जादू-अदा बा-ख़ुदा ख़ूब उसकी
बाग़-ए-इरम ज़िन्दगी होने लगी है
ऐतबार-ए-इश्क़ ऐसा है उसका
आलम-ए-दीवानगी होने लगी है
नज़राना-ए-शोख़ी नज़र ख़ूब उसकी
अज़ीज़-ए-दिल उल्फ़त होने लगी है
गुल-ए-विसाल मासूमियत उसकी
दीवार-ए-ज़िन्दगी होने लगी है
हसरत थामे आँचल अब उसका
जानिब-ए-गुलिस्ताँ होने लगी है
चलते हैं साथ जिस रहगुज़र पर
अब जादा-ए-हस्ती होने लगी है
लुत्फ़-ए-तसव्वुर रहता है उसका
चाँदनी अब हर रात होने लगी है
फ़िराक़-ए-यार सोचते भी अब
दहशत सी दिल में होने लगी है
लगता है 'निर्जन' रूह्दारी करते
तुझको मोहब्बत हो ही गई है
बाग़-ए-इरम - जन्नत का बागीचा
ऐतबार-ए-इश्क़ - प्यार पर भरोसा
आलम-ए-दीवानगी - दीवाने की स्थिति
अज़ीज़-ए-दिल - दिल को प्रिय
गुल-ए-विसाल - मिलन का फूल
दीवार-ए-ज़िन्दगी - ज़िन्दगी का सहारा
जानिब-ए-गुलिस्ताँ - गुलाबों के बागीचे की तरफ़
रहगुज़र - पथ
जादा-ए-हस्ती - ज़िन्दगी की राह
फ़िराक़-ए-यार - प्रियेतम से बिछड़ना
रूह्दारी - लुका छुपी
--- तुषार राज रस्तोगी 'निर्जन' ---
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