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रविवार, जुलाई 12, 2015

यूं आशार बन जाते हैं



















जब खून के रिश्ते ही दर्द पहुंचाते हैं
तब दिल के ज़ख्म नासूर बन जाते हैं
खून-ए-जिगर भी रोता है ज़ार-ज़ार
रिसते खून से यूं आशार बन जाते हैं

जब अपने ही एहसासहीन हो जाते हैं
अपनों के दर्द से आँख मूँद कतराते हैं
कड़वे बोल भोंक देते हैं दिल में खंजर
दिल के घाव से यूं आशार बन जाते हैं

जब प्यार भरे हाथ साथ छोड़ जाते हैं
तब सरपरस्त ही राहों में भटकाते हैं
दर-ब-दर जब फिरता हैं मारा-मारा
अकेले पलों से यूं आशार बन जाते हैं

जब जन्मदाता बेपरवाह हो जाते हैं
और अपने खून के आंसू रुलाते हैं
हाल-ए-दिल बताएं ये किसे अपना
ऐसे दर्द से यूं आशार बन जाते हैं

--- तुषार राज रस्तोगी ---