यारों इस बरस
तो गर्मी खूब है
इसी लिए अपने
दिमागी की बत्ती
एकदम फ्यूज है
कशमकश में
अपनी ज़िन्दगी है
दिल का करें
वो भी कन्फूज है
कनेक्ट करने की
जो कोशिश की
हर कनेक्शन का
फ्यूज भी लूज़ है
आलम अब तो
ज़िन्दगी का जे है की
अपनों के साथ भी
डिस-कनेक्शन
हो रहा है
कहीं भी कुछ भी
क्लिक नहीं हो रहा है
जीवन के इस मोड़ पर
'निर्जन' तुझको ही क्यों
कठिनाइयाँ मिल रही हैं
भाग्य, समय, मानव
सब एक साथ मिलकर
चौक्कों-छक्कों सा
तुझे दबादब धो रहे है
गॉड जी के यहाँ भी
हो रहा है इलेक्शन
अपने जो खास थे
दिल के पास थे
बचपन में गुज़ारे
लम्हे जिनके साथ थे
चल दिए वो भी
करवा कर सिलेक्शन
उम्र आने से पहले ही
भर आये हैं यह
नॉमिनेशन फार्म
ताख पर रख कर
ज़िन्दगी के सारे नॉर्म
हो लिए अचानक से
गो, वेंट, गॉन
मैं खड़ा देखता रहा
बस हाथ मलता रहा
जीवन के मोती रहे
हाथों से मेरे रेत की
भांति फिसलते
सोचता हूँ बस
बैठ कर अकेला
अपने ही ऐसे
धोखेबाज़
क्यों हैं निकलते ?
आज कल अपने ही ज्यादा धोखेबाज निकलते हैं,बहुत ही सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसच में धोखेबाज़!! बढ़िया रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंकांग्रेस के कारण।
जवाब देंहटाएंHAPPY MOTHER’S DAY !
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 13/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
शुक्रिया भाई |
जवाब देंहटाएंछोटे छोटे चरणों की पड़ व छन्द मुक्त व्यंग्य अच्छे हैं !
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअपनों को ही पता होता है कौन सा धोखा जानलेवा है ..... बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंसादर !
bhaiya jee :)
जवाब देंहटाएंधोखेबाजों का कोई अलग गाँव घर नहीं होता तभी तो वे अपने ही निकल आते हैं ...
जवाब देंहटाएंसर्वोत्त्कृष्ट, अत्युत्तम, बहुत सुन्दर रचना बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंहिन्दी तकनीकी क्षेत्र कुछ नया और रोचक पढने और जानने की इच्छा है तो इसे एक बार अवश्य देखें,
लेख पसंद आने पर टिप्प्णी द्वारा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
MY BIG GUIDE
बहुत ही सटीक व्यंग्य , बहुत अच्छा लगा ये सब पढ़कर , शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंगर्मी के साथ साथ सामयिक संरचना को दर्शाती आपकी कविता बहुत ही सार्थक है ।
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