सोमवार, मार्च 24, 2014

आराधना - एक दिन

"उठो न अभी भी सोये हो क्या ?" - फ़ोन पर उस मीठी सी आवाज़ ने राज के कानो में मिश्री घोल दी |

"हम्म ! आज तो इतवार है, छुट्टी का दिन है, प्लीज़ आज इतनी जल्दी नहीं | तुम उठ गईं क्या ?" - राज ने अपनी अलसाई आवाज़ और अधखुली आँखें मलते हुए पुछा |

"कब की, मैं तो चाय भी पी चुकी | नवाब साहब अभी तक सोये हैं | इतनी देर तक सोये हो ! उठे नहीं अभी तक, झल्ले !!" - आराधना की शीरीन आवाज़ में इस सवाल ने राज की नींद गायब कर दी |

फिर भी आलस भरे स्वर में उसने अंगड़ाई लेते हुए जवाब दिया, "क्या यार ! तुम भी, आज भी जल्दी, कम से कम आज तो आराम करने दो |  रात भी तो कितनी देर से सोये थे | तुम सोती नहीं हो क्या ?"

"सोती तो हूँ पर सुबह जल्दी उठाना भी तो होता है | घर के काम भी होते हैं | माँ-पापा का ख़याल भी तो मुझे ही रखना होता है | तुम्हारा क्या है, तुम्हारे मज़े हैं कोई बंधन जो नहीं है | मौज है तुम्हारी |" - आराधना ने चुटकी लेते हुए जवाब दिया |

"नहीं यार ऐसा नहीं है, बंधन तो मेरे भी हैं | एक बंधन तो तुमसे ही बंधा है | ये नहीं कह सकतीं तुम | बाक़ी बंदा तो मैं भी काम का हूँ ये बात और हैं कि....." – कहते-कहते राज ने शब्दों को थाम लिया | अभी तक कुछ निश्चित नहीं हुआ है | आराधना ने आज तक कभी कुछ खुलकर जो नहीं कहा था पर दोस्ती तो दोनों की ही अटूट थी | सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक और फिर खाने से लेकर सोने तक की बातें दोनों आपस में बांटा करते थे | खूब हंसी मज़ाक, गप्पे और बातें एक दुसरे के साथ सारा दिन किया करते थे |

"हम्म ! बात पूरी नहीं की क्या हो गया ?"

"अरे, कुछ नहीं, फिर कभी और कुछ बोलो यार तुम तो ख़ामोश हो गईं | कुछ दस्सो"

"होर ते सब चंगा | सब वादिय जी | तुस्सी दस्सो"

"हुन मैं की दस्सां | राती तां सव दस्सेया सी त्वानू | तुस्सी वी तड़के शुरू हो जांदे हो | दस्सो जी दस्सो जी | मेंनू क्या आल इंडिया रेडियो समझदे हो तुस्सी ?”

“अच्छा जनाब ऐ गल सी कोई नहीं बच्चू देख लुंगी | और बताओ”

“बस यार सब बढ़िया – अच्छा सुनो यार - मैं ज़रा तयार हो जाऊं फिर बाद में बात करते हैं |” – राज उठा और झटपट बिजली की तेज़ी से तैयार होकर, नाश्ता कर वापस अपने कमरे में आकर बैठ गया |

“हाँ जी ! उसने फ़ोन पर मेसेज भेजा | किद्दां ?

“आहो ! आ गई जी | हो गया ब्रेकफास्ट ? क्या खाया ? आज तो स्पेशल होगा ? सन्डे स्पेशल ? नहीं ? मुझे तो पुछा भी नहीं ? मैं बात नहीं करती ? झल्ले हो तुम |”

“ओ ओ ओ ! शताब्दी एक्सप्रेस थांबा | कभी तो कुछ कम सवाल भी किया कर यार | जब देखो तब शुरू |”

“अब दोस्त से सवाल नहीं करुँगी तो किससे करुँगी | बोलो ?”

“हाँ ! दोस्त से – हम्मममम” – राज ने ठंडी आह भरते हुए कहा

“अच्छा बता ना यार क्या खाया ब्रेकफास्ट में ? मैंने तो मूली के परांठे खाए और साथ में मिंट चटनी | य्म्मी”

“मैंने तो बटर ब्रेड टोस्ट खाया और चाय”

“ब्रेड एंड टोस्ट आर दी सेम थिंग्स | या तो ब्रेड बटर बोलो या बटर टोस्ट | ओके”

“जी बिलकुल, गलती हो गई | थैंक्स फॉर कोर्रेक्टिंग | और बताओ”

और फिर इसी तरह दिन भर ऐसे ही बातों का सिलसिला चलता रहा | आराधना कुछ कहती रही और राज सुनता रहा राज कुछ कहता रहा आराधना सुनती रही | एक बोन्डिंग थी दोनों के बीच जिसने दोनों को आपस में जोड़ रखा था | दोनों जितना लड़ते, झगड़ते उतना शायद ही कोई करता हो ऐसा उन्हें लगता था | पर फिर भी एक दुसरे के साथ थे, अगर कुछ हो भी जाता तो अगले ही पल सब ठीक हो जाता | एक दुसरे को सॉरी बोलने में बिलकुल भी हिचक नहीं होती, आपस में इतना भरोसा, इतना मान सम्मान, किसी बात को लेकर कभी कोई बड़ा मुद्दा नहीं बनता, किसी बात को लेकर कभी व्यर्थ बहस नहीं होती, सब कुछ इतना स्वाभाविक, सरल और नम्रता भरा था, ना ही आपस में कोई अहम् का भाव ना ही किसी तरह का कोई घमंड | बहुत ही प्यारी दोस्ती थी ये उन दोनों के बीच |

रात होते होते दोनों बहुत ही थक जाते और दिन की अंतिम बात के लिए अपने अपने फ़ोन पर आ जाते | राज सारा दिन आराधना से बातें करता फिर भी दोनों का दिल नहीं भरता और ज्यादा बातें करने को करता | दोनों अपने घर पर कानों में इअर प्लग लगाये बिस्तर पर लेटे नींद आने का इंतज़ार कर रहे थे | हर तरफ़ ख़ामोशी और सन्नाटा पसरा था | रात की इस ख़ामोशी में आराधना धीरे से बोली,

“कुछ बोल यार – क्या हुआ”

“क्या यार, हर टाइम मैं ही क्यों बोलूं आज तू ही कुछ बोल ले प्लीज | आज कोई टॉपिक नहीं मेरे पास बात करने के लिए | तू ही चूज़ कर ले कोई रैंडम टॉपिक उसी पर बात कर लेंगे | क्या कहती है ?”

“सोचने दे – यार कुछ दिमाग में नहीं आ रहा तू ही कर ले | मुझे कोई याद नहीं आ रहा | चल रहने दे आज नहीं | आज बहुत थक गई हूँ | काफी काम था | जनरल कुछ भी बात कर लेते हैं | ठीक है ?”

“ओके”

उसके बाद दोनों तरफ चुप्पी का राज हो गया | पूरा दिन इतनी सारी बातें करने के बाद अब कोई स्टॉक बाक़ी नहीं बचा था | थोड़ी ही देर बाद कानों में ज़ोर से सांसें चलने की आवाज़ आई |

“सो गई क्या ? ...... अरे यार सो गई क्या ? सोना है तो आराम से सो जा ना कल बात कर लेंगे |”

“हाँ सोती हूँ, बस दो मिनट अभी जाने का दिल नहीं कर रहा बस दो मिनट”

“क्या यार ! नींद तो आ रही है और दो मिनट कर रही है | चल सो जा जल्दी से वरना सुबह फिर दिक्कत होगी और फ्रेश नहीं उठ पायेगी | आराम कर | कल बात करते हैं ना”

“हम्म ! झप्पी दे”

“हाँ... बिलकुल यार ! झप्पी तो कभी भी | ले तेरी झप्पी लम्बी और टाइट वाली | ठीक है |”

“हाँ”

“अब तो जा सो जा यार”

“नहीं – दिल नहीं ऐसे ही रह झप्पी में – तुझे कोई तकलीफ है क्या ? जब दिल होगा तब जाउंगी” 

“कहाँ जाएगी ? तू ऐसे ही रह, कहीं जाने नहीं देना तुझे, ऐसे ही सो जा झप्पी में, मैं भी जब तक नहीं छोडूंगा जब तक खुद नहीं कहेगी | खुश ?”

“हम्मममम”

बस इतनी बात के बाद उस रात उसकी साँसों के सिवा और कुछ भी राज को सुनाई नहीं दिया | रात की निस्तब्धता में पहली बार राज की झप्पी में बंधे वो सपनो में खो गई | माइक पर उसकी सांसें सागर में उठते ज्वार भाटे के समान सुनाई पड़ रही थीं | उसकी सांसें केतली में आंच पर रखे उबलते पानी की भाप की तरह सुनाई दे रही थीं | साथ में कभी कभी सीटियाँ भी सुनाई दे रहीं थीं शायद पानी उबल रहा था | राज ने भी कॉल को नहीं काटा और झप्पी दिए लेटा रहा और आँखे मूंदे सोचता रहा | यह उसके जीवन का पहला मौका था जब राज को उसके बांहों में होने का एहसास हो रहा था | वह आराधना की उस अनदेखी और कानो सुनी मीठी सी नींद और चढ़ती उतरती साँसों की ध्वनि में असीम आनंद और अपनापन का एहसास महसूस करता रहा |

भले ही आज तक दोनों मिले ना हों पर यह फ़ोन का सिलसिला और मेसेज भेजने का क्रम जारी है | और यह दोस्ती दिन-बा-दिन अटूट होती जा रही है | देखते हैं किस्मत इस दोस्ती को कहाँ और कितना आगे लेकर जाएगी |

कुछ देर बाद राज भी अपने सपनों में खो गया | कॉल कटी या नहीं ? यह पहेली फिर कभी सुलझाई जाएगी | फिलहाल आप इस दोस्ती के बारे में सोचिये और इस कहानी का आनंद लीजिये | 

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