शाम तनहा है
रात भी तनहा
चाँद मिलता है
अब यहाँ तनहा
शाम तनहा है...
टूटी हर आस
थम गया लम्हा
कसमसाता रहा
ये दिल तनहा
शाम तनहा है...
इश्क भी क्या
इसी को कहते हैं
लब तनहा है
जिस्म भी तनहा
शाम तनहा है...
साक़ी ग़र कोई
मिले भी तो क्या
जाम छलकेंगे
दोनों तनहा
शाम तनहा है...
जगमगाती
चांदनी से परे
सूना सूना है
एक जहाँ तनहा
शाम तनहा है...
याद रह जाएगी
दिलों में मेरी
जब चला जायेगा
'निर्जन' तनहा
शाम तनहा है...
umda...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया लाविना
हटाएंतन्हाई को जरा आराम क्यों नहीं देते
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ है यहाँ और वहाँ जरा देखिये
दूर भी कीजिये अब इसे कुछ ले क्यों नहीं लेते :)
वाह! सुशील भाई बहुत खूब :) - धन्यवाद्
हटाएंसमुद्र में नाविक अकेला चांदनी रात और प्रेम रोग .................दिल पता नहीं क्या हो जाता होगा नाविक का!
जवाब देंहटाएंJai Ho Vikesh bhai
हटाएंबहुत ही उम्दा,प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
Dhanyawad Dheerendra ji
हटाएंसभी सुधी रचनाकारों को गीता-जयंती की वधाई !
जवाब देंहटाएंसचमुच एक मनोभाव परक् प्रस्तुति !!
Dhanyawad Prasoonji
हटाएंAabhaar huzoor
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