शनिवार, जून 08, 2013

घुंघरू













आज एक 
मूक घुंघरू भी 
कह उठा
मैं, मूक नहीं हूँ 
वो कहता है 
मेरा स्वर
प्रत्येक व्यक्ति के 
लिए नहीं है 
उस व्यक्ति के
लिए नहीं है 
जो मुझे जानने की 
इच्छा रखता है 
जो मुक्ता का 
स्वर जानता है 
दर्द पहचानता है 
उच्च स्वर का 
यन्त्र अचानक 
मौन कैसे हुआ 
जिसने संसार को 
अनेक स्वर दिए 
पर, बदले में 
मिला एक 
दाग भरा नाम
फिर वो मूक हुआ 
उसने अपनी शांति में 
ईश्वर को सुना 
बस अब तक तो 
वो बजता था 
तब, सब सुनते थे 
पर आज 
ईश्वर का स्वर स्वयं 
बजना है 
वो मूक बना 
उस स्वर का 
आनंद लेता है 
इस लिए ईश्वर को 
पाने वाला ही 'निर्जन'
उस घुंघरू की 
ताल और लय
सुन पायेगा

14 टिप्‍पणियां:

  1. ये आवाज़ हर कोई कहाँ सुन पाता है

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  2. ईश्वर का स्वर स्वयं
    बजना है
    वो मूक बना
    उस स्वर का
    आनंद लेता है
    इस लिए ईश्वर को
    पाने वाला ही
    उस घुंघरू की
    ताल और लय
    सुन पायेगा
    very nice.

    जवाब देंहटाएं
  3. ईश्वर को पाना सबके वश की बात है ?
    फिर
    कोई कैसे सुने

    जवाब देंहटाएं
  4. prabhavshali rachna,aastha ke aayam ko disha deti behatareen prastuti

    जवाब देंहटाएं
  5. उससे तालमेल बिठाना सरल कहाँ. सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  6. सुर, ताल और लय मूक और स्वर सब कुछ उसमें ही समाहित है.

    सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 10/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहद सुन्दर रचना तुषार जी आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. हर किसी के बस में नहीं ये आवाज़ सुनना ...
    लाजवाब लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं

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