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सोमवार, मार्च 21, 2016

ऊपर टिकट कट जायेगा















पास आरई होली अब, बचकर तू कहाँ जायेगा
रंग जो तुझ पर लगाया, बोल क्या चिल्लाएगा?

घर तेरे आए हैं मेहमां, खातिर क्या करवाएगा
सूखता है गला, ऐ दोस्त बता क्या पिलवाएगा?

होली पर पव्वा पिला, तू जाने जां बन जायेगा 
प्यार से अध्धा मंगा, माशूक़ सी पप्पी पायेगा

आज पीकर जीने दे, तू ब्लैक डॉग खम्बा लगा
बन जायेगा तू ख़ुदा, दिल से जो पैग बनाएगा 

घर को चले जायेंगे, जब नशा सर चढ़ जायेगा
धन्नो कौन चलाएगा, ये फ़ैसला भी हो जायेगा

बर्फ, सोड़ा, पानी, चिप्स, कोक बढ़ाते हैं मज़ा
ये ना हों साथ तो दिल, यारों का दुःख जायेगा

बेवड़े की हालत निराली, पैरों पे चल ना पायेगा
नाले-गटर हैं कह रहे, तू मुझमें नहा कर जायेगा

झंडूगिरी कर कर के, हर दारुबाज़ इतराएगा
हरकतों से अपनी फिर, हुल्लड़ ख़ूब मचाएगा

होली पे इंग्लिश के मज़े, तू यार के घर ले रहा
कल को फिर से फक्कड़, देसी पर आ जायेगा

बोतल के ख़त्म होने का, ग़म तू ज़रा भी ना मना
ठेका है पप्पा का अपने, कोटा बहुत आ जायेगा

आज पी जितनी है पीनी, कल से 'निर्जन' छोड़ दे
जो हुआ डेली पैसेंजर, तो, लीवर तेरा सड़ जायेगा

अमृत समझ कर पीने वाले, बात इतनी मान जा
मौका है संभल जा, वर्ना, ऊपर टिकट कट जायेगा

#तुषारराजरस्तोगी #होली #दारू #दारुबाज़ #शिक्षा #हास्यरस #बर्फ #सोड़ा #पानी #चिप्स #निर्जन

रविवार, मार्च 13, 2016

आशिक़ बड़े महान













शादी एक संग कीजिये,
दूजी संग कर के प्यार
तीजी जो मिल जाए तो,
फिर नहीं चूकना यार...

...फिर नहीं चूकना यार,
चौथी ढूंढ कर रखना
मय भी देती नहीं मज़ा,
जब तीखा ना हो चखना...

...जब तीखा ना हो चखना,
भैया दिल को तुरत बताओ,
पंचामृत का इस जीवन में,
शुभ आचमन करवाओ...

...शुभ आचमन करवाओ,
जीवन में लो तुम अब ज्ञान,
सच्चा प्रेम एक संग करके, क्या
कहलाओगे आशिक़ बड़े महान

#तुषारराजरस्तोगी #इश्क़ #मोहब्बत #आशिक़ी #हास्यरस #हास्यव्यंग #ज्ञान

सोमवार, अप्रैल 13, 2015

फेसबुकिया आशिक़

कल एक फेसबुक मित्र के साथ एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण मेरा दिल यह रचना लिखने के लिए विवश हो उठा। मैं पहले तो कुछ संजीदा और उपदेशात्मक बनाकर कहने की सोच रहा था क्योंकि मुद्दा बड़ा ही गंभीर था और नारी के मान-मर्यादा से भी जुड़ा था। परन्तु फिर मैंने इस बात को बड़े ही सहज रूप से प्रस्तुत करने का विचार बनाया क्योंकि जैसे मेरे ज़्यादातर मित्र मेरी आदत से वाकिफ़ हैं मुझे बातों को पेचीदा बनाकर पेश करने में ज़रा भी मज़ा नहीं आता और ना ही बड़े-बड़े जटिल अल्फाज़ों और लफ़्ज़ों को पढ़ने का कोई शौक़ रहा है और ना ही दूसरों को पढ़ाने में कोई लुत्फ़ आता है तो सोचा इस बार भी अगर जूता मारना ही है तो क्यों ना हास्य की चाशनी में लपेटकर, हंसी की तश्तरी में सजाकर परोसा जाए। तो हाज़िर है जनाब-ए-आली आप सबके सामने एक आचार संबंधी, विचारशील मुद्दे पर, लिखी मेरी अपरिहासी और विचारवान रचना। आशा है मेरी कोशिश कुछ तो रंग लाएगी। एक नवचेतना का आगाज़ कर कुछ ख़ास खारिश-खुजली वाले वर्ग के लोगों में आत्मज्ञान का एक नया सूर्योदय कर पायेगी। शायद इसे पढ़कर उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाए, उनकी आत्मा चित्कार कर उन्हें धिक्कारे और वो सही राह पर आ जाएँ। ऐसी उम्मीद के साथ प्रस्तुत है :














देखो मित्रों, बला सरनाम
फेसबुक है, जिसका नाम
कायरों को, मिला वरदान
आते हैं सब वो, सीना तान

अकाउंट बना, मारें वो एंट्री
प्रोफाइल ऑफ़, हाई जेन्ट्री
छोड़-छाड़ के, अपना काम
चिपके हैं सब, सुबहों-शाम

देखी लड़की, दिल लो थाम
रिक्वेस्ट भेजो, करो सलाम
आशिक़ी का, नया आयाम
भेजो मेसेज, हो गया काम

छुरी बगल में, मुंह में राम
शोशेबाज़ी है, इनका काम
ओछापन कर, हैं बदनाम
आवारा छिछोरे, घसीटाराम

बनते हैं, दर्द-ए-दिल का बाम
पढ़ते हैं झूठा, इश्क़ कलाम 
इनबॉक्स में, करते हैं मैसेज
मंशा रख, क्लियर हो पैसेज

रेस्पोंस में जब, खाते ये जूती
नर्वसनेस में, बज जाती तूती
देख बिदकते, अपना अंजाम
पीठ दिखा, भग जाते ये आम

पोक की कोक, है इनको भाती
इनकी दुनिया से, भिन्न प्रजाति
बेहया बेशर्म, ये लिप्सा के मारे
सूतो इन्हें, दिखाओ दिन में तारे

'निर्जन' सुनो, हर ख़ास-ओ-आम
आरती उतार, दो नेग सरेआम
ब्लाक करो, औ बेलन लो हाथ
करो धुनाई, दो इनको सौगात

लातों के भूत, बातों से ना माने
तार दो बक्खर, लगो लतियाने
उधेड़ने पर ही, शायद ये माने
मजनू के भाई, लैला के दीवाने

--- तुषार रस्तोगी ---

शनिवार, नवंबर 29, 2014

तरुण का बैंड बजा



















तरुण का बाजा बज गया
याड़ी अपना सज गया
ना ना करते धंस गया
शादी के फेर में फंस गया

दोस्त अपना है वकील
कहते जिसे अड़ंगा कील
घोड़ी कल चढ़ गया यार
घर ले आया अपना प्यार

महफ़िल भी जमी थी ख़ूब
नाच नाच डीजे पर कूद
हाथ पैर सब खूब चलाये
हम स्वराजी शादी में छाए

मनोज भाई हाईलाइट थे
अनशेवड डिलाइट थे
नाच नाच हुडदंग मचाये
मना करत वोडका चढ़ाये

यार अपने मनमौजी हैं
स्वराजी सब फ़ौजी हैं
सजे धजे दूल्हा बन आए
जलवे सबने खूब दिखाए

दिल से दुआ करते हैं यार
हर दिन तेरा हो त्यौहार
मिले ताउम्र सभी का प्यार 
'निर्जन' कहता जी खुल के यार

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, नवंबर 13, 2014

आज का इंसान



















बाहर से आलोकनाथ है अन्दर शक्ति कपूर
आज का इंसान कितना कमीनेपन से भरपूर

सबक सैंकड़ों सीख कर भी आदत से मजबूर
लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, ग़द्दारी, चालाकी से भरपूर

पीढियां बीत गईं इसकी पर तहज़ीब है काफ़ूर
कुत्ते की दुम सी फ़ितरत है टेढ़ेपन से भरपूर

चलती फिरती नौटंकी है ये दुनिया में मशहूर
दिखावे खूब दबा कर करता ये झूठ से भरपूर

"निर्जन" कहता ऐसों से बेटा बनो नहीं तुम सूर
घड़ा पाप का जब भर जाए तब दंड मिले भरपूर

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, अप्रैल 08, 2014

आराधना - अंडे और दुविधा

“सुनो ना – कुछ तो बोलो ! आज तुम बात शुरू करो ना मैं ज्वाइन करती हूँ फिर | तुम कोई टॉपिक तो सेलेक्ट करो ना, प्लीज...” एक अबोध बालिका की तरह उसने राज से धीमे से फ़ोन पर यह कहा और बड़ी ही सरलता से उसके कानों तक अपनी मीठी आवाज़ में यह बात उस तक पहुंचा दी | 
“क्या यार ! रोज़ रोज़ यही होता है, मैं ही क्यों तुम क्यों नहीं ? तुम इतना जो पढ़ती हो उसका कुछ तो फायदा मिले | कभी कोई बात खुद भी शुरू किया करो ना | कोई टॉपिक खुद भी चुना करो कभी तुम | हमेशा ऐसे ही ख़ामोश बैठ जाया करती हो | मैं कोई स्कूल का हेडमास्टर या कोई रेडियो थोड़े ही हूँ जो बोलता रहूँ या बजता रहूँ सुबह शाम |” इतना सुनकर कुछ पल के लिए दोनों के बीच एक ख़ामोशी छा गई फिर थोड़ी देर के बाद राज को ही बोलना पड़ा – “ओह हो ! तुम्हारे नखरे – ज़रा कुछ कह दो, तुरंत साइलेंट मोड ऑन कर के बैठ जाती हो | ठीक है बात मान लेता हूँ, मैं ही शुरू करता हूँ | आज खाने पर बात करें क्या ? ईटिंग हैबिट्स - पर आज तक नहीं की है बात, बोलो तो - क्या कहती हो ?”

“अरे वाह ! एक दम नया टॉपिक है - बोलो कैसे शुरू करना है |” आराधना नए वार्तालाप के लिए बेहद उत्सुक हो रही थी | उसे इंतज़ार था राज द्वारा पूछे जाने वाले सवालों का और मन ही मन हर्षित हो रही थी | 

“तुम्हे क्या पसंद है वैसे ? सबसे अच्छा क्या लगता है ? बताओ सबसे अच्छी डिश कौनसी लगती है ? किस तरह का कुज़ीन तुम्हे आकर्षित करता है ? कौन से भोजन को देखकर तुम्हारे मुंह में पानी आ जाता है बताओ ?”

“अरे – हेल्लो – रुको भी | एक बार में एक सवाल करो यार | तुमने तो सवालों की ऐ.के – ४७ चला दी | अच्छा एक एक करने जवाब देती हूँ | ठीक है न – ह्म्म्म | वैसे तो मैं सब कुछ पसंद करती हूँ पर मुझे नॉन-वैज बहुत पसंद है | मैं ज़्यादातर यही खाती हूँ | अंडे, मछली, चिकन, मीट बहुत अच्छा लगता है | आई लव एग्स एंड चिकन | ओम्लेट्स, बॉयल्ड, फ्राइड, हाफ-फ्राइड मेरे फेवरेट हैं | मैं हर तरह का खाना खा लेती हूँ कोई परहेज़ नहीं रहा किसी चीज़ से कभी | कबाब, मटन-बिरियानी, चिल्ली-चिकन और भी हैं जिन्हें सोचकर ही मुंह में पानी आ जाता है | सर्दियों में तो मैं ज़्यादातर नॉन-वैज ही खाती हूँ | वैज भी पसंद आता है पर इतना नहीं बट आई एन्जॉय एवरीथिंग | अब आगे मेरा सुशी खाने का दिल है – एक बार तो ज़रूर ट्राय करना है लाइफ में | सुना है बहुत टेस्टी होता है |”

“ईशशशश – बस कर यार | इतना क्या खुश हो रही है यह सब अनाप शनाप खा कर | बेचारे मासूम जानवरों को मारकर उनके शवों को अपने शरीर के कब्रिस्तान में दफ़न कर रही है और इतना खिलखिला और चहक रही है | तेरा पेट नहीं है श्मशान घाट है जहाँ मासूमों की अंत्येष्टि होती है उदर की गर्मी में जलकर | मांसाहार खाने में कैसा मज़ा जिसका अपना कोई स्वाद ही नहीं | सारा स्वाद तो मसलों का है | अगर खाना है तो कच्चा खा कर बता | फिर बात करना | बात करती है - आई एन्जॉय नॉन वैज आ लॉट वाली | एर्र्र्रर्र्र्रर्र्र..... – आज से तुम्हे कब्रिस्तान ही बुलाऊंगा – सच्ची” - इतना कहकर राज चुप हो गया | 

“ओह हो – अपनी अपनी पसंद है – तुम वेजीटेरियन हो तो मैं क्या करूँ | सबका अपना अपना टेस्ट है यार | इसमें भड़कने वाली कौन सी बात है | ठीक है तुम्हे बुरा लगता है तो तुम्हारे सामने ऐसे खाने की बात नहीं किया करेंगे | ठीक है ना ? बोलो ?”

“अरे यार – फिर आगे कैसे होगा कुछ सोचा है ?” – राज ने संजीदा होकर सवाल किया 

“आगे – क्या आगे ? मतलब” – आराधना ने मज़ाहिया अंदाज़ में चुटकी लेते हुए पुछा 

“मेरे यहाँ ये सब नहीं चलता है | मुझे तो बदबू तक बर्दाश्त नहीं इन सब चीज़ों की | यक – एर्र्र्रर – ईश्श्श – ना बिलकुल भी नहीं, कभी भी नहीं | मैं तो शुद्ध वैष्णव हूँ |”

“मैं तो बिलकुल भी नहीं रह सकती इन सबके बिना | ठीक है मैं खुद बना लुंगी किसी को बनाने को नहीं बोलूंगी |” 

“बनाने को मतलब – अरे क्या बात कर रही हो | बवाल हो जायेगा | ये सब नहीं चलेगा मेरे साथ में | बहार खा लो ठीक है उसमें मुझे कोई परहेज़ नहीं पर घर में तो नहीं – ना बिलकुल भी नहीं | जब बदबू ही बर्दाश्त नहीं तब बनाना तो बहुत दूर की बात है हुज़ूर |” 

“मतलब मुझे अब अपना खान पान भी बदलना होगा क्या ? ना ऐसा तो कभी नहीं होगा | किसी के लिए मैं अपने आपको, अपनी आदतों को, अपनी इंडिपेंडेंट लाइफ स्टाइल और चोइसस को थोड़ी बदल सकती हूँ | नहीं बिलकुल भी नहीं | फिर तो तुम कहोगे की फ्रिज में भी नहीं रख सकती में अन्डो को | हैं न ? क्यों ? ठीक कहा ना मैंने ? फिर तो कुछ नहीं हो पायेगा कोई सोल्युशन नहीं इसका | एक आइडिया है – ऐसा करना – जब मैं अंडा बनाऊं तुम घर से बहार चले जाना – हा हा हा – और जब बन जाये तब वापस आ जाना – अन्डो की सुगंध भी नहीं सूंघने को मिलेगी और बहार ताज़ी हवा का आनंद भी मिल जायेगा लगे हाथों | क्यों जी, क्या कहते हो ? वैसे सच में यार क्या अब हमारे रिलेशन इन अन्डो का मोहताज हो गया है ? डू वे बोथ हैव तो डिपेंड ऑन दीज़ एग्स - सीरियसली - गिव मी आ ब्रेक यार | इतनी छोटी सी बात है देखा जायेगा टेंशन क्यों लेनी अभी से | ” इतना कहकर वो जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी | 

“आई ऍम सीरियस यार – तुझे मज़ाक सूझ रही है | कुछ तरीका तो सोचना पड़ेगा | अच्छा सुनो – अगर दो फ्रिज और दो रसोई बना लें तो कैसा रहेगा ?”

“अच्छा ! हाय ! सच्ची ! मेरे लिए ऐसा करोगे तुम ? सोच लो ?”

“नहीं यार – बात तो वहीं की वहीं रही – यह तरीका भी काम नहीं करेगा | घर में नहीं बन सकता – फॉर श्युर | बहार खाने वाली बात सही है पर घर में तो नहीं – ना सॉरी यार | तू सोच ना कुछ तरीका यार | कुछ तो होगा तेरे दिमाग में |” इतना कहकर राज ख़ामोश हो गया | 

“यार अंडे भी नहीं बना सकती क्या ? नॉनवैज बाहर से कभी ले आया करुँगी | पर अंडे तो बना ही सकती हूँ | किसी और को बनाने को थोड़ी बोलूंगी | आई रेस्पेक्ट योर फीलिंग्स एंड योर पॉइंट ऑफ़ व्यू दैट यू डॉन’ट लाइक इट – पर, मेरी बात भी तो समझो | ऐसा थोड़े ही होता है अब खाना थोड़ी छोड़ दूंगी और क्या यह बहुत बड़ी बात है जो इतना सीरियस डिस्कशन हो रहा है ? वी विल वर्क आउट ऑन दिस सम वे ऑर दी अदर | फिलहाल एन्जॉय लाइफ माय फ्रेंड |” 

“तेरे लिए नहीं यार मेरे लिए बहुत बड़ी बात है | आज तक मेरे घर में ऐसा नहीं हुआ है | फिर अब कैसे | नहीं – मुझे तो ठीक नहीं लगता | तू ही कुछ सोच ना यार, बता सोच कर, कोई तरीका निकाल |” 

“फिर तो कुछ तरीका नहीं है जी, कुछ नहीं हो सकता | मैं तो किसी के लिए अपने आपको बदलने वाली नहीं हूँ चाहे कुछ भी हो जाये | जिसे जो सोचना है सोचे | यू डीसाईड योरसेल्फ़ | व्हाट डू यू वांट ?” इतना कह कर आराधना भी चुप हो गई | 

अब दोनों तरफ सन्नाटा था | ख़ामोशी के बीच दोनों की गर्म सांसें तेज़ी इस चुप्पी को भेद रही थीं और माहौल गरमा रहा था | दोनों सोच में पड़े हुए थे | राज सोच रहा था अगर अब ऐसे अंडे और मांसाहार शुरू हुआ तो आगे क्या होगा ? घर में यह सब होगा तो वो एडजस्ट कैसे करेगा ? क्या आगे की आने वाली पीढ़ी भी मांसाहारी बनेगी ? उफ़ नहीं – बड़ी दुविधा का समय है यह तो अब क्या उपाय है इसका, क्या रास्ता निकालूं ? काफी सोचने के बाद उसने फैंसला ले लिया – 

“ठीक है तुम नहीं बदल सकती हो तो दूसरा भी नहीं बदल सकता | जिस चीज़ की दुर्गन्ध तक बर्दाश्त नहीं उसका मेरी रसोई में बनना भी संभव नहीं फिर आगे चाहे कुछ भी हो देखा जायेगा | जिस बात के लिए आत्मा गवाही नहीं देती उसे तो मैं कभी भी नहीं करता और फिर यह तो एक तरह से जीव हत्या जैसा पाप है | एक तरह से मैं भी इसमें भागीदार हो जाऊंगा | ना कभी नहीं | अगर आगे कुछ लिखा होगा किस्मत में तो हो जायेगा नहीं होगा तो ना सही पर अपने संस्कारों से कभी भी समझौता नहीं | चाहे कुछ भी परिणाम हो फिर | जिसे सोचना हो वो सोच ले अब इस बारे में मैंने तो सोच लिया और निश्चित भी कर लिया | अब कोई संशय नहीं मेरे मन में इस बात को लेकर |” – इतना कहकर राज ने फ़ोन रख दिया | 

इन दोनों की कहानी में यह एक नया पेचीदा मोड़ आया है | क्या सच में यह एक बहुत बड़ी उलझन है ? क्या इस बात को लेकर दोनों के रास्ते अलग हो जायेंगे ? क्या इस छोटी सी बात के लिए दोनों के बड़े से अहम् और हठ धर्मी आपस में टकरा जायेंगे ? क्या एक मांसाहारी और एक शाकाहारी साथ में रह पाएंगे ? क्या अलग अलग खान पान होने के कारण दोनों की दोस्ती और सम्बन्ध पर कोई फ़र्क पड़ेगा ? क्या राज और आराधना अपनी इस उलझन को सुलझा पाएंगे ? क्या इन दोनों की कहानी का नतीजा अंडो और ऑमलेट इन्ही के बीच झूलता रह जाएगी ? क्या कोई लाल पीली चटनी खाने से दोनों की रुकी हुई कृपा आगे बढ़ेगी ? क्या इन्हें इस समस्या का कोई समाधान मिल पायेगा ? मुख़्तलिफ़ खान पान होने के बाद भी क्या ये दोनों अपनी मंज़िल पा सकेंगे ? आगे क्या होगा फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता और ना ही किसी को पता है भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है | आगे क्या होगा इसका फैसला मैंने अपने पाठकों पर छोड़ा है | यदि आपको लगता है आपके पास इस बात का कोई अच्छा समाधान है तो अपनी टिप्पणियों के माध्यम से मुझे बताएं | 

शनिवार, अक्तूबर 05, 2013

कुछ शब्द



















कुछ शब्द
अटपटे से
चटपटे से
खट्टी अंबी से
चटकीले नींबू से
काट पीट कर
बीन बटोर कर
धो धा कर
साफ़ कर के
धुप लगा कर
हवा में सुखा कर
मसालों में मिलकर
तेल में भिगोकर
मर्तबान में भरकर
ताख पर रख दिए हैं
जब पक जायेंगे
फिर निकालूँगा
शब्दों का नया अचार
सबको चखाऊंगा
चटखारे दिलवाऊंगा
क्योंकि 'निर्जन' अनुसार
शब्दों के अचार का भी
अपना ही मज़ा होता है
वैसे भी अचार तो
हर मौसम में स्वाद देता है

गुरुवार, सितंबर 12, 2013

बाबाजी की बूटी














बुराई को अच्छाई से
अकडू को सुताई से
महंगाई को सस्ताई से
क्लीन कर दीजिये

भूख को तृप्ति में
आशा को मुक्ति में
भोग को युक्ति में
तल्लीन कर दीजिये

उंचाई को गहराई में
अँधेरे को परछाई में
कसाव को ढिलाई में
लीन कर दीजिये

दिल की रैम से
टेंशन के स्पैम को
री-साईकल बिन में
विलीन कर दीजिये

किस्मत के मारों के
आत्मा के गार्डन को
पॉजिटिव विचारों से
ग्रीन कर दीजिये

अमीरी और गरीबी के
भेद को मिटाइये
सारे समाज को
मिस्टर बीन बनाइये

प्रसारण 'निर्जन' का
सीधा दिखलाइये
रूकावट कहीं भी हो
पर खेद ना बतलाइये

समस्या की
मिडिल फिंगर पर
सोलियुशन की रिंग डाल
मीन बन जाइए

ट्रॉमा को भगाईये
हाथ अपना बढ़ाईये
बाबाजी की बूटी का
एंजोयमेंट आज़माइए

ग़म भूल जाइए
लाइफ को सजाइए
सुपरमैन बन जाइए
हवा में उड़ते जाइए

सुपरमैन बन जाइए
हवा में उड़ते जाइए...

मंगलवार, अगस्त 20, 2013

बी रिलैक्स


एक कविता अपने कुछ विशेष दोस्तों के नाम । 


















दफ्तर अपना खोल के 
रिलैक्स हुए सब जाएँ 
रख कंपनी दा नाम ये 
बैठ स्वयं इतरायें

कुर्सी बड़ी बस एक है
जो दांव लगे सो बैठ
बाक़ी जो रह जाएँ है
हो जाएँ साइड में सैट

बन्दे अपने मुस्तैद हैं 
बकरचंद सरनाम 
दबा कर मीटिंग करें 
कौनो नहीं और काम

काटम काटी पर लगे 
एक दूजे की आप 
काटें आपस में पेंच ये 
फिर करते मेल मिलाप 

मोटा मोटी खूब कहें 
रिजल्ट मिले न कोये
एग्ज़ीक्यूटर फ्रसट्रेट है 
प्लानर बैठा रोये 

पढ़ो पढ़ो का राग है
प्रवक्ता जी समझाएं 
दो मिनट ये पाएं जो 
बात अपनी बतलाएं

पंडत जी बदनाम है 
खाने पर जाते टूट 
भैयन तेरी मौज है 
जो लूट सके सो लूट

हम इमोशनल बालक हैं
करें ईमानदारी से काम
मेहनत कर के पाएंगे
हम अपना ईनाम

मसाला मिर्ची आचार हैं
तैड़ फैड़ का काम
काज सबरे निपटात हैं
न देखें फिर अंजाम

अपने भी शामिल हैं
इन लीग ऑफ़ जेंटलमैन
मुस्करा अवलोकन करें
बैठ उते दिन रैन

कुल जमा ‘निर्जन’ कहे
अब तक सब है ठीक 
कभी कभी मायूस हो 
हम भी जाते झीक 

सच्चे सब इंसान यहाँ 
रखते हैं सब ईमान
ना किसी से बैर भाव 
ऐसे अपने मित्र महान 

रविवार, अगस्त 04, 2013

दोस्ती के जलवे

यह कविता समर्पित है मेरे अज़ीज़ दोस्तों के लिए :) जो हर एक तरह से दोस्त कहलाने के लायक है | उनमें एक अच्छे दोस्त के सभी कीटाणु मौजूद हैं | माता की तरह दुलार, पिताजी की फटकार, बहना की छेड़छाड़, भाई सा चिढ़ना यार, यह समस्त गुण तो कूट कूट कर भरे हैं पर प्रेमिका के जैसा प्यार वो अभी दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा है ..... जो भी हो रहा है सिर्फ गालियाँ खिलवा रहा है...हा हा हा...तो पेश है कविता आपके सम्मुख :















दोस्ती जतलाने का
क्या है ये समझाने का
खट्टे-मीठे अहसासों का
नमकीन जज़्बातों का
रूठने-मनाने का
रो कर विश्वास जताने का
नौटंकी दिखने का
सुख-दुख के अफसाने का
गरिया कर भगाने का
खरी खोटी सुनाने का
फसबुक पे चैटियाने का
हॉल पर फ़िल्म दिखने का
ट्रीट श्रीट खिलवाने का
छीन के खाना खाने का
टिफ़िन बॉक्स चुराने का
चीज़ों पे हक जताने का
कुत्ता कुत्ती बुलाने का
कमीनापन झलकाने का
लात घूंसे चलाने का
दिमाग बड़ा सयाने का
नक़्शे बाज़ी दिखने का
मनोरंजन करवाने का
स्पष्टीकरण बताने का
शिष्टाचार दिखाने का
नकली गुस्सा झिलवाने का
मुश्किल में साथ निभाने का
मार पीट कर आने का
आपस में प्यार बढ़ाने का
रातों को साथ जगाने का
बैठ छत पर बतियाने का
और राज़ तेरे मुस्कुराने का
पल दो पल का साथ नहीं
"दोस्ती" एक रिश्ता है
उम्र भर साथ निभाने का

ऐसे कमीने दोस्तों को मेरे हृदयतल से मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ....

गुरुवार, जून 13, 2013

चाटुकारी और चाटुकार
















चाटुकारी बड़ी महामारी
एक चाटुकार सौ पर भारी

अमानवता धर्म है इनका
थूक चाटना कर्म है इनका

तलवे चांटे, चलाए दिमाग
जय जय चापलूस विभाग

देशभक्त अब साइड हो गए
चाटुकार ही गाइड हो गए

पानी जैसा रक्त हो गया
नेता का गुर्गा भक्त हो गया

खुले कभी न इनकी पोल
कर लें चाहें कितने झोल

महा लिजलिजे लोभी आप
कर लो कुछ भी नहीं है पाप

महकमों में है आपका राज
चाहे होवे या ना होवे काज

चिकनी चुपड़ी से सब राज़ी हैं
चमचागिरी सर्वप्रिय बाज़ी है

चमचे आज होनहार हो गए
भारत की सरकार हो गए 

शुक्रवार, मई 10, 2013

रसीले रंगीले हास्य से भरे काइकू

अपमान करना तकनीक का, ये मेरा मक़सद नहीं
कोशिश मेरी इतनी है बस, के हंसी आनी चाहियें
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असली हैं हाइकू
अपने हैं काइकू
पढ़ो न पढ़ो न
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सूरत अपनी बदल
खिलखिलाता चल
टैक्स नहीं लगता
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भूकंप आया
सोते को जगाया
गुड मोर्निंग मामू
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फेसबुक चैट
नहीं कोई वैट
खूब करो खूब करो
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मिल प्यार से
गिला यार से
दिल से कर
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संजू स्टार
बाक़ी बेकार
हुए तड़ीपार
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तेरी बेवफाई
खूब रंग लाइ
ज़िन्दगी बदल गई
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दिल का दर्द
निभा तू फ़र्ज़
निकलने दे
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दर्द से जीत
मुश्किलों से प्रीत
करके रिलैक्स कर
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पैग लगा यार
धुंए में संसार
चिल्ल कर चिल्ल कर
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सोना हुआ सस्ता
हालत अपनी खस्ता
डार्लिंग कहें खरीदो  
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वफ़ा का सिला
बेवफा मिला
दिल पे मत ले यार
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इश्क का बुख़ार
हाय मारा यार
बचाओ बचाओ
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हर दफा नया यार
वल्लाह तेरा प्यार
जान बचा गई
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कलयुगी रिश्ते
नहीं हैं सस्ते
महंगाई बढ़ गई
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खुनी मंज़र
एहसास हैं बंजर
करते दिल वीरान
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इश्किया तूफ़ान
बचो गुलफाम
हाय मारा गया
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किसी का उधार
सर न रख यार
चुका दे चुका दे
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गले का फन्दा
इसक का धंधा
यार बिजनेस बदल
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इश्क हो या मुश्क
मौसम आज ख़ुश्क
चल आइसक्रीम खिला
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मौसम का इशारा
गर्मी ने मारा
यार ठंडा तो पिला
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बहुत हुए काइकू
इजाज़त भाईकू
कहता अलविदा

शुक्रवार, अप्रैल 26, 2013

डर लगता है















दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

लूटेरे हर जगह फिरते मुंडेरों पे, शाख़ो पे
बना कर भेस अपनों सा लपकते हैं लाखों पे

न लो रिस्क तुम बच के ही रहना दरिंदो से
दिखने में कबूतर हैं ये गिद्ध रुपी परिंदों से

भूलकर भी मत सुखाना अस्मत को तार पर
मंडराते फिरते है रक्तपिपासु वैम्पायर रातभर

इज़्ज़त तार कर देंगे तार पर देख अस्मत को
वापस फिर न आती लौट कर गई शुचिता जो

संभालो पवित्रता अपनी खुद अब दोनों हाथों से
खत्म कर दो हैवानो को जीवन की बारातों से

चलाओ बत्तीस बोर कर दो छेद इतने तुम इनमें
मरें जाके नाले में इंसानियत बची नहीं जिनमें

दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

रविवार, अप्रैल 21, 2013

बकरचंद
















आज बने है सब बकरचंद
पखवाड़े मुंह थे सब के बंद
आज खिला रहे हैं सबको
बतोलबाज़ी के कलाकंद

बने हैं ज्ञानी सब लामबंद
पोस्ट रहे हैं दना-दन छंद
आक्रोश जताने का अब
क्या बस बचा यही है ढंग

बकर-बक करे से क्या हो
मिला है सबको बस रंज
बकरी सा मिमियाने पे
मिलते हैं सबको बस तंज़

ज़रुरत है उग्र-रौद्र हों
गर्जना से सब क्षुब्ध हों
दुराचारी-पापी जो बैठे हैं
अपनी धरा से विलुप्त हों

दिखा दो सब जोश आज
शस्त्र थाम लो अपने हाथ
दरिंदों, बलात्कारियों की
आओ सब मिल लूटें लाज

बहुत हो लिए अनशन
खत्म करो अब टेंशन
हाथों से करो फंक्शन
दिखा दो अब एक्शन

आया नहीं जो रिएक्शन
तो खून में है इन्फेक्शन
'निर्जन' कहे उठो मुर्दों
दिखा दो कुछ फ्रिक्शन

मत बनो तुम बकरचंद
कर दो छंद-वंद सब बंद
इस मंशा के साथ बढ़ो
कलयुग में आगे स्वछंद

मंगलवार, अप्रैल 16, 2013

बड़ी हुई बच्ची














कल कहीं पढ़ा था मैंने
कुछ लिखा किसी ने
ऐसा भी
बड़ा हुआ एक बच्चा
सच्ची बहुत बड़ा बच्चा
पाता है शादी कर के
पत्नी रूप में एक ग़च्चा
अम्मा बन सर बैठती है
झेलती है वो जीवन भर
नाज़ और नखरे अपने
अपना अस्तित्व
अरमान और सपने
स्वाह चूल्हे चौके में करती है
खुद सदा चुप रहकर वो
बच्चे के कसीदे पढ़ती है
पालती है वो मुन्ना को
लल्ला लल्ला करती है
'निर्जन' कहता
कलयुग में
क्या ?
सच्ची ऐसा होता है
उस अम्मा को सब ने झेला है
वो हिटलर की छाया रेखा है
वो भी बड़ी हुई बच्ची है
हाँ! बहुत बड़ी बच्ची है
माता पिता परेशां होकर
जो मुसीबत दान में देते हैं
सुख से न जीने देती है
न ख़ुशी से मरने देती है
सुबह सवेरे उठते ही
ऍफ़ एम् चालू करती है
लेडी वैम्पायर बन कर वो
जीवन के सब रस पीती है
भूल कभी कुछ हो जाये
दहाड़ मार कर रोती है
चुप करने में उसको फिर
जेब भी ढीली होती है
चैन नहीं तब भी आता
सर आसमान पर लेती है
बहस अकड़ के करती वो
है नहीं किसी से डरती वो
गलती चाहे बच्ची की हो
फिर भी है अम्मा बनती वो
उस बच्ची रुपी अम्मा में
अहम किसी से कम नही
आये कोई झुकाए मुझको
ऐसा किसी में दम नही
योगदान जो जीवन में
वो बच्चे के देती है
सही समय आने पर वो
ब्याज समेत वसूल लेती है
कम ना समझें बच्ची को
ये शातिर ख़िलाड़ी होती है
हत्थे इसके जो चढ़ जाओ
ये पटक पटक कर धोती है
कल कहीं....

ऐ बी सी डी - अमरीका में बिगड़ा कन्फ्यूज्ड देसी


कुछ हिन्दुस्तानी लोग जब अमरीका या किसी और देश चले जाते हैं और जब वहां से वापस आते हैं तो देखिये उनके तौर तरीको और रवैयों के अन्दाज़ | पेश करता हूँ..

Always says, “Bless you”, whenever someone sneezes.
कोई छींक मरेगा तो तुरंत कहेंगे, 'ब्लेस यू' |

US-returned people use the word “bucks” instead of “Rs.”
अमरीका से भारत लौटे लोग 'रूपये' नहीं कहते 'बक्स' कहना शुरू कर देते हैं |

Tries to use credit cards in a road side hotel.
हाईवे के ढाबे पर खाना खाने के बाद 'क्रेडिट कार्ड' से पेमेंट करेंगे |

Drinks and carries mineral water and always speaks of being health conscious.
मिनरल वाटर पीना शुरू कर देंगे, पूछने पर बहाना बताएँगे के पेट ख़राब हो जाता है, तबियत बिगड़ जाती है |

Sprays deodorant so that he doesn’t need to take bath.
डीओडरैनट इस्तेमाल करना शुरू कर देंगे जिससे नहाना पड़े |

Sneezes and says ‘Excuse me’.
छींकेंगे और कहेंगे 'एक्सक्यूज़ मी'

Says “Hey” instead of “Hi”, ”Yoghurt” instead of “Curds”, ”Cab” instead of “Taxi”, “Trunk” of “Dicky” for a car trunk, ”Candy” instead of “Chocolate”,”Cookie” instead of “Biscuit” , ”got to go” instead of “Have to go”.
'हाई' को 'हे', 'दही' को 'योगर्ट', 'टैक्सी' को 'कैब', 'गाडी की डिक्की' को 'ट्रंक', 'चॉकलेट' को 'कैंडी', 'बिस्कुट' को 'कुकी', 'हैव टू गो' को 'गौट टू गो' बोलना शुरू कर देंगे |

Says “Oh” instead of “Zero”, (for 101, he will say One O One Instead of One Hundred One)
'जीरो' को '' कहना शुरू कर देंगे ( १०१ को 'एक सौ एक' की जगह 'वन वन' ) बोलेंगे |

Doesn’t forget to complain about the air pollution. Keeps complaining every time he steps out.
जब भी बहार जायेंगे हर बार हर जगह बार बार 'एयर पोल्यूशन' की बात करते नहीं थकेंगे |

Says all the distances in Miles (Not in Kilo Meters), and counts in Millions. (Not in Lakhs)
किलोमीटर भूल जायेगे मील में दूरी नापेंगे | लाख भूल जायेगे मिलियन में गिनेंगे |

Tries to figure all the prices in Dollars as far as possible (but deep inside multiplies by 44).
हर चीज़ के दाम डॉलर में लगायेंगे और अन्दर मन में उसे ५५ से गुणा करते रहेंगे |

Tries to see the % of fat on the cover of a milk pocket.
दूध की थैली के ऊपर सबसे पहले फैट परसेंटेज देखेंगे |

When he needs to say Z (zed), he never says Z (Zed), instead repeats “Zee” several times, and if the other person is unable to get it, then says X, Y Zee(but never says Zed)
'ज़ैड' को जान बूझ कर 'ज़ी' बोलेंगे | अगर कोई नहीं समझ पायेगा तो उससे एक्स, वाई ज़ी बोल कर बताएँगे पर 'ज़ैडनहीं बोलेंगे |

Writes the date in MM/DD/YYYY. On watching traditional DD/MM/YYYY, says “Oh! British Style!!!!”
तारीख़ को मंथ/डे/ईयर फॉर्मेट में लिखेंगे | अगर कहीं पुराना डे/मंथ/ईयर फॉर्मेट देख लेंगे तो कहेंगे, “ओह! ब्रिटिश स्टाइल!!!”

 Makes fun of Indian Standard Time and the Indian Road Conditions.
मौका मिलते ही इंडियन स्टैण्डर्ड टाइम और हिंदुस्तान की सड़कों का मजाक उड़ना शुरू कर देंगे |

Even after 2 months, complaints about “Jet Lag”.
आने के दो महीने बाद भी ‘जेटलैग’ से ग्रस्त रहेंगे |

Just to show off avoids eating spicy food.
दिखावे के लिए तीखा कहना खाने से परहेज़ करेंगे |

Tries to drink “Diet Coke”, instead of Normal Coke. Eats Pizza instead of Dosa.
‘नार्मल कोक’ की जगह ‘डाइट कोक’ पियेंगे | ‘डोसा’ की जगह ‘पिज़्ज़ा’ खायेंगे |

Tries to complain about anything in India as if he is experiencing it for the first time. Asks questions etc. about India as though its his first visit to India .
हिंदुस्तान की हर चीज़ के बारे में शिकायत करना शुरू कर देंगे जैसे परेशानी पहली दफा हो रही है | उट पटांग सवाल जवाब करने शुरू कर देंगे हिन्दुस्तान के बारे में जैसे पहली दफ़ा आये हों यहाँ |

Pronounces “schedule” as “skejule”, and “module” as “mojule”.
‘स्केड्यूल’ को ‘स्केज्यूल’ और ‘मोड्यूल’ को ‘मोज्यूल’ बोलना शुरू कर देंगे |

Looks suspiciously towards any Hotel/Dhaba food.
किसी भी होटल या ढाबे के खाने को शक की निगाहों से देखेंगे |

From the luggage bag, does not remove the stickers of the Airways by which he traveled back to India , even after 4 months of arrival.
लौटने के चार महीने बाद भी लगेज बैग से एयरवेज का स्टीकर नहीं छुटाएंगे जिससे भारत वापस आये हैं |

Takes the cabin luggage bag to short visits in India and tries to roll the bag on Indian Roads.
कैबिन लगेज को छोटी-मोटी यात्राओं पर चमकाने के लिए ले जायेंगे | हिन्दुस्तानी सड़कों पर बैग को रोल करके चलने लगेंगे |

Tries to begin any conversation with “In US ….” or “When I was in US…”
हर एक वार्तालाप शुरू करने से पहले कहेंगे, ‘जब मैं अमरीका में था...’ |

अब आप ही बताएं ऐसे कार्टूनों का क्या हो सकता है | यहाँ हिन्दुस्तान में अमरीकी आकर हिन्दुस्तानी सभ्यता और ज़बान सीख रहे हैं | और वहां कुछ अकलमंद लोग बाहरी फूहड़ता अपना कर अपने देश को नीचा दिखने में लगे हुए हैं | खुदा इन्हें अक्ल बक्शे |

गुरुवार, अप्रैल 11, 2013

मत सोचा कर

फ़रहत शाहज़ाद साहब द्वारा लिखी उनकी कविता 'तनहा तनहा मत सोचा कर' को अपने अंदाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ। क्षमा प्रार्थी हूँ, मैं उनका या उनकी नज़्म का अपमान करने या दिल को ठेस पहुँचाने की गरज़ से यह हास्य कविता नहीं लिख रहा हूँ। सिर्फ़ मज़ाहिया तौर पर और हास्य व्यंग से लबरेज़ दिल की ख़ातिर ऐसा कर रहा हूँ।

अगड़म बगड़म मत सोचा कर
निपट जाएगा मत सोचा कर

औंगे पौंगे दोस्त बनाकर
काम आयेंगे मत सोचा कर

सपने कोरे देख देख कर
तर जायेगा मत सोचा कर

दिल लगा कर बंदी से तू
सुकूं पायेगा मत सोचा कर

सच्चा साथी किस्मत की बातें
करीना, कतरीना मत सोचा कर

इश्क विश्क में जीना मरना
धोखे खाकर मत सोचा कर

वो भी तुझसे प्यार करे है
इतना ऊंचा मत सोचा कर

ख़्वाब, हकीकत या अफसाना
क्या है दौलत मत सोचा कर

तेरे अपने क्या बहुत बुरे हैं
बेवकूफ़ी ये मत सोचा कर

अपनी टांग फंसा कर तूने
पाया है क्या मत सोचा कर

शाम को लंबा हो जाता है
क्यूँ मेरा साया? मत सोचा कर

मीट किलो भर भी बहुत है
बकरा भैंसा मत सोचा कर

हाय यह दारू चीज़ बुरी है
टल्ली होकर मत सोचा कर

राह कठिन और धूप कड़ी है
मांग ले छाता मत सोचा कर

बारिश में ज़्यादा भीग गया तो
खटिया पकडूँगा मत सोचा कर

मूँद के ऑंखें दौड़ चला चल
नाला गड्ढा मत सोचा कर

जिसकी किस्मत में पिटना हो
वो तो पिटेगा मत सोचा कर

जो लाया है लिखवाकर खटना
वो सदा खटेगा मत सोचा कर

सब ऐहमक फुकरे साथ हैं तेरे
ख़ुद को तनहा मत सोचा कर

उतार चढ़ाव जीवन का हिस्सा
हार जीत की मत सोचा कर

सोना दूभर हो जाएगा जाना
दीवाने इतना मत सोचा कर

खाया कर मेवा तू वर्ना
पछतायेगा मत सोचा कर

सोच सोच कर सोच में जीना
ऐसे मरने का मत सोचा कर

रविवार, अप्रैल 07, 2013

सन्डे मना रहे हैं

सन्डे मना रहे हैं
मौज उड़ा रहे हैं
बिस्तर पर पड़े
हम तो
पकोड़े खा रहे हैं

टीवी चला रहे हैं
मैच लगा रहे हैं
बल्ले पे बॉल आई
गुरु जी
धोते जा रहे हैं

लंच बना रहे हैं
परांठे सिकवा रहे हैं
लाल मिर्च निम्बू के
अचार से
चटखारे ले खा रहे हैं

रायता बिला रहे हैं
बूंदी मिला रहे हैं
फिर करछी आंच
पर रख हम
छौंका बना रहे हैं

बच्चों को पढ़ा रहे हैं
सर अपना खपा रहे हैं
हाथ में ले के डंडा
हम उनको
डरा धमका रहे हैं

सुस्ती दिखा रहे हैं
खटिया पे जा रहे हैं
लैपटॉप सामने रख
हम तो
उँगलियाँ चला रहे हैं

अब सोने जा रहे हैं
ख्व़ाब सजा रहे हैं
चादर ताने मुंह तक
हम अब
चुस्ती दिखा जा रहे हैं

शब्द सजा रहे हैं
सोच दौड़ा रहे हैं
कीबोर्ड यूज़ करके
हम अब
कवीता बना रहे हैं

जल्दी से लिख रहे हैं
पोस्ट बना रहे हैं
फेसबुक पर बैठे
हम ये
रचना पढ़वा रहे हैं

लोग भी आ रहे हैं
पढ़ पढ़ के जा रहे हैं
सिर्फ लाइक कर के
सब ये
बिना कमेंट किये जा रहे हैं

सन्डे मना रहे हैं
मौज उड़ा रहे हैं

सोमवार, अप्रैल 01, 2013

अपने ब्लॉग पर मेरी आखरी पोस्ट


सरकारी सूचना
-----------------------

सभी आम और ख़ास ब्लॉगर मित्रों तथा जनहित में जारी : -

सभी मित्रों को सूचित किया जाता है के ३० मार्च, शाम ब्लागस्पाट के मैनेजमेंट और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के सरकारी अधिकारीयों के बीच हुई बैठक ,वार्तालाप और भेंटवार्ता के नतीजे कुछ इस प्रकार हैं | सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है और एक अध्यादेश पारित किया है जो ३१ मार्च, २०१३, रात १२ बजे, से लागू हो गया है | इसके अंतर्गत :

- ब्लागस्पाट.कॉम पर ब्लोग्गेर्स की बढती संख्या और सरकार की निंदा में लिखे हुए लेख, कविता, टिप्पणियां, दोहे, हाइकू, कुण्डलियाँ आदि को देखते हुए सरकार ने इस साईट को जल्द से जल्द बंद करने का आदेश पारित कर दिया है | 

- साईट पर अत्यधिक ट्रैफिक के आने की वजह से सरकार ने अपना प्रभाव बनाते हुए ब्लागस्पाट साईट को अपने शिकंजे में ले लिया है और इस पर १० करोड़ का जुरमाना लगा दिया है | 

- जो ब्लोग्गेर्स सरकार के विरोध में लिखना पसंद करते हैं उनकी सूची तयार कर उनपर सकत कार्यवाही करने की योजना बनाई जा चुकी है | 

- ३१ मार्च रात्रि १२ बजे के बाद से सभी तरह के ब्लोग्गेर्स पर ब्लॉग्गिंग करने की रोक लगा दी गई है | इस आदेश को ना मानने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है जिसमें १ लाख रूपये जुरमाना अथवा १ वर्ष बामशक्कत क़ैद का प्रावधान है | 

- ब्लागस्पाट और फेसबुक को आपस में जोड़कर पोस्ट सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वालों पर ज्यादा कड़ी कार्यवाही की जाएगी | 

- सरकारी बहु, सरकारी बेटी, सरकारी दामाद, सरकारी बच्चे, सरकारी नाती/पोती,  सरकारी मुलाजिम, सरकारी महकमे, सरकारी प्रसंशक अथवा स्वयं सरकार के बारे में कुछ भी लिखने वाले को ५ लाख रूपये का जुरमाना और २ वर्ष कठोर कारावास की सजा का प्रावधान तय पाया है | 

- फेसबुक, ट्विटर सरीखी सोशल मीडिया साइटों  को भी बैन करने की कवाय्तें शुरू की जा चुकी हैं | 

- जो लोग इन सभी विपदाओं से बचना चाहते हैं वे आने वाले चुनावों से पहले अपनी लेखनी में सिर्फ और सिर्फ सरकारी खानदान और सरकार का गुणगान करेंगे और सिर्फ सरकार के बारे में लिखेंगे | इसमें कवितायेँ, लेख, चाँद, हाइकू, ग़ज़ल, शेर इत्यादि शामिल हैं | 

- पसंद आने पर चयन की गई सर्वश्रेष्ट प्रविष्टि लिखने वाले को उचित इनाम और सरकारी भक्त के ख़िताब से नवाज़ा जायेगा | इसमें इनाम की राशि में २ लाख रूपये नकद, एक बिल्ला, एक प्रशंसा पत्र और सरकारी दामादों वाली खातिरदारी शामिल है | 

उपरोक्त सभी आदेशों का पालन न करने वाले के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी और उसे निम्बूपानी की सजा दी जाएगी जिससे उसका पेट साफ़ हो जाये और वो सरकार के साफ़ सुथरे प्रतिरूप को समझ सके और उसके बारे में आगे लिख सके | 

भाइयों मैं तो हैण्ड टू हैण्ड अभी से ब्लागिंग बंद कर रहा हूँ. इसे अप्रैल फूल समझने की गलती बिलकुल न करें वरना आपको पछताना पड़ सकता है | 

नमस्कार  
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अप्रैल फूल बनाया तो तुमको गुस्सा आया :)

उल्लू बनाया ,बड़ा मज़ा आया ;)

शुक्रवार, मार्च 29, 2013

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है













कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है -

काश लोन लेकर शादी की होती -
तो ज़िन्दगी आबाद हो भी सकती थी

ये बेलन और झाड़ू से पिटाई बदन पे खाई है -
रिकवरी एजेंटों की दुआओं से खो भी सकती थी

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है -
के बीवी ही है, जिसे मेरा दम निकालने की जुस्तजू  ही है

गुज़र रही है कुछ इस तरह से ज़िन्दगी जैसे -
इससे वसूली वालों के सहारे की आरज़ू ही है

ना कोई राह, न मंज़िल, न रौशनी का सुराग -
गुज़र रही है हतौडों-थपेड़ों में ज़िन्दगी मेरी

इन्ही हतौडों-थपेड़ों से उठ जाऊंगा कभी सो कर -
मैं जानता हूँ मेरे ग़म-वफ़ात, मगर यूँही

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है