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शनिवार, मार्च 14, 2015

इश्क़ तो इश्क़ है


"सुनो, क्या तुम ठीक हो ?" बड़े ही सशक्त, मासूम और मीठे शब्दों में उसने पुछा।

"नहीं, बिलकुल भी ठीक नहीं हूँ" उसने करुणा भरे गले से रोते हुए कहा और उसके गर्म आंसुओं से उसके बर्फ से ठंडे और सूने गाल जल रहे थे।

"अच्छा" तुरंत त्योरी चढ़ा धर्य साधने से पहले वो बोला, "तो आओ, मैं तुम्हे थाम लेता हूँ।"

"लेकिन, नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकते" उसकी आवाज़ तीख़ी हो सकती थी पर उसने आंसुओं से रुंधे हुए स्वर में धीरे से जवाब दिया।

"क्यों, क्यों नहीं ? तुम हमेशा ऐसा क्यों करती हो ?"

"क्योंकि - क्योंकि वो सब यही कहते हैं, तुम नहीं कर सकते - कभी नहीं कर सकते !"

"अच्छा, तो हम कब से उनकी सुनने लगे हैं ? ज़रा बताओगी ?" उसने हलके से गहराई लिए लहज़े से पुछा। इस सवाल के पीछे गहरा मतलब छिपा था ।

"मैं तुम्हे चाहती हूँ... बहुत प्यार करती हूँ..."

"पगली, मुझे मालूम है, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो," और उसने आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और सीने से लगा लिया।

"फिर आग़ोश में दोनों एक दुसरे को चूमते रहे। दोनों आंसुओं का मीठा और खारा स्वाद अपने होठों पर चखते रहे। दुनिया क्या सोचती है और क्या कहती है इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। पड़ता है क्या ?

आख़िर इश्क़ तो इश्क़ है इसे इश्क़ ही रहने दो।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, मार्च 12, 2015

सुनो ना

सुनो ना, कुछ लम्हों के लिए ही सही, सुनो तो सही

अब एकाग्रचित्त होकर लम्बी सांस लो, "हाँ - लो तो सही, अगर सांस नहीं भी लेना चाह रही हो तब भी - लो ना - प्लीज़"। अपने कानो में गूंजती हुई अपने दिल की लरज़ती धड़कनो को ज़रा सुनो तो सही और अपनी नसों में मेरे इश्क़ के जुनूनी लावा को समुंदरी लहरों सा बहता हुआ महसूस करो तो सही। इस कायनात में पसरी ख़ामोशी के स्पर्श को अपनी कोमल देह को छूते हुए अनुभव करो तो सही।

अब ज़रा अपनी आँखें बंद करो और ह्रदय के अंतर तक फैली उस कालिमा का विश्लेषण तो करो। जब तलक तुम्हे अपने मन के श्याम छिद्र में कोई थामने लायक नज़र ना आए तब तक सिर्फ़ उस कालिख़ के आभास का रसपान करो। तब तक इंतज़ार करो जब तक तुम्हारी साँसे इस खेल में तुम्हारे हारने का इशारा नहीं करतीं और फिर धीरे से अपनी आँखों को खोलो,

अरे! और सुनो तो:

देखो, ये तुम हो...

अद्भुत, अनोखी, आश्चर्यजनक, प्रशंसनीय, चमत्कारिक। तुम्हारा होना मुझे सर्दी की उस लोरी की याद दिलाता है, जिस सिर्फ मेरे लिए बड़े ही रहस्मयता के साथ गाया गया था जिससे उसका आनंद कोई और ना उठा सके। पर शायद, ये शर्म की बात है क्योंकि तुम क़ुदरत के सबसे हसीन गीतों में से एक जो हो।

तुम प्रेम की आतिशबाज़ी की वो चमक हो जिससे मेरे जीवन का व्योम प्रकाशमय हो उठा है परन्तु इस अग्निक्रीड़ा के विपरीत तुम सदा मेरी दुनिया को देदीप्यमान, प्रकाशित, प्रज्वलित और उत्साहित करती रहना।

या फिर तुम जैसी हो, जो भी हो वैसी ही रहना, मेरे लिए इतना ही पर्याप्त से अधिक है।

मुझे इतना तो ज्ञात है कि इस संसार में जादू होता है क्योंकि तुम मेरे सामने हो। मनोहर, दिलकश, तिलिस्मी, आकर्षण, रूपवान, मायावी इंद्रजाल जिसने मुझे अपने वशीभूत कर लिया है।

मैं तुम्हे एक ऐसा इन्द्रधनुष उपहार स्वरुप देना चाहता हूं जो इस जीवन की हर मुश्किलातों को मिटा दे। मैं तुम्हे वो दर्पण भेंट करना चाहता हूँ जो तुम्हे दिखाए और जताए कि तुम कितनी निराली और अनोखी हो।

मैं इन महासागरों को सुखा देना चाहता हूँ, यदि यह तुम्हारे डर को मिटा सकता है, मैं उम्मीद, भरोसा, विश्वास, अरमान, आशा, आश्वसन का एक पुलिंदा बनाकर और धरती, अभ्र, पेड़ों, हवाओं, नदी, नालों, झरनों, पर मुस्कुराते चहरों का रंग लेप कर तुम्हे नज़राना स्वरुप पेश-ए-ख़िदमत करना चाहता हूँ यदि ये सब तुम्हारे मासूम से मुलायम गालों पर मुस्कान की चमचमाती लकीर बनाने में कामयाब हो सकें तो। मैं तुम्हारे पास निशा ज्योति की शक्ति भेजना चाहता हूँ जो सभी  कुस्वप्नों, विरूप प्राणीयों, दुःस्वप्नों और भयावह अनुभवों का आजीवन संहार कर सकें। मैं तुम्हारे साथ, तुम्हारा हाथ थाम कर स्वछन्द उन्मुक्त परिमण्डल में उड़ान भरना चाहता हूँ यदि ऐसा करने से तुम्हारा अकेलापन दूर हो सके तो और इस द्रुतगति के अंत में तुम और मैं ज़मीन पर लेट कर, नीलाभ को तांकते सिर्फ मन्नत मांगने के लिए तमन्ना करते, सिर्फ उम्मीद के लिए उम्मीद करते, और इस सब के अंत में, मैं तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लिए शांति, आनंद, आराम, तृप्ति, संतुष्टि, ऋणमुक्ति हो तुम्हारे साथ संतोष की नींद सो सकूँ।

कभी-कभी, मैं अपने आप में एक ख़ाली मकां जैसा महसूस करता हूँ जो सांसारिक और भौतिकवादी झूठ का लबादा ओढ़े खड़ा है और असत्य के पीछे छिपा है जिसे देखने की गरज़ किसी को नहीं है, ना कोई इसके बारे में सोचता है और ना ही कोई पसंद करता है। इस घर की अस्तित्त्व रुपी खिड़कियाँ और दरवाज़े, दुनिया को दूर रखने के लिए हमेशा बंद ही रहती हैं,

लेकिन सुनो:

इस मकां को घर बनाने की सिर्फ जो एक चाबी मेरे पास है,

मैं पूरे दिल से, हक़ से, प्यार से, इत्मीनान से, भरोसे से, बेख़ौफ़ - वो "तुम्हे" ही देना चाहता हूँ।

और सुनो ध्यान दो:

"मुझे तुम पर खुद से ज़्यादा ऐतबार है, भरोसा है, यक़ीन खुद से ज़्यादा इतना है कि बिना कोई भी सवाल किये और आँखें मूँद कर तुम जहां कहोगी मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।"

बस और कुछ बचा नहीं है कहने को मेरी ज़िन्दगी में जो कुछ भी है वो यहीं इन्ही चंद लफ़्ज़ों में समेट कर तुम तक पहुंचा दिया है।

अच्छा हाँ सुनो तो:

मैं ये इकरार करता हूं और इज़हार करता हूं कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, बेहद, बहुत, हद से ज्यादा प्यार करता हूँ।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, फ़रवरी 22, 2015

होली की सौगात














इस होली मिलकर चलें
अपनाएं प्रेम की राह
जीवन का स्वागत करें
दिल की यही है चाह
ग़म हो जाए उड़न छू
उन्नति के भर लें रंग
जीवन को प्रेम प्रमाण दें
अपनों को लेकर संग
प्रभु को हम भूलें नहीं
रोज़ करें गुणगान
त्यागें आलस्य सभी 
नित्य दें कर्म पर ध्यान
बातें करें धर्म की सदा
करें अपनों का मान
प्रेम से जियें सभी तो
बढ़े आन और शान
छोड़ जात-पात का भेद
स्नेह बंधन में बांधें सबको
करें एक दाता की बात
जो जीवन देता है सबको
साथ मिल जुल कर बैठें
करें ख़ुशी से अठखेलियाँ
घर आंगन स्वर्ग बन जायेगा
एकता का मंदिर कहलायेगा
वृद्ध युवा बालक बंधू सभी
साथ मिलकर धूम मचाएं
हर एक कोने में हो शोर
खुशियों से घर जाए झूम
खिल जाए तिनका तिनका
जब प्रेम की बांधें मनका
जीवन कटे सन्यासी जैसा
सच्चाई से करो बरजोरी
जो रूठे हैं मना लें उनको
 
यही होती है सच्ची होली
क्षण भर में हल हो जायेंगे
सब गिले शिकवे माफ़
जीवन में रंग लाएगी 'निर्जन'
होली की यही सौगात

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, फ़रवरी 16, 2015

इश्क़ है उनसे











बिलकुल सच, दिल से कहा है
बेहद-बेशक़ इश्क़ है, उनसे मेरा
प्यार करता हूँ, बे-तहाशा उन्हें
रहता हूँ मैं सच, बेतक़ल्लुफ़
मौज़ूदगी में, उनकी सदा

आग़ाज़-ए-इश्क़, उन्ही से मेरा
दरमियां-ए-इश्क़, उन्ही से मेरा
अंजाम-ए-इश्क़ भी, उन्ही से मेरा
बाक़ी दिल में जो भी, बचा गया है
बख़ुदा वो सब भी, उन्ही से मेरा

हाथ थाम कर उनका मैं, मन में,
कलमा-ए-इश्क़, दोहराता रहा
गुनगुनाता रहा, इश्क़ में ऐसे
जिस तरह भंवरा, कलि से
बेख़ौफ़ इश्क़, फरमाता रहा

साथ जब भी, हम दो हैं होते
दिल ज़ोरों से, धड़कता है मेरा
इससे मुकम्मल, इश्क़ क्या होगा ?
पेट दुखता है, हंस-हंस कर
वजूद तरो-ताज़ा, हो जाता है मेरा

आवाज़ उनकी, अब ना सुनूं तो
'निर्जन' दिन मेरा, ढ़लता नही
उनसे है, रूह्दारी, इश्क़िया ख़ुमारी
बेक़रारी, कलमकारी की बीमारी
उनके बिन, जीवन मेरा चलता नहीं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, फ़रवरी 14, 2015

मुझे इश्क़ है, तुम से















मुझे बेपनाह इश्क़ है, तुम से
मुझे सरोकार है बस, तुम से

मुझे इश्क़ है तेरी मीठी, बातों से
मुझे इश्क़ है तेरे कोमल, स्पर्श से

मुझे इश्क़ है तेरी मधुर, मुस्कान से 
मुझे इश्क़ है तेरे विचारमग्न, ह्रदय से

मुझे इश्क़ है तेरी असीमित, ख़ुशी से
मुझे इश्क़ है तेरे जीवन में, रूचि से

मुझे इश्क़ है तेरी पाक़, रूह से
मुझे इश्क़ है तेरे हर, कतरा-ए-लहू से

मुझे इश्क़ है तेरे, इश्क़-ए-जुनूं से
मुझे इश्क़ रहेगा तेरे, वफ़ा-ए-सुकूं से

मुझे इश्क़ है पूरे दिल से, तुम से
मुझे इश्क़ है हद-ए-दीवानगी तक, तुम से

मुझे इश्क़ है आग़ाज़ से, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा अंजाम तक, तुम से

मैं तेरे साथ हूँ हर पल, हर लम्हा
है अनंतकाल दूर अब, एक कदम से

मेरा जज़्बा-ए-इश्क़, बढ़ रहा है 
दिन-रात हैं मेरे, अब तुम से

तुम्हारे इश्क़ का यह, ख़ज़ाना
संजोता है 'निर्जन' आत्मा से, मन से

मेरी चाहतों में अरमां, हैं कितने
जताता रहूँगा यूँ ही मैं, तुम से

इतना ही कहूँगा अब मैं, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा सदा ही, तुम से

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, फ़रवरी 03, 2015

सवाब-ए-इश्क़














अपने मुस्तकबिल में चाहता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

इश्क़ से लबरेज़ दिल को मेरे
वो शान-ए-हाल मिल जाए

उनकी मदहोश आंखों में
मेरा खोया ख़्वाब मिल जाए

गुज़रते हुए लम्हातों में
इंतज़ार-ए-सौगात मिल जाए

सरगर्म मोहब्बत को मेरी
ख़ुशनुमा एहसास मिल जाए

अछाईयां जो हैं दामन में मेरे 
उनका वो कारदार मिल जाए

आरज़ुओं से तरसती नज़रों को
वो गुल-ए-गुलज़ार मिल जाए

जो हैं ज़िन्दगी से ज्यादा अज़ीज़
वो यार-प्यार-दिलदार मिल जाए

अपने मुस्तकबिल में ढूँढता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए

जान-ए-इस्तिक्बाल - Life of our future
सवाब - Blessing
शान-ए-हाल - Dignity of our present
सरगर्म - Diligent
कारदार - Manager


--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, जनवरी 02, 2015

यार खरा है















बीत गया है गुज़रा साल
नए साल में शुरू धमाल
दिन पहला ही रहा कमाल
साथ तुम्हारा है बेमिसाल

दिल अपना है रखा संभाल
दीवाने का पूछो ना हाल
तुम से जीवन हुआ निहाल
तुझ बिन जीना लगे मुहाल

लम्बा है यह जीवन काल
मेल मिलाए ताल से ताल
कर ज़िन्दगी में मुझे बहाल
यारी अपनी बने मिसाल

उठे नहीं अब कोई सवाल
मन में ना रहे कोई मलाल
ख़ुशी बरसाएगा ये साल
मस्तानी है अपनी चाल

'निर्जन' तू दे दर्द निकाल
प्यार से हो गया मालामाल
अब यार खरा है तेरे नाल
मौज मना लगा सुर ताल

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, दिसंबर 02, 2014

क़िस्मत




















मैं तो हर शब् से एक
रिश्ता बनाता गया था यूँ ही
जहाँ से भी गुज़रा यादों का
दरिया बहाता गया यूँ ही
पर मेरी क़िस्मत का
लिखा भी अजीब था 'निर्जन'
गुनेहगार कोई और था, और
सज़ा मैं पाता गया यूँ ही
हाँ, आज मैं ये तस्लीम करता हूँ
कि मुझे मोहब्बत नहीं मिलती
मगर, ओ मेरी सोच के मेहवार
कभी यह भी ज़रा सोचो कि
जो तुम को याद करता हूँ
तो खुद को भूल जाता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, नवंबर 29, 2014

इंतज़ार













उसके इंतज़ार में दिल मेरा बेज़ार हो गया
इतना तड़पा के हर ख्व़ाब तार तार हो गया

आँख नम थी पर होटों पर हंसी थी 'निर्जन'
आवाज़ सुन उसकी दिल बेक़रार हो गया

लगता था आवाज़ में चाशनी घुली थी उसकी
अलफ़ाज़ सुनते ही गुलिस्तान गुलज़ार हो गया

वो साँसों की तपिश, जिस्म की महक उसकी
वो अदावत, वो अदाएं, वो मासूमियत उसकी

सोचते सोचते दिल बहका सा जाता है मेरा
अब तो बस ये कहने को जी चाहता है मेरा

खुश रहे वो सदा हंसती रहे गुनगुनाती रहे
अपनी आँखों से यूँ ही चांदनी छलकाती रहे

उसके साथ बस यूँ ही जी लूँगा ज़िन्दगी अपनी
खुश जो रहे वो तो समझो ज़िन्दगी आबाद अपनी

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, सितंबर 18, 2014

मैं तुमसे प्यार करता हूँ



















मैं तुमसे प्यार करता हूँ,
हाँ, बहुत प्यार करता हूँ,
आज इकरार करता हूँ,
पर कम ही बता पाया हूँ,
ख्वाबों में,
तुमसे मिलने की तमन्ना लिए,
बिछाता हूँ शान से बिस्तर,
फिर,
सारी रात बदलकर करवटें,
याद करता हूँ तुम्हे,
बेचैन रहता हूँ,
आँखे मूँद रमता जोगी बन,
लगता हूँ ध्यान
पर यह अलग बात है,
सो बिलकुल नहीं पाता हूँ,
हर दफ़ा सोचता हूँ,
ना देखूं तुमको,
पर खुदा जाने ऐसा क्या है,
तुम्हारे गुलज़ार चेहरे में,
कि हर शब् बिना देखे तुम्हे,
रह नहीं पाता हूँ,
एक नज़र तुम जो देख लो,
मुझको 'निर्जन',
फिर,
बिना साँसों के जी सकता हूँ,
मैं तुमसे जितना भी,
प्यार करता हूँ,
उतना ही,
कम कह पाता हूँ...

--- तुषार राज रस्तोगी ---

ऐ जान अभी ना जा

ऐ जान अभी ना जा,
ज़रा कुछ देर तो ठहर "निर्जन",
अक्सर साथ तेरा पाया है मैंने,
तन्हाई मेरी मिटाने को,
अकेलेपन के इस विराने मे,
हक अपना जतलाने को,
गम से निजात दिलाने को,
इन होठों को हंसाने को,
दोस्ती अपनी निभाने को,
प्यार से गले लगाने को,
अपना कोई कहलाने को।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

आहिस्ता गुज़र ए ज़िन्दगी

आहिस्ता गुज़र ए ज़िन्दगी,
कुछ यादें पुरानी बाक़ी हैं
कुछ ख़ुशी लुटानी बाक़ी हैं,
कुछ फ़र्ज़ निभाने बाक़ी हैं,
कुछ क़र्ज़ चुकाने बाक़ी हैं,
कुछ ग़म छिपाने बाक़ी हैं,
कुछ ज़ख्म मिटने बाक़ी हैं,
कुछ नगमे सुनाने बाक़ी हैं,
कुछ किस्से बताने बाक़ी हैं,
कुछ मुझमें थोडा बाक़ी है,
कुछ उनमें थोडा बाक़ी है,
ज़िन्दगी की दौड़ में 'निर्जन'
सच कितनी आपा-धापी है
आहिस्ता गुज़र.....

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, सितंबर 08, 2014

कल्पना तू ही
















तुझसे हैं सुबहें मेरी
तुझेसे ही शामें मेरी
तुझसे रातें दहकती मेरी
तुझसे हैं बातें मेरी
जिस्म में दिल की जगह
अब तू ही तू धड़कती है
आईना देखूं जो मैं
मेरे अक्स में तू झलकती है
जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं
जो तू है तो सब कुछ यहीं
तेरा हूँ मैं और तू मेरी
‘निर्जन’ की है कल्पना तू ही
तुझसे हैं...


--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, मार्च 05, 2014

मैं पगला लगता हूँ















सजदे में तेरे झुकता हूँ
कलमा मैं तेरा पढ़ता हूँ

राहों में तेरी फिरता हूँ
ज़िक्र मैं तेरा करता हूँ

यादों में तेरी बसता हूँ
अरमां मैं तेरा रखता हूँ

नाम तेरा सदा जपता हूँ
क़ौल मैं तेरा करता हूँ

ख्वाबों में तेरे चलता हूँ
ग़़जल मैं तुझपर लिखता हूँ

वो कहते हैं,
"तू क्या है" 'निर्जन'
उनको मैं पगला लगता हूँ 

शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2014

सनम














इज़हार-ए-इश्क़ का आया मौसम
अरमां मचलते इस दिल में सनम

महफूज़ मुद्दत से रखा हमने इन्हें
आज क्यों ना कह दें तुमसे सनम

मालूम है फ़र्क पड़ता नहीं तुमको
हम जियें या मर जाएँ ऐसे ही सनम

हसरत दिल की दिल में ना रह जाये
यही सोच लिख बयां करते हैं सनम

तुम कब समझोगी ये अंदाज़-ए-बयां
हो ना जायें हम फनाह इश्क़ में सनम

सोचता 'निर्जन' थाम हाथ मेरा भी कभी
कहेगा हूँ मैं साथ तेरे यहाँ हर पल सनम

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, फ़रवरी 10, 2014

तू क्या जाने
















तू क्या जाने इस दिल में
तेरी बेक़रारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी दुश्वारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी खुमारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी जिम्मेदारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी उन्सियत है क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी शक्सियत है क्या

तू क्या जाने इस दिल में
'निर्जन' धड़कन है क्या

ये दिल समझाता तुझको
कभी तू दिल को समझा

शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

गुलपोश














गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है

अदा उसके इतराने की
दिल में वाबस्ता रहती हैं
सोच कर क्या मैं लिख दूं
हसरतें मेरी जो कहती हैं

उन्स की खुशबू ओढ़ कर
फ़ना हो जाऊं इस इश्क में
शोला-बयाँ आरज़ू कर तर
जवां हो जाऊं इस इश्क़ में

सदा जा-बजा आती है
'निर्जन' सुनता रहता है
आज भी गुलाबों के दिन
सपने बुनता रहता है

गुलपोश : फूलों से भरे
रुखसार : गाल
शुमार : शामिल
वाबस्ता : संलग्न
हसरत : कामना
उन्स : लगाव
फ़ना : नष्ट
शोला-बयाँ : आग उगलने वाली
सदा=आवाज़
जा-बजा=हर कहीं 

सोमवार, जनवरी 20, 2014

क्या कहूँ
















अमा अब क्या कहूँ तुझे हमदम
नूर-ए-जन्नत, दिल की धड़कन 
जान-ए-अज़ीज़, शमा-ए-महफ़िल 
गुल-ए-गुलिस्तां, लुगात-ए-इश्क़
हर दिल फ़रीद, दीवान-ए-ज़ीस्त
अलफ़ाज़ होते नहीं मुकम्मल मेरे 
पुर-सुकून शक्सियत तेरी जैसे 
महकती फ़ज़ा-ए-गुलशन 'निर्जन'
हो सुबहो या शामें या रातों की बेदारी  
तुझको देखा आज तलक नहीं है
फ़िर भी 
तुझको सोचा बहुत है हर पल मैंने.... 

लुगात : शब्दकोष, dictionary
दीवान : उर्दू में किसी कवि या शायर की रचनाओं का संग्रह, collection of poems in urdu
ज़ीस्त : ज़िन्दगी, life
अलफ़ाज़ : शब्द, words
मुकम्मल : पूरे, complete
पुर-सुकून : शांत, peaceful/tranquil
बेदारी : अनिद्रा, wakefullness

मंगलवार, दिसंबर 31, 2013

रिश्ते















कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं
जो दिल में बस जाते हैं
आदत बनकर रहते हैं
छूटे से छूट ना पाते हैं

ख़ुशबू बन कर जीते हैं
गुलशन जैसे महकते हैं
गुलाब से खिल जाते हैं
कांटो में साथ निभाते हैं

'निर्जन' बस ये कहता है
ऐसे रिश्तों को खो न देना
जीवन को यही सजाते हैं
वो दिल से जहाँ बनाते हैं 

मंगलवार, दिसंबर 24, 2013

एक शाम उसके नाम




















‘निर्जन’ जैसे चाहने वाले तुमने नहीं देखे 
जिगर में आग ऐसे पालने वाले नहीं देखे 
यहाँ इश्क़ और इमां का जनाज़ा सब ने देखा है 
किसी ने भी दिलजलों के दिल के छाले नहीं देखे
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तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ 
तुझसे 'निर्जन' क्या कहे क्या हैं 
ठहर जाएँ तो सागर हैं 
बरस जाएँ तो शबनम हैं 
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ना हों बंदिशें कोई इश्क़ के बाज़ारों में 
कोई माशूक ना होगा
'निर्जन' फ़िर भी फ़नाह होगा 
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सुबहें हसीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
यामिनी रंगीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
हर शय में एक नया रंग है अब 'निर्जन' की 
ज़िन्दगी से यारी हो गई तुझसे मिलने के बाद
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आँखों ही आँखों में उफ्फ शरारत हो जाती है 
दिल ही दिल में मीठी सी अदावत हो जाती है 
कैसे भूल जाए 'निर्जन' तेरी रेशमी यादों को 
अब तो सुबहों से ही तेरी आदत होती जाती है 
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फ़नाह हुई जगमगाती वो सितारों वाली रौशन रात 
आ गई याद फिर से तेरी मदहोश नशीली वो बात
यूँ तो हो जाती है 'निर्जन' ख्वाबों में उनसे मुलाक़ात
बिन तेरे मुश्किल है होना एक भी दिन का आगाज़
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उसके पूछने से बढ़ जाती है दिल की धड़कन
वो जब कहती है 'निर्जन' ये दिल किसका है 
सोचता हूँ कुछ कहूँ या बस खामोश रहूँ ऐसे 
मेरी आँखों में लिखे जवाब वो पढ़ लेगी जैसे
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तेरी हर अदा पे अपने दिल को संभाला करता हूँ 
तेरी जुदाई में शाम-ए-तन्हाई का प्याला भरता हूँ 
एक तेरी जुस्तजू में ही 'निर्जन' आबाद है अब तक
जो तू नहीं तो कुछ नहीं ये जीवन बर्बाद है तब तक 
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तेरी ज़ुल्फ़ के साए में कुछ पल सो लेता था 
सुकून पा लेता था 'निर्जन' दर्द खो लेता था 
जो तू गयी तो जहाँ से दिल बेज़ार हो गया 
बंदा मैं भी था काम का अब बेकार हो गया
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ठण्ड के मौसम में उसकी शोखियाँ याद आती हैं 
मचल जाता है 'निर्जन' जब अदाएं याद आती है
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मेरे दिल की गहराइयों में तेरा प्यार दफ़न रहता है 
जहाँ भी रहता है 'निर्जन' अब ओढ़े कफ़न रहता है
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चांदनी मांगी तो रातों के अंधेरे घेर लेते हैं 'निर्जन'
मेरी तरहा कोई मर जाये तो मरना भूल जायेगा 
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इश्क़ बढ़ने नहीं पाता के हुस्न डांट देता है 
अरे हमदम तू 'निर्जन' को कब तक आजमाएगा  
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हाथ भी छोड़ा तो कब, जब इश्क़ के हज को गए 
बेवफ़ा 'निर्जन' को तूने, कहाँ लाकर धोखा दिया
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दोस्ती कहते जिसे हैं मेल है एहसास का 
ज़िन्दगी की सुहानी सुबह के आगाज़ का 
रात भर सोचोगे तुम 'निर्जन' कहता यही 
दोस्ती में, 
दोस्त कहलाने की अगन अब जग ही गई
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जो टूटे दिल तेरा 'निर्जन' 
तो शब् भर रात रोती हैं 
ये दुनिया तंग दिल इतनी 
दिलों में कांटे चुभोती है 
के ख़्वाबों में भी मिलता हूँ 
मैं हमदम से भी इतरा कर 
तेरी महफ़िल आकर तो 
बड़ी तकलीफ होती है