आज एक मई है, दुनिया
मजदूर दिवस मना रही है
कोई उनसे जाकर भी पूछे
बेचारी मज़दूर की कौम, क्या
इस दिन से कुछ पा रही है ?
एक दिन मनाने से, क्या
भूखे पेट की आग
बुझ पा रही है ?
आज भी वही
बाजरे की रोटी,
लस्सन की चटनी,
और सूखी प्याज़
थल्ली में परसी जा रही है
क्या अपनी आब में ये
कोई इजाफा पा रहे हैं ?
अपने बच्चों के भविष्य
के लिए जगह जगह
हाथ फैला रहे हैं
हर पल हक़-इन्साफ
पाने को पिसते-तरसते
जा रहे हैं
सुना था कभी कहीं पर
इनको घर दिए जा रहे हैं
चोरों की कॉम सरकारी
अब रास्ते समझा रहे हैं
जिनको देखो, वो ही
लाला, पीले, नीले
सलाम ठोके जा रहे हैं
खा-पी हाथ चटका कर
बस आगे चले जा रहे हैं
मज़दूर 'कॉमरेड' बतला
शोषण किये जा रहे हैं
झूठे वादे, झूठी आस
झूठे सब्ज़बाग दिखा
उल्लू पर उल्लू
बना रहे हैं
बस औपचारिकता
के चलते
मज़दूरों की खातिर
मज़दूरों से ही
मज़दूर दिवस को
मज़दूरी करवा रहे हैं
सुंदर प्रस्तुति मजदुर दिवस पर
जवाब देंहटाएंमजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस पर सार्थक
उत्कृष्ट प्रस्तुति
यही हकीकत है.
जवाब देंहटाएंरामराम
सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंपूरी तरह से सहमत हूँ
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत ही सटीक रचना,मजदूरों की स्थिति बद से बदतर होता जा रहा है.
जवाब देंहटाएंsachchi shubhkmanayen to tab hogi jab aam majduron ke liye kuchh kar payen..
जवाब देंहटाएंsaathak rachna...
yahi hota aa raha hai .....
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सही कहा.. मजदुर दिवस मानना मात्र दिखावा है.
जवाब देंहटाएं(भूखे पेट का आग) की जगह (भूखे पेट की आग) कर दें।
जवाब देंहटाएंएक दम सही कहा..मजदूर दिवस सिर्फ दिखावा रहगया हैं
जवाब देंहटाएंहरतरफ हर जगह मजदूर ही डूबता है मरता है ...बहुत सटीक रचना ..
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस भी महज औपचारिक दिन बन कर रह गया है. अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही बात…
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदुखद किन्तु सच.
जवाब देंहटाएंसर्वोत्त्कृष्ट, अत्युत्तम लेख बधाई हो
जवाब देंहटाएंहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये इसे एक बार अवश्य देखें,
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MY BIG GUIDE
मजदूर दिवस की सच्चाई का एक सुन्दर व्यंग प्रस्तुत किया है।
जवाब देंहटाएंविन्नी