ऐ वादियों
मैं तुम से पूछता हूँ
झरनों में भी देखता हूँ
नदियों में ढूँढता हूँ
ये नयन न जाने
किसे खोजते हैं
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है
प्रभाकर जब आएगा
चमक उठेगा मन
डोल उठेगी आत्मा
पर्वतों पर कूदती
झरनों को लूटती
सरिता से फूटती
रौशनी समेटे
तब 'निर्जन'
दूंगा अंधियारे को सज़ा
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है
अंधियारे को सज़ा
जवाब देंहटाएंकिसकी सज़ा
कैसी सज़ा
आकुल क्यूँ हो
कभी न कभी प्रभात की किरने हमारी जिंदगी में फूटेगी ही,बहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सुंदर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : बेटियाँ,
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर एंव बेहतरीन रचना तुषार जी थैंक्स।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत काव्य रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंrsundar rachna, gahan bhav
जवाब देंहटाएंbehatareen rachna ,bahut khoob
जवाब देंहटाएंजिंदगी की खुशबु से भरी बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर तुषार जी! बधाई आपको!
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जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
बहुत खूब ... ये सजा किसी की नहीं बस खेल है प्राकृति का ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंकब शब्दों में बहुत कहने को बैचेन फिर बात कहने में सफल सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूबबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंये किसकी सजा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
मन को छूती हुई
बधाई
आग्रह हैं पढ़े
तपती गरमी जेठ मास में---
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