बुधवार, अप्रैल 10, 2013

मेरा बचपन

जीवन की पथरीली
राहों में चलते चलते
जीवन की सुलगती
आग में जलते जलते
जीवन की कंटीली
चुभन में घुटते घुटते
याद आती है
सुकोमल बचपन की
कर्तव्यों की बेड़ी में
जकड़े जीवन में
याद आती है
उस स्वछंदता की
सुकोमल स्वच्छ बचपन
सुगंधों से भरा बचपन
पाप, पुण्य से मुक्त बचपन
अब घिर गया है अनेक
समस्याओं में जीवन
साँसों की डोर जुड़ गई
अश्रु की लड़ी में
हे ईश्वर! कब टूटेगी
ये अश्रु की लड़ी
हे ईश्वर! कब छूटेगी
ये दुखों की झड़ी
हे ईश्वर! कब फूटेगी
मुरझाए होटों पर हंसी
कब वापस आएगा
सलोना बचपन
हर ग़म हर दर्द से दूर
अनजाना खिलखिलाता
बचपन
कभी कभी नानी की कहानी
कभी माँ का वो आँचल
स्वर्ग से ज्यादा हसीन\
था मेरा बचपन
एक धुंधली से छवि है
बचपन अब वो तेरी
खोजता जाता हूँ, कहाँ
छिप गया मेरा बचपन

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना 'मेरा बचपन 'ने बचपन की याद ताजा कर दी .

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    उत्तर
    1. शुक्रिया रंजना | आप ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की उसके लिए धन्यवाद् |

      हटाएं
  2. मन को छूती रचना.... जीवन के अपने रंग हैं..... सब जीना होता है

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    नवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!

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  4. शुभप्रभात बेटे !!
    do't worry ,be happy ......
    नव वर्ष, नव संवत्सर एवँ गुड़ी पड़वा की हार्दिक शुभकामनायें !!

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    उत्तर
    1. मैं खुश हूँ माँ | कल आपसे बात कर के दिल हल्का हो गया | अब कोई चिंता नहीं | आपको भी नव वर्ष, नव संवत्सर और गुडी पड़वा की मंगल शुभकामनायें |

      हटाएं
  5. बहुत ही बेहतरीन .....आपको नवसंवत्सर की हार्दिक मंगलकामनाएँ!

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  6. बचपन जाने के बाद नहीं आता ... उसको याद करना ही रह जाता है ..
    लाजवाब रचना ...

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  7. बचपन के दिन भी क्‍या दिन थे, उड़ते-फिरते तितली बन के........मासूम बचपन सी मासूम कविता।

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  8. कितना भी आगे बढ़ जाएँ, बचपन सदैव साथ रहता है...बहुत भावपूर्ण रचना...

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  9. आपकी यह कला पूर्ण रचना 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर अवलोकन करें।आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।

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  10. कोई लौटा दे मेरे वो बीते हुए दिन....

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  11. चाहे सारी ख़ुशियाँ लेलो ,दो दिन फिर बचपन लौटा दो.
    चाँद मुझे पूनम का दे दो ,सारा नील गगन लौटा लो !
    -किसी कवि ने कहा था.

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