सवाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सवाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, अगस्त 15, 2015

भारत स्वतंत्र हो गया है























लो फ़िर से आया कहने को स्वतंत्रता दिवस
पर मैं हूँ अड़ियल इसे ना मानने को विवश

क्या सच में अपना देश हो गया आज़ाद है?
फ़िर क्यों खत्म नहीं होता सेक्युलरवाद है

कल पकिस्तान, बांग्लादेश काटा था आज तेलंगाना है
तरीका वही है बटवारा कर देश को बेच खाना है

आज़ादी का मोल यहाँ कुछ लोग क्या ख़ूब चुकाते हैं
गरिमा हिंदुस्तान के झंडे की जूतों में रौंदते जाते हैं 

काश्मीर की आग़ में मुल्क को भड़काना और जलना है
सेक्युलरवाद के चूल्हे पर राजनैतिक मंसूबा पकाना है

करते हैं तार-तार अस्मत आतंकी भारत माता की यहाँ
वो पीटते हैं डंका ईमानदारी-भाईचारे का बैठकर वहाँ

सामने आकर जो भाई कहकर गले से लगते हैं
ख़ंजर लिए आस्तीन में  वही पीछे से वार करते हैं

वो जो बनाते हैं आपसे बातें मीठी कई-कई-कई
दिल-दिमाग-सोच से होते हैं सच में शातिर लोग वही

जहाँ देश को बेचने वाला ही आज देश पे राज करता है
वहाँ देशभक्त कोख़ का जाया बेमौत सूली पर चढ़ता है

आतंक और घोटालों में बढ़ गया है देश बहुत आगे
वाह..! देखो तो लोगों के इमां सच में हैं कितने जागे

फ़र्ज़ी, दोगले, भ्रष्ट, धूर्त, पाखंडी खच्चर ज़ाफ़रान उड़ा रहे हैं
देशभक्त, इमां वाले, उसूल पसंद घोड़े सूखी घास चबा रहे हैं

नक़ाबपोश, मतलबपरस्त, झूठा हर एक शख्स दिखता है यहाँ
कभी सच की मूरत, न्याय पसंद महाराजा हरिश्चन्द्र जन्मे थे जहाँ

बे-ईमानी, बहसखोरी, लड़ने, भिड़ने को हर एक आमादा है
गोया चुनाचे सच को सच मान लेने में किसी का क्या जाता है

क़ानूनी शिकंजे में जकड़ा कोई मासूम भूख-प्यास से मरा जा रहा है
वहीं एक नापाक आतंकी यहाँ दामाद बनकर पकवान उड़ा रहा है

आज लहू सबका बदरंग, सफ़ेद, ठंडा, मिलावटी हो गया है
देशभक्ति वाला वो जज्बा अब तक़रीबन खत्म ही हो गया है

क्या ऐसी प्रगति की रफ़्तार ही उम्दा मिसाल देती है?
जो भी हो भारत माँ तो आज भी फटेहाल ही रहती है

अपनी खुदगर्ज़ी की कब्र में हर एक बाशिंदा चैन से सो गया है
लो सुनो अभी भी वो कहते हैं 'निर्जन' भारत स्वतंत्र हो गया है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, मार्च 26, 2015

एक सवाल ?


















सांस लेना
प्रार्थना करना
बोलना
खाना
पीना
उठना
बैठना
हँसना
रोना
नाचना
गाना
पढ़ना
लिखना
लड़ना
बहस करना
खेलना
काम करना
कलाकारी
रंग भरना
प्यार करना
शोक करना
चोट लगना
खून बहना

जीना
मरना

यह समस्त प्राणीयों में
स्वाभाविक है

'निर्जन' प्रश्न सभी से यही कि
जाति,
रंग,
ऊँच,
नीच,
कामुकता,
धर्म,
लिंग,
के आधार पर
हम आपस में
एक दुसरे को
इतना अलग कैसे करते है ?

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जनवरी 25, 2015

ज़िक्र-ए-इश्क़














गुफ़्तगू-ए-इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
हम समझते ही रह गए उन्हें ख़यालों की तरह

लोग करते रहे ज़िक्र-ए-जुनूं दीवानों की तरह
अरमां जब टूट गए थे मय के प्यालों की तरह

फ़लसफ़ा-ए-इश्क़ उम्मीद है बारिशों की तरह
दिल जो भी भीगा रोशन रहा उजालों की तरह

अंजाम-ए-मोहब्बत जागा फिर वफ़ा की तरह
वक़्त ने पेश किया हमको मिलासलों की तरह

ज़िक्र-ए-इश्क़ जब होगा वां बहारों की तरह
याद आएगा 'निर्जन' उन्हें हवालों की तरह

वां - वहां

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, मार्च 14, 2011

उसकी यादें














ए मौज-ऐ-हवा अब तू ही बता
वो दिलदार हमारा कैसा है ?

जो भूल गया हमको कब से
वो जान से प्यारा कैसा है ?

क्या उसके चहकते लम्हों में
कोई लम्हा मेरा भी होता है ?

क्या उसकी चमकती आँखों में
मेरी याद का सागर बहता है ?

क्या वो भी मेरी तरहां यूँ ही
शब् भर जागा करता है ?

क्या वो भी साए-ए-रहमत में
मुझे रब से माँगा करता है ?

गर ऐसा नहीं तो तू ही बता
दिल याद उसे क्यों करता है ?

वो बिन तेरे जो खुश है अगर 
फिर 'निर्जन' हर पल क्यों मरता है ?