बुधवार, फ़रवरी 27, 2013

राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...


सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !
मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ??? 

आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !
 यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :- 

सेवा में,
अखिलेश यादव, 
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार 
लखनऊ 

प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।

2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।

31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

  1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।
  2.  मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।
  3.  भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।
वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।

जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।

भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।

भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।

खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

  1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।
  2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।
  3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।
  4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  5. सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.
हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक |

तुषार राज रस्तोगी

मंगलवार, फ़रवरी 26, 2013

मुक्ति

हे प्रभु
यह जीवन बहुत
विस्तृत है
और कठिनाइयाँ
अनेक हैं
अथाह मुसीबतों का
सागर सामने हैं
कितने ही
आस्तीन के सांप
फन फैलाये बैठे हैं
इन सब के
स्थूलकाय अम्बुधि से
क्या मैं
मुक्त्त हो पाउँगा
जो अनंत काल से
स्मृति और कुटुंब  बन
सम्बन्धी और नातेदार बन
पीछे दौड़ते हैं
आईना दिखाते हैं
तरह तरह के
जिसमें अपने आप को
अपने मूल स्वरुप को
बदलता हुआ देख
घबरा जाता हूँ
आत्मा तक बेचैन
हो जाती है
कहीं आँखें
छलिया तो नहीं
मझे इस
स्मृति भरे
आयुर्बल से
न जाने कब
मुक्ति मिलेगी... 

रविवार, फ़रवरी 24, 2013

श्री राम सेतु को बचाने के लिए आवाज़ उठायें



जय श्री राम, जय बजरंगबली महाराज,  हर हर महादेव, जय कारा वीर बजरंगी का, जय माँ भारती, बम बम भोले  |  जय हिन्दू महाराष्ट्र | भारत माता की जय |

घटिया राजनीति की परिचायक कांग्रेसी सरकार का एक और नंगा सच | सत्रह लाख वर्ष पहले श्री राम और उनकी सेना द्वारा बनाया गया राम सेतु तोड़ने की साजिश पर कायम है केंद्र सरकार | ये घटिया सरकार भगवान् राम के बनाये इस सेतु को तोड़कर सेतुसमुंद्रम परियोजना का निर्माण करने पर अड़ गई है | और इस कुकृत्य को करने हेतु इस दो कौड़ी की सरकार ने सर्वोच्च नयायालय से कहा है के ८२९ करोड़ रूपये खर्च करने के बाद इस परियोजना को बंद नहीं किया जायेगा | अपनी इस घ्रणित और ओछी हरकत के सही बताते हुए सरकार ये दलील देती फिर रही है के उनकी यह परियोजना आर्थिक और पर्यावरण के लिहाज़ से एक दम सही है | इससे घिनौने पाप को पूर्ण करने की मंशा में उन्होंने वैकल्पिक मार्ग के लिए गठित पर्यावरणविद श्री आर के पचौरी समिति की सिफारिशों को भी नकार दिया है और इस समिति को खारिज करने का फैसला किया है | 

सुप्रीम कोर्ट में दायर किये गए हलफनामे में जहाजरानी मंत्रालय ने कहा है के भारत सरकार ने बहुत शीर्ष स्तर के शोध के आधार पर परियोजना को शुरू किया है | परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय से भी मंज़ूरी दी है | पर्यावरण के शीर्ष संस्था नीरी ने भी परियोजना को आर्थिक और पारिस्थितिक तौर से ठीक करार दिया है | 

हलफनामे में कहा गया है के सेतुसमुंद्रम परियोजना सहित पचौरी समिति ने अपनी रिपोर्ट में वैकल्पिक मार्ग को साफ़ तौर पर नकार दिया है | समिति ने कहाँ था की ये परियोजना आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से सही नहीं है | 

आखिर यह घटिया परियोजना है क्या ? श्री राम द्वारा बनाये इस सेतु के टूटने से किसी को क्या लाभ हो सकता है ? हमारे भारत का विभीषण और फिरंगी एजेंट इस परियोजना को पूरा करवाने के लिए इतना लालायित क्यों है ? इसके पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है | अब आपको बताता हूँ के इसके पीछे क्या कारण है और रहस्य है |

१९९८ में जब भारत ने परमाणु बम ब्लास्ट किया था जो फिरंगियों के कलेजे में आग लग गई थी और उसने भारत को युरेनियम देना बंद कर दिया था | इसके आलावा फिरंगियों ने भारत की कम्पनियों को अमरीका में घुसने पर रोक लगा दी थी | इसके बाद अचानक से इन फिरंगियों ने भारत को युरेनियम देने को मान लिया | 

जब जोर्ज बुश भारत आया था और एक सिविल नुक्लेअर डील पर हस्ताक्षर किये गए थे | जिसके अनुसार फिरंगी भारत को युरेनियम-२३५ देने की बात कर रहे थे | उस समय सारा खरीदा हुआ मीडिया इस फिरंगी एजेंट की तारीफें करना नहीं थक रहा था पर इसके पीछे जो मकसद था और जो असल स्वार्थ की कहानी थी वो किसी को नहीं बताई थी | 

भारतीय वैज्ञानिक कई वर्षों से ये खोजने में लगे हुए हैं के युरेनियम के अतिरिक्त और कौन कौन से रेडियोएक्टिव इंधन हमारे पास हैं जिनसे हम नुक्लेअर बम और बिजली बना सकते हैं | एटॉमिक एनर्जी कमीशन के ६००० से ज्यादा वैज्ञानिक पिछले 40 साल से इस खोज में जुटे हुए हैं | खोज के दौरान उन्हें मालूम चला के तमिलनाडु, केरल के समुंदरी इलाकों में भारी मात्रा में ऐसे रेडियो एक्टिव इंधन मौजूद हैं जिससे आने वाले १५० सालों तक बिजली बनाई जा सकती है और परमाणु बम और दुसरे उपयोगों में भी लाया जा सकता है | आगे आने वाले समय में भारत को किसी के आगे हाथ फैलाने की ज़रुरत नहीं होगी | डाक्टर  कलाम  ने स्वयं कहा था के ३ लाख मेगावाट बिजली हर घंटे अगले २५० साल तक हम बना सकते हैं क्योंकि हमारे पास ऐसे स्रोत मौजूद हैं | यह बात उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कही थी | 

अब इस लालची फिरंगी देश की नज़र हमारे इसी खजाने पर है | वो चाहता है के वो भारत के इस इंधन के खजाने पर कब्ज़ा कर ले और इसके बदले में वो भारत को थोड़ी बहुत मात्र में युरेनियम दे दे | अपनी इस गन्दी मंशा को पूरा करने के लिए उसने भारत में अपने कुछ एजेंट तैनात कर दिए हैं जो उसका काम निकलने में उसकी मदद कर रहे हैं और हमारे देश को खोखला करने में लगे हुए हैं | 

इस काम को अंजाम देने के लिए मौनी सिंह या चुप्पा सिंह को नौकरी पर लगाया गया है | जो पिछले कई वर्षों से सरकार में बैठ कर हमारे देश को जोंक की तरह चूस रहा है | इस गूंगे सिंह ने करुणानिधि और टी आर बालू  के साथ मिलकर ये प्लान बनाया है के भगवान श्री राम की सबसे बड़ी निशानी श्री राम सेतु को तोड़ा जाए और मलवा अमेरिका को बेचा जाये | 

हमारे भारतीय साइंटिस्ट्स का ऐसा भी कहना है के इस सेतु धनुष कोटि के तल में ७ तरह के रेडियो एक्टिव एलेमेंट्स हैं | जो सिर्फ भारत की निजी संपत्ति हैं | और ये भारत की प्रगति के उपयोग में ही आने चाहियें | और अमरीका की गन्दी नज़र इन्ही खनिजों के खजाने पर है | और उसके भारत में बैठे ये एजेंट इसी ताक में है के कैसे इस खजाने को लूट कर इसे भारत से बहार बेच दिया जाये | सेतु को तोड़ने का असफल प्रयास एक बार पहले भी हो चुका है | और अब  यह गंदे लोग नए प्लान के साथ आए हैं | सेतु को युनेस्को जैसी बाहरी संस्था के हवाले करने को आतुर हैं |

महामहिम कोर्ट में केस आज भी चल रहा है और हर बार नई तारीख़ पड़ रही हैं | पर इससे इस घटिया सरकार पर और उसके इरादों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा | चुप्पा सिंह और उसके चमचे कहते हैं के ये सेतु भगवान् श्री राम चन्द्र ने नहीं बनाया ! श्री राम तो एक कल्पना हैं ! श्री राम कभी हुए ही नहीं हैं !


कितनी शर्म की और दुःख की बात है के हिंदुस्तान में रहते हुए हिन्दुस्तानियों की आस्था के साथ खिलवाड़ हो रहा है और हिन्दू इतनी बड़ी बात सुनकर भी शांत हैं | जबकि नासा जो की एक अमरीकी एजेंसी है उसने रामसेतु की पुष्टि कुछ साल पहले अपनी रिपोर्ट में की है | आज भी समुन्द्र में ऐसे पत्थर है जिन पर राम नाम लिखा हुआ है और वो पानी में तैरते नज़र आ जायेंगे | इसके सबूत आपको नीचे दिए गए  विडियो लिंक्स में मिल जायेगा |

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में भी ५५००० से ज्यादा बार श्री राम नाम का उल्लेख मिलता है और अपने धर्म के नाम पर धब्बा ये चुप्पा सिंह ऐसे घटिया बातें करने पर लगा हुआ है | भाई राजीव दीक्षित ने सन १९९७ में ही इस मौनी सिंह को फिरंगियों का एजेंट घोषित कर दिया था जो भारत को और भारत की संस्कृति को अंग्रेजों के पैरों तले रौंदने के लिए सरकार में बैठा है | इन सभी बातों के स्पष्ट प्रमाण आप नीचे दिए विडियो लिंक्स में भी देख सकते हैं | 

अगर आपको ऊपर लिखी श्री राम सेतु को तोड़ने की बातों को कोई  मज़ाक समझा जा रहा है तो एक बार कृपया नीचे दिए गए विडियो लिंक्स अवश्य देखें | मेरी हाथ जोड़ कर सभी हिन्दुस्तानियों से यही गुज़ारिश है के कृपया आगे आयें और इस घोर अनर्थ को होने से रोकें | नीचे दिए विडियो लिंक्स हर एक भारतवासी को इस बात से अवगत कराएँगे और इस तरह हर भारतवासी जान पायेगा के श्री राम सेतु सिर्फ हिन्दुओं की आस्था का ही केंद्र नहीं बल्कि भारत की परमाणु क्षमता युरेनियम, थोरियम और भी कई रेडियो एक्टिव खनिजों का खज़ाना भी है इसलिए सभी धर्म के लोग जो भारत को एक विकसित राष्ट्र देखना चाहते हो मैं निजी रूप से भी उनका आवाहन करता हूँ  के वो सभी अपनी आवाज़ उठायें और एक जुट हो कर श्री राम सेतु को बचाने के लिए आगे आयें | कृपया सहयोग दें और अपने राष्ट्र को इन दरिंदों से निजत दिलाएं | सभी भारतीय भाइयों से विनम्र निवेदन है कि क्यों ना आप किसी भी धर्म, मजहब से हो परन्तु ये राम सेतु सिर्फ हिन्दुओ कि आस्था नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत के सांस्कृतिक इतिहास का प्रतीक है | अगर तथ्यों को लेकर सोचें और गौर करें तो प्राचीन काल में न जाने कितने राष्ट्र भारत वर्ष में ही सम्मिलित थे | इसे एक सांप्रदायिक विषय ना समझ सांस्कृतिक भारत की धरोहर समझ कर इस बचाने का प्रयास करें।


जय श्री राम, जय बजरंगबली महाराज,  हर हर महादेव, जय कारा वीर बजरंगी का, जय माँ भारती, बम बम भोले  |  जय हिन्दू महाराष्ट्र | भारत माता की जय |

श्रीमती अनारो देवी - भाग ५

अब तक के सभी भाग - १०
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शाम होने तक अनारो देवी उनकी बाट जोहती रहीं | और सांझ ढलते ढलते गंगा सरन जी बेला और चमेली के गजरे लिए घर पर पधार चुके थे | घर पहुँचते ही उन्होंने अनारो देवी से पुछा,

"सुनिए क्या आप तयार हैं चलने के लिए ?"

अनारो देवी तैयार थीं | उन्होंने गंगा सरन जी द्वारा भेंट में दी हुई साड़ी बाँध रखी थी | कानो में झुमके, आँखों में काजल, माथे पर कुमकुम की बिंदिया, मांग में सिन्दूर, गले में मंगल सूत्र, कमर में सोने की तगड़ी, हाथों में जडाऊ कड़े और पाँव में छम छम करती पाज़ेब पहने वो एक दम महारानी लग रही थीं | उनके मुखमंडल पर तेज तो था ही परन्तु प्यार और दुलार की आभा ने उनके ललाट को और भी ज्यादा प्रकाशमान कर दिया था | उनके व्यक्तित्व का तेज दिव्यज्योति बन चारों ओर विद्यमान हो रहा था | उन्होंने मंद सी मुस्कराहट के साथ बड़ी ही शिष्टता और शालीनता से बिना कुछ कहे सर झुका दिया | वो समझ गए और बोले,

"आज तो आप क़यामत बरसा रही हैं | आपके रूप में साक्षात परीलोक की देवी की आभा झलक रही है |  आज तो अगर भगवान् भी आपको देख लें तो उनका भी ईमान डोल जाये | इससे पहले के मैं आपके सौन्दर्य के सैलाब में बह जाऊं और मेरा ह्रदय परिवर्तन हो जाये चलिए चलते हैं | कहीं मैटनी न छूट जाये |"

अनारो देवी शर्म से लाल होते, लजाते और आँखे चुराते हुए हौले से बोलीं, "रहने भी दीजिये | क्यों ठीठोली करते हैं | ऐसी बातें शरीफ घर के कुमारों को शोभा नहीं देतीं | जाइए माताजी और पिताजी से आज्ञा ले लीजिये | उन्हें अभी तक घूमने जाने के बारे में कुछ नहीं बताया है |"

वो बोले, "उन्हें तो मैंने कल ही सब कुछ बता दिया था | पिताजी ने ही तो अपने मित्र चौधरी साहब से कहकर टिकटें मंगवाई हैं | वो मैटनी हाल के मालिक हैं न | अब चलें वरना देर हो जाएगी |"

उस शाम दोनों ने ज़िन्दगी की पहली सांझ साथ बिताई | इसी तरह ज़िन्दगी का सुनेहरा वक़्त गुज़रता चला गया | महीनो बीत गए | समय हवाई घोड़े पर सवार सरपट दौड़ता रहा | अचानक एक दिन अनारो देवी ने माताजी को वो खबर बतलाई जिसका किसी को भी अंदेशा न था | खासकर इतनी जल्दी तो नहीं | अनारो देवी उम्मीद से थीं | खबर के सुनते ही सबके दिलों में अरमानो के चिराग जल उठे और सभी लोग उन्हें और ज्यादा प्यार, आदर और सम्मान देने लगे | साथ ही साथ हर एक तरह से उनका ख्याल रखा जाने लगा |

आखिर ख़ुशी का दिन आ ही गया | अब अनारो देवी पंद्रह वर्ष की आयु में प्रवेश कर चुकी थी | इसी आयु में उन्होंने अपनी पहली संतान एक चाँद सी और सुन्दर फूल सी कोमल बिटिया को जन्म दिया | हर तरफ खुशियाँ और प्रसन्नता की लहर दौड़ गई | घर में सभी की लाडली आ गई थी | दादा और दादी की नज़रें तो कभी भी उसके चेहरे से हटती ही न थीं | कहते हैं न मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है | तो अब तो ब्याज की किलकारियां, मुस्कराहट, अदाएं, रुदन, हंसी से समस्त आँगन भर गया था | किसी राजकुमारी की तरह से उसका लालन पालन हो रहा था |

तुरंत ही ये खबर एक सन्देश वाहक के ज़रिये उनके पिता साहू साहब के यहाँ भिजवा दी गई |

साहू साहब भी कहाँ रुकने वालों में से थे | तुरंत नौकरों को आदेश दिया,

"बाज़ार जाओ और हलवाई से कहना साहू साब नाना बन गए | अनारो के बिटिया आई है | उसकी सुसराल जा रहे हैं | उनके यहाँ मिठाई जाएगी | इक्कीस तरह की जो भी सर्वश्रेष्ट मिठाइयाँ है सभी पांच पांच सेर बंधवा दो | ध्यान रहे के उन सभी मिठाइयों में काजू की कतली, पिश्ते की कतली, मेवा पाक, करांची का हलवा, सोहन हलवा, कड़ाके का हलवा, जलेबियाँ, गुलाब जामुन, कालाजाम, मलाई चाप, चम् चम्, गाय के दूध की खुरचन, ताज़ा बना अंगूरी और केसरी पेठा ज़रूर हो | ताज़े फलों के ग्यारह टोकरे भी लगवाओ और ध्यान करना के कोई भी फल रखने से रह न जाये | ग्यारह थाल सवा सेर मेवा के भी सजवाओ | ग्यारह देसी घी के टिन, ग्यारह सेर ताज़ा बना हुआ गुड़, ग्यारह सेर केले, इक्कीस पानी वाले नारियल बड़े और बढ़िया वाले, पांच सेर नौरंग लाला के यहाँ का मेवा वाला नमकीन, छब्बन के यहाँ से ग्यारह तरह का अचार और ग्यारह तरह के मुरब्बे तुरंत बंधवा लाओ | मैं जाकर कपडे और गहने लेकर आता हूँ | समय बिलकुल नहीं है फ़ौरी तौर पर ही निकलना है |"

थोड़े ही समय में नौकर ने सारा सामान बंधवा दिया |

लालाजी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी | अपनी नातिन के लिए इक्यावन जोड़ी के कपड़े, ग्यारह जोड़ी नज़रिए, सोने के कंगन, चांदी की पाज़ेब, कमर की तगड़ी, नज़र का कला धागा और सोने की नाक की नालकी खरीद ली | समधीयों के लिए कपड़े और पांच तोले का सोने का सिक्का | दामाद जी के लिए ग्यारह जोड़ी कपड़े और दस तोले सोने की चैन | अनारो के लिए ग्यारह जोड़ी कपडे और गहने उन्होंने आनन फानन में खरीद डाले थे |"

सभी सामान एक गाड़ी में रखवा कर उन्होंने सन्देश वाहक और एक नौकर को उसमें बैठा दिया और स्वयं अपनी गाडी में बैठ कर सन्देश वाहक को साथ ही निकल पड़े |

सुसराल पहुँच कर उन्होंने सबसे पहले अपने समधी से मुलाक़ात की और उन्हें बधाई दी | उनके साथ आया नौकर पीछे से बोल पड़ा,

"हुज़ूर यह सामान कहाँ रख दूं ?"

साहू साब मिजाज़ से गुस्सैल तो थे ही बोले, "अबे मेरे सर पर रख दे | जा अन्दर जाकर हवेली की रसोई में खाने पीने का सामान रखवा दे | बाकी का सामान मैं खुद अनारो को दूंगा |

साहू साब ने एक एक कर के लाये उपहार बाइज्ज़त सबके हाथों में दिए | इतना सारा सामान और मिठाइयाँ आदि देख कर जानकी प्रसाद जी बोल पड़े,

"साहू साब आप आए इससे बड़ी बात और क्या होगी पर इतना सामान कुछ ठीक नहीं लगता | "

"साहू साब ने फ़रमाया, अजी साब क्यों तकल्लुफ वाली बातें करके शर्मिंदा किया करते हैं आप | हम तो बेटी वालें हैं, देना तो हक बनता है | और फिर अभी तो देवी माँ ही पधारी हैं अगली दफा ज़रा नन्दलाल को आने दीजिये फिर रौनक देखिएगा |"

और फिर दोनों दिल खोल कर हंसने लगे | जानकी प्रसाद जी बोले, "आप अनारो से मिल लीजिये और हाथ मुंह धो लीजिये फिर आराम से वार्तालाप और गपशप करते हैं |"

साहू साब को सामने देख अनारो की आँखें छलक गई, भाग कर अनारो उनके गले लिपट गईं और उन्होंने रुंधे गले से पुछा, "कैसे हैं पिताजी ? आपकी बहुत याद आई | "

साहू साहब सँभालते हुए बोल पड़े, "पगली! रोती क्यों है | देख मैं तो भला चंगा हूँ | अब तो ख़ुशी से और भी फूल गया हूँ | देख मैं तेरे लिए क्या क्या लाया हूँ | अपने साथ लाये सभी उपहार, गहने और कपडे अनारो को देने के बाद पूछा,

"मेरी छोटी अनारो कहाँ है ?"

अनारो ने पालने की तरफ इशारा किया और बोली, "वहां आराम फरमा रही हैं मोहतरमा |"

साहू साब आगे बढे और बिटिया को गोद में उठा लिया | थोड़ी देर नज़र भर के उसे निहारा और फिर पलने में वापस लिटा दिया | अनारो की आँख से थोडा सा काजल ऊँगली पर लेकर बच्ची माथे पर लगा दिया | फिर जेब से इक्यावन हज़ार रूपये निकले और उसके सिहराने रख कर बोले,

"गुडिया, ये नानाजी का आशीर्वाद है | जल्दी से बड़ी हो जाओ फिर लेने आऊंगा | फिर नाना का घर भी अपनी चांदनी से आबाद करना | अरसा हुआ, हवेली में किसी की किलकारी सुने हुए | पिछली दफा बस तेरी माँ के रोने और हंसने की आवाज़ याद है मुझे तो | अब तू आ गई है | तेरे साथ खूब खेलूँगा |"

इतना कहकर पलटे और अनारो से पुछा,

"जमाई राजा कहाँ हैं? जल्दी से उनसे भी मिल लेता हूँ | फिर आज ही वापस भी जाना है | फ़सल खड़ी है | फ़सल काटने के काम ज़ोरों पर है | मेरे अनुपस्थित होने से सब कामचोर मनमानी करेंगे | इसलिए आज ही वापस जाना होगा | वो तो खुशखबरी ऐसी सुनी तो रहा न गया और दौड़ा आया | "

उन्होंने अनारो को ढ़ेरों आशीर्वाद दिए | अपनी सेहत और संतान का ख्याल रखने की सलाह दी |  जमाई राजा से मिलकर उन्हें उपहार, बधाई और आशीर्वाद दिए | रात हो गई थी | सबने उनसे रुकने का बहुत आग्रह किया  परन्तु जय राम जी की कर साहू साब जिन पैरों आए थे उन्ही पैरों वापस लौट गए |

ऐसे ही हँसते खेलते और गुनगुनाते हुए शादी के कुछ बरस और बीत गए | अनारो देवी भी अब जीवन के अट्ठारह सावन पार कर चुकीं थी | करोबार और घर के हालात अपने शिखर को छु रहे थे | गंगा सरन जी का कारोबार आज आसमान की बुलंदियों पर था और पाताल की गहराइयों तक उसकी जडें जम चुकी थीं परन्तु देश के हालत दिनों दिन बिगड़ रहे थे |

देश को आजाद करवाने की कवयातें दिनों दिन जोर पकडती जा रही थी | इसके चलते एक अभियान ने उनके जीवन को ऐसा पटका के उसका झटका कहर बन उनके परिवार पर ऐसा बरपा के रातों रात सब कुछ नष्ट हो गया | हिन्दुस्तान में स्वदेशी आन्दोलन जोर पकड़ रहा था | जगह जगह विदेशी माल की होली हो रही थी | गंगा सरन तो विदेशी माल के बहुत बड़े व्यापारी थे | एक रात अचानक आधी रात जानकी प्रसाद जी के हवेली के दरवाज़ों पर ज़ोरों के दस्तक बज उठी | घर में सभी चौंक कर उठ बैठे | सभी की दिलों में घबराहट और बेचैनी थी के इतनी रात गए क्या हुआ ? कौन है जो इतनी जोर जोर से दरवाज़ों को पीट रहा है | घर के नौकर ने जाके पुछा,

"कौन है भैया इतनी रात गए ?"

बहार से आवाज़ आई, "भैया जल्दी से दरवाज़ा खोलो | गंगा बाबु से मिलना है | जानकी बाबु को बुलाओ | बहुत अनर्थ हो गया है |"

नौकर ने दरवाज़ा खोल दिया | सामने कल्लू नाई खड़ा था | उसके साथ कुछ और लोग भी थे | गंगा सरन जी और उनके पिताजी दौड़ कर दरवाज़े पर आए और पुछा,

"अरे कल्लू तू ! क्या हुआ ? इतने घबराये हुए क्यों हो कल्लू ? कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ? आसमान सर पर क्यों उठा रखा है ?"

"बाबूजी अनर्थ हो गया जल्दी चलिए | स्वदेशी आन्दोलन वालों का हुजूम आया था | उसने आपके गोदामों और दूकान सभी की होली कर दी | सब कुछ ध्वस्त हो गया | जल कर खाख हो गया | कुछ भी नहीं बचा | हमने समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु किसी ने एक न सुनी | और तो और उन्होंने बाज़ार की और भी कई दुकाने फूँक डालीं जो विदेशी माल का व्यापार करते थे |"

कल्लू की बात सुनकर सबको बड़ा धक्का लगा | किसी ने इसके बारे में सोचा तक न था | ऐसा उनके साथ भी हो सकता है इसका ख्याल किसी के भी ज़हन में आज तक नहीं आया था | वो शहर के बड़े व्यापारियों में से एक थे | ऊपर तक उनकी पहुँच थी | वे आश्वस्त थे की उनके ऊपर कोई आंच नहीं आएगी | सभी तुरंत मिलकर बाज़ार के लिए निकल पड़े | साथ जाते वक़्त आधे रस्ते ही जानकी प्रसाद जी को अतितीव्र ह्रदयघात हुआ | दूकान पहुँचते पहुँचते ही उनकी हालत काफी बिगड़ गई और उनके प्राण पखेरू वहीँ ब्रह्मलीन हो गए | गंगा सरन कुछ समझ नहीं पा रहे थे | उनके साथ इतना कुछ अचानक हो गया था के वो कुछ भी सोचने, समझने और कहने की स्तिथि से परे जा चुके थे | वो निःशब्द, मौन हुए निष्क्रिय, प्राण विहीन अपनी पिता को एक टक देख रहे थे और दूसरी तरफ ख़ामोशी के साथ स्थिर खड़े अपनी बरसों की मेहनत को धधक धधक कर स्वाह होते हुए | उनके स्वर मौन थे और दिमाग शांत हो चुका था | किसी मूक दर्शक की भांति अपने सामने घटने वाली नियति की लीला को वो समझ नहीं पा रहे थे |

किसके लिए रोयें | पिता की अकस्मात् मृत्यु होने पर या फिर अपने जीवन के समस्त परिश्रम से अर्जित पूँजी के भस्म हो जाने पर | ऐसी परिस्थिति में उनकी मनोदशा अत्यंत वेदना पूर्ण थी | उनके पिताजी शायद खुशकिस्मत थे के परलोक सिधार गए थे | परन्तु गंगा सरन जी की अवस्था न जीवित में थी न मृत में |  क्रमशः

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All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.
 

शनिवार, फ़रवरी 23, 2013

सजदे में उसके जाऊं क्यूँ

सजदे में उसके, मैं नहीं गया
बंदगी पे उसकी, मैं फ़िदा नहीं
न इबादत में, न जमात में
शिकवा भी तो, किया नहीं
मैं हूँ नहीं, खुदा परस्त
यारों मैं हूँ, बेवफा सही
मुझको नहीं
फ़िदा'ऎ-दिल अज़ीज़
दीन-ओ-दिल, की मुझको
परवाह नहीं  
फिर उसके, बाब जाऊं क्यों
मुझे जिससे कोई, गिला नहीं
या ख़ुदा, मैं हूँ काफ़िर अगर
ये उसको मैं, बतलाऊं क्यूँ
'निर्जन' तेरे न होने से भी
किस के काम बंद हैं
अब रोये बार बार क्या
तू करता हाय हाय क्यों
बस अपने में जीता जा तू
और अपने में मरता जा तू
कर के याद किस बेवफा को तू
है अपना दिल, जलाये क्यों
मैं हूँ नहीं, खुदा परस्त
सजदे में उसके, जाऊं क्यूँ

शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2013

धमाके

मदमस्त बसंत की एक शाम
गूँज सुनाई दी हाय राम
पहले हुआ धमाका आम
फिर जोर के फटा भड़ाम
धुएं का जब छटा बादल
तो बह निकला सारा काजल
लहू की मनका जो बहती
नीचे धरती को है छूती
कितने ही मूर्छित हुए
कितने हो गए मूक
कितने बधिर हो गए
कितने कर गए कूच
मृत्यु का हाहाकार मचा
यमराज ने कैसा वार रचा
हर एक धमाका था कैसा
आया पृथ्वी पर भूचाल जैसा
मानवता फिर से हार गई
भारत माँ शर्मसार हुई
कब तक रहेगा हाल यही
अब कौन करेगा अपने
देश के बिगड़ते हाल सही

श्रीमती अनारो देवी - भाग ४

अब तक के सभी भाग - १०
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उस दिन दोनों घंटो सोये | छोटे से शिशु की भांति नींद कैसे दोनों को थपथाती रही पता ही न चला | सुबह उठते ही अनारो बिजली की गति से तयार हो कर रसोई में जा पहुंची | महाराज ने उत्सुकता और आश्चर्य से पुछा, 

"बहुरिया, इहाँ कईसे ? कछु चाहियें का बताई दो कमरा में भिजवा देत हैं |"

इतना सुनते के साथ ही अनारो हंस पड़ीं | कहने लगीं, "नहीं काका, आज आपकी छुट्टी | आज सबके लिए नाश्ता और भोजन मैं बनाउंगी |" 

महाराज मुंह बिचका कर बोले, "ए हे, बिटिया, बिलांद भर की तो तुम हो अभी, इत्ता जन का खाना कईसन बनाब ? तुम्हरी तो अभौ खेलत का उम्र भयी | नई नवेली दुल्हन हो तुम,  जाओ बिटिया जाके आराम करौऊ |"

अनारो ने सब कुछ सुनते सुनते ही हाथ में करछी थाम ली और जुट गईं काम में | सूजी और मेवा का हलवा, टिमाटर और धनिये वाले आलू, धनिये और इमली की चटनी, मिस्सी पूरी और केसरी लस्सी ऐसे तयार कर डाली मानो कोई बच्चों का खेल हो | पाक कला का ऐसा अद्भुत प्रदर्शन देख महाराज का मुंह, हाथ के साथ और भी पता नहीं क्या क्या खुला रह गया | भागे भागे महाराज रसोई से बहार आए और कलावती देवी को पुकारते हुए बोले, 

"माई अरी ओ माई, तुम बहुरिया लाईस हो या जादूगरनी ? फिरकनी की तेजी से इत्तो खानों बना दियो मोड़ी ने | कहाँ से ढूँढ लाइ लल्ली को | जा तो अन्नपूर्णा है अन्नपूर्णा | हाँ | ठाकुर जी भला करें बहुरिया का | अब तौ हमौ का भी आराम मिल जाई |"

जितने कलावती देवी महाराज की बात सुनकर कमरे से बहार तशरीफ़ लातीं, उतने समय में तो पूरा खाना दस्तरखान पर लगाया जा चुका था | और अनारो देवी इंतज़ार कर रही थीं के कब घर के सभी सदस्य एकत्र हो कर सुबह के भोज का आनंद प्राप्त करेंगे | 

धीरे धीरे सभी खाने के लिए रसोई में पधार गए | जानकी प्रसाद जी बोले, "महाराज नाश्ता परोसें |"

इतना सुनना था के अनारो झट से थाली ले आई और सबसे पहले उनके आगे धर दी और नाश्ता परसने लग गईं | उनको खाना परस्ते देख पिताजी बोल पड़े, "अरे बेटा, तुम नहीं | महाराज हैं न | तुम्हारी तो अभी नई नई मेहंदी रची है | जाओ आराम करो, खेलो कूदो, जो जी में आए वही करो बिटिया वरना मेहंदी ख़राब हो जाएगी |"

पिताजी की बात सुन अनारो देवी मुस्करा कर बोलीं, "बाबूजी, जो दिल में आ रहा है वही तो कर रही हूँ | अपनों को खिलने से जो ह्रदय को सुकून पहुँचता है उसपर ऐसी कई मेहंदियाँ कुर्बान | आज मैंने बड़े मन से और चाव से आप सबके लिए नाश्ता बनाया है | आप चख कर आशीर्वाद देंगे तो मेरा प्रयास सफल हो जायेगा | आप चखेंगे न ?"

लाला जानकी प्रसाद का मुख मंडल खिल उठा | बांछे मुस्कराने लग गईं |  उनके घर में प्राण फूंकने वाली गुड़िया आ गई थी | सभ्य, सोम्य और संस्कारी | उन्होंने तुरंत उसके सर पर हाथ रखा और कहा, "ज़रूर बिट्टो, तेरे हाथ का अन्न तो अमृत है | आज तो दो गुना भोजन ग्रहण करूँगा | और दिल से आशीर्वाद भी दूंगा | ला थल्ली परस दे और सबसे पहले तो हलवा खाऊंगा और हाँ आज मुझे मीठा खाने से कोई नहीं रोकेगा, सुना सबने | आज तो जी भर लस्सी का पान करूँगा"
  
इतना सुनते ही सब जोर जोर के ठहाक़े लगाने लग गए | अनारो ने जल्दी जल्दी हिरनी की फुर्ती से सबकी थाली परस दी | गंगा सरन जी भी ये सब देख मंद मंद मुस्का रहे थे और स्तिथि का आनंद मूक दर्शक बन उठा रहे थे | एक एक करके अनारो ने सभी को अपने हाथों से खाना पर्सा | देसी घी की गरमा गर्म पूरियां उतार कर सभी को सामने थाली में परसीं | सभी पहले दिन ही अनारो की वाह वाही करने में लग गए | आज साहू साहब की सिखाई शिक्षा में उत्त्तीर्ण होने का समय था | अपने पिता के दिए संस्कारों को सिद्ध करने का समय था |  अपने पिता का सर गर्व से ऊँचा करने का दिन था | 

अनारो द्वारा बनाया खाना खा कर सब उनके गुणगान करने लग गए थे | सभी आश्चर्यचकित थे के इतनी कम उम्र में ऐसी कुशलता, एक सभ्य और कुलीन घराने की महिला में ही हो सकती है | जिसकी परवरिश में ऐसे संस्कार मिलें हो ऐसी महिला हमेशा घर को अपने आँचल में बाँध कर रखती है | और यही सारे गुण सभी परिवार जन को उनमें नज़र आ चुके थे | वे सब निश्चिन्त थे के अब गंगा सरन जी का साथ देने एक सर्वश्रेष्ठ नारी का चयन करने में उन लोगों ने कोई चूक नहीं की है | उनकी सारगर्भित बातों से और उनके मन को लुभाने वाली अंदाजों से सभी मंत्रमुग्ध हो उनके व्यक्तित्व से जुड़ते जा रहे  थे | और वो भी अपने स्नेह और खुशमिजाजी से सभी के दिलों में बसती जा रही थी | 

नाश्ते के पश्चात सभी अपनी उँगलियाँ चाटने में लगे थे | खाने के स्वाद की और बनाने वाली की  तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे | काश उस समय मोबाइल होता तो आज अनारो जी का वो रूप संजोया जा सकता | पिताजी ने अनारो को पास बुलाया और अपनी जेब से निकल कर सारे पैसे उनके हाथों में रख दिए और दिल से आशीर्वाद दिया | माताजी ने अपने गले से सोने की चैन उतार कर उसे पहना दी | घर के बाक़ी सदस्यों ने भी कुछ न कुछ भेंट उन्हें दी | परन्तु वहां गंगा सरन जी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे | वो प्लेट समेत नदारत थे | उन्हें ढूँढ़ते ढूँढते वो अपने कमरे में पहुँच गईं और वहां क्या देखती हैं एक सुन्दर सी बनारसी सिल्क की जारी वाले बॉर्डर की साड़ी हाथ में लिए गंगा सरन जी खड़े हैं | अनारो को देखते ही बोले, 

"आईये, आप की ही प्रतीक्षा में था | मुझे ज्ञात नहीं आपके हाथों में माता अन्नपूर्ण का वास है | बहुत ही स्वादिष्ट भोजन था | मन तो करता है के आपके.....कहते कहते वो वहीँ रुक गए | लीजिये आपका इनाम | एक छोटी सी भेंट मेरी तरफ से | आशा करता हूँ आपको पसंद आएगा मेरा तोहफा | बताइए कैसा लगा ?"

अरे भई, "अँधा क्या चाहे दो आँखें", साड़ी और वो भी बनारसी सिल्क की | अनारो देवी चहक उठीं | ख़ुशी में उछल पड़ीं | उनकी सबसे बड़ी खवाइश आज बिन मांगे पूरी हो गई थी | उन्हें उपहार स्वरुप ही बनारसी साड़ी मिली थी जो उन्होंने आज तक सिर्फ या तो अंग्रेजी पार्टियों में पहने गोरी चमड़ी वाली मेमों को देखा था या फिर हिंदी फिल्मों में | जी हाँ फिल्मों का भी बेहद शौक रखती थीं | उन्होंने तुरंत साड़ी कंधे से लगा कर पुछा, 

"सुनिए! मैं कैसी दिखती हूँ?" 

"एक दम अप्सरा | शाम को तयार रहिएगा | आपको घुमाने ले चलूँगा और मैटनी भी दिखाऊंगा | और शाम को आपके लिए एक और ज़बरदस्त अचरज भी तयार है | पर एक शर्त है ?"

वो बोलीं, "वाह जी वाह, शर्त काहे की  ? ब्याह कर लायें हैं आप, अब तो मेरी सारी इच्छाएं आप ही पूरी करेंगे | यदि मैं आपकी हूँ तो मेरी हर ख्वाइश भी तो आपकी ही हुई |"

इस बात पर गंगासरन जी ठहाका लगाकर हँसे और बोले, “जी हाँ ! ज़रूर होम मिनिस्टर साहिबा ज़रूर" | चलिए चलता हूँ, शाम को लौट कर मिलता हूँ | हलवा सच में बहुत ही स्वादिष्ट था कहते हुए गंगा सरन जी दूकान की ओर कूच कर गए | क्रमशः

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कुंडलियाँ

मट्टी चाक धराये के, तेज़ घुमावत आप
निराकार माटी को, देती आकार है थाप
देती आकर है थाप, सृजन अँगुलियों से करते
आकृति देकर प्राण, जीवन कण कण में भरते

परवरिश चाक समान है, शिशु माटी के तुल्य
ममता प्राण समान है, सबसे है अमूल्य
सबसे है अमूल्य, जड़ तत्व है मानवता का
रीढ़ बने मज़बूत, यदि त्रुटिहीन हो ख़ाका

अपनों के सानिध्य में, शुद्ध शिक्षा ग्रहण कराये
मानुष के संस्कार से, सामाज है तरता जाए
सामाज है तरता जाए, प्रार्थना करता है ‘निर्जन’
नाज़ुक प्रवृत्ति को सींचिये, कर भविष्य अवलोकन 

बुधवार, फ़रवरी 20, 2013

आराधना

एक शक्ति
जागृत हो
आराधना
करनी चाहियें
ईश्वर की
वो बल शक्ति दो
जिससे समस्त
समाज को
हर स्त्री
एक सशक्त
संतान दे
जिसका कर्म
मानव समाज को
समर्पित हो |

मंगलवार, फ़रवरी 19, 2013

श्रीमती अनारो देवी - भाग ३

अब तक के सभी भाग - १०
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गाजे बाजे और रौनाकों के बीच से होते हुए, एक दुसरे का हाथ थामे वे दोनों हवेली के अन्दर चल दिए | अनारो देवी और गंगासरन अपने पिताजी और माताजी के साथ हवेली के प्रवेश द्वार पर पहुंचे | वहां पहले से ही परिवार के लोग स्वागत की तयारी किये मौजूद थे | चावल से भरी हांड़ी को हवेली की ड्योढ़ी पर रखा गया था | और नव युगल के आरते का थाल लिए परिवार के अन्य सदस्य बड़ी ही बेसब्री से दोनों की बाट जोह रहे थे | द्वार पर पहुँचते ही कलावती देवी ने अनारो के कान में धीरे से फुसफुसाया,

"बिटिया आरते के बाद, दाहिना पाँव उठाकर धीरे से ठोकर देकर चावल की हांड़ी को गिरना |"

अनारो ने धीरे से गर्दन हिलाकर समझने का इशारा किया | कलावती देवी तुरंत घर के अन्दर प्रवेश करती हैं और आरते की थाली लेकर दोनों की आरती उतरती हैं और फिर नज़र से बचने के लिए दोनों के सर से लाल मिर्ची वार फेर कर के आंच में डलवा देती हैं | अनारो धीरे से हांड़ी को पाँव से गिराकर ग्रेहप्रवेश करती हैं | प्रथम कदम घर में रखते ही उनके सामने सिन्दूर से भरा थाल प्रस्तुत कर दिया जाता है और कहा जाता है के,

"बहुरानी तुम तो लक्ष्मी का रूप हो, अब अपने दोनों पाँव इस आलते के थाल में रखकर खड़ी हो जाओ | फिर पहले अपना दायाँ पाँव बहार निकलना और ज़मीन पर इस सोच और प्रभु से प्रार्थना के साथ रखना के, हे प्रभु! मेरे और मेरे परिवार के जीवन में धन-धान्य, सुख-समृद्धि, अन्न-भोजन, लाड-प्यार, करुना-दुलार, आचार-विचार, आशा-अभिलाषा और मान-सम्मान की सदैव नदिया बहती रहें | मेरे पति के कारोबार में वृद्धी-समृद्धि बनी रहे | आरोग्य जीवन तथा निरोग्य काया हमेशा बरक़रार रहे | समस्त परिवारजन का स्नेह-आशीर्वाद मेरे सर पर बना रहे |  इस सोच, विचारधारा और सुमति के साथ ही अपने शुभ चरण कमल के निशान से हमारे घर आँगन को पवित्र करना |"

अनारो देवी ने ठीक वैसा ही किया | बुजुर्गों की बात और मंशा का मान रखते हुए उन्होंने अपना सर्वप्रथम चरण अपने नेक इरादों और मंगल मनोकामनाओं के साथ आहिस्ता से ज़मीन पर रखा | अपने पीछे पावों के निशान फर्श पर छापते और छोड़ते हुए वो धूम धाम और पूरे आदर सत्कार के साथ घर में दाखिल हो गईं |  

एक नव विवाहित स्त्री के लिए उसकी सच्ची और सुलझी हुई सकारत्मक, आशावादी, धनात्मक, प्रत्यक्षवादी और निर्णायक सोच ही प्रायः उसके जीवन में आने वाले सुखों का कारण बनती है | बुजुर्गों ने कहा भी है के "जैसी होती सोच वैसा मिलता भोज" | इसी के साथ अनारो देवी के नए जीवन की नई सुबह आरम्भ हुई | 

विवाह उपरान्त के बाद सुसराल में सहजता से मन लगाने के लिए और सबसे घुलने मिलने के लिए अनेकों तरह के खले उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे | ये खेल इसलिए खेले जाते हैं के नई दुल्हन को स्वच्छंद और आरामदेह माहौल मुहैया कराया जा सके | जिसमें वो रमती चली जाये और आने वाले समय में उसे किसी भी तरह का कोई संकोच करने की ज़रुरत महसूस न हो |

इन सभी रस्मों रिवाज़ों से निवृत होते होते कब दोपहर हो गई पता भी न चला | अब दोनों पति पत्नी पूर्णतः पस्त हो चुके थे | अलसाई आँखे लिए दोनों जैसे तैसे रीति रिवाज़ों को पूरा कर रहे थे और मेहमानों की हंसी ठिठोली के पात्र भी बन रहे थे | तभी गंगासरन जी के पिताजी जानकी प्रसाद जी की कड़क आवाज़ आई,

"अरे भागवान, यदि सभी रस्में और कसमें निबट गईं हो तो अब लल्ला और बिटिया को थोड़ी देर आराम भी करने दो | बच्चे कब से जाग रहे हैं | देखो ज़रा दोनों की शक्लें नींद के मारे कैसे मुरझाये जा रही हैं | और बाकी सब मेहमानों को भी आराम कर लेने दो | हंसी मजाक के लिए तो अब ये दोनों यही हैं | सारी ज़िन्दगी है अभी मजाक्बाज़ी के लिए |  बहु बिटिया अब अपनी ही है कोई पराई नहीं |"

इतना कहते हुए वो दोनों के पास आए, सर पर हाथ फेरा और कलावती देवी से उन्हें अन्दर ले जाने को कहा |

अपने कमरे में दाखिल होते ही थकान से चूर चूर दोनों निढाल होकर धप्प से बिस्तर पर ऐसे गिर पड़े मानो कोई पेड़ काटने के बाद धरती पर गिरता है | कब दोनों निंद्रा की गोद में समां गए मालूम ही न चला | अब दोनों स्वछन्द रूप से स्वप्न नगरी में भ्रमण-विचरण कर रहे थे | सभी मेहमान भी आराम करने चले गए थे और सम्पूर्ण घर में एक सुखमय शांति का वातावरण जागृत हो गया था | क्रमशः

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सोमवार, फ़रवरी 18, 2013

श्रीमती अनारो देवी - भाग २

अब तक के सभी भाग - १०
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विदा हो अनारो देवी सुसराल के लिए रवाना होने को तयार थीं | मेरठ का सफ़र तक़रीबन दो-तीन घंटे का था | उनके पिताजी ने दहेज़ के साथ एक विशेष गाड़ी का प्रबंध भी किया था | उस समय गाडी में जाना बहुत रुतबे और शान की बात हुआ करती थी | साहू साब ने तो गाडी भी स्त्रीधन में ही दे दी थी | उनकी इस भेंट से सबके मुंह खुले रह गए थे | नम आँखे लिए वो गाडी में सवार हो गईं | और गाडी गंतव्य की ओर चल पड़ी | अनारो देवी दूर तक अपनी हवेली और अपने पिता को तान्क्ती रहीं । रास्ते भर गाडी में बैठी नवजीवन के सपने संजो रही थीं | चुप चाप सिमटी सी नाज़ुक गुडिया की भांति एक तरफ बैठी थीं | मनमोहक नयन अश्रुपूरित थे और पानी की छलकती बूँदें आकर कर उनके गालों को चमका रही थी ।

दूसरी तरफ उनके नव जीवन सहनर्तक चुपचाप मंत्रमुग्ध हो उन्हें निहार रहे थे | दोनों की उम्र में तकरीबन चार पांच वर्ष का अंतर रहा होगा | अनारो के मन में सिर्फ यही बातें चल रही थीं के कैसा होगा उसका नया संसार, नया जीवन, नए लोग, नया परिवेश | उनके लिए सब कुछ एक स्वपन के समान था | आखिर थी तो कच्ची उम्र ही | इनती छोटी उम्र में शादी कर किसी नए घर की ड्योढ़ी में कदम जमाना और वहां के तौर तरीक़े अपनाना कोई आसान काम तो नहीं था | पिता की लाडली को हर पल यही एहसास हो रहा था के पिताजी अकेले हो गए हैं | कैसे होंगे? तबियत ठीक होगी या नहीं? सुसराल में जाकर कैसा वातावरण मिलेगा | सास और सुसर कैसा व्यव्हार करेंगे | और भी ऐसे अनेकों सवाल उनके ह्रदय में हिचकोले खा रहे थे | पर बालक मन तो चंचल होता ही है | उन्होंने गंगा सरन जी की तरफ देखा और पूछ ही लिया,

“सुनिए वहां मेरे साथ खेलेगा कौन, कौन मुझे समझाएगा, कौन मेरे सवालों के जवाब देगा, कौन मुझे नई चूड़ियाँ लाकर देगा, कौन ध्यान रखेगा मेरा ? और मेरे मनपसंद खाने के व्यंजन कौन बनाएगा ?”

गंगासरन उनकी सादगी पर फ़िदा हो गए थे | वो उनके भोलेपन पर मर मिटे थे | वो कुछ न बोले और धीमे धीमे से मुसकाते हुए अनारो के मुखमंडल को निहारते रहे | अनारो भी उनकी आँखों में अपने अस्क को देख शर्मा कर चुप हो गईं और मूक बनी मन ही मन अपने विचारों की उधेड़ बुन में लग गईं और अपने सवालों के जवाब सोचने लग गईं | विचारों में विचरते रास्ता कब मंजिल तक ले आया इसका भान ही न हुआ |

गाडी हवेली के मुख्य द्वार पर आकर रुकी | सारे रस्ते मौन व्रत धारण करने वाले पतिदेव के मुंह से धीरे से निकले प्रथम स्वरों ने अनारो देवी के दिल में गहराई तक पैंठ कर ली,

“सुनिए, घर पहुँच गए | आप स्वयं उतर पाएंगी क्या या मैं मदद कर दूँ ? कहें तो हाथ थम कर ले चलूँ अन्दर तक | आपके लिए सब अनजान होगा अभी तो मैं सबसे मिलवाता चलूँगा | फिर आपका ख्याल भी तो रखना है | आपके साथ खेलना भी है और नए खेल के बारे में समझाना भी तो है | आपके जो भी सवाल हैं उनका जवाब भी देना है | आपने बताया नहीं चूड़ियाँ कौन से रंग की पसंद हैं आपको वो भी तो लेकर आनी हैं | और आपका मनपसंद खाना वो भी तो बनवाना है | ”

अनारो ये बातें सुनकर विस्मित हो उनकी तरफ निहारती रहीं और शर्म से आँखें झुक गईं | फिर उन्होंने गाडी का दरवाज़ा खोला और बाहर आकर अनारो को धीरे से पैर नीचे रखने को कहा और उनका हाथ थामे धीरे से उन्हें गाड़ी से नीचे उतार लिया |

बहार का नज़ारा देख कर अनारो की आँखें खुली की खुली रह गईं | उनकी नज़रों के सामने एक शानदार हवेली थी | हर तरफ गुलाब और गेंदे के फूलों से सजावट हो रखी थी | टंगे हुए रंग बिरंगे कंडील सुशोभित थे | उनमें से लाल, हरी, पीली, नीली, जामनी आदि रंगों की रोशनियाँ टिमटिमा रही थीं | समस्त हवेली मानो दुल्हन की भांति सुसज्जित थी | मुख्य द्वार से गाडी तलक रजनीगंधा, चमेली, गुलाब आदि के फूलों का गलीचा बिछाया गया था | उसके दोनों तरफ दो हाथी अपनी सूंड उठा उन्हें प्रणाम कर रहे थे | कुछ एक सेवक हाथ में केवड़े की शीशी लिए सब पर केवड़ा छिड़क रहे थे | हवेली के चबूतरों पर नर्तकियां नाच रही थीं । दोनों पर हर दिशा से फूलों की बरसात हो रही थी  | वहां के कण कण से बाजे गाजे, ढोल-ताशे, शंखनाद, मंजीरे और ढोलक बजने की तालें सुनाई दे रही थी | सारा आकाश नव वर वधु के आगमन पर पूजा के मंत्रोचारण से गुंजायेमान हो रहा था | उनके स्वागत के लिए अंग्रेजी बैंड भी मंगवाया गया था | उस बैंड पर इंसानों के साथ घोड़े भी नाच रहे थे | सैकड़ों लोगों की भीड़ इस समारोह में सम्मिलित थी और आनंद ले रही थी | एक भव्य और राजसी ठाटबाट के चलते उनका स्वागत और आवभगत बड़े ही आदर, सम्मान और प्रेम पूर्वक हो रहा था  | क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

शनिवार, फ़रवरी 16, 2013

जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ

ब्लॉग मेरा भी देखकर, ऐसा स्नेह बरसाएँ 
लेखन सफल हो जायेगा, जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ
जो फोल्लोवेर मिल जाएँ, सोचता रहता है 'निर्जन'
करता इंतज़ार, कब आयेंगे श्रोतागण

लो श्रोता भी आ गए, चक्कर काटें रोज़
सूना फिर भी पेज है, बिन मीठे का भोज
बिन मीठे का भोज, बता देता है 'निर्जन'
आए तो टिपण्णी करें, जो बन जाये बंधन 

प्रेम आपका देख, लिख डालीं कविताएँ
अब आगे क्या और कहूँ, मन में हैं दुविधाएँ 
मन में हैं दुविधाएँ, लिखता रहता है 'निर्जन'
बस खुश हो जाएँ, मिले सबसे अपना मन

ब्लॉग प्रमोशन हेतु ही, फेसबुक पेज बनाए
कुछ मित्र नए हैं ऐड किये, के अनुकम्पा मिल जाए
के अनुकम्पा मिल जाए, विनती करता है 'निर्जन'
ब्लॉग पसंद जो आए, लाइक भी कीजिए रघुनन्दन

जन मानस दिल पैठ को, अग्रीगेटर जाएँ
अनगिनत अग्रीगेटर पर, ब्लॉग रजिस्टर करवाएँ
ब्लॉग रजिस्टर करवाएँ, दिखता भी है 'निर्जन'
ब्लॉग जाग्रति हेतु ही, बैज चिपकाते है त्रिभुवन

सर्च इंजन सबमिशन है, सबसे ज़रूरी काम
चलाना है ब्लॉग अगर, और कमाना है नाम
और कमाना है नाम, जुगाड़ करता है 'निर्जन'
नित नए विजेट और कोड, अपडेट करता है हर पल

गूगल सर्किल से जोड़ कर, मेसेज करने का रूल
पढ़वाकर अपनी पोस्ट को, प्रशंसा करो वसूल
प्रशंसा करो वसूल, यही तरीका है 'निर्जन'
जो न माने प्यार से, पढ़वाओ जबरन

लिखते हो गर आप भी, ना आएगा काम
पोएम, स्टोरी, आर्टिकल, सब है एक सामान
सब है एक सामान, पते की बात है 'निर्जन'
बेचना है गर मॉल, मार्केटिंग चलेगी स्पेशल

सुनकर गुरुजन वाणी को, फ़ैसला 'निर्जन' लेत
कर्म सदा तू किये जा, मत तू हिम्मत टेक
मत तू हिम्मत टेक, पायेगा तू भी सफ़लता
होगी वाहवाही, भाग जाएगी विफ़लता

शुक्रवार, फ़रवरी 15, 2013

आली रे आली बसंत ऋतु आली

आली रे आली
बसंत ऋतु आली
पीली पीताम्बरी
बदली छा ली
आली रे आली...

ध्यालीं रे ध्यालीं
माँ शारदा ध्यालीं
पीत वस्त्र, धुप दीप ले
आरती कराली
आली रे आली...

मनाली रे मनाली
पंचमी मनाली
पतंगें निकली
हवा में उड़ालीं
आली रे आली...

खालीं रे खालीं
पीली मिठाइयाँ खालीं
चावल, मेवा, चीनी, केसर, लड्डू  
मिला जी भर भर बनालीं
आली रे आली...

लहलहालीं रे लहलहालीं
फसलें लहलहालीं
सरसों और गेहूं
खेतों में सजालीं
आली रे आली...

जगालीं रे जगालीं
नई उमंगें जगालीं
साथी संग बैठ
सब उम्मीदें सजालीं
आली रे आली...

आली रे आली
बसंत ऋतु आली
मिलजुल सब यारों ने
पंचमी मनाली

सभी मित्रगण को मेरी ओर से बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | माँ सरस्वती सभी पर अपनी कृपा का हाथ सदैव बनायें रखे |

गुरुवार, फ़रवरी 14, 2013

श्रीमती अनारो देवी – भाग १

श्रीमती अनारो देवी - मुख्य पात्र
श्री गंगा सरन - पति श्रीमती अनारो देवी
श्री साहू हर प्रसाद - पिताजी श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती हिरा देवी - माताजी श्रीमती अनारो देवी
श्री जानकी प्रसाद - पिताजी श्री गंगा सरन
श्रीमती कलावती देवी - माताजी श्री गंगा सरन

श्रीमती गार्गी देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री सुरेन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री योगेन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री महेन्द्र प्रसाद 'मानू' - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री वीरन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री सत्येन्द्र प्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती बीना देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्रीमती माधरी देवी - सुपुत्री श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी
श्री विनो दप्रसाद - सुपुत्र श्री गंगा सरन + श्रीमती अनारो देवी

अब तक के सभी भाग - १०
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ब्रिटिश राज | गुलाम भारत | आज़ादी के लिए जददो जहद ज़ारी थी | इसी टहलुआ हिंदुस्तान के उत्तर प्रदेश प्रान्त के एक छोटे से शहर मुरादाबाद में बसे मोहल्ला दिनदारपुरा के रहने वाले थे साहू हर प्रसाद | ऊँचा लम्बा कद, आकर्षक व्यक्तित्व, रौबीली ज़ोरदार आवाज़ के मालिक जमींदार खानदान में जन्मे मिजाज़ से बहुत ही गर्म और गुस्सैल प्रकृति वाले व्यक्ति थे | मग़रुर किन्तु निडर स्वाभाव के स्वामी थे | हर एक कार्य में दक्ष और बुद्धिकौशल के प्रतीक थे | यद्यपि ज्यादा शिक्षित नहीं थे परन्तु दूरदर्शी गज़ब के थे | बहुत ही सफल उद्यमी भी थे | हर कारोबार की समझ रखने वाले, रसूकदार शक्सियत, बहुत ही सुलझे हुए इंसान थे | उनके पुरखे उनके लिए अनेकों खेत, खलिहान, रुपया पैसा और साथ में बहुत सारी अकड़ भी छोड़ गए थे | परन्तु एक बात सराहनीय थी के अपनी बुद्धि, विवेक और कार्यकुशलता के चलते उन्होंने ब्याज बट्टा, अनाज की आढ़त, सोना, चांदी, विदेशी साड़ियाँ और कपड़ा, ज़मीन ज़ायदाद, खाने के मसाले, कोयला, मेवा, लकड़ी आदि के थोक व्यापार में बड़ा नाम कमाया | इस के चलते अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘साहू’ के ख़िताब से नवासा | सरकारी काम काज और कोर्ट कचेहरी की भी गज़ब की समझ रखते थे और लोगों के झगड़ों के फैंसले भी करवाया करते थे | सम्मानार्थ सरकारी अदालतों में उन्हें न्यायाधीश के साथ फैसलों में बैठाया जाता था | गज़ब के न्यायकर्ता और परखी नज़र रखते थे वो | लोगों से काम कैसे निकलवाना है इसमें उन्हें महारत हासिल थी | सारे शहर में उनका बहुत ही रुतबा था तथा सभी उनको बहुत आदर और सम्मान दिया करते थे | साहू साब, साहू साब कहते लोगों का मुंह नहीं थकता था | कोई भी उलझन हो, अड़चन हो, आपसी झगडा हो, सब न्याय की आशा लिए उनके पास पधारते थे | और साहू साब भी एक दम सटीक न्याय करते थे | इसलिए सभी उनके कायल थे | उनके इस व्यक्तित्व के विपरीत उनका एक शौक बिलकुल जुदा था | उन्हें पाक कला में बेहद रूचि थी | वैसे तो कहने को दसियों नौकर नौकरानियां थे हवेली में पर जब खाना बनाने का दिल होता या कभी मेहमान नवाज़ी का वक़्त आता तो साहू साब खुद खड़े होकर खाना बनाते और आदेश देकर अपनी देख रेख में स्वादिष्ट व्यंजन बनवाते | मसालों के इस्तमाल से सब्जियों को स्वादिष्ट कैसे बनाया जाये इसका बहुत ही गूढ़ ज्ञान था उन्हें | उनकी दावत के पकवानों को खाकर लोग अपनी उँगलियाँ तक चबा जाया करते थे और उनकी वाह वाही करते नहीं थकते थे | शहर के अनेकों हलवाई उनसे सलाह मशवरा कर के अपने कारोबार को बढ़ा रहे थे और उनके गुणगान करते न चूकते थे |

यूँ तो साहू साब का ब्याह छोटी उम्र में हो गया था | उनकी पत्नी हीरा देवी भी एक संभ्रांत कुल से ताल्लुक रखती थी | उनकी शरीक-ए-हयात की शक्सियत भी उन्ही के माकूल थी | शर्म उनका गहना था और मीठे बोल उनकी फितरत | बला की सुन्दर | बेहद शांत स्वभाव की घरेलू विचारधारा वाली आकर्षित महिला थीं | परन्तु संतान सुख की प्राप्ति उन्हें अनेक वर्षों बाद हुई | ये प्रभु की इच्छा ही थी के इतने वर्षों के इंतज़ार, कामना, पूजा पाठ, दान दक्षिणा, कर्म काण्ड और मेहनत पश्चात उनकी धर्म पत्नी हीरा देवी ने एक चाँद की चांदनी सी पुत्री को जन्म दिया | पुत्री होने पर भी दोनों अत्यंत हर्षित थे | उन्होंने कभी भी पुत्र और पुत्री में भेद भाव नहीं किया था | उनके लिए दोनों का महत्त्व समान था और फिर यह तो इश्वर का प्रसाद थी | इतने जतन के पश्चात संसार में आई थी |

पुत्री थी गज़ब की खूबसूरत | बालिका के मुखमंडल से सूर्य सा तेज उत्पन्न हो रहा था | किशमिश जैसी छोटी छोटी आँखें नन्हे से गोल मटोल चेहरे पर सजी थीं | चिल्गोज़े सी छोटी सी नाक और अंजीर जैसे लालम-लाल गुलाबी गाल के बीच मुनक्का से मीठे होठ मुस्कराहट की मिठास बिखेर रहे थे | उन होटों के ऊपर महीन सा इलाईची जैसा तिल था जो किसी के भी दिल जीतने में पूर्णतः सक्षम था | ऐसा प्रतीत होता था मानो इश्वर ने शुभ की मेवा थाली सजाकर साहू साब के जीवन में भेंट कर दी हो | बिटिया के ज़िन्दगी में आते ही उनके कारोबार में दिन दूनी और रात चौगनी तरक्की होने लग गई | आते ही वो सबकी लाडली बन गईं | उनकी अनार जैसी सुर्ख रंगत ने सबका मन मोह लिया | साहू साब ने इसी सुन्दरता को देखते उनका नाम अनारो रखा था |

समय का पहिया चलता रहा और ज़िन्दगी भी साथ साथ बढ़ती रही | अब अनारो भी बड़ी हो रही थीं | खेल कूद में उनकी रूचि ज्यादा नहीं थी | न ही सहेलियों के साथ इधर उधर जाया करती | अपनी उम्र के बच्चों से अधिक दिमाग था उनमें और उसे वो सकारात्मक तरीके से उपयोग किया करती थीं | उन्हें अपने पिताजी के साथ समय व्यतीत करना बहुत पसंद था | पढाई लिखाई के आलावा भी उन्हें अपने पिता के स्नेह की छाँव में बहुत कुछ सीखने को मिलता | दुनियादारी, बोल चाल, आचार विचार प्रकट करना, काम क़ाज और कारोबार को समझना उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही शुरू कर दिया था | साहू सब को भी अपनी लाडो से बहुत लगाव था | वो जितना उन्हें सिखाते और बतलाते वो तुरंत ही सीख जातीं | बचपन से ही वो बहुत ही कार्यकुशल बालिका थीं | उनका जीवन को समझने और जीने का नज़रिया बहुत ही साफ़ था | हर समय कुछ न कुछ सीखते रहना और पढ़ते रहना उसकी आदत थी बाक़ी जो थोड़ी बहुत कमीवेशी रह जाती वो पिताजी और माताजी की सोहबत पूरी कर देती | ऐसे ही खेलते कूदते और सीखते कुछ और साल बीत गए |

ग्यारह वर्ष की आयु के आते आते नियति ने उनपर एक बहुत दुःख की गाज गिरा दी | अनारो की माताजी स्वर्ग सिधार गईं | उस उम्र में जब माता के साथ और शिक्षा की सबसे ज्यादा और सक्थ ज़रुरत होती है अनारो एक दम अकेली पड़ गईं | ऐसे समय में उनको साहू साब ने संभाला | वो उनके लिए पिता और माता दोनों का फ़र्ज़ पूरा किया करते | कारोबार के साथ साथ अब वो घर पर और बेटी पर भी पूरा ध्यान दिया करते और अपनी बेटी को अपना सम्पूर्ण समय, शिक्षा, प्यार, लगाव और सम्मान दिया करते | उन्हें पाक कला के गुण भी सिखाते साथ साथ कारोबार की बारीकियां भी समझाते और जीवन को जीने का तरीका सिखलाते | साहू साब के मातहत, अनारो को जीवन के सभी विशेष ज्ञान सीखने को मिल रहे थे और उनके जीवन और बुद्धी दोनों का विकास परस्पर सम्पूर्ण रूप से हो रहा था |

अब अनारो चौदह वर्ष की हो गई थी | देखने में वैसे तो छोटी कद काठी की थीं परन्तु छहरहराह बदन, फुर्तीली, पतली दुबली, गोरी चिट्टी, चमेली के तेल लगाये बंधे हुए घने काले सियाह बालों की कमर को छूती लम्बी नागिन सी चोटी, हिरनी जैसी चमकती आँखें, तीखे नक्श, सुर्ख गुलाबी होठ, अनार के दानो सी उनकी हंसी, माथे पर सूरज सा तेज लिए कुमकुम की बिंदिया, हाथों में रंग बिरंगी कांच की चूड़ियों के साथ सोने का जडाऊ काम के कंगन, विदेशी सिल्क की महीन काम वाले बॉर्डर की साडी पहने सबसे अलग ही नज़र आतीं | उनके मुखमंडल के तेज, पहनावे, आचार, विचार, व्यव्हार और बातचीत से साफ़ झलकता के वो एक खानदानी और उच्चवर्गीय राजसी परिवार की महिला हैं | पिता की परवरिश का असर उनके परिवेश से साफ़ चमकता था | उनके चेहरे पर काला तिल उनकी नज़र का टीका बन गया था जो उन्हें नज़र-ए-बद से बचाता था | साहू साहब को अब उनके ब्याह की चिंता सताने लग गई थी | उन्होंने ने एक अच्छा सा खानदान देखना शुरू कर दिया था जहाँ वो अनारो को ब्याह सकें | काफी रिश्तों पर गौर फरमाने के पश्च्तात आख़िरकार उन्हें सफलता प्राप्त हुई और मेरठ शहर के एक ज़हीन और मशहूर-ओ-मारूफ खानदान में उन्होंने अनारो का रिश्ता पक्का कर दिया |

खानदान उनके रुतबे की टक्कर का था | यदि ज्यादा नहीं था तो कम भी नहीं था | बढ़िया कारोबार था | लड़के का नाम गंगा सरन था | बेहद सुन्दर, छह फुट लम्बाई, चौड़ा हाड़, मनमोहक व्यक्तित्व के स्वामी, वाक् कुशल, व्यव्हार कुशल, निश्छल स्वाभाव तथा मृदुभाषी थे | उनका अपना विदेशी कपड़े का व्यापार और कारोबार था | सम्पूर्ण भारतवर्ष के सभी राज्यों में विदेश से कपड़ा मंगवाकर उपलब्ध कराना तथा उसकी थोक बिक्री एवं फुटकर बिक्री भी किया करते थे | बहुत ही संपन्न परिवार था | साहू साब को पूरा यकीन था की उनकी पुत्री उस परिवार में बेहद खुश रहेगी | लड़का भी उन्हें बेहद पसंद था | आखिर विवाह दिवस आया और अनारो का कन्यादान करके साहू साब अपने कर्त्तव्य से मुक्त्त हुए और अनारो पराई हो गई | क्रमशः

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बेहद ज़रूरी है

दर्द में मुस्कराना बेहद ज़रूरी है
दर्द में प्रीत निभाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में संभल जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में दिल लगाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में समझ जगाना बेहद ज़रूरी है
दर्द में खुद से लड़ना बेहद ज़रूरी है
दर्द को काबू करना बेहद ज़रूरी है
दर्द को ना जताना बेहद ज़रूरी है
दर्द को पी जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द को अपनाना बेहद ज़रूरी है
दर्द को जीत जाना बेहद ज़रूरी है
दर्द तो सिर्फ अपना है "निर्जन"
दर्द को दर्द में यह समझाना बेहद ज़रूरी है |

हे प्रभु

हे प्रभु
तुम्हारे ध्यान में
एक
अपूर्व शक्ति है
पर
स्वासों में
तुम्हारे स्वरुप
की
एक अजीब
और
शांत सी
सिहरन
जो
स्मृतिमात्र से
तन मन दोनों को
रोमांचित
किये जाती है

मंगलवार, फ़रवरी 12, 2013

दिल की दास्ताँ - अंतिम भाग

सुधांशु ने मुड़ कर देखा, और मुस्करा दिया | उसकी आँखें नम थी और होटों पर मुस्कान थी | दुःख और सुख का ऐसा समन्वय उसके जीवन में एक अरसे बाद आया था | जिस दिन का उसे बेसब्री से इंतज़ार था वो बरसों बाद आज आ ही गया था | लालाजी उसके सामने खड़े थे | वो झट से लालाजी के गले लग गया | अश्रुपूरित नयनो से और कांपती आवाज़ में उसने पूछ ही लिया,

"इतनी देर, इतनी देर क्यों की, दददू?"

"लालाजी, चुप रहे और उसे गले से लगा लिया और धीरे धीरे उसकी कमर सहलाते रहे और प्यार से सर पर हाथ फेरते रहे"

दोनों फिर साथ में घुमने निकल पड़े और एक शांत स्थान पर जाकर बैठ गए | दोनों खामोश थे | काफी देर तक दोनों सुकून के साथ उस चुप्पी को सुनते रहे | फिर अचानक लालाजी ने धीरे से कहा,

"देर तो हो गई बेटा, इस बार कुछ ज्यादा ही देर हो गई | पर देर आए दुरुस्त आए | अब से मैं तेरे साथ हूँ | हर सुख दुःख में |"

सुधांशु ने भी हामी में चुप चाप सर हिला दिया और दोनों घंटो साथ बैठे रहे | उस दिन सुधांशु और लालाजी के बीच एक नए रिश्ते ने जन्म लिया और वो रिश्ता था दोस्ती का, प्यार का , आदर का, सम्मान का | उस एक दिन में सुधांशु को वो सब कुछ मिल गया जो उसने बरसों से नहीं पाया था | दादा और पोते ने मिलकर उस दिन खूब मज़े किये | लालाजी ने भी जम कर मीठा खाया | दोनों की पसंदीदा मिठाई जलेबियाँ ही थीं और आखिर में लालाजी ने अपने हाथ से आखरी जलेबी उठाई और आशीर्वाद देते हुए अपने पोते को खिलाई और बोले,

"जिस तरह इस जलेबी की मिठास तुम्हारे मुंह को मीठा कर रही है उसी तरह से मेरा आशीर्वाद है के आगे तुम्हारी ज़िन्दगी भी ऐसे ही मीठी बनी रहे | चलो अब घर चलते हैं |"

लाला जी के हाथ से छड़ी लेते हुए सुधांशु ने उनका हाथ थाम लिया और अपने कंधे पर रख लिया | और फिर हंसी मजाक करते, हँसते खिलखिलाते दोनों घर की ओर चल पड़े |"

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