दौर-ए-वक़्त आया वो ज़िन्दगी में एक बार
उफनते समंदर से ख़ुदको लड़ते देखा है
वो जो आज हँसते हैं मुझ पर, कल रोयेंगे
आग में तपकर ही कुंदन बनते देखा है
सुपुर्द-ए-गर्क होंगे तमाशबीन एक दिन
खुद मुंह अपना उन्हें सियाह करते देखा है
कर बुलंद हौंसला नभ बुलाता है 'निर्जन'
क्या सूरज को किसी से उलझते देखा है
--- तुषार राज रस्तोगी ---
Dekha Hai
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Daur-e-waqt aaya wo zindagi mein ek baar
Ufante samandar se khudko ladte dekha hai
Wo jo aaj hanste hain mujh par, kal royenge
Aag mein tapkar hee kundan bante dekha hai
Supurd-e-gark honge tamashbeen ek din
Khud munh apna unhe siyah karte dekha hai
Kar buland haunsla nabh bulata hai 'nirjan'
Kya sooraj ko kisi se ulajhte dekha hai
--- Tushar Raj Rastogi ---
हर एक शेर सुन्दर है !
जवाब देंहटाएंनारी !
पुरुष ,नारी ,दलित और शास्त्र
jbrdst jbrdst....sch me suraj nhi uljhta kisi se...
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