स्याह ज़िन्दगी मेरी, कलम-ए-दर्द से कहूँ
जो लिखूं तो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं
सोच कर तो कभी, कुछ लिखता नहीं
वो लिखूं सो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं
एक फ़क़त सोच पर, जोर चलता नहीं
हाँ लिखूं ना लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं
ग़म-ए-ऐतबार को, खून-ए-रंज से कहूँ
दिल लिखूं जां लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं
तेरी बेवफाई का, हर सबक मैं कहूँ
कब लिखूं अब लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं
फ़नाह 'निर्जन' कभी, दुःख से होगा नहीं
जी लिखूं मर लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं
जी लिखूं मर लिखूं, क्या लिखूं क्यूं लिखूं............भई वाह!
जवाब देंहटाएंबके लिए मुश्किल है भावों को शब्दों में ढालना ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी लिखूँ कैसे लिखूँ, क्या लिखूँ कैसे लिखूँ :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.....क्या लिखूं क्यों लिखूं .
जवाब देंहटाएंदिल की बात ,दिल से लिखूं
जवाब देंहटाएंग़र पढ़े न तू,तो क्योंकर लिखूं .......
खुबसूरत अहसास....
मुबारक हो !
उलझने ना रहे
जवाब देंहटाएंचैन ना खोये
इस लिए लिखो
हार्दिक शुभकामनायें
kya bat hai waaaah
जवाब देंहटाएंअहसासों को भाव देती सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंएक फ़क़त सोच पर, जोर चलता नहीं
जवाब देंहटाएंहाँ लिखूं ना लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं
बहुत खूब
रचना अच्छी लगी तुषार जी,
जवाब देंहटाएंसादर पूंछना चाहूंगी कि ये 'निर्जन' क्या है? आपकी हर रचना में इसका दर्शन करती हूं।
शुभकामनाएं!
सादर आभार वंदना | आप मेरे ब्लॉग पर तशरीफ़ लाये और अपना कीमती वक़्त दिया उसके लिए तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ | 'निर्जन' क्या नहीं है ये कौन है पूछिए | निर्जन मैं हूँ ये मेरा तखल्लुस हैं | मैं 'निर्जन' के नाम से लिखता हूँ | आभार
हटाएंवाह ..ये हुई ना बात ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंलिखते रहें! सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंफोटो देखकर ही दिमाग घूम गया..फिर दिखा कि क्या है ऐसा जिसे न लिखूं....निर्जन जी शब्द चुन कर लिखना नहीं होता..शब्द अपने आप आ जाते हैं..अच्छा लिखा है आपने
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