शनिवार, जून 29, 2013

'स्वराज' लिखूंगा












कलम उठा दीवारों पर, 'स्वराज' लिखूंगा
अपने दिल से उठती हर, आवाज़ लिखूंगा

मशाल उठा हाथों में, धर्म का ज्ञान कहूँगा
अपने शब्दों से क्रांति का, मान कहूँगा

बातें न कर के, अब बस मैं कर्म करूँगा
राष्ट्र-हित में सही है जो, वह धर्म करूँगा

गीता का पाठ, सिखाता है देश पर मिटना
भिड़ना दुश्मन से, और सर काट कर लड़ना  
 
अब न बैठो ठूंठ, समय मत और गंवाओ
युद्ध करो जवानों, जंग का बिगुल बजाओ

गर्म खून में जोश है कितना, कितनी है रवानी
'निर्जन' हो जा तयार, भारत की है लाज बचानी

11 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभावशाली रचना..
    मंगल कामनाएं !

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  2. सुन्दर रचना तुषार भाई। सच में 'स्वराज' ही लिखा है।

    मोबाइल के लिए एक बेहतरीन वेबसाइट!!

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  3. बहुत प्रेरक पंक्तिया है, सच में इन्हें पढ़कर खून खोल गया , ढेरो शुभकामनाये

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  4. राष्ट्र भक्ति से भरी रचना... बहुत सुंदर !!

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया है भाई
    शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी राष्‍ट्रभक्ति को नमन। आशा है कामना पूर्ण हो।

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  7. पोस्ट बहुत पसंद आया
    हार्दिक शुभकामनायें

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