रविवार, अप्रैल 14, 2013

कौन गलत था कौन सही

उस दिन क्यों सोचा मैंने
शायद इश्क मैं करता हूँ
आह! पर क्या वह मेरे
जीवन की सबसे बड़ी गलती थी
कुछ उतावले, बचकाने जज़्बातों ने
दिखलाये ना जाने मुझे कितने अवसाद

अरसा गुज़र गया तब से
पर रञ्ज आज भी करता हूँ
उसकी कपटी आँखों को
मैं सोच रातों को जगता हूँ
शर्मिंदा खुद से रहता हूँ
अब खुद को कोसा करता हूँ

मुद्दत हुई बिछड़े हुए, पर
दिल आज भी डरता है
वो नाम सामने आते ही
एक सन्नाटे से भरता है
गलती तो सबसे होती है
पर क्या कोई ऐसा भी करता है

कौन ग़लत था कौन सही
यह सवाल आज तक है बना
जीवन में इसके रहते ही
है रोष सामने रहा तना
मैं जब भी कुछ बतलाऊंगा
वो सोचेगा झूठ कही

जब सही वक़्त अब आएगा
वो स्वयं उसे समझाएगा
तब वो खुद ही पहचानेगा
गलती किसकी थी मानेगा
बस कुछ बरस की देर रही
सब जानेंगे और मानेंगे
कौन गलत था कौन सही

2 टिप्‍पणियां:

  1. जब सही वक़्त अब आएगा वो स्वयं उसे समझ...।
    तब तक इतनी देर हो चुकी होगी कुछ नहीं पाएगा ...।

    जवाब देंहटाएं
  2. गिरते हैं शहसवार की मैदान-ए-जंग में, फिर वो उठते हैं, अपने कपडे झाड़ते हैं और शुरू कर देते हैं, अगले रेस की तैयारी।
    अच्छी कविता, बधाई !

    जवाब देंहटाएं

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