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सोमवार, नवंबर 13, 2017

अर्ज़ किया है

जुगनुओं से क्या मिले हम भी चराग हो गए 
नाज़नीन दिलरुबा के दिल का ख्व़ाब हो गए 
यूँ तो अता किये उन्होंने नज़राने कई 'निर्जन'
कातिलाना इनायत से उनकी आबाद हो गए

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गुरुवार, नवंबर 09, 2017

अर्ज़ किया है

बेबस, बेकस, बेकार, बेकरार ऐसे क्यों हैं
ये लोग कुछ ज्यादा ही होशियार क्यों हैं
हर एक चेहरे पर एक मुखौटा है 'निर्जन'
इन लोगो के ज़हर में बुझे किरदार क्यों हैं

#तुषाररस्तोगी #निर्जन #तमाशा_ए_ज़िंदगी #लोग #मुखौटा #ज़हर #yqdidi 

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शुक्रवार, नवंबर 03, 2017

अर्ज़ किया है

इश्क़ परखने का हुनर, हम बख़ूबी जानते हैं
कौन है आशिक़-ए-बुताँ, हम बख़ूबी जानते हैं
आशिक़-ए-बे-दिल के, बैत-ए-आशिक़ाना में
कौन है फ़र्द-ए-बशर, हम बख़ूबी जानते हैं

आशिक़-ए-बुताँ - beauty lover
आशिक़-ए-बे-दिल - heartless lover
बैत-ए-आशिक़ाना - temple of love
फ़र्द-ए-बशर - unique human being

#yqdidi #निर्जन #तुषाररस्तोगी #तमाशा_ए_जिंदगी #इश्क़ #उर्दूशायरी #आशिक़

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गुरुवार, नवंबर 02, 2017

अर्ज़ किया है

अबस बैठना बन गया अफ़सुर्दा होने का सबब 'निर्जन'
क़िस्मत भी कितनी बेरहम है इसने कहाँ लाकर पटका

अबस = बेकार
अफ़सुर्दा = उदासी
#yqdidi #निर्जन #तुषाररस्तोगी #तमाशा_ए_ज़िंदगी #किस्मत #बेरहम #अफ़सुर्दा 

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अर्ज़ किया है

तेरी नादानीयों की इन्तेहा क्या ख़ूब है हमदम
तेरी इरफ़ान से 'निर्जन' यहाँ मौसम बदलते हैं

नादानियों : बचपना
इन्तेहां : सीमा
इरफ़ान : प्रतिभा

गुरुवार, दिसंबर 25, 2014

शायरी

इश्क़ परखने का हुनर, हम बख़ूबी जानते हैं
कौन है आशिक़-ए-बुताँ, हम बख़ूबी जानते हैं
आशिक़-ए-बे-दिल के, बैत-ए-आशिक़ाना में
कौन है फ़र्द-ए-बशर, हम बख़ूबी जानते हैं

*आशिक़-ए-बुताँ - beauty lover
*आशिक़-ए-बे-दिल - heartless lover
*बैत-ए-आशिक़ाना - temple of love
*फ़र्द-ए-बशर - unique human being

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, सितंबर 18, 2014

शेर-शायरी

तू कहे तो फलक की जगमगाहट तेरे आँचल में उतार दूं
तेरी हर उम्मीद को मान कर धर्म जीवन भर सम्मान दूं
दिल से तमन्ना है हर ख़ुशी को तेरी मैं चाहत से संवार दूं
जो तू कहे 'निर्जन' इस प्यार पर जान हँसते हुए निसार दूं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, जनवरी 20, 2014

क्या कहूँ
















अमा अब क्या कहूँ तुझे हमदम
नूर-ए-जन्नत, दिल की धड़कन 
जान-ए-अज़ीज़, शमा-ए-महफ़िल 
गुल-ए-गुलिस्तां, लुगात-ए-इश्क़
हर दिल फ़रीद, दीवान-ए-ज़ीस्त
अलफ़ाज़ होते नहीं मुकम्मल मेरे 
पुर-सुकून शक्सियत तेरी जैसे 
महकती फ़ज़ा-ए-गुलशन 'निर्जन'
हो सुबहो या शामें या रातों की बेदारी  
तुझको देखा आज तलक नहीं है
फ़िर भी 
तुझको सोचा बहुत है हर पल मैंने.... 

लुगात : शब्दकोष, dictionary
दीवान : उर्दू में किसी कवि या शायर की रचनाओं का संग्रह, collection of poems in urdu
ज़ीस्त : ज़िन्दगी, life
अलफ़ाज़ : शब्द, words
मुकम्मल : पूरे, complete
पुर-सुकून : शांत, peaceful/tranquil
बेदारी : अनिद्रा, wakefullness

मंगलवार, दिसंबर 24, 2013

एक शाम उसके नाम




















‘निर्जन’ जैसे चाहने वाले तुमने नहीं देखे 
जिगर में आग ऐसे पालने वाले नहीं देखे 
यहाँ इश्क़ और इमां का जनाज़ा सब ने देखा है 
किसी ने भी दिलजलों के दिल के छाले नहीं देखे
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तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ 
तुझसे 'निर्जन' क्या कहे क्या हैं 
ठहर जाएँ तो सागर हैं 
बरस जाएँ तो शबनम हैं 
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ना हों बंदिशें कोई इश्क़ के बाज़ारों में 
कोई माशूक ना होगा
'निर्जन' फ़िर भी फ़नाह होगा 
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सुबहें हसीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
यामिनी रंगीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद 
हर शय में एक नया रंग है अब 'निर्जन' की 
ज़िन्दगी से यारी हो गई तुझसे मिलने के बाद
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आँखों ही आँखों में उफ्फ शरारत हो जाती है 
दिल ही दिल में मीठी सी अदावत हो जाती है 
कैसे भूल जाए 'निर्जन' तेरी रेशमी यादों को 
अब तो सुबहों से ही तेरी आदत होती जाती है 
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फ़नाह हुई जगमगाती वो सितारों वाली रौशन रात 
आ गई याद फिर से तेरी मदहोश नशीली वो बात
यूँ तो हो जाती है 'निर्जन' ख्वाबों में उनसे मुलाक़ात
बिन तेरे मुश्किल है होना एक भी दिन का आगाज़
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उसके पूछने से बढ़ जाती है दिल की धड़कन
वो जब कहती है 'निर्जन' ये दिल किसका है 
सोचता हूँ कुछ कहूँ या बस खामोश रहूँ ऐसे 
मेरी आँखों में लिखे जवाब वो पढ़ लेगी जैसे
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तेरी हर अदा पे अपने दिल को संभाला करता हूँ 
तेरी जुदाई में शाम-ए-तन्हाई का प्याला भरता हूँ 
एक तेरी जुस्तजू में ही 'निर्जन' आबाद है अब तक
जो तू नहीं तो कुछ नहीं ये जीवन बर्बाद है तब तक 
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तेरी ज़ुल्फ़ के साए में कुछ पल सो लेता था 
सुकून पा लेता था 'निर्जन' दर्द खो लेता था 
जो तू गयी तो जहाँ से दिल बेज़ार हो गया 
बंदा मैं भी था काम का अब बेकार हो गया
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ठण्ड के मौसम में उसकी शोखियाँ याद आती हैं 
मचल जाता है 'निर्जन' जब अदाएं याद आती है
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मेरे दिल की गहराइयों में तेरा प्यार दफ़न रहता है 
जहाँ भी रहता है 'निर्जन' अब ओढ़े कफ़न रहता है
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चांदनी मांगी तो रातों के अंधेरे घेर लेते हैं 'निर्जन'
मेरी तरहा कोई मर जाये तो मरना भूल जायेगा 
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इश्क़ बढ़ने नहीं पाता के हुस्न डांट देता है 
अरे हमदम तू 'निर्जन' को कब तक आजमाएगा  
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हाथ भी छोड़ा तो कब, जब इश्क़ के हज को गए 
बेवफ़ा 'निर्जन' को तूने, कहाँ लाकर धोखा दिया
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दोस्ती कहते जिसे हैं मेल है एहसास का 
ज़िन्दगी की सुहानी सुबह के आगाज़ का 
रात भर सोचोगे तुम 'निर्जन' कहता यही 
दोस्ती में, 
दोस्त कहलाने की अगन अब जग ही गई
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जो टूटे दिल तेरा 'निर्जन' 
तो शब् भर रात रोती हैं 
ये दुनिया तंग दिल इतनी 
दिलों में कांटे चुभोती है 
के ख़्वाबों में भी मिलता हूँ 
मैं हमदम से भी इतरा कर 
तेरी महफ़िल आकर तो 
बड़ी तकलीफ होती है