बुधवार, अक्टूबर 23, 2013

आराधना - एक सोच

बहुत दिनों से सोच रहा था इस कहानी आगाज़ कैसे करूँ, कैसे शब्दों में बयां करूँ, अब जाकर कुछ सोच विचार कर मन बन पाया है | कहानी शुरू होती है हिंदुस्तान के दिल से यानी मेरी अपनी दिल्ली से | जी हाँ!  भारत की राजधानी दिल्ली | कहानी की नायिका है ‘आराधना’ | एक माध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी, सुन्दर और सुशील कन्या | गोरा रंग, छरहरा बदन, तीखे नयन नक्श, स्वाभाव से बेहद चंचल और नटखट लेकिन बहुत ही अड़ियल है | गुस्सा तो जैसे हमेशा नाक पर धरा रहता है | जीवन में सवाल इतने के तौबा | अगर कोई साथ बैठ जाए तो ये मोहतरमा उनके जीवन का समस्त निचोड़, व्यक्तित्त्व का सारा नाप तौल और जीवन परीक्षण अपने सवालों से ही ले डालें और यदि कोई भूख से तड़पता हो तो इनके सवालों से ही उसका पेट भर जाये | इस लड़की के व्यक्तित्त्व में अनेकों खूबियों के साथ ख़ामियों की शिरकत भी बराबर दुरुस्त थी | जहाँ ये किसी से भी हुई बड़ी से बड़ी लड़ाई, तू तू मैं मैं, बहस, झगड़े इत्यादि को पल में बच्चों की तरह ऐसे भूल जाती जैसे कुछ हुआ ही न हो | वहीँ ना जाने क्यों ये कभी भी किसी पर भरोसा नहीं करती थी | यदि करती भी थी तो समय इतना निकाल देती भरोसा जताने में के गाड़ी प्लेटफार्म से निकल जाती | खैर इधर उधर की बात करने की बनिस्बत कहानी पर आते हैं | यह कहानी है उसके दिल और भरोसे के आपसी तालमेल, मतभेद, वार्तालाप और एक दूसरे के साथ हुए अनुबंध की जिसमें देखना यह है के जीत किसकी होती है | दिल की या भरोसे की |

अचानक यूँ ही एक दिन बात करते आराधना को ख्याल आया के उसका दिल और भरोसा दोनों अपनी जगह से नदारत है | तो लगा इन्हें ढूँढा जाये और लगीं इधर उधर अपने आप पास ढूँढने | ढूँढ मचाते यकायक अपने व्यक्तित्त्व की एक सूनी सी गली में जा पहुंची | माज़ी के कुछ अवशेष उस गली में बिखरे पाए और वहीँ गली के नुक्कड़ पर पड़ी एक पुरानी यादों की अलमारी की सबसे आख़िरी दराज़ में से कुछ आवाजें आती सुनाई पड़ीं | धीरे से आगे बढ़कर दराज़ को खोल कर देखा में उसने अपनी दिल और भरोसे को आपस में बात करते पाया | दोनों आपस में ख़ुसुर-फ़ुसुर करने में लगे थे | धीरे से कान लगाकर सुनने पर पता चला के बात दोनों के बीच मूल्यों और अपने महत्त्व को लेकर बातचीत हो रही थी |

भरोसा दिल से पूछता है, “ऐ दिल! क्या तू मुझपर भरोसा करता है ?”

दिल ने जवाब दिया, “यार! वैसे दिल तो नहीं कर रहा मेरा तुझपर ऐतबार करने को पर क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा “

भरोसा बोला, “यार हम दोनों तो हमेशा एक दुसरे के साथ रहते हैं | इतने समय से दोनों साथ हैं | फिर भी तू ऐसी बातें कर रहा है | मेरे भरोसे का खून कर रहा है | मेरा भरोसा तोड़ रहा है | ये कहाँ का इंसाफ़ हुआ मेरे भाई ?

दिल कुछ सोच के बोला, “यार! सच बतलाऊं दिल तो मेरा भी बहुत चाहता है के तेरे भरोसे पर ऐतबार कर लूं पर क्या करूँ मेरा दिल भी कितना पागल है ये कुछ भी करने से डरता है और सामने जब तुम आते हो ये ज़ोरों से धड़कता है | ऐसा कितनी बार हुआ है ज़िन्दगी के गलियारों में, दिल मेरा टूटा है भरोसे पर किये बीते वादों से |

भरोसे ने यह सुना तो उसकी आँखें नम हो कर झुक गईं | वो बोला, ‘सुन यार दिल हम दोनों एक ही ईमारत के आमने सामने वाले फ्लैट में रहते हैं | बिना दिल की मदद के भरोसे की गाड़ी नहीं चलती और ना बिना भरोसे दिल ही धड़कता है | मैं ये बात मान सकता हूँ कि किसी झूठे भरोसे पर तेरा दिल तार तार हुआ होगा पर क्या यह सही होगा कि किसी एक के कुचले भरोसे की सज़ा दुसरे के ईमानदार भरोसे को दी जाये ?”

दिल खामोश था, सोच रहा था क्या जवाब दे | कुछ देर सोचने के बाद दिन ने कहा, “ऐ दोस्त यकीन मुझको तेरी ईमानदारी पर पूरा है | तेरे भरोसे पर ऐतबार मेरा पूरा है पर ये दिल के जो घाव हर पल टीस देते हैं, कुछ ज़ख्म ऐसे होते हैं जो जीवन भर हरे ही रहते हैं |“

भरोसा समझदार था, पीड़ा दिल की समझ गया, धीरे से दिल के पास गया और अपने हाथ को दिल पर रखकर बोला, “दर्द तेरा जो है मैं समझ गया पर बस इतना करना एक आख़िरी दफ़ा मुझसे मिलकर तू मुझे अपनाने की कोशिश करना | बस यह छोटा सा वादा है तुझसे मैं तुझको दुःख न पहुंचाऊँगा | तेरे टूटने से पहले मैं खुद ही फ़नाह हो जाऊँगा | बस इतना एहसान तू मुझपर करना एक ज़रा हाथ अपना बढ़ा देना | थाम के आँचल मेरा तुम जीने की दुआ करना | फिर जीना क्या है वो मैं बतलाऊंगा | खुशियों से दामन तेरा मैं हर पल भरता जाऊंगा |”

दिल ने सुनकर, नज़रें उठा कर देखा, खुशियाँ भर कर आँखों में भरोसे की बातों पर सोचा, धीरे से मुस्कराया और थाम हाथ भरोसे का आँखों आँखों में विश्वास दर्शाया | सोचा एक मौका तो देना बनता है | पकड़ हाथ भरोसे का दिल जीवन की सीढ़ी चढ़ता है |

आराधना अचंभित खड़ी यह सब सुन और देख रही थी और अपने चेतन मस्तिष्क में कुछ नई खुशियाँ बुन रही थी | सोच रही थी क्या दिल और भरोसे की इस भागीदारी से वो जीवन नया बनाएगी | इस अनोखी भागीदारी को वो क्या कह के बुलाएगी | साथ किसका वो देगी अब ? वो दिल को जीत दिलाएगी या भरोसे को अपनाएगी ?

आखिर में फैसला इंसान खुद ही करता है वो जीवन में भरोसे को चुनता है या अपने दिल की सुनता है | क्योंकि दिल और भरोसा एक दुसरे के पूरख है | जीवन दोनों से ही आगे बढ़ता है | किसी एक का हाथ भी छूट जाये तो इन्सान सालों साल दुःख के आताह दलदल में तड़पता है |
आराधना का फैसला क्या होगा ये मैं अपने सभी पढ़ने वाले दोस्तों पर छोड़ता हूँ | आप ही बताएं आप ही सुझाएँ इस कहानी की शुरुवात अब आगे क्या होगी | 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आज की बुलेटिन भैरोंसिंह शेखावत, आर. के. लक्ष्मण और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।

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  2. विश्वास का होना भी जिन्दगी में उतना जरुरी हैं जितना एक एक नाजुक दिल का होना संवेदनाओ का होना .आराधना आगे बढेगी अवश्य परन्तु सतर्कता के साथ ताकि विश्वास मैं कभी विष का वास न होने पाए

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  3. आपकी इस उम्दा रचना को http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ के शुक्रवारीय अंक " निविया की पसंद ' में शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकनार्थ पधारे .धन्यवाद

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  4. कहानी शानदार और शिक्षाप्रद |

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    साझा करने के लिए आभार।

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  6. हमेशा अपने दिल की सुनें.यदि खुद पर भरोसा हो तो दूसरों पर भी भरोसा किया जा सकता है.
    नई पोस्ट : उत्सवधर्मिता और हमारा समाज

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  7. bina bharose ke aage badha hi nahi ja sakta .......aage ka intzaar hai

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  8. दिल कभी झूठ नही बोलता.
    मैं खुद दो बार दिल की ना सुनने के कारण आज पछता रहा हूँ. इसलिए हमेशा दिल की सुने.
    वैसे मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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  9. पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
    कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (14) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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