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मंगलवार, सितंबर 16, 2014

मानव - मानवता



















बढ़ा हाथों को अपने झुका दो आसमां धरती पर
चीर सीना पाषाण का नदियाँ बहा दो पृथ्वी पर
थरथरा दो सब दिशाएं तुम्हारी एक हुंकार पर 
प्राणों की आहुति सजा दो माटी की पुकार पर

प्रतिरोध कोई आड़े ना आए राह में बढ़ने पर
पाठ मुश्किलों को पढ़ा दो ठोकरों की मार पर
सफलता कभी मिलती नहीं है यारों मांगने पर
जीत को महबूबा बना लो खेल अपने मान पर

कोई हँसे ना अमन और शांति की बातों पर
दुश्मनों को ये बता दो एक ही ललकार पर
डरना फितरत में नहीं है शांति के नाम पर
डर को आईना दिखा दो क्रान्ति के दाम पर

फूल बंजर में खिला दो पृथ्वी के हर कोने पर
मेहनत कर सोना उगा दो खेतों की छाती पर
अब तो ज़रा मरहम लगा दो देश के ज़ख्मो पर
अब तो भरोसा जगा दो इंसानों का इंसानों पर

भेद-भाव को त्याग भाईचारे को अपनाने पर
जनता के ह्रदय में प्यार का भाव जगाने पर
जाति,ऊँच,नीच,भाषा,धर्म की बेडी तोड़ने पर
'निर्जन' देता ज़ोर मानव को मानवता से जोड़ने पर

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, अक्तूबर 11, 2013

वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे



वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे
इसके फ़रेब की आंधी में उजड़ जाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे

झूठ और धोखे की फितरत का ये बाशिंदा है
ये तो बस जनता है हर हाल में भी जिंदा है
काम क्यों कर दे वो कल जिस पर शर्मिंदा हो
तुम जो शर्मिंदा हुए देश को भी झुकाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे

क्यों कोई चोर अब देश का मेहमान रहे
घूस खाना है इमां इसका ये बदनाम बड़े
राजनीति में ये उम्रभर तो बेईमान रहे
सर पे बैठाओगे इसको तो पछताओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे

एक ये क्या अभी बैठे हैं लुटेरे कितने
अभी गूंजेंगे गुनाहों के फ़साने कितने
पार्टियाँ तुमको सुनाएंगी तराने कितने
क्यों समझते हो बदलाव ये कल लायेंगे

वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे
इसके फ़रेब की आंधी में उजड़ जाओगे
वोट इसको जो दिया तुमने तो क्या पाओगे 

शुक्रवार, सितंबर 06, 2013

एक दिन देश के नाम - स्वराज मार्ग (स्वयं सेवी संस्था) द्वारा समर्पित एक दिवस देश और देश वासियों के नाम


























































स्वराज मार्ग की छटा नई
एक शाम देश के नाम रही
हर दिल से धारा बही वहीं
जन जन हैं कहता खूब रही

बस जन सेवा की इच्छा से
हर एक व्यक्ति जुड़ा कहीं
बूँद बूँद से बन कर साग़र
नव चेतना सब में लीन हुई

पुरषार्थ से है किया सृजन
जन मानस हो रहे मगन
निशुल्क चिकित्सा सेवा से
मानव ह्रदय में लगी लगन

मित्र वकील भी खूब आये
जनता को अपनी ये भाये
काले सफ़ेद ने नाम किया
लोगों से मिल काम किया

संध्या बेला फिर घिर आई
नव क्रांति स्वराज की लाई
नव अंकुरित शिशुओं ने भी
अपनी प्रतिभा जब दिखलाई

ज्यों ही संध्या विस्तार हुआ
कवि कटार को धार दिया
आगाज़ कवि सम्मेल्लन का
फिर शंखनाद के साथ हुआ

कविता की 'निर्जन' बात करे
रसीले हास्य से शुरुवात करें
वीर, देश प्रेम, श्रृंगार, व्यंग
सभी रसों का रसपान किया

समापन समय जब आया
खुशियाँ और ग़म था लाया
विदा सब को सप्रेम किया
दिल में चित्रों को फ्रेम किया

जन स्वराज फिर लायेंगे
हम लौट के वापस आयेंगे
स्वराज मार्ग पर चलकर
हम देश भविष्य बनायेंगे 

शुक्रवार, अगस्त 09, 2013

दिल से जुड़े हुए लोग





















आसमां में उड़े हुए लोग
हवा से भरे हुए लोग
संतुलन की बातें करते हैं
सरकार से जुड़े हुए लोग

भीड़ में खड़े हुए लोग
अन्दर तक सड़े हुए लोग
जीवन की बातें करते हैं
मरघट में पड़े हुए लोग

मुद्रा पर बिके हुए लोग
सुविधा पर टिके हुए लोग
बरगद की बातें करते हैं
गमलों में उगे हुए लोग

भोग में लिप्त हुए लोग
चरित्र से बीके हुए लोग
पवित्रता की बातें करते हैं
गटर से उठे हुए लोग

'निर्जन' मिले जो भी लोग
धरती पर झुके हुए लोग
देशभक्ति की बातें करते हैं
दिल से जुड़े हुए लोग 

सोमवार, अगस्त 05, 2013

कब कहलायेगा देश महान ?





















मेरा भारत है महान
हर एक बंदा परेशान
जनता इसकी है हैरान
क्या यही है इसकी शान ?

नेता सारे हैं बेईमान
करते सबका नुक्सान
हरकतों से सब शैतान
फिर भी पाते क्यों ईनाम ?

नारी रूप दुर्गा समान
करुणा ममता की खान
घुटती रहती अबला जान
कब लेगी वो इन्तकाम ?

युवा देश की पहचान
चलता अपना सीना तान
खटता रहता सुबह शाम
मिलता नहीं उसे क्यों मान ?

फौजी देते हैं बलिदान
फिर भी पाते न सम्मान
परिवार उनके गुमनाम
घर उनके है क्यों वीरान ?

चापलूसों की देखो शान
करते अपना जो गुणगान
बनते दिनों दिन धनवान
उन गद्दारों का क्या ईमान ?

आम जनता छोटी जान
पालन करती हर फरमान
इज्ज़त पर देती है जान
क्या यही है इसका काम ?

'निर्जन' सोच सोच हैरान
कैसे बढ़ेगा देश का मान ?
कब टूटेगी लगी ये आन ?
कब कहलायेगा देश महान ?

गुरुवार, अगस्त 01, 2013

लोगों की जान बचाएं














चम्मच चमचा जोड़, पार्टी लई बनाये
बन नेताजी अब, तेवर हैं दिखलाये
तेवर हैं दिखलाये, छुरी, कांटे भी है
जनता का लें ट्रस्ट, देते धोखा ही हैं

बैठ सवारी कार की, मारुती में आये
शुरुवात में पार्टी, कंगाली दिखलाये
कंगाली दिखलाये, मंशा स्वार्थी इनकी
ज्योही नकदी पाए, आ गई हौंडा सिटी

कहे वचन पुरजोर, करेंगे ये भी वो भी
करेका आया वक़्त, दिखाए ठेंगा ये भी
दिखाए ठेंगा ये भी, थे बड़े ही कपटी
तुरंत उछल बैठे, कुर्सी झट से झपटी

गलत नीति अपनाये, करते मनमानी
प्रत्याशी के रूप में, खड़े सेठ सेठानी
खड़े सेठ सेठानी, खीसा इनका भारी
कार्यकर्ता हैं त्रस्त, आई ये नई बीमारी

बीमारी दूर करे की, दवा जो बतलाई  
नेता हुए रुष्ट सबको, आँख दिखलाई
आँख दिखलाई, अहं की हुई लड़ाई
कार्यकर्ताओं से अपने, मुंह की खाई

गए स्वराजी भिड़, देखा न आगे पीछे
अब देखो नेताजी, आते हैं कब नीचे
आते हैं कब नीचे, गलत नीति दुखदाई
कोई तो समझाए, अक्ल क्या भैंस चराई

पार्टी का नुक्सान, बचना अब मुश्किल
छवि हो रही ख़राब, गिरेगी तिल तिल
गिरेगी तिल तिल, आओ सब मिल जाएं
ऐसे भ्रष्ट नेता से, लोगों की जान बचाएं

डाले नहीं हथियार, लड़ेंगे मिलकर
नेताजी मांगेगे माफ़ी, आगे चलकर
आगे चलकर, आएगा मोड़ एक ऐसा
तब नेताजी पाएंगे, जब जैसे को तैसा 

रविवार, जुलाई 14, 2013

ऐसे हैं हम





















आदत में हम अपनी
स्वराज ले भिड़ते हैं
ऐसे स्वाराजी है हम

खून में हम अपने
गर्मी ले बढ़ते हैं
ऐसे जोशीले हैं हम

बदल सके जो हमको
ज़माना नहीं बना वो
ऐसे हठीले हैं हम

आसमानों में परिंदों
से आजाद उड़ते हैं
फौलादी हवाओं को
ले साथ फिरते हैं
गहराई सागरों की
मापते फिरते हैं
दोस्त हो या दुश्मन
गर्मजोशी से मिलते हैं

आँखों में हम अपनी
सपने ले जीते हैं
ऐसे मतवाले हैं हम

जिगर में हम अपने
आग ले जलते हैं
ऐसे लड़ाकू हैं हम

दिल में 'निर्जन' अपने
उम्मीद ले चलते हैं
ऐसे आशावादी हैं हम

सोमवार, जुलाई 08, 2013

'स्वराज' की हुंकार















अंतर्मन चीत्कार कर
बहिर्मन प्रतिकार कर
प्रघोष महाघोष कर
निनाद महानाद कर
नाद कर नाद कर
'स्वराज' का प्रणाद कर

साम, दाम, दण्ड, भेद
ह्रदय में रह न जाये खेद
भुलाकर समस्त मतभेद
सीना दुश्मनों का छेद
प्रहार कर प्रहार कर
'स्वराज' की दहाड़ कर

मुल्क अब भी गुलाम है
चाटुकारी आम है
काट चमचो का सर
धरती को स्वाधीन कर
उद्घोष कर उद्घोष कर
'स्वराज' की हुंकार भर

कदम रुकेंगे नहीं
कदम डिगेंगे नहीं
अटल रहे अडिग रहे
सर उठा कर कहे
बढ़ चले बढ़ चले
'स्वराज' पथ पर चढ़े

रणफेरी की ललकार है
मच रहा हाहाकार है
रावणों की फ़ौज है
भक्षकों की मौज है
मार कर मार कर
'स्वराज' का वार कर

शनिवार, जून 29, 2013

'स्वराज' लिखूंगा












कलम उठा दीवारों पर, 'स्वराज' लिखूंगा
अपने दिल से उठती हर, आवाज़ लिखूंगा

मशाल उठा हाथों में, धर्म का ज्ञान कहूँगा
अपने शब्दों से क्रांति का, मान कहूँगा

बातें न कर के, अब बस मैं कर्म करूँगा
राष्ट्र-हित में सही है जो, वह धर्म करूँगा

गीता का पाठ, सिखाता है देश पर मिटना
भिड़ना दुश्मन से, और सर काट कर लड़ना  
 
अब न बैठो ठूंठ, समय मत और गंवाओ
युद्ध करो जवानों, जंग का बिगुल बजाओ

गर्म खून में जोश है कितना, कितनी है रवानी
'निर्जन' हो जा तयार, भारत की है लाज बचानी