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मंगलवार, दिसंबर 02, 2014

क़िस्मत




















मैं तो हर शब् से एक
रिश्ता बनाता गया था यूँ ही
जहाँ से भी गुज़रा यादों का
दरिया बहाता गया यूँ ही
पर मेरी क़िस्मत का
लिखा भी अजीब था 'निर्जन'
गुनेहगार कोई और था, और
सज़ा मैं पाता गया यूँ ही
हाँ, आज मैं ये तस्लीम करता हूँ
कि मुझे मोहब्बत नहीं मिलती
मगर, ओ मेरी सोच के मेहवार
कभी यह भी ज़रा सोचो कि
जो तुम को याद करता हूँ
तो खुद को भूल जाता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, अगस्त 28, 2014

जानबूझकर















सिलसिला-ए-गुफ़्तगू चलता रहा तुमसे
इत्तफ़ाक नहीं करता था मैं जानबूझकर

साथ चलते यूँ ही छू जाता है हाथ तुमसे 
या तुम छू लेती हो मेरा हाथ जानबूझकर

जानता हूँ सड़क पर चलना आता है तुमसे 
थामता हूँ हाथ तुम्हारा मैं भी जानबूझकर

बस गुज़र रहा था, मिलने चला आया तुमसे
मुलाकातें चाहता हूँ मैं मुसल्सल जानबूझकर

'निर्जन' हाल-ए-दिल मेरा छिपा नहीं है तुमसे
ना जाने क्यों करता हूँ इनकार मैं जानबूझकर

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, फ़रवरी 10, 2014

तू क्या जाने
















तू क्या जाने इस दिल में
तेरी बेक़रारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी दुश्वारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी खुमारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी जिम्मेदारियां हैं क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी उन्सियत है क्या

तू क्या जाने इस दिल में
तेरी शक्सियत है क्या

तू क्या जाने इस दिल में
'निर्जन' धड़कन है क्या

ये दिल समझाता तुझको
कभी तू दिल को समझा