अपने पुराने पिटारे से एक और कविता नज़र है आपके उम्मीद है पसंद आएगी...
मेरा मन कितना कहा था
मत कर तू दोस्ती
क्योंकि
बचपन से ही तू धोखा खाता आया है
लेकिन मैंने भी कर ही ली दोस्ती
हाँ तुम से दोस्ती
और आज तुम ही
ठुकरा कर जा रहे हो
मेरा मन कितना कहा था
करो न किसी से दोस्ती
लेकिन
आखिर ये दिल तुमसे लगा ही लिया
लेकिन
आज तुम भी यह दिल तोड़ कर जा रहे हो
आज पता लग रहा है
दुनिया कैसी है
कोई किसी का नहीं है
सब कुछ बस पैसा है
आज तक मैं समझता था
अभागा अपने को
लेकिन यह दुनिया तो
अभागों से भरी पड़ी है
मेरा मन कितना कहा था
मत कर तू दोस्ती
क्योंकि
बचपन से ही तू धोखा खाता आया है
लेकिन मैंने भी कर ही ली दोस्ती
हाँ तुम से दोस्ती
और आज तुम ही
ठुकरा कर जा रहे हो
मेरा मन कितना कहा था
करो न किसी से दोस्ती
लेकिन
आखिर ये दिल तुमसे लगा ही लिया
लेकिन
आज तुम भी यह दिल तोड़ कर जा रहे हो
आज पता लग रहा है
दुनिया कैसी है
कोई किसी का नहीं है
सब कुछ बस पैसा है
आज तक मैं समझता था
अभागा अपने को
लेकिन यह दुनिया तो
अभागों से भरी पड़ी है