शायद तेरे आने पर
तुझसे लिपट कर
कंधे पर सर रखकर
रो लेता
कुछ बोलता नहीं
अपनी गीली आँखों से
तेरी आँखों में झांक कर
हौले से सब कुछ
कह देता
तू फिर
सहलाकर मेरे बालों को
धीरे से कुछ कह देती
और में कहता
मैंने सुना नहीं
पर तू नहीं थी
दिन भर चलता रहा यह सिलसिला
तेरी आहट के इंतज़ार में, मैं
बैठा रहा, बैठा रहा
शायद गर होतीं
कुछ नजदीकियां बाकी
तो वो पल
तेरे दमन के साये में गुज़र जाता
एक बार मरने से पहले ही सही 'निर्जन'
जन्नत तो हो आता
शायद तेरे आने पर ....