सोमवार, दिसंबर 09, 2013

नथिंग - समथिंग - एवरीथिंग

‘निहार’ शाम से अपने शयनकक्ष में अकेला बैठा है | सोच रहा है कि अपने आप को किस तरह से मसरूफ़ रखने की कोशिश करे | समय विपरीत चल रहा है | कुछ एक ही साथ देने को रह गए हैं | ज़रूरत के समय में साया भी साथ छोड़ देता है यह तो दुनियादारी वाले लोग हैं | सभी हाथ छुड़ा अपने-अपने रास्ते निकल लिए हैं | परन्तु उसके साहस और धैर्य में कोई कमी नहीं आई है | शांत रहकर होठों पर मंद मुस्कान लिए अपने असह्य समय के साथ संघर्ष रहा है | तंगहाल ज़हन को अब रफ़ू की ज़रूरत आन पड़ी है पर ख़ुशी बहुत है | ज़हन में सुकून का सैलाब पैवस्त है | अपने इसी जोश और जज़्बे को दिल में लिए वह हर पल ज़िन्दगी में आगे बढ़ रहा है | शांति, सब्र, धर्य और सहनशीलता उसके चरित्र की खासियत हैं जिनके सहारे से अपनी ज़िन्दगी में जितना उसे मिला है उसे संजोये खुदा का शुक्रिया अदा करता है | यार दोस्त जो इस समय में उसके साथ हैं उन्हें दिल से सलाम और प्यार भी करता है | जो दिल में आता है करता है और जो भी सोच के सैलाब में उमड़ता है वही कलम उठा कर कागज़ पर शब्दों में सज़ा कर उतार देता है | आज भी एक ऐसी ही कहानी दिल-दिमाग में सुनामी बन कर आगे बढ़ रही है | अपने अन्दर उठते इस सैलाब को आज शब्दों में यहाँ उतार रहा है |

अपने आसपास के लोगों में यदि झाँक कर देखता है तो एक ही नाम याद आता है ‘सारिका’ | उसके इर्दगिर्द ही इस कहानी का तानाबाना बुनने बैठ जाता है | स्याही और शब्दों के अताह सागर में डुबकियाँ लगता है | अपनी सोच के आकाश में धूमकेतु बन उसका मन कुछ नए और काल्पनिक ख्यालों में उड़ान भरने लगता है |

‘सारिका’ - तुम ही एकमात्र ऐसी शख्स हो जो शायद मुझे सही और पूरी तरह से समझ सकती है | पर तुम्हे भी तो अपने से दूर...बहुत दूर कर रखा है मैंने जैसे तुमने मुझे अपने से जुदा...एकदम जुदा रखा है |

आज रह-रह कर तुम्हारी बहुत याद आ रही है | एक सूनापन महसूस हो रहा है |  बीते वक़्त के गुज़रे पलों में जीने को दिल कर रहा है |  मुझे याद आ रहा है कैसे तुम्हे चुपके से मैंने पहली दफ़ा सबसे नज़रें चुराकर देखा था | दूसरों की नज़रों से बचते बचाते टेड़ी कनखियों से तुम्हे पहली बार लाल साड़ी पहने देखा और अपना सब कुछ हार बैठा था | तब से लेकर आज तक तुम्हारी छवि मेरे ह्रदयपटल पर अंकित है | अब तुम इसे मेरा बचपना कह लो या कुछ और पर सिर्फ तुम ही मेरी सच्ची दोस्त, हमदम, हमसाया और हमराज़ हो |  तुम्हारी उन शोख अदाओं और नरगिसी मुस्कान पर मन फ़िदा हो गया है |  रोज़ाना तुम्हे ऐसे ही नज़रें चुराकर देखना आदत बन गया है | जहाँ तहाँ रास्तों पर, बस स्टॉप पर, मेट्रो में, भीतर-बहार, घर के सामने हर एक शख्स में तुम्हारा अक्स नज़र आने लगा है | तुम्हारी एक झलक पाने की उत्सुकता दिल में लगातार बनी रहती थी |

मुझे याद है जब तुमने उस दिन नज़रें उठाकर पहली बार जब मुझे देखा था और फिर झट से नज़रें बचाते हुए तुम इधर उधर देखने लग गईं थी | ऐसा लगा था जैसे मुंडेर पर बैठी कोई चिड़िया आस पास गर्दन घुमाकर कुछ ढूँढ रही है | तुम इतनी व्यस्त होती नहीं हो जितना तुम दिखाने की कोशिश करती हो | थोड़े ही समय में हमारी दोस्ती इतनी मज़बूत हो जाएगी कभी सोचा ना था | पर अब शायद दोस्ती से आगे बढ़ने का मक़ाम आ गया है | बातें तो तुम भी खूब बना लेती हो | पर शायद दिल की बातें ज़बां तक आते आते मन की काली अंधरी कोठरी में कहीं गुम हो जाया करती हैं | बातों के दरमयां सवालात के वक़्त तुम्हारा जवाब में ‘नथिंग’ कहना बहुत कुछ कह देता है | देखो तो! इतनी बहस, लड़ाई झगड़े, तू-तू मैं-मैं के बाद भी हम तुम दोस्त है | हमारे बीच एक दुसरे से नाराजगी फिर रूठना मानना भी खूब होता है पर आज भी तुम्हारे और मेरे बीच यह मुआ ‘नथिंग’ ही चल रहा है | आज तुम अपने आप में व्यस्त हो...शायद कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो और मैं अपने आप में | हम दोनों शायद एक ही सोच वाले बाशिंदे हैं पर फिर भी एक दुसरे से बहुत अलग हैं |

आज तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं है |  एक फ़ोन करने तक की फ़ुर्सत नहीं है |  मैं भी तुम्हारी तरह व्यस्त हो सकता हूँ |  अपनी व्यस्तता का उलाहना दे कर तुम्हे भुला सकता हूँ पर ऐसा करने के लिए दिल गंवारा नहीं करता |  दोस्त हूँ तो दोस्ती निभाना जानता हूँ | मेरे व्यस्त होने का मतलब यह कतई नहीं कि मैं तुम्हे भुलाना चाहता हूँ | मैं तो अपना हर पल तुम्हारे साथ ही गुज़ारना चाहता हूँ | कितना कुछ पाना चाहता हूँ पर इस कितने कुछ को पाने की दौड़ में तुम्हे नहीं खोना चाहता | ऐसा न हो के सब कुछ पाने के चक्कर में जीवन तुम्हारे बिना ‘नथिंग’ बनकर रह जाये | मैं तो अपनी हर ख़ुशी, हर ग़म, हर बात, हर सफलता, हर विफलता, जीवन का हर एक लम्हा, हँसना, रोना, मुस्कुराना, गुनगुनाना, तुम्हारे साथ बांटना चाहता हूँ पर किस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर है | वो बेचारी तो अब तलक ‘नथिंग’ पर अटक कर रह गई है |

तुम ही तो हमेशा मुझ से कहती हो,

“तुम्हे समझना बहुत ही मुश्किल है | तुम कितने ‘जटिल’ हो | बहुत ही ज्यादा रहस्यात्मक व्यक्तित्त्व वाले इन्सान हो | क्या हो तुम ?”

मैं भी हंसकर जवाब में बस इतना ही कहता हूँ ‘नथिंग’... क्योंकि शब्दों में बता नहीं सकता और हर बात तुम्हे जताना मुनासिब भी नहीं हो पाता | इधर उधर की बातें होती ही रहती हैं | ऐसा हुआ-वैसा हुआ लगा रहता है | यहाँ गए-वहां गए, ये किया-वो किया, यह खाया-वो पिया सब कुछ कितनी सरलता से व्यक्त हो जाता है पर जो बात वास्तव में व्यक्त करनी होती है वहां तक पहुँचते ही शब्दों पर विराम लग जाता है और सिर्फ ‘नथिंग’ ही सामने उभर कर आता है | ऐसा नहीं है मैं तुम्हे या तुम मुझे समझते नहीं हैं | तुम्हारी अनकही और अनसुलझी बातों को मैं बखूबी महसूस करता हूँ और शायद तुम भी करती हो पर कहना कैसे है वो समझ नहीं आता है | कभी कभी जीवन में हम जानते हैं हमें क्या करना है और क्या कहना है पर परिस्थितियों के चलते कभी अपने आपको ज़ाहिर नहीं कर पाते | पर शायद जीवन में जीने के लिए जितना ज़रूरी सांस लेना होता है उतना ही ज़रूरी है अपने विचारों को समझाना और उन्हें व्यक्त करना भी होता है | मुझमें यह सबसे बड़ी खामी है मैं अपनी बातों को बिना कहे नहीं रह सकता | मैं जो जिसके बारे में महसूस करता हूँ उसे बिना वक़्त गंवाए उनके ह्रदय तक अपने अंदाज में पहुंचा ही देता हूँ | तुम्हारा मुझे पता है तुम अपने आप को कैसे व्यक्त करती हो ?

हमारे जीवन में बहुत कुछ घटता रहता है, बहुत से बदलाव आते हैं | बहुत से लोग मिलते हैं बहुत सी बातें होती हैं | ऐसा भी होता है कि कभी-कभी दूसरों की आदतों को हम देख और समझ कर अपने जीवन में अपना लेते हैं | ऐसी ही तुम्हारी कुछ आदतें हैं जो मैंने अपने जीवन में अपनाई हैं और मेरी कुछ बातें हैं जिनको शायद तुम भी अपनाने के बारे में सोचती तो ज़रूर होंगी | अब ये तो पता नहीं चल पाया है कि कब कैसे तुम्हारी पसंद मेरी हो गई है या मेरी तुम्हारी होने की उम्मीद है पर मुझे पूरा यकीन है यदि इस बारे में भी तुमसे कभी कुछ बात होगी तब भी तुम्हारा जवाब एक ही होगा ‘नथिंग’ या फिर ‘नथिंग लाइक दैट’ |

आज भी शाम से तुम मेरे साथ बात कर रही हो | तुम साथ भी हो और दूर भी हो | बहुत से विचारों का आदान प्रदान हो रहा है | फसबुक पर ख़ूब कमेंट्स आ रहे हैं, चैट हो रही है और फिर व्हाट्सऐप पर भी वार्तालाप निरंतर चल रहा है |

बातों के बीच मेरा यह यह सवाल करना के ‘क्या हुआ’ या ‘और क्या हो रहा है’, ‘क्या कर रही हो?’ जैसे सवाल पूछने पर तुम्हारा रटा-रटाया जवाब आता है ‘नथिंग’...अभी भी कितने ही सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब अनकहे हैं और तुम्हारी ‘नथिंग’ पर अटके हुए हैं | ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी होता है जब तुम मुझसे कुछ पूछना चाहती हो तब मैं भी कुछ इसी तरह जवाब देने लगा हूँ | इन सवालों के जवाब शायद एक दुसरे से मिलने की जगह हम खुद से ही पूछते रहते हैं | यदि सवाल सामने आ भी जाता है तो सहसा एक ही उत्तर ज़हन से बहार कूदकर आता है ‘नथिंग’ | यह सवालों के जवाब से बचने का सबसे उम्दा तरीका होता है | हम इससे आगे निकलकर शायद कुछ सोचना ही नहीं चाहते | मुझे तो कोई तकलीफ नहीं होती यह बतलाने में कि मैंने तुमको खुद में शामिल कर लिया है | अपनी सुबहों में और शामों में भी तुमको शामिल कर लिया है पर अभी भी कुछ फासलें हैं जो तय करने हैं | देखें तुम कब अपनी शामों को मेरे नाम करती हो, अपने दिल की सुनकर अपने दिमाग से आगे निकलती हो |

यह तो कोई भी नहीं बतला सकता के कल में क्या छिपा है | अपने हाथों की लकीरों में क्या लिखा है | बस मुझे इतना तो पता है कि एक दोस्त है जिसके साथ आज तो बाँट ही सकता हूँ क्योंकि जीवन में किसी भी इंसान से बस ऐसे ही मुलाक़ात नहीं होती है | शायद आज नहीं तो कल तुम भी मेरी इस सोच पर विचार करने के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाओगी और मेरा यकीन करने लगोगे | मेरा अपना ऐसा मानना है जीवन में रिश्ता चाहे कोई भी हो यदि वह सच्चा है तो कभी भी अस्पष्ट सोच, हालातों और परस्थितियों का मोहताज नहीं होता और यदि एक दूसरे के लिए दिल में स्नेह, आदर, सम्मान, एहसास, विश्वास और संवेदनाएं होती है तो ‘नथिंग’ से ‘समथिंग’ तक पहुँचने में देर नहीं लगती और गाड़ी आगे ज़रूर बढ़ती है |

तुम्हारी दोस्ती के कारण अब दिन भी सुहाना लगने लगा है | मौसम खूबसूरत और संगीतमय लगने लगे हैं | फूलों के रंग इन्द्रधनुषी लगने लगे हैं | गुलाब का रंग और ज्यादा गहरा सुर्ख लगने लगा है | तुम्हारे साथ उगते सूरज की पहली किरण और डूबते सूरज की आख़िरी प्रभा देखने का दिल करने लगा है | तुम्हारे दिल को पढ़ने का मन करने लगा है | तुम्हारी मुश्किलों को जानने का मन करने लगा है | तुम्हारी हर बात सच्ची और अच्छी लगने लगी है | तुम्हारे ख्यालों को अपना ख्याल बनाने का दिल करने लगा है | तुम्हे तुमसे ज्यादा जान पाने का दिल करने लगा है | तुम जो रूठ जाओ तो मनाने का दिल करने लगा है | तुम्हारे अपनों को अपनाने का दिल करने लगा है | तुम्हारे ख्वाबों की ताबीर को हकीक़त बनाने का मन करने लगा है | दोस्त की दोस्ती पर कुर्बान हो जाने का दिल करने लगा है |

विचारों का सिलसिला यूँ ही चलता जा रहा था | निहार अपनी कलम से ऐसे ही विचारों को शब्दों में पिरो कर कागज़ पर गढ़ता जा रहा था | उसके सृजन का एक-एक पल जिसे उसने अपने विचारों में जिया है आज वह सब उसके सामने कागज़ पर लिखा गया था | सोचता था कि कैसे अपने विचार और यह पत्र वह सारिका तक पहुंचाएगा | यदि नहीं भी पहुंचा सका तो कम से कम अपनी दोस्ती तो ज़िन्दगी भर वफ़ादारी से निभाएगा | बहुत कुछ लिखा और कितना कुछ कहा पर अभी भी बहुत कुछ अनकहा बाक़ी है | बहुत कुछ ऐसा है जो शब्द बयान नहीं कर पाए | कुछ बातें बताई नहीं जाती हैं सिर्फ महसूस की जाती हैं | कुछ एहसासों को हमेशा यादों में समेट कर दिल में छिपा कर रखना ही मुनासिब होता है | यह शब्दों का कारवां और कहानी का सिलसिला एक दिन थम जायेगा और जीवन भी एक दिन विराम पा जायेगा पर सोच हमेशा के लिए रह जाती है | यादों में तो कम से कम रहती ही है | अपनी सोच को दूसरों की सोच के साथ मिला कर उनके व्यक्तित्त्व और विचारधारा का आदर करने के साथ अपने चरित्र का समन्वय उनके जीवन परिवेश में करना ही तो असल ज़िन्दगी है | यही दोस्ती का प्रथम नियम भी है | जहाँ दोस्ती है वही प्यार भी है और प्यार की कोई सीमा और इन्तेहाँ नहीं होती | वह कदापि समाप्त नहीं होता | वह सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जाता है, समझा जाता है और किया जाता है | यदि दिलों में यह है तो नथिंग को समथिंग और समथिंग को एवरीथिंग बन जाने में ज़रा भी समय नहीं लगता |

दोस्तों भले ही यह कहानी मेरी परिकल्पना है परन्तु आज के परिवेश में हमारे आसपास ऐसा कितनो के साथ घटित हो रहा है | कितने  निहार और सारिका जीवन के ऐसे किनारों पर खड़े मिल जाते हैं | जिनकी कहानी सिर्फ एक ‘कुछ नहीं’ पर अटक कर रह जाती है और कभी आगे नहीं बढ़ पाती | इसमें कभी तो परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होती, कभी कोई संकोच आड़े आ जाता है, कभी दोनों की अना एक दुसरे को आगे बढ़ने नहीं देती है, कहीं नकारात्मक सोच साकारात्मकता पर भारी पड़ जाती है और दुसरे बहुत से कारण हो सकते हैं | अब इस कहानी का परिणाम मैं अपने पाठकों पर छोड़ता हूँ | आप ही बताएं निहार और सारिका को क्या फ़ैसला लेना चाहियें ? कहानी इस मोड़ से कैसे आगे बढ़नी चाहियें और किस तरफ आगे चलनी चाहियें ‘नथिंग’, ‘समथिंग’ या ‘एवरीथिंग’....??? सभी मित्रों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में......

7 टिप्‍पणियां:

  1. हरेक के साथ उसकी परिस्थिति के हिसाब से आगे बढ़ेगी। वैसे यदि दोनों एक-दूसरे के प्रति सत्‍यभावी हैं तो उन्‍हें एकाकार होने अर्थात् विवाह में बन्‍धने की फौरन से पेशतर तैयारी कर लेनी चाहिए, पर कम से कम इसके लिए उनके मध्‍य परस्‍पर 'प्रेमालाप' तो प्रारम्‍भ हो। अभी तो कहानी एक तरह से 'कुछ नहीं', 'कुछ-कुछ' और 'सबकुछ' जैसे भाषा के हेल्पिंग बर्ब्‍स तक ही पहुंच पाई है।...................एकदम सधा हुआ प्रेमाभाष प्रकट किया है आपने दिल के साफ व्‍यक्ति का, लेकिन यह दुखद है कि जिसके प्रति ऐसा अनुभव होता है वह नादान होता है। इस सन्‍दर्भ में मैंने एक कविता लिखी है (उसे प्रतीक्षा थी मेरे विद्वान बनने की) अपने ब्‍लॉग पर। जरुर पढ़िएगा। इसमें आपको 'सारिका' जैसे चरित्र को समझने का मौका मिलेगा।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया विकेश भाई | अगर आप कविता का लिंक दें सकें तो बहुत अच्छा लगेगा | मैं ज़रूर पढना चाहूँगा आपकी लिखी कविता को | आपकी लेखनी से हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखने को और समझने को मिलता है | आभार

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  2. agree .. anything starts wid Nothing thn it reaches to the Something and thn it becomes Everything

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  3. शुक्रिया चतुर्वेदी साहब

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