तुमने मेरे ज़हन पर कोई निशान नहीं देखे
तुमने मेरी आँखों में कोई आंसू नहीं देखे
तुमने मेरे चेहरे पर कोई दर्द नहीं देखा
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...
मैं खुद से कभी रोता नहीं
रातों को मैं सोता नहीं
घबरा कर अचानक उठ जाता हूँ
कुछ ख्वाब ऐसे आते हैं मुझे
कभी लगता है जान ले लूं अपनी
पर फिर सोचता हूँ
अँधेरे से भागना कैसा
चुप्पी को साधना कैसा
अपने आप से छुपना कैसा
अपनों की आँखों से बचना कैसा
जिन आँखों से प्यार झलकता है
जो कहते हैं मैं इंसान हूँ
और मुझे मुस्कराने की वजह देते हैं
तुमने मेरे मुह से कभी मेरा दर्द-ए-बयां न सुना होगा
तुमने मेरे माज़ी के दर्द की दास्ताँ न सुनी होगी
तुमने मेरे जिगर से वो दर्द भरे शब्द न सुने होंगे
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...
मैं अपने दर्द में चिल्लाता नहीं
मैं अपने कमरे की दीवारों को जगाता नहीं
मैं लातों और घूसों से दर्द को दिखता नहीं
मैं शराब की बोतल में डूब जाता नहीं
मैं नश्तर भी अपने सीने में उतरता नहीं
चुप रहकर लबों को सीकर ही
बर्दाश्त करता हूँ मैं सबकुछ
इस उम्मीद पर के दर्द भूल जाऊंगा
एक दिन वो सवेरा होगा
जिस दिन मैं भी मुस्कराऊंगा
तुम्हे मेरे दुःख मेरे दर्द
न दिखाई देते हैं
न सुनाई देते हैं
तुम तो वही देखते हो
जो मैं तुम्हे दिखता हूँ
तुम वही सुनते हो
जो मैं तुम्हे सुनाता हूँ
तुम्हे कुछ नहीं पता
उसने मेरे साथ क्या किया
तुम्हे तो कुछ भी नहीं पता
उसने मेरे साथ क्या नहीं किया
मेरे दर्द का एहसास
तुम्हे नहीं
तुम्हे वही मालूम है
जो मैंने तुम्हे बतलाया है
या फिर क्योंकी तुम
वो देखना और सुनना ही नहीं चाहते
तुम्हारी इस सोच का मतलब ये नहीं
के मुझे दुःख और दर्द नहीं हैं
मैं सिर्फ मैं हूँ
मेरा दर्द सिर्फ मेरा है
मेरे अंतर्मन में बंद एक दास्ताँ
जो कभी बयां नहीं होगी
हमेशा मेरे साथ ही रहेगी
और मेरे साथ ही चली जायेगी
तुम मेरा दर्द कभी देख ही नहीं पाओगे
तुम मेरा दर्द कभी सुन भी नहीं पाओगे
तुम मेरा दर्द कभी पढ़ नहीं पाओगे
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...
तुमने मेरी आँखों में कोई आंसू नहीं देखे
तुमने मेरे चेहरे पर कोई दर्द नहीं देखा
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...
मैं खुद से कभी रोता नहीं
रातों को मैं सोता नहीं
घबरा कर अचानक उठ जाता हूँ
कुछ ख्वाब ऐसे आते हैं मुझे
कभी लगता है जान ले लूं अपनी
पर फिर सोचता हूँ
अँधेरे से भागना कैसा
चुप्पी को साधना कैसा
अपने आप से छुपना कैसा
अपनों की आँखों से बचना कैसा
जिन आँखों से प्यार झलकता है
जो कहते हैं मैं इंसान हूँ
और मुझे मुस्कराने की वजह देते हैं
तुमने मेरे मुह से कभी मेरा दर्द-ए-बयां न सुना होगा
तुमने मेरे माज़ी के दर्द की दास्ताँ न सुनी होगी
तुमने मेरे जिगर से वो दर्द भरे शब्द न सुने होंगे
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...
मैं अपने दर्द में चिल्लाता नहीं
मैं अपने कमरे की दीवारों को जगाता नहीं
मैं लातों और घूसों से दर्द को दिखता नहीं
मैं शराब की बोतल में डूब जाता नहीं
मैं नश्तर भी अपने सीने में उतरता नहीं
चुप रहकर लबों को सीकर ही
बर्दाश्त करता हूँ मैं सबकुछ
इस उम्मीद पर के दर्द भूल जाऊंगा
एक दिन वो सवेरा होगा
जिस दिन मैं भी मुस्कराऊंगा
तुम्हे मेरे दुःख मेरे दर्द
न दिखाई देते हैं
न सुनाई देते हैं
तुम तो वही देखते हो
जो मैं तुम्हे दिखता हूँ
तुम वही सुनते हो
जो मैं तुम्हे सुनाता हूँ
तुम्हे कुछ नहीं पता
उसने मेरे साथ क्या किया
तुम्हे तो कुछ भी नहीं पता
उसने मेरे साथ क्या नहीं किया
मेरे दर्द का एहसास
तुम्हे नहीं
तुम्हे वही मालूम है
जो मैंने तुम्हे बतलाया है
या फिर क्योंकी तुम
वो देखना और सुनना ही नहीं चाहते
तुम्हारी इस सोच का मतलब ये नहीं
के मुझे दुःख और दर्द नहीं हैं
मैं सिर्फ मैं हूँ
मेरा दर्द सिर्फ मेरा है
मेरे अंतर्मन में बंद एक दास्ताँ
जो कभी बयां नहीं होगी
हमेशा मेरे साथ ही रहेगी
और मेरे साथ ही चली जायेगी
तुम मेरा दर्द कभी देख ही नहीं पाओगे
तुम मेरा दर्द कभी सुन भी नहीं पाओगे
तुम मेरा दर्द कभी पढ़ नहीं पाओगे
इसलिए मुझे कोई दर्द नहीं है...