शुक्रवार, सितंबर 14, 2012

ख्वाबों में कहीं

खोया रहा मैं,
सवालों में कहीं
गुम हूँ मैं,
आसमानो में कहीं
सैकड़ों कारवां गुज़र  गए
निगाहों से मेरी
पर डूबा रहा मैं
ख्वाबों में कहीं

ख्वाहिशों का सैलाब कुछ और ही था
जब उम्मीदों का दिया रोशन था
करवाटो में ही पलट गया हो
कई सदियों का फासला कहीं
सैकड़ों कारवां गुज़र  गए
निगाहों से मेरी
पर डूबा रहा मैं
ख्वाबों में कहीं

खुद को पाने की जूस्तजू में 'निर्जन'
निकला था इस सफ़र पे मैं 
लौट ना पाया अब तक मुसाफिर
खोया रहा बीती यादों में कहीं
सैकड़ों कारवां गुज़र  गए
निगाहों से मेरी
पर डूबा रहा मैं
ख्वाबों में कहीं