यह मेरा दिल बावरा...
खुशियों की रौशनी मंद किये
साँसों के उलझते शोर में
ज़िन्दगी की सिलवटें गिन रहा
यह मेरा दिल बावरा...
काश जग जाये थोड़ी देर को
ख्वाइशों को होने दे जवान
जी ले ज़िन्दगी फ़िर से
यह मेरा दिल बावरा...
पिघ्लेंगी उमंगें फ़िर से
इस काली सियाह रात में
और जवान होगा समां
फ़िर साँसों की आग में
बूँद बूँद लूँगा समेट
उन लम्हों को मैं इस तरह
बस सुबह फ़िर से नाराज़ न हो मुझसे
यह मेरा दिल बावरा...
सुबह के स्वागत को खड़े हो तो वो नाराज़ नहीं होती ... दिल को ऐसे ही बावरा रहने दो ... बहुत खूब ...
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