद
नफरत बारूदी खाद
हमरी नस्ल हुई बर्बाद
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
खून से ललाम लाल
मचा कैसा है बवाल
पिचकारी गोला हाथ
गुब्बारा बम के साथ
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
नशेड़ियों की होती मांग
दारू, सुलफ़ा, चरस, अफीम,
बीडी, सिगरेट, गांजा, भांग
हाई हो देते सीमा लांघ
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
लाल प्रेम का गुलाल
पीली मित्रता की धार
नीली सौभाग्य की फुहार
बैंगनी खुशियाँ अपार
आयो होरी.....

शहीद सरदार उधम सिंह को मेरा शत शत नमन



भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह का नाम अमर है। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्होंने माइकल ओडवायर को मारा था, जो जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब का गर्वनर था | ऐसा भी माना जाता है के ओडवायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा।

२६ दिसंबर १८९९  को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह अनाथ थे। सन १९०१  में ऊधम सिंह की माता और १९०७  में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले। अनाथालय में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि १९१७ में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। १९१९ में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने १३ अप्रैल १९१९ को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे।

इतिहासकार डा. सर्वदानंदन के अनुसार ऊधम सिंह सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है। अमर शहीद उधम सिंह उर्फ राम मुहम्मद सिंह आजाद १३ अप्रैल, १९१९ को घटे जालियाँवाला बाग नरसंहार को अपनी आँखों के सामने होते देखा । कुछ घटिया राजनेताओं की साजिश के कारण जलियाँवाला बाग़ में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई परन्तु इस काण्ड से हमारे वीर उधमसिंह घायल शेर की भांति खूंखार हो गए और गुस्से से आग बबूला हो गए | तकरीबन १८०० लोग जो शहीद हुए थे उन्होंने मन ही मन उनके लिए लड़ने की ठानी और प्रतिशोध की अग्नि में जलने लगे |  ऊधम सिंह ने जलियाँवाला बाग़ की मिटटी को हाथ में ले और माथे से लगा प्रण लिया के वो इस दुष्कर्म के लिए ज़िम्मेदार माइकल ओ डायर को सबक ज़रूर सिखायेंगे |

देशप्रेम का यह सच्चा सपूत संकल्पित था ब्रटिश दुर्दांत हुकूमत द्वारा किये गए पाप और अपने देशवासियों के क्रूर अपमानजनक मौत का बदला लेने के लिए | अपनी इस मुहीम को अंजाम देने हेतु उन्होंने अलग अलग नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् १९३४ में हमारे उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां ९, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। यहाँ वहाँ यात्रा करने के लिए उन्होंने एक गाड़ी भी ख़रीदी | उसके साथ उन्होंने एक ६ गोलियों वाली पिस्तौल भी खरीद के रखी |

फिर वो सही समय का इंतज़ार करेने लगे | सिंह साब सही मौका मिलते ही कमीने माइकल ओ डायर को मारने की फ़िराक में थे और उचित वक़्त की बाट जोह रहे थे | १९४० में उन्हें जलियाँवाला बाग़ में शहीद हुए अपने सैकड़ों भाई, बहन, माताओं और देशवासिओं की मौत का बदला लेने का मौका मिला | उस काण्ड के २१ साल बाद १३ मार्च १९४० को | ब्रिटिश अख़बारों में प्रकाशित हुआ की लन्दन के कैक्सटन हाल में एक गोष्ठी आयोजित होने वाली है जिसमे ओ डायर के अलावा पूर्व भारत सचिव लार्ड जेटलैंड भी पहुंचेगा | दिन में दो बजे एक वकील की वेशभूषा में सज्जित उधम सिंह हाँथ में एक मोटी पुस्तक लिए पहुँच गए | मूलतः उसी किताब को भीतर से पिस्तौल के आकर में काट कर एक लोडेड पिस्तौल उसी में सुरक्षित रख दी थी | निश्चित समय पर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ | हाल खचाखच भरा हुआ था | ओ डायर ने यहाँ भी अपना भारत विरोधी जहर उगला | तालियों की गडगडाहट से पूरा हाल गूंज उठा | लेकिन तभी गोलियों की तडतडाहट ने तालियों की गडगडाहट को खामोश कर दिया | दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं । सूअर ओ डायर जमीन पर पड़ा तड़फ रहा था और उसकी तत्काल मौत हो गई | जेटलैंड के हिस्से की गोली भी उसे  मिल चुकी थी | पिस्तौल खाली हो चुकी थी किन्तु उधम सिंह का चेहरा संकल्प पूर्ण होने की दैवी आभा से चमक रहा था | बैठक के बाद उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला । अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

१ अप्रेल १९४० को केन्द्रीय आपराधिक ओल्ड बेयले मुकद्दमे की औपचारिता निभा कर ४ जून १९४० को उन्हें फांसी की सजा सुना कर उसी ब्रिक्सटन जेल भेज दिया गया जहाँ अमर शहीद मदन लाल धींगरा को भेजा गया था | जेल में उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब, कुरान और हिन्दू धर्म की पुस्तकों का अध्यन करने की कोशिश की किन्तु क्रूर ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें दस दिन में एक बार नहाने की छुट दी थी | अतः इन पवित्र पुस्तकों को स्नान कर छूने की भारतीय परम्परा के चलते उन्होंने इसमें आंशिक सफलता ही प्राप्त की | ३१ जुलाई को पेंटोंन विले जेल में फांसी का फंदा चूम कर उन्होंने जुलाई के महीने को पवित्र कर दिया | उनकी अंतिम क्रिया भी ब्रिटिश हुकूमत ने गुप्त रूप से कर दी | १९ जुलाई १९७४ को उधम सिंह के अवशेष भारत लाये जा सके और उन अवशेषों को हिन्दू-मुस्लिम-सिख समुदाय ने उधम सिंह की इच्छानुसार हरिद्वार में गंगा, फतेहगढ़ मस्जिद के साथ लगे कब्रिस्तान में और सिख भाइयों ने उनकी अंत्येष्टि आनंद साहिब में पूर्ण की | देशप्रेम के इस सच्चे सपूत को देशभक्तों का हार्दिक-हार्दिक अभिनन्दन अनिवार्य है | इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया |

मैं अपने देश के ऐसे सच्चे वीर बेटों, सेनानियों और शहीदों को शीश झुका कर शत शत नमन करता हूँ |

आप सभी देशवासियों से एक सवाल पूछना चाहता हूँ के देश को गंदे नेताओं से बचाने के लिए हमें आज ऐसा ही आदर्श देश पुत्र चाहिए ??? "सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,  मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए" | यदि आप इस सवाल पर सहमत हैं तो कृपया अपना जवाब और मत टिपण्णी के रूप ज़रूर ज़रूर दीजिये |

भारत माता की जय | जो बोले सो निहाल सत श्री आकाल | जय श्री राम | हर हर महादेव | जय कारा वीर बजरंगी का | यलगार हो | जयहिंद !!!

समझो तब

जीवन पहेली है
ना समझो तब
जीवन कहानी है
समझो तब

जीवन अन्धकार है
ना समझो तब
जीवन दर्शन है
समझो तब

जीवन काँटा है
ना समझो तब
जीवन गुलदस्ता है
समझो तब

रिश्ते तमाशा हैं
ना समझो तब
रिश्ते ज़िम्मेदारी हैं
समझो तब

साथ दुखमय है
ना समझो तब
साथ सुखमय है
समझो तब

प्रेम मृगतृष्णा है
ना समझो तब
प्रेम अनुभूति है
समझो तब

मन निर्जीव है
ना समझो तब
मन सजीव है
समझो तब

विचार पीड़ा हैं
ना समझो तब
विचार क्रीडा हैं
समझो तब

बातें व्यर्थ हैं
ना समझो तब
बातें अर्थ हैं
समझो तब

मुलाक़ात बेमानी है
ना समझो तब
मुलाक़ात दीवानी है
समझो तब

चरित्र धोखा है
ना समझो तब
चरित्र भरोसा है
समझो तब

कसक सज़ा है
ना समझो तब
कसक मज़ा है
समझो तब

मनुष्य अज्ञानी है
ना समझो तब
मनुष्य ज्ञानी है
समझो तब

जीवन यापन अनुभव है
अलौकिक व पारलौकिक का
समझो तब, समझो तब, समझो तब...

मेरी मृगतृष्णा

मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल की
जन्मो जन्मो से
तरसती है
मैं कौन हूँ
क्या हूँ
सब जानते हुए
हर जन्म में
नई मोह माया के
उधड़े बुने जाल में
फंसती है

मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
किसी चाहत को
तड़पती है
कभी श्राप है
कभी आशीर्वाद है
नौका विहार की भांति
लहरों से मुझे
मिलाती है

गहन अन्धकार
दिव्य प्रकाश
हर जन्म में मुझे
धरोहर में मिलता है
मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
कुछ ना
पाने को की
मचलती है 

जी क्यों है

कोई ये कैसे बताये, के ये 'जी' क्यों है 
वो जो अपने हैं, वही 'जी' 'जी' करते क्यों है 
यही बातें हैं,  तो फिर बातों में, 'जी' 'जी' क्यों है 
यही होता है तो, आखिर ये, 'जी' होता क्यों है 

एक ज़रा बात बढ़ा दे, तो समझ लें 'जी' को 
उसकी बातों से समझ जायेंगे, हम भी 'जी' को 
इतनी फुर्सत में हैं, समझा तो ज़रा, तू 'जी' को 

शब्द-ए-बर्बाद से,  वाबस्ता है अब तक कोई 
उम्र-ए-दर्द दिया करता है, अब तक वोई  
शब्द जो भूल गए, फिर से सुनाता क्यों है

दिल-ए-उल्फत कहो, या कहो, अफ़सुर्दा
कहते हैं 'जी' का ये रिश्ता है, कसक का रिश्ता 
है कसक का, जो ये रिश्ता, भला कहते क्यों है ...... 

वाबस्ता - get stuck/attached
उल्फत - love
अफ़सुर्दा - sad/sorry/dismal/withering

मंगलवार, मार्च 12, 2013

शाद-ए-हबल्ब

फवाद-ए-फुर्सत की दुआ तू है 
अबसार-ए-मसरूर फरोग तू है  
देख तुझे दीदार-ए-दुनिया हासिल है 
शाइ तू जो दिलों जहाँ गाफ़िल है  
ख़ामोशी बयां करती अफ़साने है
लफ़्ज़ों में शामिल शोख नजराने हैं
जाकिर शोखियाँ तेरी तनहा रातों में 
क़माल जादू मयस्सर तेरे हाथों में 
घुंचालब कहते आलि-आलिम बातें 
याद है तुझसे आक़िबत वस्ल  
बहकी दिलकश मदहोश सियाह रातें 
उम्मीद-ए-फ़र्दा फ़कत तू है मेरी 
शाद-ए-हबल्ब तू ही है बस 
अब बज़्म-ए-यार में....

फवाद-ए-फुर्सत - स्वस्थ होते दिल / रिकवरिंग  हार्ट / recovering heart
अबसार - आँखें / आईज / eyes
मसरूर - आनन्दित / चीयर्फुल / cheerful
फरोग - रौशनी / लाइट / light
शाइ - गुम / लॉस्ट / lost
अफ़साने - किस्से / स्टोरीज / stories
शोख - शरारती / मिसचीविअस / mischevious
जाकिर - ख्याल करना / रेमेम्बेरिंग / remembering
शोखियाँ - शरारतें /  प्रैंक्स / pranks
मयस्सर -  मौजूद / अवेलेबल / available
घुंचालब - कली जैसे होठ / बड लिप्स / lips like bud  
आलि - अवर्णनीय / सबलाइम / sublime
आलिम - समझदार / इंटेलीजेंट / intelligent
आक़िबत - अंतिम / फाइनल / final
वस्ल - मुलाकातें / मीटिंग्स / meetings 
उम्मीद - आशा / एक्स्पेक्ट / expect 
फ़र्दा -  कल / टुमौरो / tomorrow
शाद - छाया / शैडो / shadow
हबल्ब - दोस्त / फ्रेंड / friend
बज़्म-ए-यार - दोस्तों के महफ़िल / ग्रुप ऑफ़ फ्रेंड्स / group of friends

रविवार, मार्च 10, 2013

महाशिवरात्रि की शुभकामनायें - नीलकंठ की जय


ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माम्रतात् ।।

बम बम भोले शम्भु | जय कारा भोलेनाथ का | हर हर महादेव | महाशिवरात्रि के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और भोलेबाबा को कोटि कोटि चरणस्पर्श और नमन | मेरी ओर से प्रभु की वंदना में छोटा सा प्रयास |

ॐ निराकार एको देवो महेश्वरः
मृत्यु मुखाद गतम प्राणं ब्लादकक्षरक्षते

निरंजन निराकार महेश्वर ही एकमात्र महादेव हैं जो मृत्यु के मुख में गए हुए प्राण को बल पूर्वक निकाल कर उसकी रक्षा करते हैं | मार्कंड ऋषि का पुत्र मार्कंडेय अल्पायु था | ऋषियों ने उसको शिव मंदिर में जाकर महामृत्युंजय मंत्र जपने की सम्मति प्रदान की | मार्कंडेय ऋषियों के वचनों में श्रद्धा रखकर शिव मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र का यथा विधि जाप करने लगे | समय पर यमराज आए किन्तु महामृत्युंजय की शरण में गए हुए को कौन छू सकता है | यमराज लौट गए | मार्कंडेय ने दीर्घायु पाई और मार्कंडेय पुराण की रचना भी की | 

ॐ मृत्युंजय महादेव 
त्राहिमाम शरणागतं
जन्म मृत्यु जरारोगई 
पीडितं कर्म बंधनई

हे मृत्युंजय महादेव! मैं सांसारिक दुविधाओं में फंसा हुआ हूँ | रोग और मृत्यु मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे हैं | मैं आपकी शरण में हूँ | मेरी रक्षा कीजिये | महामृत्युंजय मंत्र महा मंत्र है | जिसके यथा विधि पारायण से, व्यक्ति, पापों से छूट कर सुख समृद्धि प्राप्त करता है | इस लोक में नाना प्रकार के कष्टों से, मृत्यु भय से, मुक्त होकर संपत्ति, रिद्धि सिद्धि प्राप्त करने का सरल उपाय महामृत्युंजय ही है |  

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माम्रतात् ।।

महामृत्युंजय मंत्र by Tushar Raj Rastogi

ॐ - हे भोलेबाबा, हे शम्भुनाथ, त्र्यच्क्शुधारी अर्थात जिनके तीन नेत्र हैं सूरज, चंद्रमा और आग, वह शिव जो स्वयं सुगन्धित हैं और जो इस समस्त श्रृष्टि का पालन पोषण करते हैं, जिनकी हम सब अराधना करते है, विश्‍व मे सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव हमें हमारे समस्त खेद, दुःख, पीड़ा, बीमारी, रोग, व्याधि, मर्ज़, दरिद्रता, दीनता, निर्धनता, अभावों, कमियों, ग़रीबी, परेशानी, बेचैनी, भय, खौफ़, आशंकाएं, डर, मृत्‍यु न की मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं | अपना आशीर्वाद आप सदैव मेरे सर पर समृद्धि, सौभाग्य, प्रताप, यश, विजय, सफलता, दीर्घायु, ज्येष्ठता, स्वस्थता तथा आरोग्यता स्वरुप में बनाये रखें | मैं आपके समस्त नतमस्तक हो दंडवत प्रणाम करता हूँ |
आपके महामृत्युंजय मंत्र के वर्णो का अर्थ सभी को सरल शब्दावली में समझाने का तुच्छ प्रयास किया है |

महामृत्युंघजय मंत्र के वर्ण पद वाक्यक चरण आधी ऋचा और सम्पुतर्ण ऋचा-इन छ: अंगों के अलग अलग अभिप्राय हैं। ओम त्र्यंबकम् मंत्र के ३३ अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठर के अनुसार ३३ देवताआं के घोतक हैं। उन तैंतीस देवताओं में ८ वसु ११ रुद्र और १२ आदित्यठ १ प्रजापति तथा १ षटकार हैं। इन ३३ देवताओं की सम्पुर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं । साथ ही वह नीरोग, ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है । महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।

Here’s a word by word translation of the Mahamrityunjay Mantra in english as well:

om - "ek onkar"
tri-ambaka-m - “the three-eyed-one”
yaja-mahe - “we praise”
sugandhi-m - “the fragrant”
pusti-vardhana-m - “the prosperity-increaser”
urvaruka-m - “disease, attachment, obstacles in life, and resulting depression”
iva - “-like”
bandhanat - “from attachment Stem (of the gourd); but more generally, unhealthy attachment”
mrtyor - “from death”
mukshiya - “may you liberate”
ma - “not”
amritat - "realization of immortality"

बाबा के शिव रूप की जय,
कल्याण स्वरूपा - ॐ शिवाय नमः

बाबा के महेश्वर रूप की जय,
माया के अधीश्वर - ॐ महेश्वराय नमः

बाबा के शम्भु रूप की जय,
आनंद स्वरूपा - ॐ शम्भवे नमः

बाबा के पिनाकी रूप की जय,
पिनाक धानुष धारी - ॐ पिनाकिने नमः

बाबा के शशिशेखर रूप की जय,
शीश शशिधारी - ॐ शशिशेखराय नमः

बाबा के वामदेव रूप की जय,
अत्यन्त सुन्दर स्वरूपा - ॐ वामदेवाय नमः

बाबा के विरूपाक्ष रूप की जय,
भौंडे चक्शुधर - ॐ विरूपाक्षाय नमः

बाबा के कपर्दी रूप की जय,
जटाजूटधारी - ॐ कपर्दिने नमः

बाबा के नीललोहित रूप की जय,
नीले एवं लाल रंग धारी - ॐ नीललोहिताय नमः

बाबा के शर रूप की जय,
कल्याणकारी - ॐ शंकराय नमः

बाबा के शूलपाणि रूप की जय,
कर त्रिशुल धारी - ॐ शूलपाणये नमः

बाबा के खट्वी रूप की जय,
खाट का एक पाया रखने वाले - ॐ खट्वांगिने नमः

बाबा के विष्णुवल्लभ रूप की जय,
विष्णु प्रिय - ॐ विष्णुवल्लभाय नमः

बाबा के शिपिविष्ट रूप की जय,
सितुहा प्रवेशी - ॐ शिपिविष्टाय नमः

बाबा के अम्बिकानाथ रूप की जय,
माँ भगवती के स्वामी  - ॐ अम्बिकानाथा नमः

बाबा के श्रीकण्ठ रूप की जय,
सुन्दर कण्ठ वाले - ॐ श्रीकण्ठाय नमः

बाबा के भक्तवत्सल रूप की जय,
भक्त प्रेमी - ॐ भक्तवत्सलाय नमः

बाबा के भव रूप की जय,
सांसारिक स्वरूपा - ॐ भवाय नमः

बाबा के शर्व रूप की जय,
कष्ट प्रतिरोधक - ॐ शर्वाय नमः

बाबा के त्रिलोकेश रूप की जय,
त्रिलोक स्वामी - ॐ त्रिलोकेशाय नम:

शितिकण्ठ रूप की जय,
श्वेत कण्ठधारी - ॐ शितिकण्ठाय नमः

बाबा के शिवाप्रिय रूप की जय,
पार्वती प्रिय - ॐ शिवाप्रियाय नमः

बाबा के उग्र: रूप की जय,
अत्यन्त उग्र स्वरूपा - ॐ उग्राय नमः

बाबा के कपाली रूप की जय,
कपालधारी - ॐ कपालिने नमः

बाबा के कामारी रूप की जय,
कामदेव के शत्रु - ॐ कामारये नमः

बाबा के अन्धकासुरसूदन: रूप की जय,
अंधक दैत्य मर्दक -ॐ अन्धकासुरसूदनाय नमः

बाबा के गङ्गाधर रूप की जय,
गंगाधारी  - ॐ गंगाधराय नमः

बाबा के ललाटाक्षरूप की जय,
लिलार चक्शुधर - ॐ ललाटाक्षाय नमः

बाबा के कालकाल रूप की जय,
काल के काल - ॐ कालकालाय नमः

बाबा के कृपानिधि रूप की जय,
करुणामय - ॐ कृपानिधये नमः

बाबा के भीम रूप की जय,
भयंकर स्वरूपा - ॐ भीमाय नमः

बाबा के परशुहस्त रूप की जय,
फरसाधारी - ॐ परशुहस्ताय नमः

बाबा के मृगपाणी रूप की जय,
हिरणधारी - ॐ मृगपाण्ये नमः

बाबा के जटाधर: रूप की जय,
जटाधारी - ॐ जटाधराय नमः

बाबा के कैलाशवासी रूप की जय,
कैलास पर्वत निवासी - ॐ कैलाशवासिने नमः

बाबा के कवची रूप की जय,
कवचधारी - ॐ कवचिने नमः

बाबा के कठोर रूप की जय,
लौह्देहधारी - ॐ कठोराय नमः

बाबा के त्रिपुरान्तक रूप की जय,
त्रिपुरासुर मर्दक - ॐ त्रिपुरान्तकाय नमः

बाबा के वृषांक रूप की जय,
वृषभ चिन्ह झ्ण्डाधारी - ॐ वृषांकाय नमः

बाबा के वृषभारूढ रूप की जय,
वृषभ सवार - ॐ वृषभारूढाय नमः

बाबा के भस्मोद्धूलितविग्रह रूप की जय,
भस्म लेपक - ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः

बाबा के सामप्रिय रूप की जय,
सामगान प्रेमी - ॐ सामप्रियाय नमः

बाबा के स्वरमय रूप की जय,
सातो स्वरों निवासी - ॐ स्वरमयाय नमः

बाबा के त्रयीमूर्ति रूप की जय,
वेदरूपी विग्रह ज्ञाता - ॐ त्रयीमूर्तये नमः

बाबा के अनीश्वर रूप की जय,
स्वयंभू स्वामी - ॐ अनीश्वराय नमः

बाबा के सर्वज्ञ रूप की जय,
सर्वज्ञता - ॐ सर्वज्ञाय नमः

बाबा के परमात्मा रूप की जय,
सर्वोच्च आत्मा - ॐ परमात्मने नमः

बाबा के सोमसूर्याग्निलोचन रूप की जय,
चन्द्र, सूर्य और अग्निरूपी नेत्रधारी - ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः

बाबा के हवि रूप की जय,
आहुति रूपी द्रव्यधारी - ॐ हवये नमः

बाबा के यज्ञमय रूप की जय,
यज्ञस्वरूपधारी - ॐ यज्ञमयाय नमः

ॐ नमः शिवाय | मेरे सभी मित्रगण, प्रियेजन, अप्रियजन,  दुश्मन, शुभचिंतक, अशुभचिंतक और समस्त संसार के पशु, पक्षी तथा प्राणियों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें | भोलेनाथ सभी पर अपनी कृपा सदैव बनाये रखें |

बम बम भोले नाथ....जय जय शिव शम्भू....जयकारा वीर बजरंगी का....हर हर महादेव

शनिवार, मार्च 09, 2013

होली की उमंग

बसंती फागुनी बयार
प्यार सबको अपार
सजा होली का त्यौहार
मधुमास है आया
मस्ती साथ में लाया
रंगो का त्यौहार
बढे मिलन और प्यार
झूमने वाला है आलम
याद आवत है बालम
रंगो से सजा तन
बौराया हिवड़ा उपवन
मंत्रमुग्ध देह
विचलित स्नेह 
पकवानों की खुशबु
थल्ली हो रु-बा-रु
होली मौका है यार
मिठाई पेल बारम्बार
चटपटे स्नैक्स
सरकारी टैक्स
प्यालों में जाम
बच्चों के एग्जाम
ठंडाई भंग संग  
मस्त चढ़े रंग
इन्द्रधनुषी पेय
आनंद और तरंग
स्वाद के संग
होली की उमंग...

शुक्रवार, मार्च 08, 2013

पूर्ण पुरुष, युगपुरुष...















मानव जन्म क्या
एक बुदबुदा है
और उसका जीवन
एक कर्म,
कर्म अपूर्व कर्म पर
जब यह कर्म
अधूरा रह जाता है
किसी के प्रति, तब
एक कसमसाहट
कुछ यंत्रणाएँ
असहनीय तड़प
अव्यक्त पीड़ा
मन मस्तिष्क
में लिए
वो बुदबुदा
नया रूप लिए
फिर आता है
क्यों क्या, का
कर्म पूरा करने को
या किसी को, कर्म में
सहभागी बनाने को
नहीं जानता, जीवन
तू अपने नाम
में पूर्ण है, लेकिन
आत्मा में पूर्ण नहीं
वो तुझसे कहीं परे
अपने विस्तार
को बढ़ाये हुए
होने पर
सिमटी है
तुझमें छिपी है
शायद तुझे
मान, सम्मान
यश देने को
उस की आवाज़ सुन
उस की बात गुन
उस के संस्कार चुन
तभी तू पूर्ण जीवन
कहलायेगा,
कहलायेगा
पूर्ण पुरुष, युगपुरुष...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, मार्च 07, 2013

सलाह पार्लर

पोथी पढ़ के जग मुआ, पंडत भया न कोय
इस कलयुगी दौर में, सबरे पंडत होय

सबरे पंडत होय, बैठे तख्ते ताउस पर
करके ऊँची नाक, सिकोड़े भौहें जीवन भर

दिग्गज हैं सरनाम, तुनकते रहते पल पल
दूजे को खुश देख, कलपते रहते जल जल

कलपते रहते जल जल, खून फुकावत हैं अपना
जलन, इर्ष्या, अभिमान, द्वेष, है इनका सपना  

सलाह पार्लर ऑन रहे, होत नहीं कछु काम
'निर्जन' तुमसे कहत रहे, दूर ही से करो प्रणाम

दूर ही से करो प्रणाम, खाते है सबका ये सर
बांचे हर पल प्रस्तावना, करके बकर बकर

मिलत है ऐसे हर जगह, बैठे मुंह बिचकाए
जिसको जितनी चाहियें, सलाह मुफ्त ले जाये

सलाह मुफ्त ले जाये, बात इनकी जो मानी
लंका तुम्हरी लग जाएगी, भरोगे लाला तुम पानी

सुबह हो या शाम, बैठे मिलते दर दर पर
झुण्ड बनाये यारों का, पीटते मॉडर्न चौपड़

पीटते मॉडर्न चौपड़, फांकते रहते गुटके
गट्कें चाय और पान, दिखाते लटके झटके

दिखाते लटके झटके, खाते हैं सबके कान
दूजा जो मेहनत करे, छोड़ें उस पर बान

छोड़ें उस पर बान, बाज़ ये कभी न आते
मोहल्ले में बदनाम, काम कछु इन्हें न भाते

शकुनी मामा कहत रहे, हैं ऐसे लोग महान
भिगो शब्दों से मारिये, बस रहिये सावधान

बस रहिये सावधान, वार पलट कर देंगे
होली है आई पास, बदला यह भी लेंगे

हो जाओ सतर्क, कमर कस लो अब भैया
शब्दों के गुब्बारे चलेंगे, दे दबा दब दैया

दे दबा दब दैया, उठा लो पतवार खेवैया
रंगीन शब्द जल में, तैराओ अपनी नैया

मंगलवार, मार्च 05, 2013

आप, तुम और तू

सुन्दर मनभावन मुख माला
श्यामल श्यामली बाला
मायावी मोहित रंगशाला
लोचन मृगनयनी हाला
अधर मृद मधुशाला
दिव्य व्यक्तित्व मतवाला
कहती हम कहते "तुम", तुम को
क्यों कहते तुम "आप", हो हमको
हम कहते ये आदत अपनी
आप बिगड़ती हैं क्यों इतनी
"आप" शब्द में है अपनापन
"तुम" बेचारा है पानी कम
आप में "आ" से "आना" है
"प" से "पास" बुलाना है
तुम संधि पर जायेंगे
सच सामने पाएंगे
तुम का "तु" कहता तुनक कर
"म" मिजाज़ है खड़ा अकड़कर
तुम अनजाना ही लगता है
और बेगाना भी दिखता है
दिल पर अपने न चढ़ता है
जब दो दिल बतियाएंगे
शब्द दो ही फरमाएंगे
या वो "आप" बुलाएँगे
या "तू" कहकर जतलायेंगे
विचार आपने दिया हमें
शायद वर्णन सही जमें
अपनी राय फरमाइए
आप, तुम और तू का
अंतर बतलाइए

सोमवार, मार्च 04, 2013

नई सरकार बनायेंगे

बजट है देखो आया
पब्लिक का बैंड बजाया
जब पांच लाख हो कमाई
दो हज़ार की छूट है पाई
जो एक करोड़ कमाया
१० परसेंट सरचार्ज लगाया
तेल में आग लगाई
सरकार ये बाज़ न आई
गाड़ियाँ कर दीं महंगी
अब पैदल घूमेंगे क्या जी
एग्रीकल्चर के नाम पर
कुछ ही परसेंट बढ़ाये
डायरेक्ट टैक्स कोड के
बिल इंट्रोडयूस कराये
लेडीज का बैंक खुलेगा
नया डेवलपमेंट दिखेगा
करोड़ों का फण्ड बनाया
निर्भया प्रति प्यार जताया
ड्यूटी फ्री गोल्ड कराया
माशूका के दिल को भाया
एक्साइज रेट बढाया
तम्बाकू में आग लगाया
चिमनी अब तो सुधरेंगे
और नहीं बिगड़ेंगे
खाने पर बढ़ गए पैसे
मियां रेस्तरां जाओगे कैसे
एंटरटेनमेंट रूचि दिखाया
ऍफ़ एम्म स्टेशन बढ़वाया
डीजीटाईजेशन के दौर मैं
सेट टॉप बॉक्स मेहंगाया
फाइनेंस मिनिस्टर बौराया
बकवास बजट है लाया
और भी ना जाने क्या
अगड़म बगड़म फ़रमाया
जनता है रोती धोती
इनके कान पे जूं न होती
बजट को मारो गोली
आई अब पास है होली
कांग्रेस को जलाएंगे
होली खूब मनाएंगे
बजट, इन्सान, बस्ता
सबका हाल है खस्ता
अब हम आवाज़ उठाएंगे
जनता को जगायेंगे
देश को बचायेंगे
नई सरकार बनायेंगे...

श्रीमती अनारो देवी - भाग ७

अब तक के सभी भाग - १०
---------------------------------------------------------
कहने को तो गंगा बाबु मुरादाबाद अपने सुसराल में आ बसे थे परन्तु उनका दिल अब भी उनकी जड़ों से जुड़ा था | वो शहर जो उनके बचपन, अल्हड़पन, जवानी, पिता के वात्सल्य, माता के दुलार, शिक्षकों के स्नेह और फटकार, मित्रों के अनुराग, कारोबारियों की वफ़ादारी, चाकरों की स्वामिभक्ति और उन सभी भवनों, स्थानों, पेड़, पौधे, खेत खलिहानों का साक्षी था जहाँ उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य, सुनहरे, निजी और मंगलमय पल बिताये थे आज बहुत दूर रह गया था | अब कुछ बचा था तो बस उस शहर और वहां के लोगों से जुडी कुछ यादें जिन्हें अपने दिल के भीतर समेट वे आज के जीवन को संवारने में प्रयासरत थे | उनकी उमंगें उनकी भावनाएं उनके मनोभाव और उनकी चित्तवृत्ति सभी उन्हें पुकार कर पूछते,

गंगा तुम इस परिवेश मैं कैसे समायोजन करोगे ? तुम घर जमाई बनकर रहोगे क्या ? तुम्हारे पुरखों ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा | क्या तुम उनका नाम गर्क़ करने पर आमादा हो ? तुम्हे इसके सिवा कुछ और नहीं सूझा ? घर दामाद होने से पहले तुम डूब क्यों न गए ? क्या तुम्हारा यह फैसला सही है ? अपनी इज्ज़त का तो ख्याल किया होता ? अब क्या सुसर के रहमो-कर्म पर रहोगे ? अपने रिश्ते नातेदारों क्या क्या मुंह दिखाओगे ? और भी न जाने क्या क्या सवाल फन फैलाये खड़े हो रहे थे उनके ज़हन में |  

मन में ऐसी जददोजहद के चलते वे मायूस रहने लगे | निढ़ाल रहने लगे | माता पिता को खोने और अपने शहर को छोड़ आने के दुःख की अनुभूति भी कम नहीं हुई थी | भूख प्यास सब अलोप थी | व्यापार तो वैसे भी ठप्प हो चुका था और अब किस्मत भी मज़ाक उड़वाने पर आमादा थी | किसी तरह का कोई व्यवसाय समझ नहीं आ रहा था | कई कई दिनों तक कमरे में अकेले बैठे गुज़ार देते | न किसी से हंसी ठिठोली न कोई आमोद प्रमोद | किसी चीज़ में दिल नहीं लगता | उस पर ऐसे खयालातों का दिमाग में घर करना कुछ ठीक शगुन नहीं था | कहते हैं के खाली दिमाग में  शैतान का डेरा होता है और ऐसे विचार किसी हानिकर दुष्ट से कम न थे | इसका आभास अनारो देवी को बहुत पहले से हो गया था और वे गंगा सरन जी की इस परेशानी को भांप गईं थी | अनारो देवी ने ऐसे कठिन समय में उनका पूर्णतः साथ निभाया | यह मसला कितना हस्सास है, उन्हें यह भली भांति ज्ञात था | इस नाज़ुक समय में उन्हें किस तरह का आचरण और व्यव्हार करना है उन्हें इसका अच्छे से बोध था | अपनी बातों से, अपने आचरण से और अपने प्रेमभाव, विश्वास और प्रणय अनुभूति से उन्हें कभी भी अकेलापन महसूस नहीं होने देतीं थीं | उन्हें कभी भी एहसास न होने देतीं के वो सुसराल में रह रहे हैं | यदि कोई भी गंभीर बात या ऐसा कोई भी संवेदनशील वाकया अनारो के समक्ष उभरता और उन्हें प्रतीत होता के उनके सुहाग के मान को इसके कारण ठेस पहुँचने का अंदेशा है तो उसका मुल्यांकन कर स्वयं ही स्पष्ट कर देतीं |  वे हमेशा कोशिश करतीं के गंगा बाबु का उत्साह और जोश बना रहे | वे हमेशा उनके प्रति और उनके प्रेम के प्रति प्राणार्पण को तत्पर रहती | किसी न किसी हीले से गंगा बाबु के प्रति अपने प्रेम, आदर और आत्मसमर्पण को जताती रहतीं थीं |  

आरम्भ में गंगा बाबू को उनके मन में उठने वाले सवालों ने बहुत कचोटा | मानसिक और जज़्बाती घुटन की अनुभूति भी हुई  | परन्तु धीरे धीरे अनारो देवी की कोशिशें और साहू साब के समझाने और तर्क संगत स्पष्टीकरण, मान सम्मान, आदर, लाड और स्नेह ने उन्हें ऐसी नकरात्म सोच से निज़ात दिलाई | घर के नौकर चाकर भी उनका बड़ा मान सम्मान करते और उन्हें उचित आदर प्रदान करते | उनके मन पसंद पकवान और उनकी पसंदीदा चीज़ों और बातों को हमेशा तवज्जो दी जाती | उनकी छोटी से छोटी बात, ख्वाइश और मिजाज़ को सिर्फ उनके हाव भाव के ज़रिये बिना बोले ही समझ लिया जाता और पूरा कर दिया जाता | आख़िरकार सबकी कोशिशें रंग लाई और गंगासरन जी का दिल मुरादाबाद में रमने लगा और उन्हें शहर से इश्क़ होने लगा | यदा कदा अनारो देवी को या साहू साब को, और कोई न मिलता तो मोहल्ले के बालकों को ही लेकर हलवाई के यहाँ जलेबियाँ और मूंग की दाल खिलने लिवा जाते | खाने और खिलने के बेहद शौक़ीन थे | सच कहें तो पूरे भोजनभट्ट थे | साहू साब को भी अपने दामाद की यह बात बेहद पसंद थी | धीरे धीरे सभी दुःख दर्द मादूम होते चले गए | अब वे साहू साब के दामाद न होकर पुत्र हो गए थे | साहू साब की सूनी हवेली में बसंत पधार चुका था | हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ थी | बच्चों की धमाचौकड़ी थी | हर दिन होली के जैसे और रात दिवाली की मानिंद गुज़रती थी |

गोया समय गुज़रता चला गया | निजी स्तर पर तो दिमाग़ी सुकून था पर कारोबारी कोण से दिक्क़तें पेश आ रहीं थी | समय के साथ गंगा बाबु ने बहुत से व्यापारों में किस्मत आज़माइश की | परन्तु इम्तहान-ए-ज़िन्दगी में सफलता उनकी किस्मत के पूरक चल रही थी | ज़्यादातर व्यवसायों में निराशा ही हाथ लगी | कुछ एक व्यापारों में थोडा बहुत लाभ अर्जित हुआ भी परन्तु वो दोज़ानु किस्मत के चलते दीगर जगह निकल जाता | 

साहू साब के कहने पर उन्होंने कुछ एक कामों में जोखिम उठा हाथ-आज़माइश की | जैसे कोयले का काम, मूंगफली, घी, लकड़ी, धान आदि भरने का काम उन्होंने करने की नाकाम कोशिशें भी की | परन्तु ज़्यादातर नुक्सान ही पल्ले पड़ा | अपनी किस्मत तो एक दफ़ा फिर से आज़माने का फैसला कर आखिरी बार उन्होंने सेरों चांदी खरीद कर भर ली | पर चूंकि किस्मत दगा देने पर आमादा थी तो लिहाज़ा नुक्सान तय था | दो दिन बाद से ही चांदी के दाम गिरने लगे | दो महीने गुज़रे और दाम पाताल पहुँच गए | गंगा बाबु को अब चिंता सताने लगी | हर रोज़ बाज़ार में चांदी के भाव गिर रहे थे | वे डर गए कहीं ऐसा न हो के और ज्यादा नुक्सान झेलना पड़ जाये और एंटी से पैसा निकल जाये | सर मुंडाते ओले न पड़ जाएँ इसी सोच के चलते और अपनी परिस्थितियों को देखते बिना सलाह मशवरा किये  उन्होंने माल का सौदा एक जौहरी से तय कर दिया | जो नुक्सान होना था सो तो हो चुका था | दो तीन दिन बाद सुबह साहू साब ने उन्हें बुलाया और कहा, 

"बेटा चांदी का भाव आसमान छूने लगा है | अब चांदी को बेचने का सही समय है | जाओ और जाकर सौदा कर आओ | "

बेचारे गंगा बाबु अपना माथा पकड़ कर बैठ गए | मुंह लटका लिया और बडबडाने लगे, 

"गंगा तेरी किस्मत ही खोटी है | तेरी चांदी से तो अब उस जौहरी की चांदी चांदी हो गई | तुझे चांदी की चमची भी नसीब न हुई | तेरे जीवन में अब कारोबारी सुख नहीं रहा | तेरी पत्री में ही नुक्सान लिखा हुआ है | तेरे ग्रहों पर शनि बैठा हुआ है | अब तू अपनी नाकामियों से कभी उभर नहीं सकता | तेरा बंटाधार निश्चित है |"

साहू साब को सब ज्ञात था | वह बहुत अच्छे से उनके चेहरे की मायूसी को पढ़ चुके थे | उनकी इस स्तिथि को भांप साहू साब बोल पड़े, 

"अरे बेटा! कोई बात नहीं व्यापार है, नफा नुक्सान तो लगा रहता है | कुछ नहीं होता कल की सोचो और कुछ नया करने का मन बनाओ | आज के नुक्सान में कल का फायदा छिपा है | इसलिए हमेशा आगे बढ़ो और आने वाले समय को बेहतर बनाने का प्रयास रखो | हिम्मत मत हारो हौंसला रखो | फिर पीछे मैं तो हूँ ही | डर काहे का | मैं संभाल लूँगा |"

गंगासरन जी सर हिलाकर ख़ामोशी से उठ कर चल दिए | 

समय की उठा पटक कैसी भी रही हो परन्तु अनारो देवी के जीवन में खुशियों की लहर कभी नहीं थमी | इन कुछ सालों के वक्फ़े ने उनकी गोद अनेकों बार भर दी थी | परन्तु कुछ दफा कुदरत निष्ठुर रही और कई बार खुशियाँ सांस लेती रही थी और नन्ही किलकारियां आँगन में गूंजती रहीं | आज भी जन्मोपरांत अपनी कुछ संतानों को खोने की पीड़ा झेलने के पश्चात भी अनारों देवी को पांच शिशुओं की माता होने का गौरव प्राप्त था | 

बड़ी बेटी थीं गार्गी | फिर बेटे सुरेन्द्र | उनसे बाद योगेन्द्र और महेन्द्र उर्फ़ 'मानू' | फिर गोद आए बेटे वीरेंद्र | फिर खुशियाँ लेकर आए सत्येन्द्र | अपने बेटों और बेटी के लालन पोषण में अनारो देवी इतनी मसरूफ़ हो गई थी के इस आपाधापी के चलते बाहरी जीवन किस ओर बहे चला जा रहा था उन्हें कुछ भी एहसास और आभास न था | सुबह से शाम तक बच्चों के साथ समय व्यतीत करतीं | उन्हें उचित संस्कार और सर्वोच्च माध्यम से शिक्षित करने का दायित्त्व पूर्णरूप से अनारो देवी पर ही था | उन्हें अपने धर्म और वेद पुराणों से अवगत करवाना तथा पूजा पाठ में रूचि जगाने का फ़र्ज़ भी अनारो देवी ही के हिस्से था | गंगा बहुत तो कारोबार के चक्कर के चलते इतना समय व्यतीत नहीं कर पाते थे | अतः शिशुओं के पालन पोषण का दायित्त्व अनारो देवी पर ज्यादा था | बच्चे भी बड़े हो रहे थे | सब समझते बूझते थे | वे सभी स्वभाव से विनर्म और आपस में बहुत प्यार से रहते | पढने लिखने के साथ ही माँ का रोज़मर्रा के कार्यों में हाथ बंटाया करते | अनारो देवी द्वारा सिखाई शिक्षा उनके चित्त को भली-भांति दृढ़ करके भीतर तक पैठा गई थी | सभी अपनी माता पिता की स्नेहमय भाषा भली भांति समझते और हमेशा आदर और सम्मान के साथ एक दुसरे से व्यव्हार करते थे | अपने नाना के तो सभी नाती नातिन चहेते थे परन्तु साहू साब को ख़ास लगाव मंझले नाती वीरेंद्र से था | वे हमेशा उन्हें हर कार्य में साथ रखते और अपने कारोबार का काम काज भी सिखाते और दीन दुनिया, दुनियादारी, व्यापार, क़ानून आदि के बार में भी समय समय पर अवगत कराते रहते | 

तिथि चाक जीवंत पर्यंत चलता रहता है | वक़्त किसी के लिए नहीं ठहरता | गुज़रते समय के साथ जीवन भी साकार रूप लेता रहा | अंततः गंगा सरन जी के जीवन से दुर्भाग्य का ग्रहण दूर हुआ | एक नया सूर्योदय हुआ और उनका कारोबार चल निकला | उन्होंने देसी थोक कपडे की आढ़त और देसी धागे से बुनी साड़ियों का काम कर लिया था | जो एक बार फिर से दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की की तरफ अग्रसर था | अनारो देवी और साहू साब के परामर्श से और अपने बुद्धि कौशल के बल पर उन्होंने खुदरा व्यापार के लिए बाज़ार में दुकान खरीदी | दुकान का नामकारण 'महिला वस्त्रालय' के नाम से करा गया | कुछ ही समय में उनकी दूकान की प्रखायती सम्पूर्ण मुरादाबाद में और आसपास के प्रदेशों में फ़ैल  गई | महिलाएं दूर दूर से वस्त्र खरीदने दुकान पर आतीं | मुल्क आज़ाद हो चुका था और वैसे ही गंगा बाबु अपने दुर्दिनो से मुक्त हो गए थे | उनका कारोबार एक बार फिर से आसमान की बुलंदियों की तरफ परवाज़ कर चुका था और एक नया मक़ाम हासिल करने हेतु अग्रसर था |

वक़्त के साथ अनारो देवी के परिवार में भी इज़ाफा हुआ | ख़ुदा ने उन्हें तीन और संतानों से नवाज़ा | जिसमें दो बेटियां बीना और माधरी तथा बेटे विनोद शामिल थे | अब उनकी कुल नौ संताने थी |  क्रमशः

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental. 

गुरुवार, फ़रवरी 28, 2013

श्रीमती अनारो देवी - भाग ६

अब तक के सभी भाग - १०
---------------------------------------------------------
गंगासरन जी नैराश्य भाव से ग्रस्त जड़ हुए खड़े रहे | चारों ओर क्या हाहाकार मच रहा था वे इस सब से अनभिग्य थे | अपने पिता के शिथिल तत्व तो अपने समक्ष देख उनके मस्तिष्क ने उनका साथ छोड़ दिया था | तभी कुछ लोगों ने आकर उनको झकझोरा और कहा,

"गंगा बाबू! आप यहाँ से लालाजी को लेकर निकल जाइए | दंगा भड़क गया है | बलवाइए कभी भी यहाँ आ सकते हैं | ऐसा न हो आप भी मुसीबत में पड़ जाएँ | घर पर औरतें अकेली हैं | जाकर उन्हें संभालिये  |"

अचानक ही उनका मौन भंग हुआ और वो अपनी विषम परिस्थिति को सँभालते हुए बोले,

"कल्लू भाई! कुछ लोगों को ले कर आप मेरे साथ चलिए | पिताजी को मैं अकेले नहीं ले जा पाउँगा | कृपया आप मेरी मदद कीजिये | मुझमें साहस नहीं इतना के ऐसी स्तिथि में, मैं स्वयं  माताजी का सामना कर सकूँ |"

कल्लू ने तुरंत कुछ लोगों को बुलवाया और पिताजी को उठा घर की तरफ रवाना हो गए | हवेली पहुँचते ही बहर आहते में जानकी बाबु के पार्थव शरीर को रख दिया गया | अन्दर से नौकर भागे भागे आए, बाबूजी की दशा देख शुब्ध रह गए | सबके चेहरे पीले पड़ गए | किसी ने ऐसे मंज़र की कभी परिकल्पना भी नहीं की थी  |

गंगा बाबु की माताजी और अनारो देवी जैसे ही दरवाज़े पर पहुंची तो अपने समक्ष ऐसा हृदयविदारक दृश्य देख वहीँ स्थिर हो गए | माताजी के प्राण सूख गए | एकटक टिकटिकी बांधे वो अपने प्रिये को निहारती रहीं | खामोश अश्रुपूरित नयन, गंगा बाबु से सवाल कर रहे थे,

"मैंने पिताजी को तुम्हारे भरोसे भेजा था | ये क्या हो गया |"

गंगा बाबु की नज़रें भी पीड़ित ह्रदय से माताजी को देख रही थी और खामोश थीं | उनके मर्मस्पर्शी बैनो का सामना करने की क्षमता उनमें कहीं से कहीं तक बिलकुल भी नहीं थी | वे सर को झुकाए अपने अन्दर ही व्यथित दशा से ग्रसित खड़े रहे |

कल्लू नाई, ने सभी को खबर करने की ज़िम्मेदारी उठाई और घर घर जाकर सभी को इस दुखद समाचार से अवगत कराया | तुरंत ही एक कारिन्दा मुरादाबाद अनारो देवी के घर भी भेजा गया | धीरे धीरे लोग शोक व्यक्त करने आने लगे और अंतिम विदाई का सामान भी जमा होने लगा | समय की ऐसी हृदयस्पर्शी परिक्रिया के चलते सुबह होने को आई थी और लोगों का तांता लगभग लग चुका था |

जानकी बाबु को श्रधांजलि देने के लिए शहर का बड़े से बड़ा अलिफ़ कालिफ़ अफसर तो क्या छोटे से छोटा कारिन्दा भी पहुँच गया था | उनकी अकलमंदी, सेवाभाव, उदारता, भलमनसाहत, अपनेपन, खुशमिजाज़ और मिलनसार रवैये और आदत के कारण शहर भर के लोगों में उनकी उठ बैठ थी | हर एक इंसान उनका मित्र था | जिसको भी उनके बारे में मालूम हुआ वही उलटे पैरों उनके घर सांत्वना देने पहुँच गया |

वहां मुरादाबाद खबर मिलते ही साहू साब आनन् फानन में मेरठ के लिए निकल लिए | उन्हें सुनकर विश्वास नहीं हो रहा था के ऐसा कैसे हो गया | जैसे तैसे पौ फटने तक साहू साब भी पहुँच गए | अपने साथ में वो कुछ लोगों को भी लाये थे | पहुँचते ही उनकी बुज़ूर्गियत का तज़ुर्बा और ऐसी परिस्थिति में माहौल को सँभालने का अनुभव काम आया | उन्होंने तुरंत ही गंगासरन और उनके परिवार को सहारा और सांत्वना दिया और अंतिम क्रिया की तयारी पूर्ण करवाने हेतु कार्यवाही शुरू करवा दी |

बड़े ही भारी और शोकाकुल मन से जानकी बाबु की अर्थी को कन्धा दिया गया | कलावती देवी अभी भी खामोश थी | उनकी आँख के आंसू सूख गए थे और वो खुद भी शिथिल पड़ चुकीं थीं | जानकी बाबु को अर्थी पर अपने से दूर जाते देख उन्हें बहुत ही तीक्ष्ण ह्रदयघाती सदमा लगा और उन्होंने भी अपने प्राण वहीँ त्याग दिए | महिलाओं के बीच हाहाकार मच गया | शोक की लहर दौड़ गई | सभी आपस में कानाफूसी करने लगीं,

"अरे ये क्या हो गया | कोई डाक्टर को तो बुलाओ | ये तो एक दम ठंडी पड़ गईं | अरे देखो इनमें तो जान ही नहीं बची | जानकी बाबु के साथ कलावती देवी भी स्वर्ग सिधार गईं | इतना प्यार था दोनों में के पति के जाने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई | पति के साथ ही निकल गए इनके प्राण भी |"

हवेली से आते शोर को सुनकर सभी रुक गए | एक आदमी ने जाकर देखा तो जानकी देवी के बारे में मालूम हुआ | उसने तुरंत आकर सबको यह मर्मस्पर्शी खबर सुनाई | गंगा बाबु तो सुनते ही अचेत हो गए | साहू साब ने आगे बढ़कर स्तिथि का संचालन किया और सब कुछ संभाला | जैसे तैसे गंगा बाबू को होश में लाया गया | दोनों अर्थियां तैयार थीं | गंगासरन तो अब पूरी तरह से टूट चुके थे | उनके शोक का अंदाज़ा कोई नहीं लगा सकता था | एक ही रात में माता पिता और व्यापार के खत्म होने का दुःख उनके ऊपर हावी होता साफ़ नज़र आ रहा था | पिताजी से विच्छेदन की पीड़ा क्या कम थी जो माता जी भी | ऐसी अवस्था में सिर्फ साहू साब का ही सहारा था | उन्होंने गंगासरन को ढाढस बंधाया और उन्हें शांतिपूर्वक माता पिता की अंतिम क्रिया करने के लिए हिम्मत दिलाई |

बहुत ही शोकाकुल परिमंडल में मातापिता का देह संस्कार हुआ | परन्तु इतने कम समय में भी इंतज़ाम में कोई कमी नहीं थी | टनों के हिसाब से चन्दन की लकड़ियाँ, देसी घी के टिन और बाकि ज़रूरियात का सामन मुहैया करने में साहू साब और गंगा बाबु ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी | बहुत ही भव्य तरह से माता पिता को अंतिम विदाई देकर और उनकी अस्थि विसर्जन संस्कार से निवृत होकर अब गंगा बाबु अपनी हवेली पर वापस आ चुके थे |

माता पिता का तीजा और तेहरवी के लिए पंडितों को भुलावा भेजा जा चुका था | भव्य भोज का आयोजन किया गया था | गरुड़ पुराण का पाठ आरम्भ करवा दिया गया था | शहर में सभी को सूचित करवा दिया गया था के गंगा बाबु की हवेली पर तेहरवी के दिन सभी को शिरकत करनी है | हर प्रकार से अपने माता पिता को स्वर्ग में स्थान दिलाने के लिए उन्होंने जो बन पड़ा किया | साहू साब के मार्गदर्शन में सभी काम शांति के साथ निपट गए थे | माता पिता भले ही अकस्मात् गंगा बाबु को बीच मंझधार छोड़ गए थे परन्तु उनका आशीर्वाद हमेशा उनके साथ बना हुआ था | अब तो साहू साब का हाथ भी उनके सर पर था |

समय ने सारे दुखों को भर दिया | मंद गति से समय भी पंख पखेरू हो गया | पीड़ा से बहार आते आते और काम को फिर से सँभालते साल गुज़र गया | परन्तु गंगा बाबु का व्यापार दोबारा उस तरह से जुड़ नहीं पाया | एक तरफ तो स्वदेशी आन्दोलन दूसरी तरफ भारत के विभाजन और भारत को स्वतंत्र करने की योजनाओ के चलते हुए दंगे फसाद ने कारोबार को एक दम ठप्प कर दिया था | उधर गंगा बाबु भी अकेले कब तक मशक्कत करते और हालातों से झूझते और लड़ते | उन्होंने इस मामले में साहू सब की राय लेना उचित समझा | उन्ही की सलाह पर और समझाने पर उन्होंने मेरठ छोड़ कर मुरादाबाद जाकर बसने का फैसला कर लिया |

धीरे धीरे गंगा बाबु ने सब कुछ बेच दिया | कारोबार, गोदाम, ज़मीन जायदाद, खेत खलिहान और आख़िरकार हवेली का सौदा भी हो गया | कार्तिक मास की पूर्णमासी का दिन था | गंगा बाबु ने अपने पुरखों की भूमि मेरठ को सदा के लिए अलविदा कहा | अनारो देवी, बिटिया और साहू साब के साथ हमेशा के लिए मुरादाबाद में जा बसे | क्रमशः

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.
 

बुधवार, फ़रवरी 27, 2013

राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...


सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !
मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ??? 

आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !
 यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :- 

सेवा में,
अखिलेश यादव, 
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार 
लखनऊ 

प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।

2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।

31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

  1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।
  2.  मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।
  3.  भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।
वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।

जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।

भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।

भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।

खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

  1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।
  2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।
  3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।
  4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  5. सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.
हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक |

तुषार राज रस्तोगी