बुधवार, मई 29, 2013

आईपीएल की खुल गई पोल

















हल्ला बोल हल्ला बोल
आईपीएल की खुल गई पोल
अन्दर खाने कित्त्ते हैं झोल
हो रही सबकी सिट्टी गोल

ये मैच नहीं ये फिक्सिंग है
लगता मुझको तो मिक्सिंग है
बीमारी है अड़ियल अमीरों की
ये नसल है घटिया ज़मीरों की

नैतिकता ताख पे रक्खी हैं
ये खिलाड़ी हैं या झक्की हैं
जो चंद करोड़ पर नक्की हैं
लगते गोबर की मक्खी हैं

नारी गरिमा पर धुल पड़ी
आधी नंगी हो फूल खड़ी
चीयर गर्ल बन इतराती है
मैदान में कुल्हे मटकाती है

बस संत इनमें श्रीसंत हैं जी
आईयाश बड़े महंत हैं जी
फिक्सिंग में पकड़े जाते हैं जी
रंगरलियाँ खूब मनाते हैं जी

फ़िल्मी बकरे भी जमकर के
आईपिएल में मटर भुनाते हैं
विन्दु सरीखे पूत यहाँ पर
पिता की लाज गंवाते है

मैच के बाद की पार्टी में
आईयाशियों के दौर चलते हैं
दारु, लड़की, चिकन, कबाब
हर एक के साथ में सजते हैं

जीजा, साले, और सुसर यहाँ
एक दूजे की विकेट उड़ाते हैं
सट्टेबाजी के बाउंसर पर
बेटिंग अपनी दिखलाते हैं

मोहब्बत, जंग और राजनीति में
कहते हैं सबकुछ जायज़ है
आईपीएल की नई दुनिया में
सुना है खेल में सबकुछ जायज़ है

मैं पूछता हूँ अब आपसे यह
क्या जायज़ है ? क्या नाजायज़ है ?
जनता करेगी यह फैसला अब
कौन लायक है ? कौन नालायक है ?

बल्ला बोल बल्ला बोल
हल्ला बोल हल्ला बोल
आईपीएल की खुल गई पोल
आईपीएल की खुल गई पोल 

रविवार, मई 26, 2013

किसकी सज़ा है ?
















ऐ वादियों
मैं तुम से पूछता हूँ
झरनों में भी देखता हूँ
नदियों में ढूँढता हूँ
ये नयन न जाने
किसे खोजते हैं
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है
प्रभाकर जब आएगा
चमक उठेगा मन
डोल उठेगी आत्मा
पर्वतों पर कूदती
झरनों को लूटती
सरिता से फूटती
रौशनी समेटे
तब 'निर्जन'
दूंगा अंधियारे को सज़ा
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है

गुरुवार, मई 23, 2013

दुःख




















दिल लगे तब दुःख होता है
दुःख होता है तो तू रोता है
जो रोता है तो चैन से सोता है
सोता है तो सपनो में खोता है

बातें जो तप चुकी दिन में
शब्द जो पक चुके मन में
अब सपनो में दिख जाते है
सियाह रात में बहे जाते है

बाल सफ़ेद हो गए तेरे
काले अनुभवों के लिए घेरे
कब तक तू यह सह पायेगा  ?
क्या आंसु से लकीरें बदल पाएगा ?

दुखी होना हल नहीं जीवन का
दुःख में जीना बल है जीवन का
कह दो बात जो कही नहीं जा रही
बतलाओ बात जो सही नहीं जा रही

मुंह से बोल कर ही निजात पायेगा
वरना घुट घुट का बिखर जायेगा
दुःख के बवंडर में घिरता जायेगा
'निर्जन' खुद को खुद से जुदा पायेगा

शनिवार, मई 11, 2013

धोखेबाज़




















यारों इस बरस
तो गर्मी खूब है
इसी लिए अपने
दिमागी की बत्ती
एकदम फ्यूज है
कशमकश में
अपनी ज़िन्दगी है
दिल का करें
वो भी कन्फूज है
कनेक्ट करने की
जो कोशिश की
हर कनेक्शन का
फ्यूज भी लूज़ है
आलम अब तो
ज़िन्दगी का जे है की
अपनों के साथ भी
डिस-कनेक्शन
हो रहा है
कहीं भी कुछ भी
क्लिक नहीं हो रहा है
जीवन के इस  मोड़ पर
'निर्जन' तुझको ही क्यों
कठिनाइयाँ मिल रही हैं
भाग्य, समय, मानव
सब एक साथ मिलकर
चौक्कों-छक्कों सा
तुझे दबादब धो रहे है
गॉड जी के यहाँ भी
हो रहा है इलेक्शन
अपने जो खास थे
दिल के पास थे
बचपन में गुज़ारे
लम्हे जिनके साथ थे
चल दिए वो भी
करवा कर सिलेक्शन
उम्र आने से पहले ही
भर आये हैं यह
नॉमिनेशन फार्म
ताख पर रख कर
ज़िन्दगी के सारे नॉर्म
हो लिए अचानक से
गो, वेंट, गॉन
मैं खड़ा देखता रहा
बस हाथ मलता रहा
जीवन के मोती रहे
हाथों से मेरे रेत की
भांति फिसलते
सोचता हूँ बस
बैठ कर अकेला
अपने ही ऐसे
धोखेबाज़
क्यों हैं निकलते ?

शुक्रवार, मई 10, 2013

रसीले रंगीले हास्य से भरे काइकू

अपमान करना तकनीक का, ये मेरा मक़सद नहीं
कोशिश मेरी इतनी है बस, के हंसी आनी चाहियें
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असली हैं हाइकू
अपने हैं काइकू
पढ़ो न पढ़ो न
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सूरत अपनी बदल
खिलखिलाता चल
टैक्स नहीं लगता
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भूकंप आया
सोते को जगाया
गुड मोर्निंग मामू
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फेसबुक चैट
नहीं कोई वैट
खूब करो खूब करो
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मिल प्यार से
गिला यार से
दिल से कर
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संजू स्टार
बाक़ी बेकार
हुए तड़ीपार
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तेरी बेवफाई
खूब रंग लाइ
ज़िन्दगी बदल गई
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दिल का दर्द
निभा तू फ़र्ज़
निकलने दे
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दर्द से जीत
मुश्किलों से प्रीत
करके रिलैक्स कर
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पैग लगा यार
धुंए में संसार
चिल्ल कर चिल्ल कर
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सोना हुआ सस्ता
हालत अपनी खस्ता
डार्लिंग कहें खरीदो  
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वफ़ा का सिला
बेवफा मिला
दिल पे मत ले यार
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इश्क का बुख़ार
हाय मारा यार
बचाओ बचाओ
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हर दफा नया यार
वल्लाह तेरा प्यार
जान बचा गई
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कलयुगी रिश्ते
नहीं हैं सस्ते
महंगाई बढ़ गई
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खुनी मंज़र
एहसास हैं बंजर
करते दिल वीरान
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इश्किया तूफ़ान
बचो गुलफाम
हाय मारा गया
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किसी का उधार
सर न रख यार
चुका दे चुका दे
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गले का फन्दा
इसक का धंधा
यार बिजनेस बदल
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इश्क हो या मुश्क
मौसम आज ख़ुश्क
चल आइसक्रीम खिला
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मौसम का इशारा
गर्मी ने मारा
यार ठंडा तो पिला
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बहुत हुए काइकू
इजाज़त भाईकू
कहता अलविदा

बुधवार, मई 08, 2013

कर्म की मिठास














पग घुंघरू बाँध
मीरा नाची थी
केशव
की याद में, या
फिर केशव
के कर्म
रंग, रूप, गुण
की गंध में
मुग्ध हुई
मन वीणा, की
झंकार पर
नाची थी
हाँ
कर्म की
झंकार ही ने
मीरा को
बाध्य किया
नाचने पर
कर्म की मिठास ही
जीवन को सतरंगी
बनाती है 

बुधवार, मई 01, 2013

मज़दूर दिवस













आज एक मई है, दुनिया
मजदूर दिवस मना रही है
कोई उनसे जाकर भी पूछे
बेचारी मज़दूर की कौम, क्या
इस दिन से कुछ पा रही है ?
एक दिन मनाने से, क्या
भूखे पेट की आग
बुझ पा रही है ?
आज भी वही
बाजरे की रोटी,
लस्सन की चटनी,
और सूखी प्याज़
थल्ली में परसी जा रही है
क्या अपनी आब में ये
कोई इजाफा पा रहे हैं ?
अपने बच्चों के भविष्य
के लिए जगह जगह
हाथ फैला रहे हैं
हर पल हक़-इन्साफ
पाने को पिसते-तरसते
जा रहे हैं
सुना था कभी कहीं पर
इनको घर दिए जा रहे हैं
चोरों की कॉम सरकारी
अब रास्ते समझा रहे हैं
जिनको देखो, वो ही
लाला, पीले, नीले
सलाम ठोके जा रहे हैं
खा-पी हाथ चटका कर
बस आगे चले जा रहे हैं
मज़दूर 'कॉमरेड' बतला
शोषण किये जा रहे हैं
झूठे वादे, झूठी आस
झूठे सब्ज़बाग दिखा
उल्लू पर उल्लू
बना रहे हैं
बस औपचारिकता
के चलते
मज़दूरों की खातिर
मज़दूरों से ही
मज़दूर दिवस को
मज़दूरी करवा रहे हैं

सुन रहा है ना वो














कल मैंने आशिकी २ देखी | बहुत ही सुन्दर फिल्म बनाई टी-सीरीज ने | उसका एक गाना "सुन रहा है तू" बहुत ही सुरीला और उसके बोल दिल में अन्दर तक उतर गए हैं | अब तक मैं उस गाने को कम से कम ५० दफा सुन चुका हूँ पर क्या करूँ दिल ही नहीं करता बंद करने को | तो सोचा कुछ अपना ही लिख डालूं उस गाने की धुन पर  और रिकॉर्ड कर के प्रस्तुत करूँ | तो वही पेश कर रहा हूँ | गाने की धुन को सुनने के लिए और मेरे बोल उस पर सजाकर पढने के लिए गाने का लिंक यहाँ दे रहा हूँ | गाना मेल और फीमेल दोनों आवाज़ों में हैं तो मैंने दोनों ही पर अपने बोल लिखने की कोशिश की है | उम्मीद है आपको मेरी कोशिश पसंद आएगी |




मुझको गाने दे
शब्दों को माने दे
दुखती सज़ाओं के
वो लम्हे भुलाने दे
साँसों को आने दे
अब गुनगुनाने दे
खुशियों के साज़ो पर
नए गीत बजाने दे
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

फ़िज़ा भी, कह रही हैं
एक सुकूं, दिल को हुआ
काश वो, मिल जाए
मांगी है, जिसकी दुआ
वो दिल की चाहत है
वो मेरी अदावत है
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

बातें, खुशनुमा हैं
लिखी है, नई दास्तां
पाई, दिल ने मेरे
हैं, इतनी सी खुशियाँ
दिल अब भी, सलामत है
खुद ही से, खुशामत है

मुझको भुलाने दे
बीते ज़माने वे
तेरी पनाहों में जो
लम्हे गुज़ारे थे
दिल को बहलाने दे
हंसने दे, गाने दे,
बीती यादों को अब
दिल से मिटाने दे
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

फ़िज़ा भी, कह रही हैं
एक सुकूं, दिल को हुआ
काश वो, मिल जाए
मांगी है, जिसकी दुआ
वो दिल की चाहत है
वो मेरी अदावत है
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

रविवार, अप्रैल 28, 2013

कली














एक कली खिली चमन में
बन गई थी वो फूल
बड़ा गर्व हुआ अपने में
सबको गई थी वो भूल
कहा चमन ने फिर उससे
यहाँ रहता स्थिर नहीं कोई
मत कर तू गुमान इतना
उसको बहुत समझाया
आज तो यौवन है पर
कल तू ठूंठ भी हो जाएगी
तब कोई तेरे दर्द में
सहानुभूति न दिखलायेगा
हंसकर मिलजुल कर मिल
फिर से सब में खो जा तू
अलग बनाया अस्तित्व जो तूने
अपने से भी तू जायेगी
कोई माली, राहगीर ही
तुझको तोड़ ले जायेगा
मिट जायेगा जीवन तेरा, फिर
अन्तकाल तक तू पछताएगी

शुक्रवार, अप्रैल 26, 2013

डर लगता है















दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

लूटेरे हर जगह फिरते मुंडेरों पे, शाख़ो पे
बना कर भेस अपनों सा लपकते हैं लाखों पे

न लो रिस्क तुम बच के ही रहना दरिंदो से
दिखने में कबूतर हैं ये गिद्ध रुपी परिंदों से

भूलकर भी मत सुखाना अस्मत को तार पर
मंडराते फिरते है रक्तपिपासु वैम्पायर रातभर

इज़्ज़त तार कर देंगे तार पर देख अस्मत को
वापस फिर न आती लौट कर गई शुचिता जो

संभालो पवित्रता अपनी खुद अब दोनों हाथों से
खत्म कर दो हैवानो को जीवन की बारातों से

चलाओ बत्तीस बोर कर दो छेद इतने तुम इनमें
मरें जाके नाले में इंसानियत बची नहीं जिनमें

दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

गुरुवार, अप्रैल 25, 2013

क्या लिखूं क्यों लिखूं





















स्याह ज़िन्दगी मेरी, कलम-ए-दर्द से कहूँ
जो लिखूं तो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

सोच कर तो कभी, कुछ लिखता नहीं
वो लिखूं सो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

एक फ़क़त सोच पर, जोर चलता नहीं
हाँ लिखूं ना लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

ग़म-ए-ऐतबार को, खून-ए-रंज से कहूँ
दिल लिखूं जां लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

तेरी बेवफाई का, हर सबक मैं कहूँ
कब लिखूं अब लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

फ़नाह 'निर्जन' कभी, दुःख से होगा नहीं
जी लिखूं मर लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

मंगलवार, अप्रैल 23, 2013

कर्म और अकर्मण्यता














हे प्रभु! आपने तो
बचपन से ही
कर्म को प्रधानता दी
फिर यह मध्यकाल
आते-आते अकर्मण्यता
को क्यों बाँध लिया
अपने सर का
सेहरा बना कर,
बनाकर एक
अकमणयता की सेज
तुम्हारी ये निद्रा
तुम्हारे ही लिए नहीं
समस्त जन को
पीड़ा की सेज देगी
बैठा कर स्वजनों को
काँटों की सेज पर
पहना कर काँटों के
ताज को तुम ईशु
नहीं कहलाओगे
कहलाओगे सैय्याद
तुम अपनी निद्रा त्यागो
तुम कर्म की वो राह चुनो
जो पीडित स्वजनों को
रहत दे ऐसी राहत
जिसे सुनकर
मृत भी जी उठे

रविवार, अप्रैल 21, 2013

बकरचंद
















आज बने है सब बकरचंद
पखवाड़े मुंह थे सब के बंद
आज खिला रहे हैं सबको
बतोलबाज़ी के कलाकंद

बने हैं ज्ञानी सब लामबंद
पोस्ट रहे हैं दना-दन छंद
आक्रोश जताने का अब
क्या बस बचा यही है ढंग

बकर-बक करे से क्या हो
मिला है सबको बस रंज
बकरी सा मिमियाने पे
मिलते हैं सबको बस तंज़

ज़रुरत है उग्र-रौद्र हों
गर्जना से सब क्षुब्ध हों
दुराचारी-पापी जो बैठे हैं
अपनी धरा से विलुप्त हों

दिखा दो सब जोश आज
शस्त्र थाम लो अपने हाथ
दरिंदों, बलात्कारियों की
आओ सब मिल लूटें लाज

बहुत हो लिए अनशन
खत्म करो अब टेंशन
हाथों से करो फंक्शन
दिखा दो अब एक्शन

आया नहीं जो रिएक्शन
तो खून में है इन्फेक्शन
'निर्जन' कहे उठो मुर्दों
दिखा दो कुछ फ्रिक्शन

मत बनो तुम बकरचंद
कर दो छंद-वंद सब बंद
इस मंशा के साथ बढ़ो
कलयुग में आगे स्वछंद

शनिवार, अप्रैल 20, 2013

बदल रहा है

















दुनिया बदल रही है
ज़माना बदल रहा है
इंसानी फितरत का
फ़साना बदल रहा है

भूख बदल रही है
भोजन बदल रहा है
विकृत हाथों का
निशाना बदल रहा है

आचार बदल रहा है
विचार बदल रहा है
भेड़िये दरिंदों सा
किरदार बदल रहा है

सलीका बदल रहा है
तरीका बदल रहा है
विकृत यौनइच्छा का
पैमाना बदल रहा है

बीवी बदल रहा है
बेटी बदल रहा है
हैवानी हदों का
जुर्माना बदल रहा है

दिल्ली बदल रही  है
दिल वाला बदल रहा है
वीभत्स कुकृत्यों से
दिल्लीनामा बदल रहा है

लिखना बदल रहा है
सुनाना बदल रहा है
'निर्जन' फरमाने को
अफसाना बदल रहा है

ऐ मुर्दों अब तो जागो
कब्रों से उठ के आओ
अब सोते रहने का
मौसम बदल रहा है

गुरुवार, अप्रैल 18, 2013

श्रीमती अनारो देवी - भाग १०

अब तक के सभी भाग - १०
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प्रभु की अनुकंपा साहू साब के परिवार पर निरंतर सुधाकर से बरसती शीतल और कोमल स्नेह से परिपूर्ण चांदनी की भांति बरस रही थी | समस्त परिवार समृद्धि के पथ पर अग्रसर था | सभी अपने अपने कार्यों में व्यस्त थे और अपने अपने जीवन का निर्वाह बड़ी ही शालीनता के साथ कर रहे थे | अपनी बेटी के सुखी संसार के साथ वे पुलकित हो उठते थे | जब कभी समय मिलता अनारो देवी के साथ बैठ कर घंटो बतियाते | घर में सबका हाल चाल मालूम करते रहते | बहुएँ भी उनका बहुत आदर सम्मान किया करती थी | देने लेने में भी वे कभी पीछे नहीं रहते | अच्छे से अच्छा अपने नाती, नातिनों, बहुओं और दामादों को दिया करते | अनारो देवी कभी कभार एतराज़ भी जताया करती परन्तु वो दो टूक जवाब देकर उन्हें ख़ामोश कर दिया करते | 

कहते, " देख लल्ली, मेरी तो उम्र हो चली है, ये सासें कभी भी साथ छोड़ सकती हैं और आँखे कभी भी मिच सकती हैं | अब मैं मोह माया से परे हूँ | मेरा जो कुछ भी है सब इन बच्चों का ही तो है | अब तो बस यही आस है के जाने से पहले अपनी आने वाली नई पीढ़ी का मुंह देख जाऊं | ठाकुर जी का बुलावा कभी भी आ सकता है | इससे पहले के उनका बुलावा आये अपने परिवार के साथ थोडा खुश और हो जाऊं | उन्होंने मुझे सब कुछ दिया, तेरे जैसी बेटी दी, गंगा जैसा दामाद और इतने प्यारे नाती और बहुएँ | बस अब छोटे बाल गोपालों से भी वो मुझे मिल्वादें तो आँखें चैन से मूँद लूँगा | वरना बूढ़े की आस साथ ही चली जाएगी |"

उनकी बात सुनकर अनारो देवी का दिल भर आता और कहती, "चाचा काहे ऐसी बातें करते हो आप | आप तो सौ साल भी कहीं न जाने वाले | आपका आशीर्वाद, साथ और आपका हाथ तो मेरे सर पर और मेरे बच्चों के सर पर हमेशा रहेगा | मैं कहीं न जाने दूंगा चाचा तुम्हे | समझ लो सही से |"

उनकी बात सुनकर साहू साब ठट्ठा लगाकर जोर से हंस देते और अनारो देवी भी खिलखिला उठतीं | बस ऐसे ही दिन रात जीवन का कारवां बढ़ता चला जा रहा था | परन्तु यह सुख के दिन सदा के लिए नहीं थे | कोई भी स्तिथि जीवन में निरंतर नहीं रहती | कालचक्र जब घूमता है तब सभी के जीवन में अनकहे सवाल आकर खड़े हो जाया करते हैं जिनके जवाब मनुष्य कभी भी आसानी से नहीं ढूँढ पाता | यही अनारो देवी के परिवार में भी होने वाला था | जिसकी कल्पना भी उन्होंने कभी नहीं की थी वो सामायिक स्तिथियों वाले परिवर्तित दिन उनके समक्ष जल्दी ही शिला के सामान खड़े होने वाली थे | अब देखना यह था के उम्र के इस पड़ाव पर वे जीवन से मिलने वाले इन दृश्यों का सामना कैसे करेंगी | 

समय गुज़रा अनारो देवी की संतानों के परिवार भी नवांकुरित हुए | बहुओं की गोद भरीं | पोते पोतियों के सुन्दर मुख दर्शन हुए | जीवन यापन के साधनों में नई मोहड़ीयां और जुड़ गई परन्तु कारोबार वही सीमित रहा | इसी प्रकार धीरे धीरे परिवार में सदस्यों की गिनती में इज़ाफा होता चला गया | साहू साब के रहते किसी को कोई परेशानी नहीं थी | परन्तु उनकी भी उम्र हो चली थी | वे भी कब तक ज़िम्मेदारी अपने बूढ़े कंधो पर लेते | परन्तु परिवार में यदि कोई बुज़ुर्ग हो तो परिवार हमेशा मुट्ठी की भाँती बंधा रहता है | बिखरता नहीं है | यही कारण था के आज तक इतना बड़ा संयुक्त परिवार होते हुए भी सब साथ रहते थे | 

परन्तु ऐसा कब तक चलता | सबकी संताने भी बड़ी हो रही थी | सुरेन्द्र बाबु की छ: संताने थी जिसमें दो बेटे और चार बेटियां थी | वीरेंद्र बाबु की तीन में एक बेटा और दो बेटियां | सत्येन्द्र बाबु के पांच बेटियां तथा विनोद बाबु के दो बेटियां और एक बेटा था | बेटियों का भी परिवार बहुत संपन्न था | सभी की गोद भर गईं थी | गार्गी देवी के दो बेटे और दो बेटियां, बीना देवी के दो बेटे, एक बेटी और माधरी देवी के एक सुपुत्र और दो सुपुत्रियाँ थी | इतने बड़ी परिवार के पालन पोषण, उपहार, दान, दहेज़, लेन देन सभी की ज़िम्मेदारी और सभी का ध्यान तथा ज़रूरतों का व्यय साहू साब  के सर था | हालाँकि सभी के अपने अपने कारोबार और आमदनी के साधन थे और परिवार को पालने की क्षमता थी परन्तु अक्सर बड़े संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों को ही सर्वोपरी मान सारा भार उनको सौंप दिया जाता है | पर अब बात हाथ से निकलने लगी थी | बच्चे बड़े हो रहे थे | उनकी मांगे भी उन्ही के हिसाब से पूरी करना आवश्यक हो रहा था | पढाई लिखाई, खान पान, कपड़े, गहने,जेबख़र्चा इत्यादि और रोज़ की ज़रूरीयात का सामान चाहियें होता था | कारोबार में भी हिस्सेदारी की बातें होने लगी थी | कहता कोई कुछ नहीं था परन्तु ज़रूरतों और समय के सामने किसकी चली है | दबी ज़बान बहुत कुछ बोल जाती है | हाव भाव शब्दों से ज्यादा चीत्कार करते हैं | मुंह से ज्यादा आँखों का चिल्लाना सुना जा सकता है | इसके चलते अन्दर ही अन्दर दिलों में खिचांव की स्तिथि जन्म लेने लग गई थी और एक दिन यह बात घर के बड़ो के सामने पहुँच गई | 

नौबत यहाँ तक पहुँच गई के बड़ों के लिए कोई न कोई फ़ैसला लेना अनिवार्य हो गया | आखिरकार ह्रदय पर पत्थर रख कर जीवन का सबसे कठोर फैसले का साहू साब, अनारो देवी और गंगा सरन जी को सामना करना पड़ा | उनके सर्वप्रिय वीरेन्द्र बाबु ने स्वीकृति से फैसला दिया के वो 'महिला वस्त्रालय' अपने बड़े भाई के लिए छोड़ कर दिल्ली जाकर कारोबार करेंगे | उनके साथ उनके छोटे भाई सत्येन्द्र भी दिल्ली जाने को राज़ी हो गए | फैसले के कुछ समय पश्चात ही वीरेन्द्र बाबु सबको अलविदा कह दिल्ली आकर बस गए | वहाँ उन्होंने अपने ससुर के साथ कपड़े के करोबार से जीवन की एक नई शुरुवात की और छोटे भाई सत्येन्द्र बाबु ने ठेकेदारी का काम आरम्भ किया | 

समय बीतता जा रहा था | जीवन की उठा पटक से ग्रस्त सभी के जीवन एक निश्चित तय की हुई रेल की भाँती एक ही पटरी पर सुबह शाम दौड़ती जा रही थी | वो पुराने दिन फ़ाक्ता हुए जाते थे | रोज़ एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता | किराये के मकान में रहकर स्वयं अपने परिवार के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी निभाना और साथ ही साथ कारोबार भी देखना | यह ज़िंदगी की ओर से बहुत बड़ी ललकार थी | बिना माता पिता और नाना के साथ के नए शहर में, नए चेहरों के बीच, जीवन को नए प्रकार से समायोजित करना कितना असुगम तज़ुर्बा था यह बात सिर्फ वो दो बेटे ही बता सकते थे | 

उधर मुरादाबाद में भी कुछ ऐसा ही हाल था | बच्चों, नाती पोतों से जुदाई और अपने प्रिय सुपुत्र से पृथक होने के कारण कुछ समय बाद साहू साब की सेहत गिरने लगी | अब उनकी सुनने वाला भी कोई नहीं बचा था | इस अलगाव का असर उन पर इतना ज्यादा हुआ के उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया और जीवन के दिन गिनना शुरू कर दिया | अनारो देवी और गंगा सरन जी भी बहुत विवश महसूस करते परन्तु शिकायत किस से करते | किस्मत से उपालंभ भी क्या जायज़ होता | इसलिए ख़ामोशी से जीवन का खेला देखते रहते और प्रभु भजन से जीवन-प्रत्याशा बनाये रखते |

अचानक एक दिन कहीं से कोई घर पर एक कुत्ता पालने के लिए ले आया | साहू साब को कुत्ते बिल्लियों से बहुत चिड़ थी | ख़ास तौर पर घर में पालने से | तो उनके डर और डांट डपट से बचने के लिए उसने कुत्ते को छत पर बाँध दिया और रोज़ उसका लालन पालन वहीँ छत पर होने लगा | गर्मियों के दिन थे, कुछ हफ़्तों बाद, अनायास ही एक दिन दोपहरी में जब, सब अपने अपने कमरों में आराम कर रहे थे साहू साब जैसे तैसे करते अपनी छड़ी और हाथों के सहारे टटोल टटोल कर ऊपर छत पर हवाखोरी के लिए पहुँच गए | उन्हे कुत्ते के बंधे होने के बारे में ज़रा भी मालूमात नहीं थी | इस सच से अनजान वे छत पर चहलकदमी करने लगे | कुछ क़दम ही बढ़ाये थे के अकस्मात् ही उनका पैर कुत्ते की पूँछ पर पड़ गया | उन्होंने सोचा शायद कोई रस्सी या कुछ और छत पर पड़ा है | अपनी छड़ी से उन्होंने जैसे ही उसे सरकाना चाहा कुत्ते से तुरंत पलटवार किया और उनका पैर दांतों के बीच लपक लिया और बुरी तरह काट लिया | 

दृष्टि से लाचार नेत्रहीन साहू साब चिल्ला कर गिर पड़े | इधर उधर जैसे तैसे बचाव की लिए छड़ी भी घुमाई परन्तु कोई फ़ायदा नहीं हुआ | जो अनिष्ट होना था वह तो हो गया था | उनके करहाने और चिल्लाने की आवाज़ सुनकर जितनी देर में नीचे से सब ऊपर छत पर आए उतनी देर में कुत्ते ने अपना काम कर दिया था | उसने साहू साब को काट काट कर लहुलुहान कर दिया था | तुरंत ही उन्हें उठा कर नीचे लाया गया और डाक्टर को बुलवाया गया | डाक्टर ने मरहम पट्टी की और दवाई भी दी | पैनी सुइयों की चुभन भी उन्हें अपने शिथिल होते वृद्ध काया में झेलनी पड़ीं | डाक्टर की ताकीद के अनुसार उन्हें अब कम से कम दो महीने बिस्तर पर आराम करना था | अपनी इस अवस्था में भी वे वीरेन्द्र बाबु को ही याद करते रहते | सबसे कहते,"कोई मेरे बिरेन को बुला दो" पर अब सुनने वाला कोई नहीं था | कोई जवाब भी नहीं देता था न ही काम करता था | 

इस हादसे को अब दस दिन बीत चुके थे | साहू साब की तबियत सुधरने की जगह बिगड़ने लगी थी | उधर छत पर कुत्ते की तबियत भी ठीक नहीं थी | कुत्ता भी अजीब तरह से पेश आने लगा था | बार बार सबको काटने को दौड़ता | जो भी खाना देने जाता उस पर भौंकने लगता और ज़ंजीर तोड़ने तक का जोर लगता और लगातार उसके मुंह से झाग निकलते रहते | वही हालत नीचे साहू साब की हो रही थी | वो बात करते करते अचानक कुकुर की भाँती आवाज़ निकलने लगते, मुंह से झाग निकलने लगते और जो भी सहायता के लिए पास आने की कोशिश करता उस पर लपकते और झपटते | डाक्टर को बुलावा भेजा गया और उसके पूछने पर पता चला की कुत्ते को किसी प्रकार का कोई भी टीका नहीं लगा था | वो समझ गया और उसने सबको चेतावनी दे दी के मसला गंभीर है | उसकी बात सुनकर और उनकी ऐसी हालत देखकर सब डर गए और तुरंत वीरेन्द्र बाबु के पास दिल्ली खबर भिजवाई गई | पर किस्मत के सामने किसकी चली है | वीरेन्द्र बाबु दिल्ली से बहार थे | शाम को जब वह लौटे तो उन्हें यह खबर मिली | तुरंत सुरेन्द्र बाबु को साथ ले कर उलटे पाँव मुरादाबाद के लिए रवाना हो गए | 

दिल में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे | अपने नाना में उनकी जान बस्ती थी | उनका समस्त संसार उनके नाना के इर्द गिर्द घूमता था | बचपन से जिस बरगद के साये में सांस लेते हुए, खेलते कूदते, ज्ञान लेते और सम्मान लेते बड़े हुए थे आज उनकी तबियत के बिगड़ जाने की खबर से उनका मन व्याकुल हो रहा था | अपनी जीवन की समस्त पूँजी को हाथ से जाने का ग़म जैसे होता है वैसा ही एहसास उनके ह्रदय को बार बार असहनीय पीड़ा से त्रस्त कर रहा था | सुरेन्द्र बाबु ने उन्हें समझाने का प्रयत्न भी किया परन्तु गुस्से में उन्होंने, उन्हें भी नहीं बक्शा और अच्छे से लताड़ दिया | उनके सर से उनका आसमान दूर होता प्रतीत हो रहा था | उनके लिए सफ़र का पल पल काटना भारी पड़ रहा था | 

उधर साहू साब की हालत बिगडती जा रही थी | वे पूरी तरह से कुत्ते की भाँती बर्ताव करने लगे थे | अचानक से छत पर कुत्ता मृत पाया गया | डाक्टर ने बतलाया था कि साहू साब को रेबीज हो गई है और यदि कुत्ता जीवित नहीं बचा तो अब उनका जीवित रहना भी नामुमकिन होगा | ज़हर और कीटाणु समस्त शरीर में असर कर चुके हैं | अब बहुत देरी हो चुकी है | आखिरकार आज वो दिन आ गया था | साहू साब को संभालना मुश्किल होता जा रहा था | वो जैसे ही खाने के लिए ज़मीन पर बैठे तुरंत ही लुड़क कर एक तरफ गिर पड़े और उनके मुंह से झाग निकलने लगे | ज्यादा समय नहीं लगा बिरेन बिरेन करते हुए चन्द मिनट में उनके प्राण पखेरू ब्रह्मलीन हो गए | समय की विडम्बना देखिये या इसे नियति का स्वांग कहिये इधर साहू साब की साँसों ने विराम लिया और उधर वीरेन्द्र बाबु ने घर की ड्योढ़ी पर कदम रखा | क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental. 

मंगलवार, अप्रैल 16, 2013

बड़ी हुई बच्ची














कल कहीं पढ़ा था मैंने
कुछ लिखा किसी ने
ऐसा भी
बड़ा हुआ एक बच्चा
सच्ची बहुत बड़ा बच्चा
पाता है शादी कर के
पत्नी रूप में एक ग़च्चा
अम्मा बन सर बैठती है
झेलती है वो जीवन भर
नाज़ और नखरे अपने
अपना अस्तित्व
अरमान और सपने
स्वाह चूल्हे चौके में करती है
खुद सदा चुप रहकर वो
बच्चे के कसीदे पढ़ती है
पालती है वो मुन्ना को
लल्ला लल्ला करती है
'निर्जन' कहता
कलयुग में
क्या ?
सच्ची ऐसा होता है
उस अम्मा को सब ने झेला है
वो हिटलर की छाया रेखा है
वो भी बड़ी हुई बच्ची है
हाँ! बहुत बड़ी बच्ची है
माता पिता परेशां होकर
जो मुसीबत दान में देते हैं
सुख से न जीने देती है
न ख़ुशी से मरने देती है
सुबह सवेरे उठते ही
ऍफ़ एम् चालू करती है
लेडी वैम्पायर बन कर वो
जीवन के सब रस पीती है
भूल कभी कुछ हो जाये
दहाड़ मार कर रोती है
चुप करने में उसको फिर
जेब भी ढीली होती है
चैन नहीं तब भी आता
सर आसमान पर लेती है
बहस अकड़ के करती वो
है नहीं किसी से डरती वो
गलती चाहे बच्ची की हो
फिर भी है अम्मा बनती वो
उस बच्ची रुपी अम्मा में
अहम किसी से कम नही
आये कोई झुकाए मुझको
ऐसा किसी में दम नही
योगदान जो जीवन में
वो बच्चे के देती है
सही समय आने पर वो
ब्याज समेत वसूल लेती है
कम ना समझें बच्ची को
ये शातिर ख़िलाड़ी होती है
हत्थे इसके जो चढ़ जाओ
ये पटक पटक कर धोती है
कल कहीं....

ऐ बी सी डी - अमरीका में बिगड़ा कन्फ्यूज्ड देसी


कुछ हिन्दुस्तानी लोग जब अमरीका या किसी और देश चले जाते हैं और जब वहां से वापस आते हैं तो देखिये उनके तौर तरीको और रवैयों के अन्दाज़ | पेश करता हूँ..

Always says, “Bless you”, whenever someone sneezes.
कोई छींक मरेगा तो तुरंत कहेंगे, 'ब्लेस यू' |

US-returned people use the word “bucks” instead of “Rs.”
अमरीका से भारत लौटे लोग 'रूपये' नहीं कहते 'बक्स' कहना शुरू कर देते हैं |

Tries to use credit cards in a road side hotel.
हाईवे के ढाबे पर खाना खाने के बाद 'क्रेडिट कार्ड' से पेमेंट करेंगे |

Drinks and carries mineral water and always speaks of being health conscious.
मिनरल वाटर पीना शुरू कर देंगे, पूछने पर बहाना बताएँगे के पेट ख़राब हो जाता है, तबियत बिगड़ जाती है |

Sprays deodorant so that he doesn’t need to take bath.
डीओडरैनट इस्तेमाल करना शुरू कर देंगे जिससे नहाना पड़े |

Sneezes and says ‘Excuse me’.
छींकेंगे और कहेंगे 'एक्सक्यूज़ मी'

Says “Hey” instead of “Hi”, ”Yoghurt” instead of “Curds”, ”Cab” instead of “Taxi”, “Trunk” of “Dicky” for a car trunk, ”Candy” instead of “Chocolate”,”Cookie” instead of “Biscuit” , ”got to go” instead of “Have to go”.
'हाई' को 'हे', 'दही' को 'योगर्ट', 'टैक्सी' को 'कैब', 'गाडी की डिक्की' को 'ट्रंक', 'चॉकलेट' को 'कैंडी', 'बिस्कुट' को 'कुकी', 'हैव टू गो' को 'गौट टू गो' बोलना शुरू कर देंगे |

Says “Oh” instead of “Zero”, (for 101, he will say One O One Instead of One Hundred One)
'जीरो' को '' कहना शुरू कर देंगे ( १०१ को 'एक सौ एक' की जगह 'वन वन' ) बोलेंगे |

Doesn’t forget to complain about the air pollution. Keeps complaining every time he steps out.
जब भी बहार जायेंगे हर बार हर जगह बार बार 'एयर पोल्यूशन' की बात करते नहीं थकेंगे |

Says all the distances in Miles (Not in Kilo Meters), and counts in Millions. (Not in Lakhs)
किलोमीटर भूल जायेगे मील में दूरी नापेंगे | लाख भूल जायेगे मिलियन में गिनेंगे |

Tries to figure all the prices in Dollars as far as possible (but deep inside multiplies by 44).
हर चीज़ के दाम डॉलर में लगायेंगे और अन्दर मन में उसे ५५ से गुणा करते रहेंगे |

Tries to see the % of fat on the cover of a milk pocket.
दूध की थैली के ऊपर सबसे पहले फैट परसेंटेज देखेंगे |

When he needs to say Z (zed), he never says Z (Zed), instead repeats “Zee” several times, and if the other person is unable to get it, then says X, Y Zee(but never says Zed)
'ज़ैड' को जान बूझ कर 'ज़ी' बोलेंगे | अगर कोई नहीं समझ पायेगा तो उससे एक्स, वाई ज़ी बोल कर बताएँगे पर 'ज़ैडनहीं बोलेंगे |

Writes the date in MM/DD/YYYY. On watching traditional DD/MM/YYYY, says “Oh! British Style!!!!”
तारीख़ को मंथ/डे/ईयर फॉर्मेट में लिखेंगे | अगर कहीं पुराना डे/मंथ/ईयर फॉर्मेट देख लेंगे तो कहेंगे, “ओह! ब्रिटिश स्टाइल!!!”

 Makes fun of Indian Standard Time and the Indian Road Conditions.
मौका मिलते ही इंडियन स्टैण्डर्ड टाइम और हिंदुस्तान की सड़कों का मजाक उड़ना शुरू कर देंगे |

Even after 2 months, complaints about “Jet Lag”.
आने के दो महीने बाद भी ‘जेटलैग’ से ग्रस्त रहेंगे |

Just to show off avoids eating spicy food.
दिखावे के लिए तीखा कहना खाने से परहेज़ करेंगे |

Tries to drink “Diet Coke”, instead of Normal Coke. Eats Pizza instead of Dosa.
‘नार्मल कोक’ की जगह ‘डाइट कोक’ पियेंगे | ‘डोसा’ की जगह ‘पिज़्ज़ा’ खायेंगे |

Tries to complain about anything in India as if he is experiencing it for the first time. Asks questions etc. about India as though its his first visit to India .
हिंदुस्तान की हर चीज़ के बारे में शिकायत करना शुरू कर देंगे जैसे परेशानी पहली दफा हो रही है | उट पटांग सवाल जवाब करने शुरू कर देंगे हिन्दुस्तान के बारे में जैसे पहली दफ़ा आये हों यहाँ |

Pronounces “schedule” as “skejule”, and “module” as “mojule”.
‘स्केड्यूल’ को ‘स्केज्यूल’ और ‘मोड्यूल’ को ‘मोज्यूल’ बोलना शुरू कर देंगे |

Looks suspiciously towards any Hotel/Dhaba food.
किसी भी होटल या ढाबे के खाने को शक की निगाहों से देखेंगे |

From the luggage bag, does not remove the stickers of the Airways by which he traveled back to India , even after 4 months of arrival.
लौटने के चार महीने बाद भी लगेज बैग से एयरवेज का स्टीकर नहीं छुटाएंगे जिससे भारत वापस आये हैं |

Takes the cabin luggage bag to short visits in India and tries to roll the bag on Indian Roads.
कैबिन लगेज को छोटी-मोटी यात्राओं पर चमकाने के लिए ले जायेंगे | हिन्दुस्तानी सड़कों पर बैग को रोल करके चलने लगेंगे |

Tries to begin any conversation with “In US ….” or “When I was in US…”
हर एक वार्तालाप शुरू करने से पहले कहेंगे, ‘जब मैं अमरीका में था...’ |

अब आप ही बताएं ऐसे कार्टूनों का क्या हो सकता है | यहाँ हिन्दुस्तान में अमरीकी आकर हिन्दुस्तानी सभ्यता और ज़बान सीख रहे हैं | और वहां कुछ अकलमंद लोग बाहरी फूहड़ता अपना कर अपने देश को नीचा दिखने में लगे हुए हैं | खुदा इन्हें अक्ल बक्शे |

रविवार, अप्रैल 14, 2013

क्या कहता

ख़ुदा जाने मैं क्या कहता, जो कहता मैं क्या कहता
सही के लिए क्या कहता, ग़लत के लिए क्या कहता

रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता
मिलते रहना ही क्या कहता, क्या है दिलमें क्या कहता

सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों हैं वीरां क्या कहता
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता

तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता

तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण क्या कहता

आखरी क़दम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिस्ती क्या कहता

लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता
हंसी मजाक जब क्या कहता, ह्रदय वेदना अब क्या कहता

तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता
कहता तो बस कहता रहता, ‘निर्जन’ दिल से दिल कहता

शुक्रिया तेरा

शुक्रिया तेरा
प्रत्येक जतन के लिए
हर पल सुनने के लिए
परवाह करने के लिए
प्यार करने के लिए
खुद को खुद की तरह
रखने के लिए

हैरान रह जाता हूँ मैं
कैसे रहती है तू
इतनी शांत
कहाँ से लाइ है
इतनी सहनशीलता
क्यों है तेरे पास
इतना धीरज

तू पास मेरे बैठ कर
बस सुनती रहती है
जब भी अनाड़ीपन से
मैं छलकाता हूँ दिल के
जज़्बात सामने तेरे और
मुस्कराती रहती है तू
आँख मूंदे मंद मंद

पर मैं भी
चाहता हूँ करूँ
तेरे लिए कुछ ऐसा ही
चल बता तू अपने डर
और बता दे जो भी
दिल में बसी हैं
चाहतें तेरी

वादा तो मैं करता नहीं
दे सकूँगा सब कुछ तुझे
आज, कल या जिंदगी भर
पर इतना कहूँगा बस तुझे
जब तक है जां में जां मेरे
कोशिश करूँगा खुश
रहे तू उम्र भर

शुक्रिया तेरा
सब कुछ है तू
मेरे लिए
शुक्रिया कहते
नहीं थकता है
'निर्जन' आज
बस तेरे लिए

कौन गलत था कौन सही

उस दिन क्यों सोचा मैंने
शायद इश्क मैं करता हूँ
आह! पर क्या वह मेरे
जीवन की सबसे बड़ी गलती थी
कुछ उतावले, बचकाने जज़्बातों ने
दिखलाये ना जाने मुझे कितने अवसाद

अरसा गुज़र गया तब से
पर रञ्ज आज भी करता हूँ
उसकी कपटी आँखों को
मैं सोच रातों को जगता हूँ
शर्मिंदा खुद से रहता हूँ
अब खुद को कोसा करता हूँ

मुद्दत हुई बिछड़े हुए, पर
दिल आज भी डरता है
वो नाम सामने आते ही
एक सन्नाटे से भरता है
गलती तो सबसे होती है
पर क्या कोई ऐसा भी करता है

कौन ग़लत था कौन सही
यह सवाल आज तक है बना
जीवन में इसके रहते ही
है रोष सामने रहा तना
मैं जब भी कुछ बतलाऊंगा
वो सोचेगा झूठ कही

जब सही वक़्त अब आएगा
वो स्वयं उसे समझाएगा
तब वो खुद ही पहचानेगा
गलती किसकी थी मानेगा
बस कुछ बरस की देर रही
सब जानेंगे और मानेंगे
कौन गलत था कौन सही