गुफ़्तगू-ए-इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
हम समझते ही रह गए उन्हें ख़यालों की तरह
लोग करते रहे ज़िक्र-ए-जुनूं दीवानों की तरह
अरमां जब टूट गए थे मय के प्यालों की तरह
फ़लसफ़ा-ए-इश्क़ उम्मीद है बारिशों की तरह
दिल जो भी भीगा रोशन रहा उजालों की तरह
अंजाम-ए-मोहब्बत जागा फिर वफ़ा की तरह
वक़्त ने पेश किया हमको मिलासलों की तरह
ज़िक्र-ए-इश्क़ जब होगा वां बहारों की तरह
याद आएगा 'निर्जन' उन्हें हवालों की तरह
वां - वहां
--- तुषार राज रस्तोगी ---
Bahut Umda Panktiyan
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया डॉ. मोनिका शर्मा जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
जवाब देंहटाएंराजेंद्र भाई धन्यवाद | आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें |
हटाएंवाह क्या खूबसूरत और दिल को छू देने वाली ग़ज़ल है.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
नितीश जी आपका स्वागत है | समय मिलते ही आपका ब्लॉग ज़रूर देखता हूँ | गणतंत्र दिवस की दिल से शुभकामनायें |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।
शांति जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया | आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें |
हटाएंआभार शास्त्री जी | गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंअच्छी गजल , इश्क में डूबने वालों के साथ अक्सर ऐसा ही होता है
जवाब देंहटाएंshukriya rishabh.
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