अब तक के सभी भाग - १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १०
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प्रभु की अनुकंपा साहू साब के परिवार पर निरंतर सुधाकर से बरसती शीतल और कोमल स्नेह से परिपूर्ण चांदनी की भांति बरस रही थी | समस्त परिवार समृद्धि के पथ पर अग्रसर था | सभी अपने अपने कार्यों में व्यस्त थे और अपने अपने जीवन का निर्वाह बड़ी ही शालीनता के साथ कर रहे थे | अपनी बेटी के सुखी संसार के साथ वे पुलकित हो उठते थे | जब कभी समय मिलता अनारो देवी के साथ बैठ कर घंटो बतियाते | घर में सबका हाल चाल मालूम करते रहते | बहुएँ भी उनका बहुत आदर सम्मान किया करती थी | देने लेने में भी वे कभी पीछे नहीं रहते | अच्छे से अच्छा अपने नाती, नातिनों, बहुओं और दामादों को दिया करते | अनारो देवी कभी कभार एतराज़ भी जताया करती परन्तु वो दो टूक जवाब देकर उन्हें ख़ामोश कर दिया करते |
कहते, " देख लल्ली, मेरी तो उम्र हो चली है, ये सासें कभी भी साथ छोड़ सकती हैं और आँखे कभी भी मिच सकती हैं | अब मैं मोह माया से परे हूँ | मेरा जो कुछ भी है सब इन बच्चों का ही तो है | अब तो बस यही आस है के जाने से पहले अपनी आने वाली नई पीढ़ी का मुंह देख जाऊं | ठाकुर जी का बुलावा कभी भी आ सकता है | इससे पहले के उनका बुलावा आये अपने परिवार के साथ थोडा खुश और हो जाऊं | उन्होंने मुझे सब कुछ दिया, तेरे जैसी बेटी दी, गंगा जैसा दामाद और इतने प्यारे नाती और बहुएँ | बस अब छोटे बाल गोपालों से भी वो मुझे मिल्वादें तो आँखें चैन से मूँद लूँगा | वरना बूढ़े की आस साथ ही चली जाएगी |"
उनकी बात सुनकर अनारो देवी का दिल भर आता और कहती, "चाचा काहे ऐसी बातें करते हो आप | आप तो सौ साल भी कहीं न जाने वाले | आपका आशीर्वाद, साथ और आपका हाथ तो मेरे सर पर और मेरे बच्चों के सर पर हमेशा रहेगा | मैं कहीं न जाने दूंगा चाचा तुम्हे | समझ लो सही से |"
उनकी बात सुनकर साहू साब ठट्ठा लगाकर जोर से हंस देते और अनारो देवी भी खिलखिला उठतीं | बस ऐसे ही दिन रात जीवन का कारवां बढ़ता चला जा रहा था | परन्तु यह सुख के दिन सदा के लिए नहीं थे | कोई भी स्तिथि जीवन में निरंतर नहीं रहती | कालचक्र जब घूमता है तब सभी के जीवन में अनकहे सवाल आकर खड़े हो जाया करते हैं जिनके जवाब मनुष्य कभी भी आसानी से नहीं ढूँढ पाता | यही अनारो देवी के परिवार में भी होने वाला था | जिसकी कल्पना भी उन्होंने कभी नहीं की थी वो सामायिक स्तिथियों वाले परिवर्तित दिन उनके समक्ष जल्दी ही शिला के सामान खड़े होने वाली थे | अब देखना यह था के उम्र के इस पड़ाव पर वे जीवन से मिलने वाले इन दृश्यों का सामना कैसे करेंगी |
समय गुज़रा अनारो देवी की संतानों के परिवार भी नवांकुरित हुए | बहुओं की गोद भरीं | पोते पोतियों के सुन्दर मुख दर्शन हुए | जीवन यापन के साधनों में नई मोहड़ीयां और जुड़ गई परन्तु कारोबार वही सीमित रहा | इसी प्रकार धीरे धीरे परिवार में सदस्यों की गिनती में इज़ाफा होता चला गया | साहू साब के रहते किसी को कोई परेशानी नहीं थी | परन्तु उनकी भी उम्र हो चली थी | वे भी कब तक ज़िम्मेदारी अपने बूढ़े कंधो पर लेते | परन्तु परिवार में यदि कोई बुज़ुर्ग हो तो परिवार हमेशा मुट्ठी की भाँती बंधा रहता है | बिखरता नहीं है | यही कारण था के आज तक इतना बड़ा संयुक्त परिवार होते हुए भी सब साथ रहते थे |
परन्तु ऐसा कब तक चलता | सबकी संताने भी बड़ी हो रही थी | सुरेन्द्र बाबु की छ: संताने थी जिसमें दो बेटे और चार बेटियां थी | वीरेंद्र बाबु की तीन में एक बेटा और दो बेटियां | सत्येन्द्र बाबु के पांच बेटियां तथा विनोद बाबु के दो बेटियां और एक बेटा था | बेटियों का भी परिवार बहुत संपन्न था | सभी की गोद भर गईं थी | गार्गी देवी के दो बेटे और दो बेटियां, बीना देवी के दो बेटे, एक बेटी और माधरी देवी के एक सुपुत्र और दो सुपुत्रियाँ थी | इतने बड़ी परिवार के पालन पोषण, उपहार, दान, दहेज़, लेन देन सभी की ज़िम्मेदारी और सभी का ध्यान तथा ज़रूरतों का व्यय साहू साब के सर था | हालाँकि सभी के अपने अपने कारोबार और आमदनी के साधन थे और परिवार को पालने की क्षमता थी परन्तु अक्सर बड़े संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों को ही सर्वोपरी मान सारा भार उनको सौंप दिया जाता है | पर अब बात हाथ से निकलने लगी थी | बच्चे बड़े हो रहे थे | उनकी मांगे भी उन्ही के हिसाब से पूरी करना आवश्यक हो रहा था | पढाई लिखाई, खान पान, कपड़े, गहने,जेबख़र्चा इत्यादि और रोज़ की ज़रूरीयात का सामान चाहियें होता था | कारोबार में भी हिस्सेदारी की बातें होने लगी थी | कहता कोई कुछ नहीं था परन्तु ज़रूरतों और समय के सामने किसकी चली है | दबी ज़बान बहुत कुछ बोल जाती है | हाव भाव शब्दों से ज्यादा चीत्कार करते हैं | मुंह से ज्यादा आँखों का चिल्लाना सुना जा सकता है | इसके चलते अन्दर ही अन्दर दिलों में खिचांव की स्तिथि जन्म लेने लग गई थी और एक दिन यह बात घर के बड़ो के सामने पहुँच गई |
नौबत यहाँ तक पहुँच गई के बड़ों के लिए कोई न कोई फ़ैसला लेना अनिवार्य हो गया | आखिरकार ह्रदय पर पत्थर रख कर जीवन का सबसे कठोर फैसले का साहू साब, अनारो देवी और गंगा सरन जी को सामना करना पड़ा | उनके सर्वप्रिय वीरेन्द्र बाबु ने स्वीकृति से फैसला दिया के वो 'महिला वस्त्रालय' अपने बड़े भाई के लिए छोड़ कर दिल्ली जाकर कारोबार करेंगे | उनके साथ उनके छोटे भाई सत्येन्द्र भी दिल्ली जाने को राज़ी हो गए | फैसले के कुछ समय पश्चात ही वीरेन्द्र बाबु सबको अलविदा कह दिल्ली आकर बस गए | वहाँ उन्होंने अपने ससुर के साथ कपड़े के करोबार से जीवन की एक नई शुरुवात की और छोटे भाई सत्येन्द्र बाबु ने ठेकेदारी का काम आरम्भ किया |
समय बीतता जा रहा था | जीवन की उठा पटक से ग्रस्त सभी के जीवन एक निश्चित तय की हुई रेल की भाँती एक ही पटरी पर सुबह शाम दौड़ती जा रही थी | वो पुराने दिन फ़ाक्ता हुए जाते थे | रोज़ एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता | किराये के मकान में रहकर स्वयं अपने परिवार के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी निभाना और साथ ही साथ कारोबार भी देखना | यह ज़िंदगी की ओर से बहुत बड़ी ललकार थी | बिना माता पिता और नाना के साथ के नए शहर में, नए चेहरों के बीच, जीवन को नए प्रकार से समायोजित करना कितना असुगम तज़ुर्बा था यह बात सिर्फ वो दो बेटे ही बता सकते थे |
उधर मुरादाबाद में भी कुछ ऐसा ही हाल था | बच्चों, नाती पोतों से जुदाई और अपने प्रिय सुपुत्र से पृथक होने के कारण कुछ समय बाद साहू साब की सेहत गिरने लगी | अब उनकी सुनने वाला भी कोई नहीं बचा था | इस अलगाव का असर उन पर इतना ज्यादा हुआ के उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया और जीवन के दिन गिनना शुरू कर दिया | अनारो देवी और गंगा सरन जी भी बहुत विवश महसूस करते परन्तु शिकायत किस से करते | किस्मत से उपालंभ भी क्या जायज़ होता | इसलिए ख़ामोशी से जीवन का खेला देखते रहते और प्रभु भजन से जीवन-प्रत्याशा बनाये रखते |
अचानक एक दिन कहीं से कोई घर पर एक कुत्ता पालने के लिए ले आया | साहू साब को कुत्ते बिल्लियों से बहुत चिड़ थी | ख़ास तौर पर घर में पालने से | तो उनके डर और डांट डपट से बचने के लिए उसने कुत्ते को छत पर बाँध दिया और रोज़ उसका लालन पालन वहीँ छत पर होने लगा | गर्मियों के दिन थे, कुछ हफ़्तों बाद, अनायास ही एक दिन दोपहरी में जब, सब अपने अपने कमरों में आराम कर रहे थे साहू साब जैसे तैसे करते अपनी छड़ी और हाथों के सहारे टटोल टटोल कर ऊपर छत पर हवाखोरी के लिए पहुँच गए | उन्हे कुत्ते के बंधे होने के बारे में ज़रा भी मालूमात नहीं थी | इस सच से अनजान वे छत पर चहलकदमी करने लगे | कुछ क़दम ही बढ़ाये थे के अकस्मात् ही उनका पैर कुत्ते की पूँछ पर पड़ गया | उन्होंने सोचा शायद कोई रस्सी या कुछ और छत पर पड़ा है | अपनी छड़ी से उन्होंने जैसे ही उसे सरकाना चाहा कुत्ते से तुरंत पलटवार किया और उनका पैर दांतों के बीच लपक लिया और बुरी तरह काट लिया |
दृष्टि से लाचार नेत्रहीन साहू साब चिल्ला कर गिर पड़े | इधर उधर जैसे तैसे बचाव की लिए छड़ी भी घुमाई परन्तु कोई फ़ायदा नहीं हुआ | जो अनिष्ट होना था वह तो हो गया था | उनके करहाने और चिल्लाने की आवाज़ सुनकर जितनी देर में नीचे से सब ऊपर छत पर आए उतनी देर में कुत्ते ने अपना काम कर दिया था | उसने साहू साब को काट काट कर लहुलुहान कर दिया था | तुरंत ही उन्हें उठा कर नीचे लाया गया और डाक्टर को बुलवाया गया | डाक्टर ने मरहम पट्टी की और दवाई भी दी | पैनी सुइयों की चुभन भी उन्हें अपने शिथिल होते वृद्ध काया में झेलनी पड़ीं | डाक्टर की ताकीद के अनुसार उन्हें अब कम से कम दो महीने बिस्तर पर आराम करना था | अपनी इस अवस्था में भी वे वीरेन्द्र बाबु को ही याद करते रहते | सबसे कहते,"कोई मेरे बिरेन को बुला दो" पर अब सुनने वाला कोई नहीं था | कोई जवाब भी नहीं देता था न ही काम करता था |
इस हादसे को अब दस दिन बीत चुके थे | साहू साब की तबियत सुधरने की जगह बिगड़ने लगी थी | उधर छत पर कुत्ते की तबियत भी ठीक नहीं थी | कुत्ता भी अजीब तरह से पेश आने लगा था | बार बार सबको काटने को दौड़ता | जो भी खाना देने जाता उस पर भौंकने लगता और ज़ंजीर तोड़ने तक का जोर लगता और लगातार उसके मुंह से झाग निकलते रहते | वही हालत नीचे साहू साब की हो रही थी | वो बात करते करते अचानक कुकुर की भाँती आवाज़ निकलने लगते, मुंह से झाग निकलने लगते और जो भी सहायता के लिए पास आने की कोशिश करता उस पर लपकते और झपटते | डाक्टर को बुलावा भेजा गया और उसके पूछने पर पता चला की कुत्ते को किसी प्रकार का कोई भी टीका नहीं लगा था | वो समझ गया और उसने सबको चेतावनी दे दी के मसला गंभीर है | उसकी बात सुनकर और उनकी ऐसी हालत देखकर सब डर गए और तुरंत वीरेन्द्र बाबु के पास दिल्ली खबर भिजवाई गई | पर किस्मत के सामने किसकी चली है | वीरेन्द्र बाबु दिल्ली से बहार थे | शाम को जब वह लौटे तो उन्हें यह खबर मिली | तुरंत सुरेन्द्र बाबु को साथ ले कर उलटे पाँव मुरादाबाद के लिए रवाना हो गए |
दिल में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे | अपने नाना में उनकी जान बस्ती थी | उनका समस्त संसार उनके नाना के इर्द गिर्द घूमता था | बचपन से जिस बरगद के साये में सांस लेते हुए, खेलते कूदते, ज्ञान लेते और सम्मान लेते बड़े हुए थे आज उनकी तबियत के बिगड़ जाने की खबर से उनका मन व्याकुल हो रहा था | अपनी जीवन की समस्त पूँजी को हाथ से जाने का ग़म जैसे होता है वैसा ही एहसास उनके ह्रदय को बार बार असहनीय पीड़ा से त्रस्त कर रहा था | सुरेन्द्र बाबु ने उन्हें समझाने का प्रयत्न भी किया परन्तु गुस्से में उन्होंने, उन्हें भी नहीं बक्शा और अच्छे से लताड़ दिया | उनके सर से उनका आसमान दूर होता प्रतीत हो रहा था | उनके लिए सफ़र का पल पल काटना भारी पड़ रहा था |
उधर साहू साब की हालत बिगडती जा रही थी | वे पूरी तरह से कुत्ते की भाँती बर्ताव करने लगे थे | अचानक से छत पर कुत्ता मृत पाया गया | डाक्टर ने बतलाया था कि साहू साब को रेबीज हो गई है और यदि कुत्ता जीवित नहीं बचा तो अब उनका जीवित रहना भी नामुमकिन होगा | ज़हर और कीटाणु समस्त शरीर में असर कर चुके हैं | अब बहुत देरी हो चुकी है | आखिरकार आज वो दिन आ गया था | साहू साब को संभालना मुश्किल होता जा रहा था | वो जैसे ही खाने के लिए ज़मीन पर बैठे तुरंत ही लुड़क कर एक तरफ गिर पड़े और उनके मुंह से झाग निकलने लगे | ज्यादा समय नहीं लगा बिरेन बिरेन करते हुए चन्द मिनट में उनके प्राण पखेरू ब्रह्मलीन हो गए | समय की विडम्बना देखिये या इसे नियति का स्वांग कहिये इधर साहू साब की साँसों ने विराम लिया और उधर वीरेन्द्र बाबु ने घर की ड्योढ़ी पर कदम रखा | क्रमशः
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