दर्द तो है दिल में मगर कहते हम नहीं
कोई होता जो मुझसे भी पूछ लेता
जग रहे हो किस लिए तुम ?
अब तक सोये क्यों नहीं ?
याद करता हूँ जब भी उसे
दिल भर आता है
कभी साथ था वो
अब दीदार को दिल तरस जाता है
जिंदगी इतनी बेवफा हो गई 'निर्जन'
हर एक अंजना भी अब
अपना ही नज़र आता है
कोई होता....
.बढ़िया प्रस्तुति भाईसाहब .शुक्रिया आपकी ब्लोगिया टिपण्णी का .हरेक अनजाना भी अब अपना ही अक्स नजर आता है (अंजना शब्द हटा दें ,शुक्रिया )
जवाब देंहटाएंआभार भाईसाहब |
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