दिसम्बर बलात्कार घटना को बीते अब तकरीबन महीना हो गया | इस पूरे वक्फे के दौरान मैंने समाचार चैनलों पर, ब्लोग्स पर, अकबारों में, लोगों के मुख से और न जाने कहाँ कहाँ से काफी कुछ पढ़ा और सुना | सबकी अपनी अपनी राय और अपने नज़रिए से अनोखे विचार थे | श्रधांजलि देने का और हादसे पर अपने विचार प्रकट करने का सबका अपना एक अनोखा तरीका था | कितने तो मोमबत्तियां जलने में लगे थे, मार्च पास्ट निकाले जा रहे थे, कहीं गिटार बजा कर दुःख जताया जा रहा था, कुछ बैनर पर टिप्पणियां लिख कर दिखाने में लगे थे, कहीं हाथ पर काले कपडे बांध कर दुःख जताया जा रहा था, कहीं मौन व्रत लिए लोग चुप चाप धरने दे रहे थे, तो कहीं कोई बाबा कुछ बकार रहे थे, तो कहीं नेता अपने आने वाले चुनाव की रणनीति को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष रूप के नाटक करने और टिप्पणियां देने में जुटे हुए थे | इन सब बातों और घटनाक्रम के बीच मैं अपने घर पर बैठा कुछ नहीं कर रहा था सिर्फ सोच रहा था, कुछ ख्याल और सवाल बार बार मेरे मन में दस्तक दिए जा रहा था | वो सब इतने अजीब थे के पहले तो मैं उन्हें अनदेखा करता रहा फिर आख़िरकार जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने अपने दिल से हार मान कर के उन्हें यहाँ आपके सामने प्रस्तुत करना ही ठीक समझा | शायद कुछ जवाब, कुछ विशेष ख्याल और सुझाव सुनने और पढने को मिल जाएँ । वो ख्याल और सवाल जो उठते हैं कुछ इस प्रकार से हैं :
अगर यह सब सच में होता तो पुरुषों की स्तिथि और उनका मानसिक पीड़ा कैसी होती ? सच कहूँ तो ऐसे सवालों का और सोच का कोई अंत नहीं है | यदि कोई ऐसा समाज होता तो उसका चेहरा कैसा होता ? और पुरुषों की सोच ऐसे समाज में कैसी होती ? मेरे दिमाग में सदा ही ऐसी सोच और ऐसे अजीब-ओ-गरीब सवाल उठ खड़े होते हैं | इनका उत्तर मेरे पास नहीं है । वो इसलिए क्योंकि मैं अपने आप से सवाल करता हूँ | हर एक स्तिथि में मैं पहले खुद को रखता हूँ और फिर अपने आप से सवाल करता हूँ, “अगर तू उसकी जगह पर होता तो क्या होता ?” | जब तक अंतर्मन से जवाब नहीं मिलता तब तक मैं कोई भी फैसला नहीं ले पता | काश! आज का समाज भी ऐसे ही अपने आप से सवाल करता कुछ भी कहने या करने से पहले कम से कम कुछ तो सोचता | जिसकी पीड़ा है कम से कम उसकी पीड़ा का अनुभव तो करता और महसूस करता । तब शायद ऐसी भद्दी टिप्पड़ियाँ, ऐसी गन्दी और निचली सोच, ऐसे ओछे विचार, ऐसी शर्मनाक हरकतें और ऐसी नकारात्मक मानसिकता पैदा ही न हो पाती | काश! मेरे बस में कुछ होता तो मैं भी उसके लिए शायद कुछ तो कर पाता पर दुःख इस बात का है के सिर्फ मैं अपने आप से और सभी से सवाल ही कर सकता हूँ | इससे ज्यादा कुछ और नहीं | आशा है ऐसे ही सवाल दुसरे भी, आने वाले भविष्य में अपने आप से करने का कष्ट करेंगे और इस समाज को रहने लायक बनाने में योगदान देंगे | आज सिर्फ मैं प्रार्थना कर सकता हूँ के, “परमपिता परमात्मा, उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उससे जल्द से जल्द इन्साफ मिल सके” |
- यदि आज हमारा समाज पुरुष प्रधान न होकर स्त्री प्रधान होता तो क्या होता ?
- यदि पुरुष निर्बल और दुर्बल कहलाता और स्त्री सर्वशक्तिमान तो क्या होता ?
- मोटे तौर पर पूछूँ तो आज जहाँ पुरुष खड़ा है वहां अगर स्त्री खडी होती समाज में तो क्या होता ?
- क्या ऐसी घिनोनी घटनाएँ पुरुषों के साथ भी होती? होतीं तो क्या होता ?
- क्या पुरुषों का बलात्कार होता ? यदि होता तो क्या होता ?
- क्या पुरुषों को भी सही वस्त्र पहन कर घर से निकलने की हिदायतें दी जातीं ?
- क्या रात-बे-रात बहार निकलने से पहले पुरुषों को सोचना पड़ता ? डरना पड़ता ?
- क्या पुरुष अपनी माँ, बहन, बेटी, बीवी के साथ ही महफूज़ महसूस करते ? रात को यदि उन्हें कहीं जाना होता तो वो इनमें से किसी न किसी को साथ लेकर ही बहार जाते ?
- क्या कोई बाबा पुरुषों को ऐसी सलाह देता के, “यदि उसका बलात्कार होते समय वो किन्ही २-३ महिलाओं को बहन या माँ पुकार कर मदद मांग लेता तो शायद उसके साथ अन्याय कम होता”?
- क्या कोई नेता या कोई किसी भी दल का मुखिया ये कहता के, “पुरुषों को मोबाइल नहीं रखने चाहिए और निक्कर, टी-शर्ट, बनियान आदि भड़कीले कपडे नहीं पहनने चाहियें | ऐसी भड़काऊ वेशभूषा से ही उनपर ऐसे यौन अत्याचार होते हैं | वो सामने वाले को मजबूर करते हैं उनके साथ ऐसा करने के लिए | उन्हें पूरे ढके हुए वस्त्र पहन कर घर से निकलना चाहियें” | क्या ऐसी बयानबाजी होती ?
- बसों में, रेल में, सार्वजानिक भीड़भाड़ वाले इलाकों में या कहीं भी सट कर चलना, बैठना, बात करना या खड़े नहीं होना चाहियें | क्या पता कोई आकर उन्हें छेड़ दे या मर्दों के साथ ईव-टीजिंग न हो जाये |
- क्या पुरुषों के लिए भी इतनी ही पाबंदियां, दोगलापन और ओछापन दिखाई देता समाज में जितना आज स्त्रियों के लिए दिखाई पड़ता है ?
- पुरुषों को घर संभालना चाहियें । वो बच्चे पलने और खाना बनाने के लिए ही हैं । बहार का काम तो स्त्री की ज़िम्मेदारी है । यदि ऐसा सुनने को मिलता तो क्या होता ?
- क्या उस समाज में स्त्रियाँ भी पुरुषों से तफरी लेतीं, फितरे कसती, सीटियाँ मारतीं, चिकुटी काटतीं, इशारे करतीं ?
- क्या पुरुष बार में नाचते और महिलाएं उनपर पैसे उड़ातीं ?
- यदि पुरुषों द्वारा मुजरे और देह व्यापार करवाया जाता तो क्या होता ?
- क्या बार में जाकर शराब पीने वाले पुरुषों को बदचलन, आवारा और चरित्रहीन करार दे दिया जाता ?
- और कहीं पुरुष पुलिस के पास शिकायत करने चला जाता तो क्या उससे ऐसे ही ज़िल्लत झेलनी पड़ती जैसे आज नारी को झेलनी पड़ती है ?
- क्या स्त्रियाँ पुरुषों को हीन समझतीं ?
- अगर पुरुष भ्रूण हत्या होती तो क्या होता ?
- अगर समाज में पुरुषों को खरीदा और बेचा जाता तो क्या होता ?
अगर यह सब सच में होता तो पुरुषों की स्तिथि और उनका मानसिक पीड़ा कैसी होती ? सच कहूँ तो ऐसे सवालों का और सोच का कोई अंत नहीं है | यदि कोई ऐसा समाज होता तो उसका चेहरा कैसा होता ? और पुरुषों की सोच ऐसे समाज में कैसी होती ? मेरे दिमाग में सदा ही ऐसी सोच और ऐसे अजीब-ओ-गरीब सवाल उठ खड़े होते हैं | इनका उत्तर मेरे पास नहीं है । वो इसलिए क्योंकि मैं अपने आप से सवाल करता हूँ | हर एक स्तिथि में मैं पहले खुद को रखता हूँ और फिर अपने आप से सवाल करता हूँ, “अगर तू उसकी जगह पर होता तो क्या होता ?” | जब तक अंतर्मन से जवाब नहीं मिलता तब तक मैं कोई भी फैसला नहीं ले पता | काश! आज का समाज भी ऐसे ही अपने आप से सवाल करता कुछ भी कहने या करने से पहले कम से कम कुछ तो सोचता | जिसकी पीड़ा है कम से कम उसकी पीड़ा का अनुभव तो करता और महसूस करता । तब शायद ऐसी भद्दी टिप्पड़ियाँ, ऐसी गन्दी और निचली सोच, ऐसे ओछे विचार, ऐसी शर्मनाक हरकतें और ऐसी नकारात्मक मानसिकता पैदा ही न हो पाती | काश! मेरे बस में कुछ होता तो मैं भी उसके लिए शायद कुछ तो कर पाता पर दुःख इस बात का है के सिर्फ मैं अपने आप से और सभी से सवाल ही कर सकता हूँ | इससे ज्यादा कुछ और नहीं | आशा है ऐसे ही सवाल दुसरे भी, आने वाले भविष्य में अपने आप से करने का कष्ट करेंगे और इस समाज को रहने लायक बनाने में योगदान देंगे | आज सिर्फ मैं प्रार्थना कर सकता हूँ के, “परमपिता परमात्मा, उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उससे जल्द से जल्द इन्साफ मिल सके” |