मंगलवार, नवंबर 28, 2017

शर अर्ज़ है

तुमसे लफ्ज़ों का नहीं 'निर्जन'
रूहानी-रूमानी रिश्ता है मेरा
तुम तो तहलील हो सांसो में
इबादत की ख़ुशबू की तरह


रविवार, नवंबर 19, 2017

हास्य-व्यंग्य अर्ज़ है

सिग्रेट, शराब, चरस, अफ़ीम, रम
नशा ज़िंदगी में कभी नहीं था कम
कुछ इस तरह 'निर्जन' निकला दम
एक हाथ में लोटा दूसरे हाथ में बम

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क़समें वादे प्यार वफ़ा सब

[tusharrastogi] sings kasme wade pyar wafa by Manna Dey, what an incredible voice on StarMaker! StarMaker, 40,000,000+ music lovers are singing here! 

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शनिवार, नवंबर 18, 2017

O Saathi Re Tere Bina Bhi Kya Jeena

[tusharrastogi] sings O Saathi Re Tere Bina by Kishore Kumar, what an incredible voice on StarMaker! StarMaker, 40,000,000+ music lovers are singing here! 

O Saathi Re Tere Bina Bhi Kya Jeena

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सोमवार, नवंबर 13, 2017

अर्ज़ किया है

जुगनुओं से क्या मिले हम भी चराग हो गए 
नाज़नीन दिलरुबा के दिल का ख्व़ाब हो गए 
यूँ तो अता किये उन्होंने नज़राने कई 'निर्जन'
कातिलाना इनायत से उनकी आबाद हो गए

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शनिवार, नवंबर 11, 2017

अर्ज़ किया है

तिश्नगी अपनी दानिस्ता नाआश्ना 'निर्जन' हुआ 
नुक्तादानी करके भी नाशिनास साबित हुआ 

तिश्नगी : लालसा, अभिलाष
दानिस्ता : जानते हुए
नाआश्ना : अजनबी
नुक्तादानी : बुद्धिमानी
नाशिनास= अज्ञानी

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गुरुवार, नवंबर 09, 2017

अर्ज़ किया है

बेबस, बेकस, बेकार, बेकरार ऐसे क्यों हैं
ये लोग कुछ ज्यादा ही होशियार क्यों हैं
हर एक चेहरे पर एक मुखौटा है 'निर्जन'
इन लोगो के ज़हर में बुझे किरदार क्यों हैं

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बुधवार, नवंबर 08, 2017

ये ज़मी गा रही है

ये ज़मीं नहीं हम गा रहे हैं ;)

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शुक्रवार, नवंबर 03, 2017

अर्ज़ किया है

इश्क़ परखने का हुनर, हम बख़ूबी जानते हैं
कौन है आशिक़-ए-बुताँ, हम बख़ूबी जानते हैं
आशिक़-ए-बे-दिल के, बैत-ए-आशिक़ाना में
कौन है फ़र्द-ए-बशर, हम बख़ूबी जानते हैं

आशिक़-ए-बुताँ - beauty lover
आशिक़-ए-बे-दिल - heartless lover
बैत-ए-आशिक़ाना - temple of love
फ़र्द-ए-बशर - unique human being

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गुरुवार, नवंबर 02, 2017

अर्ज़ किया है

अबस बैठना बन गया अफ़सुर्दा होने का सबब 'निर्जन'
क़िस्मत भी कितनी बेरहम है इसने कहाँ लाकर पटका

अबस = बेकार
अफ़सुर्दा = उदासी
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अर्ज़ किया है

तेरी नादानीयों की इन्तेहा क्या ख़ूब है हमदम
तेरी इरफ़ान से 'निर्जन' यहाँ मौसम बदलते हैं

नादानियों : बचपना
इन्तेहां : सीमा
इरफ़ान : प्रतिभा

शुक्रवार, सितंबर 22, 2017

ज़रा सोचें

















मेरी एक फेसबुक मित्र ने यह व्यंग चित्र साँझा करते हुए इसका विरोध किया था और उनकी बात का समर्थन करते हुए मैं भी माता रानी का आहवान जोर से नहीं प्रेम और श्रद्धा के साथ करता हूँ। इसी के साथ राजू राजेश शुक्ल के बनाये इस व्यंग्य चित्र पर अपनी पुरज़ोर आपत्ति दर्ज करवाता हूँ और विरोध करता हूँ। मेरी बात शायद बहुत से लोगों को बुरी लग जाए, हो सकता है कई लोगों की जल जाए और वो राकेट बन जाएँ तथा कुछ लोग तो इस लेख के लिए मुझे धिक्कारने भी लग जायेंगे। शायद भाग्वाकरणी, धर्मांध और कट्टरवादी जैसी उपाधियों से सम्मानित भी करने लग जायेंगे। विपरीत राजनैतिक सोच वाले शायद यहाँ भी मोदी साहब को इस से जोड़ कर टीका टिपण्णी करने से बाज़ नहीं आयेंगे या अंधभक्त या कुछ और कहने लग जायेंगे तो कोई अचरज ना होग। आपने कबीरदास जी का ये दोहा तो पढ़ा-सुना ही होगा -

कंकर पत्थर जोड़ कर, मस्जिद लई बनाये
ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहिरा हुआ खुदाय

तो बांग देने की ये प्रथा यहाँ से शुरू हुई और देखा-देखि हिन्दूओं ने भी मंदिरों में, पंडालों में, धर्म स्थलों में, गली मोहल्लों में ध्वनिविस्तारक यंत्रों का प्रयोग करना शुरू कर दिया। हालाँकि इनके प्रयोग पर कोई आपत्तिजनक बात नहीं थी जब तक इनकी कर्णफोडू आवाज़ से आम जनता को किसी तरह का कोई नुक्सान नहीं था परन्तु समय के साथ गली मोहल्लों के आवारा, निकम्मों और नाकारा मुर्गों ने इन आयोजनों को अपनी बेहूदगी की बांग और टांग दोनों देना शुरू कर डाला। हर एक त्यौहार होली, दिवाली, गणपति पूजन, नवरात्रे आदि जैसे श्रद्धा के मौकों पर अपनी बेहयाई का नंगा नाच शुरू कर दिया। तेज़ आवाज़ में डीजे बजने लगे, लाउडस्पीकर चलने लगे, छिछोरे गानों की तर्ज़ पर भजन-गीत-संगीत बजने लगे और मदिरापान कर लफ़नडर नाचने लगे। यहाँ तक की कुछ तो अपनी ख़ुद की फटी आवाज़ में माइक पर चिल्ला-चिल्ला कर जनता का खून पीने लगे। तो भाई मैं तो इतना ही कहना चाहूँगा के खरबूज़े को देखकर ही खरबूज़ा रंग बदलता है पर यदि किसी सड़े हुए खरबूज़े को देखकर रंग बदलोगे तो तुम भी सड़ोगे ही मेह्कोगे नहीं। सनातन धर्म में हाथ जोड़ श्रद्धा और शांति के साथ प्रार्थना करना सिखाया गया है चिल्ला चिल्ला कर आसमान सर पर उठाना नहीं।

परन्तु एक बात तो सर्वव्याप्त और सर्वविदित है इंसान भले ही इस कुकृत्य से विचलित हो जाये, आग बबूला हो जाएं, आपा खो दें परन्तु यह सब आँखों के सामने होता देखते हुए भी प्रभु की स्थापित प्रतिमा के चेहरे पर नितांत प्रसन्नता के भाव ही होते हैं। उनके होठों पर सदैव मुस्कान ही छलकती रहती है और इतना सहकर भी उनके आशीर्वाद का हाथ सभी प्रकार के झंडूपंचारिष्टों पर समान बना रहता है। फिर क्यों इनके जैसे कलाकार अभिव्यक्ति की छूट की आड़ में ऐसे वाहियात व्यंग चित्र बनाकर ख़ुद अपने ही धर्म का अपमान करने में लगे रहते हैं। एक तरफ़ तो घटिया मानसिकता वाले सेक्युलर वादी/वामपंथी/दो कौड़ी के मानवाधिकारवादी/ छद्म दिखावेबाज़ देश और धर्म दोनों की हर तरफ़ से ख़ूब बजाने पर तुले हुए हैं और उसपर छौंक लगाने का काम ऐसे कलाकार करते हैं। धिक्कार है ऐसी मानसिकता पर जो मातारानी को इतना असहाय दर्शाती है। मातारानी शक्ति की प्रतीक हैं। ऐसी छोटी-मोटी बातों से यदि वो विचलित होने लग गईं तो उन्हें माँ दुर्गा कौन कहेगा। वो जगत जननी हैं इससे ज्यादा पीड़ा और दर्द का एहसास तो माताएं प्रसव के समय बर्दाश्त करती हैं। यहाँ कलाकार ने माता के साथ नारी का भी मखौल बना कर रख दिया है। यदि उन्होंने ज़रा सी फूँक भी मार दी तो समझो विश्व में प्रलय आ जाएगी। लगता है ये महाशय चण्डिका और माँ काली को भूले बैठे हैं। 

मेरे अनुसार यहाँ देवी माँ के स्थान पर कोई प्रताड़ित साधारण मनुष्य होना चाहियें था और देवी माँ उस पर अपना आशीर्वाद बनाते हुए मुस्कुरा रही हैं ऐसा होना चाहियें था। मैं तो राजू से कहूँगा कि वो अपनी इस त्रुटी को सही करें और इस व्यंग चित्र को इन्टरनेट और सभी जगहों से हटा लें। आप ख़ुद ही अपने आराध्य का ऐसे अपमान क्यों कर रहे हैं? सवाल बस यही है - मातारानी ऐसी सोच वालों को सद्बुद्धि प्रदान करें, ऐसी मेरी मनोकामना है, बाकी तो सब मोह-माया है...ख़ुद की अक्ल लगाओ और ख़ुद ही जवाब पाओ। यदि आप समझदार हैं, तो समझे तो ठीक समझे। नहीं समझे तो समय आने पर समझ जाओगे, और यदि समझने की गुंजाइश शेष बची ही नही हो तो ज़ोर से बोलो जय माता दी - वो सबका भला करती हैं तुम्हारा भी करेंगी।

#जय_माता_दी
#तुषाररस्तोगी
#क्रन्तिकारी_सनातन_विचारधारा
#क्रोधितविरोध
#हर_हर_हर_महादेव
#कट्टर_हिन्दू
#व्यंगचित्र_हटाओ
#आलोचना

शुक्रवार, अगस्त 11, 2017

एक शेर


उनके अलफ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला
इश्क़ उनसे है 'निर्जन' का यही अब फैसला
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे इश्क़ की इंतहा
हम अभी से क्या बताएं जो हमारे दिल में है

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बुधवार, जुलाई 26, 2017

उत्कंठा
























मैं, हर कविता को, एक प्रेमी की तरह,
अपने साथ मुलाक़ात करने ले जाता हूँ,
अपने शयनकक्ष में, अपने बिस्तर पर...

बड़ी आतुरता सुकून से रसपान करता हूँ,
व्याकुल अतिलोलुप की भाँती तेज़ी से,
उसके चेहरे को छू हथेलियों से थामता हूँ...

शब्दों की दरारों को, गले लगाता हूँ,
भावनाओं की हर स्नेही और उष्ण सांस,
'निर्जन', के कानों को उग्र सुनाई देती है...

बदन की ख़ुशबू जैसे, मंद बहते पन्ने,
गुनाहगार, स्वादिष्ट हस्तलिपि की,
मिठाई को चाटते रसीले पापी होंठ...

कोमल जीवन के, स्वाद से भरपूर,
जो कभी किसी को, पर्याप्त नहीं मिलता,
बेहद सरल, स्पष्ट, शालीनतापूर्वक वर्णित...

#तुषाररस्तोगी #निर्जन #उत्कंठा #हिंदी #कविता #ज़िन्दगी

एक शेर

सोमवार, मार्च 27, 2017

मोहब्बत होने लगी है



















लगता है मोहब्बत होने लगी है
ज़िन्दगी ये उनकी होने लगी है

चलते हैं साथ जिस रहगुज़र पर
जानिब-ए-गुलिस्ताँ होने लगी है

गुल-ऐ-विसाल है मुस्कान उनकी 
उफ़! जादा-ए-हस्ती होने लगी है

इश्क़ में उनके असीर हो गया हूँ
तौबा नज़र भी उनकी होने लगी है 

ख्वाबों में ही चाहे नींद मेरी अब
आगोश में उनके सोने लगी है

'निर्जन' है साहिल मंजिल वही है
ख़ुशबू में उनकी रूह खोने लगी है

लगता है मोहब्बत होने लगी है...

रहगुज़र - पथ
जानिब-ए-गुलिस्ताँ  - गुलाबों के बगीचे की तरफ़
गुल-ऐ-विसाल - मिलन के फूल
जादा-ए-हस्ती - ज़िन्दगी की राह
असीर - बन्दी
आग़ोश - आलिंगन

#तुषाररस्तोगी

सोमवार, फ़रवरी 06, 2017

सन्देश सदा ही देता है


















तृष्णा से बड़ा, कोई भोग कहाँ
सब पाने का लगा है, रोग यहाँ
अपने अपनों से क्या, बात करें
ख़ुदगर्ज़ हो गए, सब लोग यहाँ
पाषाणों में, जीवन को भरने की
कोशिश में, 'निर्जन' रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

है अंत तुम्हारा, उस चिट्ठी में
जो है, ऊपर वाले की मुट्ठी में
अब मान भी जा, ज़िद पर ना आ
कोई रहा ना बाक़ी, इस मिट्टी में
फिर क्यों, लड़ने की चाहत में
तू पल-पल बलता रहता है?
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

अब बाँध ज़रा, दिल को अपने
और थाम ज़रा, कल को अपने
अल्फ़ाज़ों को करके, मौन तेरे
और ढूंढ बचे यहां हैं, कौन तेरे
अब त्याग भी दे, इस अहम् को
जिसमें हर पल तू मरता रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

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