गैरों के एहसास
समझ सकते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
लोगों की परख
रखते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
बेबाक़ जज़्बात
बयां करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
आँखों से हर बात
कहा करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़ल्ब* को साफ़
किये चलते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
दिल से माफ़ी
दिया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
आशिक़ी बेबाक
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
लबों पर मुस्कान
लिए रहते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
खुल कर बात
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़त्ल बातों से
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़ौल* का पक्का
रहा करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़ायदा* गर्मजोशी
का रखते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
ज़बां पर ख़ामोशी
लिए रहते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
आफ़त को बिंदास
हुए सहते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
गुज़ारिश दिल से
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
ग़म को चुप्पी से
पिया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
जिगर शेर का
रखा करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
जज़्बा बचपन सा
लिए जीते हो, तो
'निर्जन' हो तुम...
मुक़म्मल - पूर्ण / Complete
क़ल्ब - दिल
क़ौल - बात
क़ायदा - तरीका
बढ़िया है भाई जी-
जवाब देंहटाएंआभार -
वाह !
जवाब देंहटाएंगीता-जयन्ती' का का पर्व आप को मंगल- मय हो !
जवाब देंहटाएंएक गंभीर रचना के लिये आप को वधाई !
मेरे ब्लॉग 'प्रसून' पर श्रीमद्भगवद्गीता गीता पर कुछ नए विचार देखें !!
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन राज कपूर, शैलेन्द्र और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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