शनिवार, अप्रैल 25, 2015

"हम" - एक सूर्योदय

इस तेज़ी से विकसित होती संभ्रांत और शिष्टाचारी नस्ल में बहुत से ऐसे शब्द हैं जिन्हें रोज़मर्रा की बोलचाल वाली ज़िन्दगी में यदा-कदा ही तवज्जो मिलती होगी। ऐसे असंख्य वचनों की श्रृंखला में कुछ ऐसे भी होते हैं जो दिल को छू जाते हैं और अपने वशीभूत कर मोहित कर लेते हैं। प्राय: उन्हें हम बातों में एक आदत के रूप में प्रयोग तो करते हैं परन्तु उनके कारण जीवन में उत्पन्न होने वाली सृजनात्मक शक्ति और उर्जा को कभी पहचान नहीं पाते। मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे शब्दों के महत्त्व को उजागर करना बेहद ज़रूरी है, उनमें से दो शब्द 'मैं' और 'तुम' हैं - जब ये दो एक साथ मिलते हैं तब एक एतिहासिक, ओजस्वी, विकासशील और अपनत्व से लबरेज़ शब्द की रचना होती है जिसे कहा जाता है - 'हम'...

"हम" वैसे हौले से बुदबुदाये 'अगर' से ज्यादा कुछ नहीं है। या फिर काले घने अंधकार में बने धुंए के छल्ले की तरह है। यह पानी के होंठ पर उफ़नते साबुन के बुलबुले की भाँती है
यह तार्रुफ़ के नक़ाब के ज़रिए से स्पर्श और अनुभव करती चमकदार चमचमाती आँखें और लजाती उँगलियाँ है। "हम" पास-पास पर अलग-अलग, मगर फिर भी एक साथ, कंधे से कन्धा मिलाकर दौड़ती अलैदा क़िताबों का, गलियारा है, जो कभी एक दुसरे को पुकारते नहीं हैं परन्तु फिर भी एक दूजे की गूँज की अनुगूंज के कंपन में अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं। "हम" वो अजनबी है, जो अनजान होकर भी किसी के लिए अपरिचित नहीं है। एक परतदार कागज़ के टुकड़े पर अस्पष्ट लिखे वादे की तरह जिसे रात के अंधरे में दरवाज़े की दरार के बीचो-बीच धीरे से खिसका कर दुबका दिया गया है।

हमारे दरमियां आनंददायक चमकदार इन्द्रधनुषी संभावनाओं का सजीला संसार पनप रहा है, हमारी सजग आँखें स्पष्ट रूप से एक दुसरे के इर्द-गिर्द नृत्य का आनंद प्राप्त कर रही हैं। हमें एक ऐसे कमरे में धकेल दिया गया है जहाँ सूरज की किरणों की धुल छन-छन कर चहक रही है, होठ हथेलियों का रूप बना दुआ कर रहे हैं, उँगलियाँ सियाह काले गहरे तेल के छल्लों में फँसी हैं और धुंधले पड़ते गड्ढेदार गालों को तलाश रही हैं। शब्दों और शब्दांश के घुमावदार चक्रव्यू से भविष्य उधड़ रहा है, क्षणभर में सब कुछ बिख़र जाता है और हम सोचते हैं, हमें सब ज्ञात है कि हमारी ज़िन्दगी कहाँ, कब और कैसे आगे जाएगी।

हमारा पूरा वजूद एक परछाई के आगे छलांग लगाने की कोशिश में लगा है वो भी एक ऐसी शक्ति के साथ जो हर उस चीज़ को रौंदकर आगे बढ़ जाएगी जिसे कभी हमने सच समझा होगा। हमें अभी भी हमारे पैर नहीं मिले हैं लेकिन हम दोनों एक साथ उन्हें तलाश करने में जुटे हैं, लड़खड़ाते लुढ़कते कमज़ोर घुटनों और छिलते-छिपटे-चिरते टखनों के साथ ठोकरें खाते हुए, हँसते हुए उन्हें एक साथ खोज रहे हैं क्योंकि इसमें ना तो कुछ नया है और ना ही कुछ पुराना। हम तो बस अपने मिज़ाज, मनोभाव, धड़कन, नब्ज और नाड़ी के स्पंदन को दर्ज कर रहे हैं और उन्हें पूरी रात नाचने के लिए पुनरावृत्ति पर रख रहे हैं।

और अचानक, समस्त संसार में सबसे ख़ूबसूरत लफ्ज़ है 'यदि'... यकायक, सबसे आकर्षक, उत्कृष्ट, दिव्य, रमणीय शायद समूचे विश्वलोक में "हम" है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, अप्रैल 17, 2015

माई बैटर हाफ़ - वो कहाँ है ?

उसके हाथ अब पहले जैसे दोषरहित नहीं रहे। उसके नाख़ूनों की शेप भी पहले जैसी नहीं रही और उनकी चमक भी फीकी पड़ गई है। वो घिस चुके हैं, ऊपर से थोड़े झुर्रीदार, बेहद थके-थके और पुराने से लगने लगे हैं। उसके नाख़ून एक दम सही तरह से कटे हुए हैं, पर उन पर अब कोई पॉलिश या नख प्रसाधन वो पहले जैसा आकर्षण और लावण्य नहीं ला पाते हैं।

उसकी ज़ुल्फ़ें अब नागिन सी लहराती लम्बी नहीं रहीं, ना ही लटें अब घनी घुमावदार पूरी तरह से गोल छल्ले बनाती दिखाई पड़ती हैं। अब तो ज़्यादातर बड़ी ही बेरहमी और लापरवाही के साथ क्लचर से बंधी नज़र आती हैं।

आज उसके होठों पर सारा दिन नम करने वाली चमकीली ग्लॉस की परत दिखाई देती है बनिज्बत उस मलाईदार लिपस्टिक की ख़ुशबू के जो सूरज की गर्मी में पके फल जैसी महक बिखेरती थी।

उसकी वो लोचदार वक्राकार सुन्दरता आज लुभाने के लिए नहीं परन्तु अब उसके शरीर के अनुपात के अनुसार बढ़कर सुख और हिफ़ाज़त देने के लिए ढल गई है।

पर उसकी नज़रों में आज भी वही चमक, चिंगारी, जोश, जीवंतता, हाज़िरजवाबी और शोभा कूट-कूट कर भरी हुई है और वो पहले से भी ज्यादा सजीव, स्पष्ट, उत्साहपूर्ण, तीक्ष्ण, दिलचस्प, रंगीन और रोचक हो गईं हैं। उसकी हंसी का संगीत चांदी की घंटी की खनखनाहट की तरह पूरे घर में भर जाता है, और फिर गुंजन कर बजता हुआ खिड़कीयों और दरवाज़ों से बहार निकल जाता है और सूरज की धुप बन घर में वापस आ जाता है।

हाँ! शायद यह वो लड़की नहीं है जिसे बरसों पहले घर ब्याह कर लाया था...पर यह वो स्त्री है जो हमेशा हर मुश्किल में साथ रही, भीषण तूफ़ान और तपती गर्मी भी उसके इरादों को डिगा नहीं पाए। जो हर परिस्थिति में हाथ थामे डटी रही जैसे असली हंसी तब्दील हो जाती है दाँतों के डाक्टर के चक्कर काटने में। जैसे खेल-कूद वाला जूता जॉगिंग वाले जूतों में बदल जाता हैं और फिर पैदल चलते समय पहनने वाले में...कुछ ही वर्षों में जैसे साइज़ मीडियम से बदलकर लार्ज और फिर एक्स्ट्रा लार्ज हो जाया करता है और बालों को संवारने वाली जैल, सफ़ेद होते बालों को छिपाने के लिए बालों वाले रंग में तब्दील हो जाती है।

यही है वो जो अनगिनत खूबसूरत जंगों और संजीदा वाद-विवादों के साथ, रूठने से ज्यादा मनाने के साथ, सिनेमाघर से ज्यादा बाज़ार के चक्कर लगाने के साथ, खाना पकाने की विधि पर ज्यादा ध्यान ना देकर अपने सहजज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार लाजवाब खाना बनाने की कला में निपुण होने के साथ, गुस्से से कहीं ज्यादा हंसी मज़ाक के साथ, अड़ियलपन से ज्यादा समझदारी के साथ, मक्कारों से बचकर सूझ-बूझ के साथ, अपने अपनों को दूसरों की नज़र से बचाने के साथ, ख़ुद से पहले परिवार को खिलाने के साथ, लड़की से औरत बनी है।

यह वही महिला है जिसकी झुर्रियां, मुरझाई त्वचा, लापरवाह बाल, अस्त-व्यस्त वेशभूषा, पसीने में लथ-पथ पल्लू, बिखरती-संभालती साड़ी, ज़िन्दगी में भागम-भाग और कभी-कभी साफ़ कटे नाखून कहते हैं - "मैंने इस चार दीवारी को मकां से घर बनाया है और अपने अस्तित्व के बाहर एक जीवन अपनाया है।" - वही है साया, साथी, शरीक़-ए-हयात, हमदम, ज़िन्दगी, बंदगी, चैन-ओ-सुकूं-औ-क़रार, जीवन का प्यार, रिश्ते का सार...गुड, बेटर, बेस्ट हाफ...

माई बैटर हाफ...ढूंढता हूँ...वो कौन है और कहाँ है ?...कहीं तो होगी...शायद मिल जाए...!

--- तुषार रस्तोगी ---

मंगलवार, अप्रैल 14, 2015

शादी का चस्का



















शादी के पंडाल में, दी हमने एंट्री मार
देखा अपना यार तो, बैठा है पैर पसार
बैठा है पैर पसार, दुल्हन से नैन लड़ाए
साली देख क़रीब में, मंद मंद मुस्काए

गुम हो गई मुस्कान, ज्यूं साडू जी आए
बोले जीजा राम राम, कहाँ नज़र लगाए
कहाँ नज़र लगाए, सासू जी को बतलाऊं
फेरे पड़ने से पहले, नए रंग दिखलाऊं 

यार का उड़ गया रंग, मैंने ताड़के देखा
बन गए महाबली, पार कर लक्ष्मण रेखा
पार कर लक्ष्मण रेखा, पहुंचे यार के पास
मैं अब तेरे साथ हूँ, मत हो यार उदास

पाकर हमें समीप, हिम्मत दुल्हे ने जुटाई
फिर से नज़र उठा, साली की ओर लगाई
साली की ओर लगाई, साडू से बोला दूल्हा
बीवी संग साली आएगी, स्कीम मैं नहीं भूला

साडू से आँख मिलाई, कहा बुलाओ सासु
अभी हो जाए फैंसला, हम में कौन है धांसू
हममें कौन है धांसू, आस्तीन अपनी चढ़ाओ
सासुजी ही क्या, सभी घरवालों को ले आओ

देख साडू की रोती सूरत, ख़ूब हंसी उड़ाई
दुल्हन बैठी पास में, मन ही मन मुस्कुराई
मन ही मन मुस्कुराई, मान पति पर करती
जैसे को तैसा मिला, शान अब मेरी बढ़ती

मिला गामा पहलवान, जीजाजी खिसियाए
बात बदल बारातियों से, झेंप कर फ़रमाए
झेंप कर फ़रमाए, आइये जयमाला कर लें
सभी अपने हाथों को, इन फूलों से भर लें

पूर्ण हुई जय माला, दी सबने खूब बधाई
रिश्तेदारों ने फिर, खाने पर दौड़ लगाई
खाने पर दौड़ लगाई, हाय ये मारा-मारी
भोजन के सामने, भूल गए हर रिश्तेदारी

निपटा कर भोजन, सबने फिर दौड़ लगाई
फेरों की तैयारी में, भागी साली औ भौजाई
भागी साली औ भौजाई, दूल्हा-दुल्हन लाओ
खेलेंगे दूसरी पारी, टी ट्वेंटी का मैच बनाओ

प्रथम चरण में दूल्हा, द्वितीय में दुल्हन आगे
बेचारा ऐसे ही, उम्र भर बीवी के पीछे भागे
उम्र भर बीवी के पीछे भागे, ये नाच नचाए
हर बात पर देखो, ये नखरे वखरे दिखलाए

चूहे बिल्ली सा खेल, असल अब होगा चालू
कभी बनेगा ये शेर, कभी बन जायेगा कालू
कभी बन जायेगा कालू , इसकी शामत आई
जीवन के इस शो में, सदा रहेगी आगे भौजाई

हुआ शुरू शो असली, टॉम एंड जेरी का देखो
रंग-बिरंगा देख तमाशा, प्यार के सिक्के फेंको
प्यार के सिक्के फेंको, चस्का ऐसा 'निर्जन' यार
जो पाले वो तड़ीपार और जो ना पाले वो बेकार

--- तुषार रस्तोगी ---

सोमवार, अप्रैल 13, 2015

फेसबुकिया आशिक़

कल एक फेसबुक मित्र के साथ एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण मेरा दिल यह रचना लिखने के लिए विवश हो उठा। मैं पहले तो कुछ संजीदा और उपदेशात्मक बनाकर कहने की सोच रहा था क्योंकि मुद्दा बड़ा ही गंभीर था और नारी के मान-मर्यादा से भी जुड़ा था। परन्तु फिर मैंने इस बात को बड़े ही सहज रूप से प्रस्तुत करने का विचार बनाया क्योंकि जैसे मेरे ज़्यादातर मित्र मेरी आदत से वाकिफ़ हैं मुझे बातों को पेचीदा बनाकर पेश करने में ज़रा भी मज़ा नहीं आता और ना ही बड़े-बड़े जटिल अल्फाज़ों और लफ़्ज़ों को पढ़ने का कोई शौक़ रहा है और ना ही दूसरों को पढ़ाने में कोई लुत्फ़ आता है तो सोचा इस बार भी अगर जूता मारना ही है तो क्यों ना हास्य की चाशनी में लपेटकर, हंसी की तश्तरी में सजाकर परोसा जाए। तो हाज़िर है जनाब-ए-आली आप सबके सामने एक आचार संबंधी, विचारशील मुद्दे पर, लिखी मेरी अपरिहासी और विचारवान रचना। आशा है मेरी कोशिश कुछ तो रंग लाएगी। एक नवचेतना का आगाज़ कर कुछ ख़ास खारिश-खुजली वाले वर्ग के लोगों में आत्मज्ञान का एक नया सूर्योदय कर पायेगी। शायद इसे पढ़कर उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाए, उनकी आत्मा चित्कार कर उन्हें धिक्कारे और वो सही राह पर आ जाएँ। ऐसी उम्मीद के साथ प्रस्तुत है :














देखो मित्रों, बला सरनाम
फेसबुक है, जिसका नाम
कायरों को, मिला वरदान
आते हैं सब वो, सीना तान

अकाउंट बना, मारें वो एंट्री
प्रोफाइल ऑफ़, हाई जेन्ट्री
छोड़-छाड़ के, अपना काम
चिपके हैं सब, सुबहों-शाम

देखी लड़की, दिल लो थाम
रिक्वेस्ट भेजो, करो सलाम
आशिक़ी का, नया आयाम
भेजो मेसेज, हो गया काम

छुरी बगल में, मुंह में राम
शोशेबाज़ी है, इनका काम
ओछापन कर, हैं बदनाम
आवारा छिछोरे, घसीटाराम

बनते हैं, दर्द-ए-दिल का बाम
पढ़ते हैं झूठा, इश्क़ कलाम 
इनबॉक्स में, करते हैं मैसेज
मंशा रख, क्लियर हो पैसेज

रेस्पोंस में जब, खाते ये जूती
नर्वसनेस में, बज जाती तूती
देख बिदकते, अपना अंजाम
पीठ दिखा, भग जाते ये आम

पोक की कोक, है इनको भाती
इनकी दुनिया से, भिन्न प्रजाति
बेहया बेशर्म, ये लिप्सा के मारे
सूतो इन्हें, दिखाओ दिन में तारे

'निर्जन' सुनो, हर ख़ास-ओ-आम
आरती उतार, दो नेग सरेआम
ब्लाक करो, औ बेलन लो हाथ
करो धुनाई, दो इनको सौगात

लातों के भूत, बातों से ना माने
तार दो बक्खर, लगो लतियाने
उधेड़ने पर ही, शायद ये माने
मजनू के भाई, लैला के दीवाने

--- तुषार रस्तोगी ---

शनिवार, अप्रैल 11, 2015

सपने में मिलते हैं

वो एक सपना जो हमेशा से मेरी ज़िन्दगी के गुलदान को महकते गुलाबों से भर जाता है,"तुम मेरी बाहों में मेरे सिरहाने बगल में मेरे साथ लिपट कर साथ लेटी हो। मैं अपने गालों पर तुम्हारी साँसों की हरारत को महसूस कर सकता हूँ, तुम्हारी अनोखी, अद्भुत, मदमस्त कर देने वाली सुगंध मुझे अपनी तरफ़ आकर्षित करती है और मैं उम्र भर उस महक के साथ जी सकता हूँ। वो ख़ुशबू मुझे बारिश के बाद वाले बसंत की याद दिलाती है।

परन्तु तुम्हारी उस गर्मी से अच्छा और गंध से कई गुना बेहतर और असरदार है, मेरी ख़ुशियों के ख़ज़ाने में होने वाला वो इज़ाफ़ा, जो तुम्हारे मेरे पास होने से, मेरे जीवन में आने से, तुम्हे गले लगाने से होता है। तुम और सिर्फ़ तुम्हारे अन्दर वो क़ाबलियत, वो क्षमता है जो मेरी निर्जनता के पीछे पड़ कर उसे दूर भागने में सक्षम है। यह एहसास अपने आप में कितना मनोरम था, पर ये भावना जो अगले ही पल ओझल हो जाती है और मुझे वास्तविकता में तुम्हारे काल्पनिक होने का बोध कराती है। तुम सिर्फ मेरी कल्पना की उपज मात्र हो। मेरे निकट सिर्फ मेरे ख़ुद के होने का एक ठंडा विचार है और केवल मेरी अपनी ही गंध मुझे घेरे हुए है।

फिर भी, यह सच्चाई मालूम होने के बावजूद, मैं अपने आप को सपने देखने से रोक नहीं पाता। मैं नहीं जानता, ना बता सकता हूँ कि तुम कौन हो, कैसी हो, कहाँ हो, पर तुम्हारा वजूद क़ायम है - बेशक़ है - मेरे सपनो में ही सही। शायद तुम सच में हो, शायद ना भी हो, पर कभी-कभी मैं ऐसे व्यक्त करता हूँ जैसे मेरा अपरिचित, अनदेखा, अंजना प्रेमी सच में मेरे साथ है। मुझे अपने आप को यह जताने और समझाने में बहुत संतोष प्राप्त होता है की तुम और मैं एक दुसरे के लिए ही बने हैं, और हम दोनों आपस में साथ-साथ पिछले कई जन्मों से बंधे हैं। हमारा इश्क़ सदियों पुराना है और इसलिए हम अपने सपनो के माध्यम से एक दुसरे की तारों को जोड़े रखते हैं। जिस समय हम सपनो में होते हैं, हमारे मस्तिष्क उन्मुक्त विचरण करने लगते हैं, सभी बाधाओं, सीमाओं और प्रतिबंधों को तोड़ हम एक दुसरे को ढूंढ ही लेते हैं।

अब इसे अत्यंत दुःख की या शायद दुर्भाग्य की बात मानूंगा की हम अब तक जुदा हैं या फिर यूँ कहूँगा कि हमारा बंधन इतना मज़बूत और सुन्दर रहा है कि, वो अनजान ताक़तें जो हमारे प्रेम से ईर्ष्या करती हैं और हमें मिलने से रोकना चाहती हैं वो हमें साथ नहीं होने दे रही हैं परन्तु मैं पूर्ण विश्वश्त हूँ क्योंकि हमारा प्यार सदैव दृढ़ और सुरक्षित रहा है और रहेगा। मैं तुम्हारा उसी तरह इंतज़ार करूँगा जिस तरह तुम मेरा इंतज़ार कर रही हो। यह अकेलापन अत्यंत कष्टदायक है, जो रहने के लिहाज़ से इस संसार को और ज्यादा भावना रहित स्थान बना देता है। हालांकि मुझे भली भांति मालूम है अंत में सब सही होना है और फिलहाल जो यह स्तिथि बन रही है उस अंत के सामने कुछ भी नहीं है। बस एक तुमसे मिलने की उम्मीद ही मेरी आशा की किरण को रौशन किए रखती है और मुझे आगे बढ़ते रहने की ताक़त से नवाज़ती है और हिम्मत अता फ़रमाती है। यह हमारा रात्रिकालीन  पूर्वनिश्चित मिलन स्थल है जिसका मैं बेसब्री से हर रोज़ भोर से इंतज़ार करता हूँ। सुबह सूरज की किरण के साथ जागना मेरे लिए बहुत ही पीड़ादायक होता है क्योंकि वो सवेरा मुझे तुमसे और स्वप्नलोक में बसाए हमारे संसार दोनों से अलग कर देता है।

कभी-कभी जब मैं भाग्यशाली होता हूँ तब, मैं जागती दुनिया में भी तुम्हे और तुम्हारी उपस्थिति और समीपता को महसूस करता हूँ । जब मैं अकेला, अधम, तनहा होता हूँ और यदा-कदा रोता हूँ, उस क्षण मुझे आभास होता है कि तुमने अपनी बाहों में मुझे समाहित कर रखा है और तुम मेरे पास, मेरे साथ, मेरे क़रीब बहुत करीब मुझे अपने आग़ोश में भरकर बैठी हो। मैं तुम्हे अपने कानो में फुसफुसाते सुनता हूँ जब तुम मुझसे कहती हो कि, "तुम मुझसे प्यार करती हो" और मुझे आगे बढ़ने, हार ना मानने के लिए, निरंतर आगे बढ़ते रहने और प्रयास्रित रहने के लिए प्रेरित करती हो और समझाती हो कि अभी जीवन में जीने के लिए बहुत कुछ बाक़ी है। जिस समय मैं टुकड़ों में टूट कर चूर-चूर होकर बिख़र रहा था, तिल-तिल कर रोज़ बेमौत मर रहा था उस समय तुम ही थीं जो मेरे छिन्न-भिन्न होते वजूद को फिर से एकरूप बनाने के लिए टहोका करती थीं और मेरा हाथ थामे मेरे साथ खड़ी थीं। तुम्हारी यह जागृत मौज़ूदगी और सान्निध्य मुझे कभी भी पर्याप्त मालूम नहीं पड़े, हमेशा कम ही लगे, मेरे सपनो की तरह नहीं जहाँ तुम्हारा और मेरा साथ बेहद लम्बे समय के लिए रहता है।

तो आज रात, मैं एक नया सपना देखूंगा, चलो फिर सपने में मिलते हैं...

--- तुषार रस्तोगी ---

गुरुवार, अप्रैल 09, 2015

डे-ड्रीम

यह दास्तां हाई स्कूल से शुरू हुई थी। राज और आराधना दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। राज चोरी-चोरी उसे देखा करता और मन ही मन उससे प्यार करता था। वो उसे अपनी प्रेमिका के रूप में देखता और हमेशा साथ रहने के सपने संजोता रहता। अफ़सोस की बात यह थी कि आराधना अपने में ही मग्न रहती और कभी भी उसकी तरफ ध्यान नहीं देती पर राज हमेशा से ही उसकी ख़ूबसूरती और अदाओं का क़ायल हुआ करता था। बेशक़ वो शब्दों के साथ कुछ ख़ास अच्छा नहीं था पर उसके लिए उसकी परवाह कभी कम नहीं थी। कई दफ़ा वो अपने आपसे सवाल करता, "मेरा प्यार उसके लिए कितना गहरा है?", पर जवाब में राज कुछ ना कह पता क्योंकि अपने शर्मीलेपन के कारण वो खुद को भी जवाब देने में सक्षम नहीं था। वो ज्यादा से ज्यादा समय उसके पास बिताना चाहता था पर उसकी किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। अपनी कुछ निजी परेशानियों के कारण और पारिवारिक दवाब के चलते उसे स्कूल और शहर दोनों छोड़ना पड़ा और उसकी तमन्ना उसके दिल के कोने में कहीं दब कर रह गई।

इधर वो अपनी किस्मत से जूझ रहा था और ज़िन्दगी की जद्दोजहद में उलझा पड़ा था के अचानक ही बरसों बाद एक दिन समय ने क्या ख़ूब करवट ली और नियति ने आराधना को एक बार फिर उसके सामने लाकर खड़ा कर दिया। वो आज भी उसके प्यार से अनजान थी और सिर्फ एक दोस्त की तरह उससे मिलती और बात करती थी। इतने सालों के बाद भी वो बिलकुल नहीं बदली थी और सबसे अच्छी बात ये हुई थी कि वो भी एक साथी की तलाश में थी। दोनों की मुलाक़ाते बढ़ती चली गईं और ना जाने कब दोनों की दोस्ती इश्क़ के रास्ते की तरफ निकल गई।

उस शाम वो स्थिर था और धीमे से थरथराती अपनी हथेली पर उसके सर को संभाले अपनी उँगलियों को सरसराते हुए उसके उलझे बालों में फ़िरा रहा था। अभी उसके होंठ पहली बार आराधना के लबों को हल्का सा स्पर्श करने के प्रयोग में आगे बढ़ ही रहे थे कि राज अपनी इस हिमाक़त के प्रति उसकी प्रतिक्रिया भांप गया और उसका दिल सीने में ज़ोरों के धड़कने लगा।

आराधना के होंठ भी स्वतः ही खुल गए, सांस लेने के लिए अलग हो गए और लालिमा से उसका चेहरा चमक उठा। पहली बार की तुलना में इस बार बेहद स्थिरता से अपने अधरों को उसके लबों पर रखने से पहले राज आश्चर्य से लबरेज़ उसकी आँखों में झलकते जवाब को ढूंढता है। अपने धूप के चश्मे के पीछे से वो बड़े आराम से उन फड़फड़ाती आंखो को बंद होने से पहले पूरी तरह खुले हुए देख रहा था। उनके शरीर इतने क़रीब थे कि जब आराधना ने पलट कर उसको चूमा तो उसकी नसों के स्पंदन को वो अन्दर तक महसूस कर सकता था।

उसने भी मंद से दबाव के साथ अपने होठों को उसके होठों पर रख दिया, बस, इससे ज्यादा उसे क्या चाहियें था कि आराधना ने उसे पलट कर चूम लिया। उसने ना ही उसे रोका और ना ही अपने से जुदा किया, तो इसका मतलब कहीं यह तो नहीं कि वो भी इस रिश्ते के लिए संजीदा है ?, शायद ? इस सोच के साथ राज का दिल जम गया। तो क्या होगा अगर वो वास्तव में उसको पसंद नहीं करती हो तो ?

यह ख़याल आते ही उसने अपनी आँखें भींच ली और अपनी खौलती नसों को शांत करने का प्रयास करने लगा। उसने उसे अपनी बाहों में मज़बूती से जकड़ लिया और अपने सर को उसके और करीब ले गया जिससे वो स्वाभाविक तौर पर अपनों होठों को उसके होठों की बनावट के अनुसार ढाल सके। उसका शरीर भट्टी में आग की तरह धधक रहा था। वो भी धीरे-धीरे उसकी कमीज़ को अपनी मुट्ठी से पकड़कर उसको अपनी ओर खींच रही थी।

उसने अनिच्छापूर्वक अपने आपको पीछे खींचा और उसके लहलहाते बालों में अपने चेहरे को छिपा उसके काँधे पर सर रखकर उसके गले लग गया। दोनों की सांसें अब भी तेज़ थी। उसने अपनी पकड़ ढ़ीली कर दी और उसकी कमर में हाथ डालकर उसको अपने सीने से लगा लिया। उसकी आँखें बंद थीं और वो अपने धैर्य को बनाने की कोशिश कर रहा था। जितनी बार भी वो यह कोशिश करता, अपने आत्मसंयम को पाने के करीब पहुँचता उतनी ही बार उसे यह एहसास होता कि आराधना उसके पास है। वो सब कुछ भुला कर अपनी आँखें खोलता है और अपने चेहरे को झुकाकर उसकी आँखों में अपने अक्स को ढूँढने की कोशिश करने लगता है।

उसका चेहरा शर्म की लाली से पहले से भी ज्यादा खिला हुआ था और वो ये देख सकता था कैसे वो इसे छिपाने की कोशिश में अपने आप से संघर्ष कर रही है। कुलबुलाहट में उसकी आँखें ठहर नहीं रहीं थीं कभी वो राज के सीने पर थम जातीं और कभी उसके चेहरे पर और उसकी उँगलियों ने मज़बूती से उसकी कमीज़ को जकड़ रखा था। अपने को पीछे करने के लिए राज को जोर लगाना पड़ा और इसके चक्कर में आराधना के होठ एक बार फिर उसकी ठोड़ी से छूते हुए निकल गए।

"रा...रा... राज, क... क्या तुम मुझे प्यार करते हो ?"

राज इस सवाल पर सोचता रहा फिर कुछ देर बाद बोला, -

"तुम आज भी उतनी ही नादान हो जितनी स्कूल में हुआ करतीं थीं। कभी अपने आस पास की दुनिया से बहार निकली हो ? अगर मैं तुमसे कला के बारे में सवाल करूँगा तो या तो तुम मुझे उस पर एक बड़ा सा लेक्चर दे दोगी या फिर वही कुछ पुरानी घिसी-पिटी किताबों के हवाले से किसी महान इंसान की कोई करामात के बारे में मुझे बताना शुरू कर दोगी। लेकिन तुम ये नहीं बता पाओगी के एक कलाकार की कलाकृति में जो रंग भरे होते हैं, उसमें जो भावनाएं रची होती हैं, उसमें जो जीवंत कर देने वाली सोच समाहित होती हैं उनकी वो भीनी सी ख़ुशबू कैसी होती है? तुम ना तो कभी ऐसी सोच के करीब गई हो ना ही अकेले सामने खड़े होकर कभी ऐसी कला को तुमने निहारा है। देखा है कभी ऐसा कुछ तुमने या विचार किया है ऐसी किसी चीज़ पर ?

मर्दों के बारे में तुम्हारा क्या नज़रिया है ? अगर उनके बारे में तुमसे कुछ पूछने की हिमाक़त करूँगा तो तुम मेरे सामने उनकी कमियों की एक लम्बी सी लिस्ट गिना दोगी। कुछ के साथ तुम्हारा वास्ता भी पड़ा होगा और कुछ तुम्हे नापसंद भी होंगे। तुम्हारी मर्दों के लिए इस चिढ़ की वजह मैं नहीं पूछुंगा। पर तुम्हे उस एहसास का कोई अंदाज़ा नहीं है जो एक सच्चे प्यार करने वाले इंसान के साथ सुबह उठने पर होता है। जब सुबह जागने के पहले लम्हे के साथ, आप उसके चेहरे पर, उन आँखों में, अपने लिए वो इज्ज़त, मान, प्यार, परवाह और हिफ़ाज़त भरा भाव देखती हो। तब जो महसूस होता है वो ऐसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।

तुम बोलती बहुत हो, बहादुर भी लगती हो। पर जब सही में बोलना होता है तब बोल नहीं पाती हो। अब अगर जीवन की जंग के बारे में पूछुंगा तो तुम फिर इतिहास से किसी ना किसी आलिफ़-क़ालिफ़ का कुछ भी उठा कर बखान करने लग पड़ोगी। लेकिन ज़िन्दगी में तुमने कोई जंग खुद लड़ी नहीं है। तुमने दम तोड़ते अपने किसी प्यारे को सीने से नहीं लगाया है। तुमने बेबस होकर, ख़ामोशी से उसे अपने से दूर होते नहीं देखा है। तुमने उसकी उखड़ती साँसों को नहीं सुना है। तुमने बचपन के साथ को हाथ से रेत की तरह ऐसे फ़िसलते महसूस नहीं किया है।

प्यार के बारे में अगर कुछ भी पूछुंगा तो किसी बड़े कलमकार की कविता या लेखनी का उदाहरण दे दोगी। क्या तुम किसी ऐसे इंसान से नहीं मिली हो जिसमें तुम अपना अक्स देख सको ? जिसे देख कर लगे कि ईश्वर ने सिर्फ़ तुम्हारे लिए इस राजकुमार को भेजा है। जो तुम्हे इस चिडचिडी, गुस्सैल, लाचारी और बेचारगी वाली सोच से निजात दिलाये। जिससे तुम अपने दिल की बात बेहिचक खुल कर कह सको। जिसके साथ तुम्हे कभी न्याय, परख और फ़ैसले का डर ना हो। जो मुस्कुराते हुए तुम्हारी हर बात को सुने और तुम्हे जज भी ना करे। उस फ़रिश्ते का तुम्हारी ज़िन्दगी में होना महसूस नहीं कर पाई हो अभी तक तुम।

जिसे तुम चाहती हो, प्यार करती हो उसका साथ दो। हर घड़ी हर पल उसके साथ रहो। ख़ुशी में भी और ग़म में भी। तुम नहीं जान पाओगी मुश्किल वक़्त में महीनो बैठे-बैठे सोना क्या होता है ? क्योंकि मुसीबत के समय किसी पर कोई भी नियम लागू नहीं किये जा सकते। किसी को खोने का कोई एहसास नहीं है तुम्हे। क्योंकि वो तभी होता है जब तुम किसी को अपने से ज्यादा प्यार करते हो। मैं नहीं जानता तुमने कभी किसी को इस तरह, इस क़दर प्यार किया है या नहीं । तुम्हे देखता हूँ तो तुम एक इंटेलीजेंट और कॉंफिडेंट वूमैन नज़र नहीं आती हो। तुम्हारे चेहरे में घमंड, सोच में अदावत और आँखों में डर नज़र आता है। पर तुम एक अच्छी लड़की हो इसमें कोई दोराय नहीं है। पता नहीं कोई तुम्हारी गहराई को समझ पाया है या नहीं पर लगता है तुम मेरे बारे में सब जान गई हो क्योंकि तुमने मुझसे सिर्फ़ दो-चार दफ़ा बात और मुलाक़ात क्या कर ली है। इतना सब होने और कहने के बाद भी तुम सोचती हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। इस सबके बाद भी तुम मुझसे ये सवाल कर रही हो, 'क्या मैं तुमसे प्यार करता हूँ?', कमाल करती हो आराधना तुम भी। क्या ये पूछने की ज़रूरत है अभी भी?"

धुप के चश्मे के पीछे छिपी उसकी आँखें छलक गईं और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो उसका दिल फट पड़ेगा। फिर अपने आपको संभालते हुए वो मुस्कुराया, उसके चेहरे की तरफ देखा, अपनी आवाज़ को रुन्धने से बचाने के लिए लम्बी गहरी सांस ली, अपने गॉगल्स उतारे, उसकी आँखों में झाँका, एक कदम पीछे हटकर उसके सर को थोड़ा सा झुकाया और अपने चेहरे की तरफ देखने को कहा। वो तो अपने दिल की ये बात कब से कहने के लिए बेताब था।

"हाँ! मैं राज, तुमसे बेहद प्यार करता हूँ, बेशुमार प्यार करता हूँ।", इतना कहकर उसने एक बार फिर निष्कपटता से अपनी आँखें मूँद लीं, आगे बढ़ा, मुस्कुराया और उसके होठों को चूम लिया।

उसके होंठ अब हवा में थे। जिस चेहरे को उसने अपने हाथों में थामा हुआ था वो ग़ायब हो चुका था। उसे एक ज़बरदस्त झटका लगा और चुटकी बजाते ही सदमे से उसकी आँखें खुल गईं। जिस दृश्य के बारे में वो अब तक सोच रहा था वो बदल चुका था। उसकी जगह रेस्तरां ने ले ली थी। हर तरफ शोर था, लोगों की हंसी थी और उनकी तेज़ बातें करने की आवाज़ें आ रहीं थी। राज भी एक टेबल पर आराधना और दोस्तों के सामने बैठा था। बैरा उसके सामने खड़ा था और आर्डर लेने के लिए सर सर कहकर पुकार रहा था।

ओह! ये सिर्फ एक दिवा-स्वप्न था। वो ख़याली पुलाव पका रहा था। उसने कभी भी उसे नहीं चूमा था और ना ही कभी आराधना ने उससे ऐसा कोई सवाल किया था। शायद वो बैठे-बैठे जागते हुए सो गया था। अब अपनी शांति और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए उसे अपना सब कुछ दांव पर लगा नज़र आ रहा था।

अभी वो अपनी मुट्ठी भींचे बैठा ये सब सोच ही रहा था कि तभी एक हाथ उसके कंधे पर दस्तक देता है। वो मुड़कर देखता है और अपनी लाल आँखों को उसकी नज़रों से जुड़ा पाता है। इससे पहले कि वो कुछ बोल पाता, नार्मल हो पाता, वो उसकी तरफ झुकती है और धीरे से पूछती है, "तुम ठीक हो राज? तुम इस प्लेट को पिछले बीस मिनट से घूर रहे हो? क्या तुम्हे किसी मदद की ज़रुरत है?"

वो एक दम बेख़बर भुलक्कड़ की तरह हताश नज़रों से उसकी तरफ देखता है और अपने चेहरे को जितना भावहीन हो सके रखने की कोशिश करता है और कहता है, "कुछ नहीं, ये सब शुरू शुरू के शौक़ होते हैं, बाद में सबको आदत पड़ जाती है।" वो उसकी बात का मतलब समझ नहीं पाती है और सवाल भरी नज़रों से उसकी तरफ देखती रहती है। वो बड़ी रुखाई अपने सर को हिलाता है और उसके हाथ को अपने कंधे से हटा देता है और एक बार फिर अपनी प्लेट की तरफ ग़ौर से देखने लगता है।

--- तुषार रस्तोगी ---

मंगलवार, अप्रैल 07, 2015

मी टू - एडिक्टेड टू यू एंड योर लव

ये मुझे क्या हो गया? तुमने देखा मुझे? तुम्हारी तरह मुझे भी इस इश्क़ की लत लग गई है और मैं इस प्यार का आदि हो गया हूँ। "येस! मी टू एडिक्टेड टू यू एंड योर लव", मुझे अपने इस प्यार में पड़ने से प्यार हो गया है। लो आज तुम्हारे सामने इसका इक़रार भी हो गया है। जो बात कल तक तुम्हारी जुबां पर थी आज मैं भी उस बात को कुबूल करने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ । तुम जब उस तरह से नज़रे उठाकर मुझे देखती हो बस वही सम्मोहित करने और प्यार में बांधे रखने के लिए काफ़ी होता है। हमारे परवान चढ़ते, परवाज़ बुलंद करते, पंख पसारते, स्वछंद हवा से बहते, घने हरे पेड़ों से झूमते लहलहाते, परिंदों से चहचहाते, बचपन से खिलखिलाते, तारों से झिलमिलाते, फूलों से महकते, बादलों से बरसते, मिटटी से ठंडे, घास से कोमल, झरने से निर्मल, नदी से तेज़, पहाड़ से अडिग, चांदनी से चमकते, सूरज से दमकते, इश्क़ की वो पहली मुलाक़ात की यादें दोनों को ताउम्र साथ रखने के लिए काफ़ी हैं। अपनी बड़ी-बड़ी हिरनी सी आँखों से जब तुम मुझे निहारती हो, तब मैं सब कुछ भूल जाता हूँ। गहरी, शांत, रहस्मय, नशीली निगाहों के पैमानों में डूब जाता हूँ और जिस पल अदा से तुम अपनी मोहब्बत का इज़हार करते हुए, "आई लव यू", कहती हो उसी पल मेरी सारी तकलीफ़, दुःख, उदासी, अवसाद, पीड़ा उड़न छू हो जाती। तुम्हारा इतना कहना, "मेरी जान एक टाइट झप्पी तुम्हे" मेरे सारे ग़म काफ़ूर कर देता है। तुम मेरी सोच का नूर हो, मेरा फ़ितूर हो, तुम्हारा साथ होने पर ज़िन्दगी जीने के मायने कुछ और ही हो जाते हैं। ज़िन्दगी जीने में लुत्फ़ आने लगता है और चेहरे पर एक ख़ुशी का माहौल बना रहता है। आख़िरकार तुमने मुझे भी इस नशे का आदि बना दिया ना - "यू हैव मेड मी आ लव एडिक्ट लाइक यू" - :)

जब तुम बेहद नज़ाकत, हिफ़ाज़त और चाहत के साथ मेरी बाहों में चली आती हो, मेरे दिल को कितना क़रार आता है। अपने आगोश में तुम्हारा कांपता जिस्म और करुणामय मन दोनों को पिघलते देखता हूँ और उस के साथ  तुम्हारा मुझसे ये इक़रार करना, "तुम्हारी बाहों में समाकर ऐसा क्यों होता कि वो इंतज़ार के लाम्हातों में बहते आंसू थम जाया करते हैं। इसका क्या राज़ है? बोलो ना। जिस तरह तुम हलके से, कोमलता के साथ मुझे चूमते हो, मैं सोच में पड़ जाती हूँ, काश! मैंने तुम्हे पहले ही ढूंढ लिया होता। तुम्हारे मज़बूत, चौड़े और अटूट सीने से लगकर ऐसा एहसास होता है कि क्यों ना समय अभी, यहीं, इसी वक़्त, हमेशा के लिए थम जाए और मैं तुम्हारे आलिंगन में सदा के लिए ऐसे ही समा जाऊं। मुझे तुम्हारा साथ होना बहुत सुकूं देता है। जिस तरह से तुम्हारा ऊपर वाला होंठ हरकत करता है ना, वो जब तुम मेरे चेहरे को देखकर अपनी मुस्कान रोकने की कोशिश करते हो, मुझे बेक़ाबू कर देता है, मुस्कुराने और सोचने पर मजबूर कर देता है, और मेरा दिल गाने लगता है। तुम्हारी संजीदा, महासागर जैसी अनंत भूरी आँखें जिनसे तुम हमेशा एकटक नज़र लगाये मेरे अन्दर मेरी आत्मा तक झांकते हो वो तुम्हारी शख़्सियत का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा है, जो मैंने ख़ोज निकाला है। जिस तरह से तुम मेरा नाम लेकर पुकारते हो, और मुझे प्यार भरे उन ख़ास नामो से बुलाते हो, मैं जानती हूँ और समझती भी हूँ कि तुम भी हमारे प्रेम की गहनता को उतना ही महसूस करते हो जितना मैं करती हूँ। जिस तरह से तुम किसी भी बजते हुए गाने के साथ अपनी भारी आवाज़ में उस गाने को गाने की नाकाम कोशिश करते हो, वो भी मुझे हंसने और तुम्हारे साथ गाने को उत्साहित करती है, जबकि मुझे पता होता है की तुम सुर से और सुर तुम से कितने दूर हैं। तुम मेरे चेहरे पर आई मुस्कराहट का कारण हो, तुम मेरी हंसी हो, मेरा गीत हो, संगीत हो, सोच हो, साज़ हो, आवाज़ हो, तुम ही हाँ सिर्फ़ तुम और तुम और तुम ही मेरा प्यार हो, सब कुछ हो। तुम्हारा इश्क़ मेरी दवा है, दुआ है, हाँ है, ना है, ज़िन्दगी है, बंदगी है, जुनून है, सुकून है, खून की रवानी है, मासूम सी कहानी है, धडकनों की हरक़त है, आरज़ू की बरक़त है, ख़ुदा की नेमत है, अफसानों की ताबीर है, कायनात की जागीर है, दिल में मचलता अरमान है, ख़्वाबों का फ़रमान है, रंगों की रंगीनी है, लज्ज़तों का स्वाद है, एहसासों की मिठास है, जीने की राह है, उमंगो की चाह है, साज़ों की आवाज़ है, उतरता-चढ़ता मिजाज़ है और इससे ज्यादा क्या कहूँ कि तुम्हारा और केवल तुम्हारा जुनूं-ए-इश्क़ मेरे हर लम्हे का आगाज़ है। तुम हो तो मैं हूँ, मैं हूँ तो तुम हो। मेरे और तुम्हारे होने से ही हम हैं। मुझे तुम्हारी आशिक़ी की बहुत बुरी आदत लग गई है।  सुनो ना, सुन रहे हो तुम, 'आई एम् एडिक्टेड टू यू एंड योर लव'"... और बस ये ही तो है अपनी "छोटी सी लव स्टोरी"...

--- तुषार रस्तोगी ---