आज बने है सब बकरचंद
पखवाड़े मुंह थे सब के बंद
आज खिला रहे हैं सबको
बतोलबाज़ी के कलाकंद
बने हैं ज्ञानी सब लामबंद
पोस्ट रहे हैं दना-दन छंद
आक्रोश जताने का अब
क्या बस बचा यही है ढंग
बकर-बक करे से क्या हो
मिला है सबको बस रंज
बकरी सा मिमियाने पे
मिलते हैं सबको बस तंज़
ज़रुरत है उग्र-रौद्र हों
गर्जना से सब क्षुब्ध हों
दुराचारी-पापी जो बैठे हैं
अपनी धरा से विलुप्त हों
दिखा दो सब जोश आज
शस्त्र थाम लो अपने हाथ
दरिंदों, बलात्कारियों की
आओ सब मिल लूटें लाज
बहुत हो लिए अनशन
खत्म करो अब टेंशन
हाथों से करो फंक्शन
दिखा दो अब एक्शन
आया नहीं जो रिएक्शन
तो खून में है इन्फेक्शन
'निर्जन' कहे उठो मुर्दों
दिखा दो कुछ फ्रिक्शन
मत बनो तुम बकरचंद
कर दो छंद-वंद सब बंद
इस मंशा के साथ बढ़ो
कलयुग में आगे स्वछंद
दूसरे के दुख में पहल कौन करें
जवाब देंहटाएंपहले-पहले आप का देश है ये हिंदुस्तान
हार्दिक शुभकामनायें
सभी बकरचंद बने हैं, यही तो परेशानी है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच है शब्दों से आगे जाना होगा आज ...
जवाब देंहटाएंखड़ा होने का समय यही है ... नहीं तो देर न हो जाए ..
कलयुग में आगे स्वछन्द.........बहुत ही प्रेरक। आशा है आपकी और हम सबकी यह कल्याणकारी कामना शीघ्र पूर्ण हो।
जवाब देंहटाएंभाई साहब प्रतिभा की दुनिया वाले प्रतिभा कटिहार के ब्लॉग पर, उनकी लेटेस्ट पोस्ट पर आपने मेरे लिए भेजी टिप्पणी चेप दी। ऐसा न करो यार। जल्दी कहां की है। प्रतिभा जी रुष्ट हो रही होंगी। कृपया उस टिप्पणी को वहां से निकाल लें। और हां मैंने आपकी इस पोस्ट पर टिप्पणी की है। शायद स्पैम में चली गई। उसे वहां से बाहर निकालें।
जवाब देंहटाएंहाँ भाई वो गलती से मिस्टेक हो गई थी ;)....अब सुधार ली है | बताने के लिए शुक्रिया भाई...हा हा हा |
हटाएंबिल्कुल सही कहा आपने ....
जवाब देंहटाएंsamsamayik prastuti
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