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शुक्रवार, जनवरी 31, 2014

रात के आगोश में





















रात के आगोश में...

छा रहीं मदहोशियाँ
धीमी सरसराहटें
कर रहीं सरगोशियाँ
ख़ामोशी की ज़बां
कहती है कहकशां
तेरी वो गुस्ताखियाँ
जाज़िब बदमाशियाँ

रात के आगोश में...

बातें बस यूँ ही बनीं
उसने जो कुछ कही
उन बंद होटों से सही
दिल से इबादत यही
कर जज्बातों को बयां
जुस्तजू-ए-ज़ौक़ रही
मौन रह सब मैंने सुनी

रात के आगोश में...

चलती मुझसे गुफ़्तगू
छोड़ कर सोने चली
भूल ख्वाबों से मिली
'निर्जन' बे कस बैठा
बे क़द्र रातें कोसता
लफ़्ज़ों को सोचता
ज़ह्मत को परोसता

रात के आगोश में...

जाज़िब : मनमोहक, आकर्षक
जुस्तजू : खोज, पूछ ताछ, तलाश
ज़ौक़ : स्वाद
बे कस : अकेला, मित्रहीन
बे क़द्र : निर्मूल्य
ज़ह्मत : मन की परेशानी, विपदा, दर्द