दुनिया बदल रही है
ज़माना बदल रहा है
इंसानी फितरत का
फ़साना बदल रहा है
भूख बदल रही है
भोजन बदल रहा है
विकृत हाथों का
निशाना बदल रहा है
आचार बदल रहा है
विचार बदल रहा है
भेड़िये दरिंदों सा
किरदार बदल रहा है
सलीका बदल रहा है
तरीका बदल रहा है
विकृत यौनइच्छा का
पैमाना बदल रहा है
बीवी बदल रहा है
बेटी बदल रहा है
हैवानी हदों का
जुर्माना बदल रहा है
दिल्ली बदल रही है
दिल वाला बदल रहा है
वीभत्स कुकृत्यों से
दिल्लीनामा बदल रहा है
लिखना बदल रहा है
सुनाना बदल रहा है
'निर्जन' फरमाने को
अफसाना बदल रहा है
ऐ मुर्दों अब तो जागो
कब्रों से उठ के आओ
अब सोते रहने का
मौसम बदल रहा है
समसामयिक पंक्तियाँ....सच में निशब्द हूँ ...
जवाब देंहटाएंएक-एक घर ही
जवाब देंहटाएंहम बदल सकें
तो ज़माना बदल जाएगा
हार्दिक शुभकामनायें .....
सार्थक एवं सटीक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद तुषार भाई।
जवाब देंहटाएंनये लेख : विश्व विरासत दिवस (World Heritage Day)
"चाय" - आज से हमारे देश का राष्ट्रीय पेय।
सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक ...समाज को आइना रचना .....अफ़सोस कोई देखना नहीं चाहता
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया। समसामयिक चिंता। बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंगर्मयोशी और समसामयिक
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आदरणीय -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
samyik sandarbh me bahut sundar rachnaa
जवाब देंहटाएंsamyi sandarbh me bahut sundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंदिल्ली का क्या दोष भाई , दिल्ली हो या कानपुर , कलकत्ता हो या मुजफ्फरपुर हर जगह बस दोष है तो मानसिकता का। ऐसी विकृत मानसिकता को बदलना है ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा सटीक सामायिक सुंदर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंसमसामयिक सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post तुम अनन्त
latest post कुत्ते की पूंछ
आज इस विकृत मानसिकता के खिलाफ़ सब को खड़ा होना होगा...बहुत सुन्दर और समसामयिक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंsamay ke samdarbh me sundar prastuti
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति ......आभार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंमुझे कब्र में सोता हुआ कहा जा सकता है लेकिन आपकी यह रचना कईबार पढ़ने के बाद भी...
जवाब देंहटाएंनि:शब्द हूं।
सब कुछ बदल रहा है पर इंसान की भूख नहीं बदल रही ...
जवाब देंहटाएंऐसे बदलाव से तो अच्छा है की हम वापस आदिम ज़माने में चले जाएँ ... आज़ाद भारत में दरिन्दे आज़ाद हैं अपनी भूख को मिटाने को ...
जवाब देंहटाएंइस मानसिकता का विरोध पहली कड़ी है इस बीमारी को मिटाने का. बढ़िया सामयिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंbahut yathaarth ..prabhaavee abhivyakti !
जवाब देंहटाएंkya bat hai per kuch bat esa laga ki repeet ho gai hai ...
जवाब देंहटाएंraunaq habib
kavita achi hai..pr kahi kahi laga ki baat repeet hui hai....
जवाब देंहटाएंdil ko chu gyi.. bahut khub
जवाब देंहटाएंlajwab
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