ख्वाबों की दुनिया में बुने एक अलसाये मन के भाव, विचार, सोच, कहानियाँ, किस्से, कवितायेँ....|
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गुरुवार, नवंबर 02, 2017
शनिवार, दिसंबर 19, 2015
दारूबाज़ों की रीयूनियन
यादगार एक शाम रही, बिछड़े यारों के नाम
करत-करत मज़ाक ही, हो गया सबका काम
हो गया सबका काम, पीने मयखाने पहुंचे
बाउंसर कि बातें सुन, 'निर्जन' हम चौंके
कहें सैंडल नहीं अलाउड, नो एंट्री है अन्दर
सोचा मन ही में भाई, बन गया तेरा बन्दर
पीने आए दारु, जूते-चप्पल पर क्या ध्यान
कोई तो समझाए लॉजिक, दे इनको ये ज्ञान
खैर मामला सुलट गया, हम पहुंच गए अन्दर
साबू-चोपू को देख, बन गए हम भी सिकंदर
गले मिले और बैठ गए, बातें कर के चार
अब दारु कब आएगी, ये होता रहा विचार
होता रहा विचार, लफंडर बाक़ी भी आएं
संग साथ सब बैठ, फिर से मौज उड़ाएं
पहुंचे जौहरी लाला, रित्ति-सुब्बू के साथ
पीछे से चोटी आया, हिलाते अपना हाथ
रित्ति भाई शुरू हो गया, ले हाथ में साज़
फ़ोटू चकाचक चमकाई, ये है सेल्फीबाज़
विंक है फ़ॉरएवर प्नचुअल, बंडलबाज़ है यार
प्रिंटर-फाइटर को लाया, इन इम्पोर्टेड कार
दो घंटा लेट से आए, बाबुजी खासमख़ास
मेहता दानव आकृति, फुलऑन बकवास
फुलऑन बकवास, करते बाबाजी बड़बोले
गला तर कर सियाल ने, हिस्ट्री के पन्ने खोले
मित्रों नॉसटेलजीया फ़ीवर, चढ़ गया रातों रात
इतनी थीं करने को सबसे, खत्म ना होतीं बात
हा हा-ही ही-हू हू करते, बस बीती सारी शाम
यारों, दारु, चिकन, मटन और सुट्टों के नाम
मज़ा आ गया कसम ख़ुदा की, २० बरस के बाद
दारुबाजों की रीयूनियन, रहेगी जीवन भर याद
--- तुषार रस्तोगी ---
रविवार, मार्च 15, 2015
प्यार का अस्तित्व
"सुनो ! ये तुम अपनी कॉपी पर क्या लिख रही हो ?"
"कुछ भी तो नहीं "
"चलो भी यार! तुम्हारा हमेशा कुछ नहीं होता है। अरे! बता भी दो अब।" इतना कहते के साथ ही उसने, झट से अचानक ही उसके हाथ से कॉपी झपट ली। अभी वो शुरू के कुछ ही शब्दों को पढ़ पाई थी कि उसने तुरंत ही, उसके हाथ से कॉपी वापस छीन ली।
"प्यार का वजूद नहीं है ?" उसने बड़ी व्याकुलता से उससे सवाल किया
"ओह हो! कुछ नहीं है, सब ठीक है।"
"नहीं...कुछ तो है। तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो...बताओ ना क्या नहीं बताना चाहते हो मुझे ?"
"मैंने कहा ना...कुछ नहीं है।" उसने गुस्से से रोष भरी आवाज़ में दनदनाते हुए जवाब दिया। उसके क्रोध को देख कर वो दंग रह गई और डर के मारे सहम कर चुप हो गई।
कुछ पल मौन के बाद, आख़िरकार उसने जवाब दिया।
"मुझे माफ़ कर दो, प्लीज़...मुझे ऐसे, इतनी बुरी तरह से पेश नहीं आना चाहियें था। ऐसे आपा खोकर गुस्से से रियेक्ट नहीं करना चाहियें था। आई ऍम सॉरी।“
"ठीक है। कोई बात नहीं। इसमें तुम्हारी गलती नहीं है।"
"दरअसल...बात ऐसी है कि, मैं नहीं चाहता के लोग इस बारे में जानें कि मैं कुछ चीज़ों और बातों के बारे में कैसा महसूस करता हूँ।"
"तुम मुझसे बात कर सकते हो। मुझसे हाल-ए-दिल बयां कर सकते हो। तुम्हे मालूम है, मैं भरोसे के क़ाबिल हूँ। प्लीज़ बताओ मुझे। मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हूँ। तुम्हारी कड़वाहट को दूर करना चाहती हूँ। तुम कैसे कह सकते हो कि प्रेम का कोई वजूद नहीं होता ? तुम्हारी माँ - उनके बारे में क्या ? एक माँ तो हमेशा अपनी औलाद को दिल से चाहती है। फिर ऐसा क्या है जो तुम बताना नहीं चाहते ? बोलो ना - प्लीज।"
"मेरी माँ ने मुझे और मेरे पिता को तब छोड़ दिया था जब मैं सिर्फ पांच बरस का था वो भी किसी दुसरे आदमी के लिए।" उसका जवाब एकदम रूखा और ठंडा था।
"आह! मुझे माफ़ कर दो। मेरा दिल दुखाने का इरादा नहीं था और ना ही तुम्हारे ज़ख्मों को कुरेदने की मंशा से मैंने ऐसा कहा था। मुझे...मुझे इसके बारे में कुछ नहीं मालूम था। बस तुम्हारी फ़िक्र रहती है इसलिए पर तुम्हारे पिता...वो तो तुम्हे बहुत चाहते हैं ना ? सही कह रही हूँ ना ?"
"माँ के जाने के बाद से सब बदल गया। पिताजी भी पहले जैसे नहीं रहे। वो भी बदल गए। मुझसे कभी बात नहीं करते। सच कहूँ तो मैं उनको माँ की याद दिलाने वाला सिर्फ़ एक अनचाहा ज़रिया हूँ। अगर कभी भूले से वो मुझसे बात करते भी हैं तो वो मेरी गलतियाँ निकालने के लिए, मारने पीटने के लिए या फिर गलियां देने के लिए, इसलिए मैं ज़्यादातर अपने दादा-दादी के साथ रहता हूँ।
"तो तुम्हारे दादा-दादी तो तुम्हारी देखभाल करते होंगे ? तुमसे प्यार करते होंगे ?"
"नहीं ऐसा नहीं है! मेरी दादी की तबियत बहुत ख़राब रहती है, मेरे दादा का सारा वक़्त उनके सिरहाने बैठे रहने में बीत जाता है। वो लोग अपनी परेशानियों में इतने व्यस्त रहते हैं कि मेरे बारे में किसी को ख़याल तक नहीं रहता।"
"अच्छा तभी...इसलिए तुम प्यार में यकीन नहीं करते ? किसी पर भरोसा नहीं करते ? क्यों ?"
"हाँ"
"देखो मेरी एक सुनो, तुम्हारे पिताजी तुम्हारी माँ से बेहद मोहब्बत करते थे इसलिए वो कभी पहले जैसे नहीं हो सके और अपने साथ अपनी परिस्थितियों को भी संभाल नहीं पाए। इसका सिर्फ एक ही कारण है कि वो तुम्हारी माँ से बेतहाशा प्रेम करते हैं और तुम्हारे दादा इतने बरसों के बाद भी तुम्हारी दादी को पूरे दिल से चाहते हैं। तुम देख ही नहीं पा रहे हो, अगर ध्यान से देखोगे तो तुम्हे नज़र आएगा कि तुम्हारे आसपास कितना प्यार है। हाँ! अपनी आँखें खोलो और देखो प्यार का अस्तित्व है, और क्या तुम्हे पता है ? कोई है जो तुमसे भी दीवानों की तरह, पागलों की तरह इश्क़ करता है। कम से कम उसको एक मौका देकर तो देखो जिससे वो तुम्हे दिखा सके, जता सके, बता सके कि असली सच्चा प्यार कैसा होता है। तुम कोशिश तो कर ही सकते हो, नहीं ?"
"उसे मालूम था वो किसके बारे में बात कर रही थी। "तो क्या वो सच में मुझसे इतना प्यार करती है ?" वो अपने आप से ये सवाल करता रहा और बैठा उसके चेहरे को ताकता रहा।
"हाँ - यही तो है वो - बिलकुल यही है"
"आज, अभी, इसी वक़्त, खुल कर बता दे उसको - तू भी उसे उतना ही चाहता है। तू भी तो दीवाना है उसके लिए। तू भी तो हर पल उसी के सपने बुनता है।" यही सोचते हुए वो जीवन में पहली बार वास्तव में मुस्कुराता रहा।
दुनिया में हर व्यक्ति के लिए प्यार मौजूद है। एक तरह से नहीं तो दूसरी तरह से, ऐसे नहीं तो वैसे ये हर किसी को मिल ही जाता है। उम्मीद का दामन कभी भी छोड़ना नहीं चाहियें। ज़िन्दगी और प्यार दोनों से कभी हार नहीं माननी चाहियें। यदि आपको ऐसा एहसास होता है कि आपसे कोई प्यार नहीं करता, आपको कोई नहीं चाहता, तो बस इतना याद रखना कि भगवान् आपको चाहता है आपसे बेंतेहा प्यार करता है और जिसे वो चाहता है उसे सारी दुनिया चाहती है, प्यार करती है। किसी ना किसी दिन, कहीं ना कहीं, कभी ना कभी वो नीली छतरी वाला आपकी मुलाक़ात आपके प्यार से करवा ही देगा। प्यार का अस्तित्व हमेशा से था, है और रहेगा और प्यार हर किसी को मिलता है बस ज़रा सा भरोसा और विश्वास बनाए रखने की ज़रुरत होती है।
--- तुषार राज रस्तोगी ---
"कुछ भी तो नहीं "
"चलो भी यार! तुम्हारा हमेशा कुछ नहीं होता है। अरे! बता भी दो अब।" इतना कहते के साथ ही उसने, झट से अचानक ही उसके हाथ से कॉपी झपट ली। अभी वो शुरू के कुछ ही शब्दों को पढ़ पाई थी कि उसने तुरंत ही, उसके हाथ से कॉपी वापस छीन ली।
"प्यार का वजूद नहीं है ?" उसने बड़ी व्याकुलता से उससे सवाल किया
"ओह हो! कुछ नहीं है, सब ठीक है।"
"नहीं...कुछ तो है। तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो...बताओ ना क्या नहीं बताना चाहते हो मुझे ?"
"मैंने कहा ना...कुछ नहीं है।" उसने गुस्से से रोष भरी आवाज़ में दनदनाते हुए जवाब दिया। उसके क्रोध को देख कर वो दंग रह गई और डर के मारे सहम कर चुप हो गई।
कुछ पल मौन के बाद, आख़िरकार उसने जवाब दिया।
"मुझे माफ़ कर दो, प्लीज़...मुझे ऐसे, इतनी बुरी तरह से पेश नहीं आना चाहियें था। ऐसे आपा खोकर गुस्से से रियेक्ट नहीं करना चाहियें था। आई ऍम सॉरी।“
"ठीक है। कोई बात नहीं। इसमें तुम्हारी गलती नहीं है।"
"दरअसल...बात ऐसी है कि, मैं नहीं चाहता के लोग इस बारे में जानें कि मैं कुछ चीज़ों और बातों के बारे में कैसा महसूस करता हूँ।"
"तुम मुझसे बात कर सकते हो। मुझसे हाल-ए-दिल बयां कर सकते हो। तुम्हे मालूम है, मैं भरोसे के क़ाबिल हूँ। प्लीज़ बताओ मुझे। मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हूँ। तुम्हारी कड़वाहट को दूर करना चाहती हूँ। तुम कैसे कह सकते हो कि प्रेम का कोई वजूद नहीं होता ? तुम्हारी माँ - उनके बारे में क्या ? एक माँ तो हमेशा अपनी औलाद को दिल से चाहती है। फिर ऐसा क्या है जो तुम बताना नहीं चाहते ? बोलो ना - प्लीज।"
"मेरी माँ ने मुझे और मेरे पिता को तब छोड़ दिया था जब मैं सिर्फ पांच बरस का था वो भी किसी दुसरे आदमी के लिए।" उसका जवाब एकदम रूखा और ठंडा था।
"आह! मुझे माफ़ कर दो। मेरा दिल दुखाने का इरादा नहीं था और ना ही तुम्हारे ज़ख्मों को कुरेदने की मंशा से मैंने ऐसा कहा था। मुझे...मुझे इसके बारे में कुछ नहीं मालूम था। बस तुम्हारी फ़िक्र रहती है इसलिए पर तुम्हारे पिता...वो तो तुम्हे बहुत चाहते हैं ना ? सही कह रही हूँ ना ?"
"माँ के जाने के बाद से सब बदल गया। पिताजी भी पहले जैसे नहीं रहे। वो भी बदल गए। मुझसे कभी बात नहीं करते। सच कहूँ तो मैं उनको माँ की याद दिलाने वाला सिर्फ़ एक अनचाहा ज़रिया हूँ। अगर कभी भूले से वो मुझसे बात करते भी हैं तो वो मेरी गलतियाँ निकालने के लिए, मारने पीटने के लिए या फिर गलियां देने के लिए, इसलिए मैं ज़्यादातर अपने दादा-दादी के साथ रहता हूँ।
"तो तुम्हारे दादा-दादी तो तुम्हारी देखभाल करते होंगे ? तुमसे प्यार करते होंगे ?"
"नहीं ऐसा नहीं है! मेरी दादी की तबियत बहुत ख़राब रहती है, मेरे दादा का सारा वक़्त उनके सिरहाने बैठे रहने में बीत जाता है। वो लोग अपनी परेशानियों में इतने व्यस्त रहते हैं कि मेरे बारे में किसी को ख़याल तक नहीं रहता।"
"अच्छा तभी...इसलिए तुम प्यार में यकीन नहीं करते ? किसी पर भरोसा नहीं करते ? क्यों ?"
"हाँ"
"देखो मेरी एक सुनो, तुम्हारे पिताजी तुम्हारी माँ से बेहद मोहब्बत करते थे इसलिए वो कभी पहले जैसे नहीं हो सके और अपने साथ अपनी परिस्थितियों को भी संभाल नहीं पाए। इसका सिर्फ एक ही कारण है कि वो तुम्हारी माँ से बेतहाशा प्रेम करते हैं और तुम्हारे दादा इतने बरसों के बाद भी तुम्हारी दादी को पूरे दिल से चाहते हैं। तुम देख ही नहीं पा रहे हो, अगर ध्यान से देखोगे तो तुम्हे नज़र आएगा कि तुम्हारे आसपास कितना प्यार है। हाँ! अपनी आँखें खोलो और देखो प्यार का अस्तित्व है, और क्या तुम्हे पता है ? कोई है जो तुमसे भी दीवानों की तरह, पागलों की तरह इश्क़ करता है। कम से कम उसको एक मौका देकर तो देखो जिससे वो तुम्हे दिखा सके, जता सके, बता सके कि असली सच्चा प्यार कैसा होता है। तुम कोशिश तो कर ही सकते हो, नहीं ?"
"उसे मालूम था वो किसके बारे में बात कर रही थी। "तो क्या वो सच में मुझसे इतना प्यार करती है ?" वो अपने आप से ये सवाल करता रहा और बैठा उसके चेहरे को ताकता रहा।
"हाँ - यही तो है वो - बिलकुल यही है"
"आज, अभी, इसी वक़्त, खुल कर बता दे उसको - तू भी उसे उतना ही चाहता है। तू भी तो दीवाना है उसके लिए। तू भी तो हर पल उसी के सपने बुनता है।" यही सोचते हुए वो जीवन में पहली बार वास्तव में मुस्कुराता रहा।
दुनिया में हर व्यक्ति के लिए प्यार मौजूद है। एक तरह से नहीं तो दूसरी तरह से, ऐसे नहीं तो वैसे ये हर किसी को मिल ही जाता है। उम्मीद का दामन कभी भी छोड़ना नहीं चाहियें। ज़िन्दगी और प्यार दोनों से कभी हार नहीं माननी चाहियें। यदि आपको ऐसा एहसास होता है कि आपसे कोई प्यार नहीं करता, आपको कोई नहीं चाहता, तो बस इतना याद रखना कि भगवान् आपको चाहता है आपसे बेंतेहा प्यार करता है और जिसे वो चाहता है उसे सारी दुनिया चाहती है, प्यार करती है। किसी ना किसी दिन, कहीं ना कहीं, कभी ना कभी वो नीली छतरी वाला आपकी मुलाक़ात आपके प्यार से करवा ही देगा। प्यार का अस्तित्व हमेशा से था, है और रहेगा और प्यार हर किसी को मिलता है बस ज़रा सा भरोसा और विश्वास बनाए रखने की ज़रुरत होती है।
--- तुषार राज रस्तोगी ---
रविवार, मार्च 08, 2015
स्त्री
स्त्री होना, एक सहज सा
अनुभव है
क्यों, क्या
क्या वो सब है
कुछ नहीं
नारी के रूप को
सुन, गुन
मैं संतुष्ट नहीं था
बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका
इनका स्वरुप भी
कितना विस्तृत
हो सकता, जितना
ब्रह्मांड, का होता है
जब जाना, नारी
उस वट वृक्ष
को जन्म देती है
जिसकी पूजा
संसार करता है
जिसकी जड़
इतनी विशाल होती है
कि जब थका मुसाफ़िर
उसके तले
विश्राम करता है
तब कुछ क्षण बाद ही
वो पाता है
शांति का प्रसाद
सुखांत, देता हुआ
उसकी शाखा को पाता है
हँसते हुए, उसके पत्तों को
प्रणय स्वरुप, उसकी जड़ों को
पृथ्वी ( स्त्री ) तू धन्य है
प्रत्येक पीड़ा को हरने वाले
वृक्ष की जननी
तू धन्य ही धन्य है
क्योंकि ये शक्ति आकाश ( पुरुष )
पर भी नहीं है
निर्मल, कोमल, अप्रतिबंधित प्रेम
एक अनोखी शक्ति है
जो एक निर्जीव प्राणी में
जीवन की चेतना का
संचार करती है
एक अनोखी दृष्टि का
जिसमें ईश्वर
स्पष्ट दृष्टि गोचर होता है |
उसका ( वात्सल्य, श्रृंगार, मित्रता, काम, वफ़ा, प्रीती )
ईश्वरीय दर्शन
'निर्जन' अब हर घड़ी हर पल चाहूँगा
जिससे कभी मैं अपने आप को
नहीं भूल पाऊंगा
क्योंकि मैं भी
स्नेह से बंधा, प्रेम को समेटे
सुख की नींद सोना चाहता हूँ
--- तुषार राज रस्तोगी ---
शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2015
कलि
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सूर्य की पहली रूपहली किरण
जब इस धरातल पर पड़ी
दमक उठा पर्वतों पर उसका सोना
झरनों नदियों में चमकी चांदी की लड़ी
उसके हँसते ही अंकुर भी लहलहा उठे
कलियों की आँखों में आया पानी
कहता है चमन 'निर्जन'
ऐ मुझे रौशन करने वाले ख़ुदा
अब कोई माली ही मुझे मिटाएगा
हर फूल को चमन से जुदा कराएगा
यूं तो आसमां भी तेरी मुट्ठी में है
चांद तारे भी तेरी जागीर हैं
ऐ मेरे! परवर-दिगार-ए-आलम
क्या ?
एक फूल की इतनी ही उम्र लिखी है
खिलता है ज्यों ही घड़ी भर को वो
उजड़ने की उसकी वो आख़िरी घड़ी है
कोई वहशी किस पल आएगा
ये सोच
आज कलि बेहोश पड़ी है
--- तुषार राज रस्तोगी ---
शनिवार, फ़रवरी 14, 2015
मुझे इश्क़ है, तुम से
मुझे बेपनाह इश्क़ है, तुम से
मुझे सरोकार है बस, तुम से
मुझे इश्क़ है तेरी मीठी, बातों से
मुझे इश्क़ है तेरे कोमल, स्पर्श से
मुझे इश्क़ है तेरी मधुर, मुस्कान से
मुझे इश्क़ है तेरे विचारमग्न, ह्रदय से
मुझे इश्क़ है तेरी असीमित, ख़ुशी से
मुझे इश्क़ है तेरे जीवन में, रूचि से
मुझे इश्क़ है तेरी पाक़, रूह से
मुझे इश्क़ है तेरे हर, कतरा-ए-लहू से
मुझे इश्क़ है तेरे, इश्क़-ए-जुनूं से
मुझे इश्क़ रहेगा तेरे, वफ़ा-ए-सुकूं से
मुझे इश्क़ है पूरे दिल से, तुम से
मुझे इश्क़ है हद-ए-दीवानगी तक, तुम से
मुझे इश्क़ है आग़ाज़ से, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा अंजाम तक, तुम से
मैं तेरे साथ हूँ हर पल, हर लम्हा
है अनंतकाल दूर अब, एक कदम से
मेरा जज़्बा-ए-इश्क़, बढ़ रहा है
दिन-रात हैं मेरे, अब तुम से
तुम्हारे इश्क़ का यह, ख़ज़ाना
संजोता है 'निर्जन' आत्मा से, मन से
मेरी चाहतों में अरमां, हैं कितने
जताता रहूँगा यूँ ही मैं, तुम से
इतना ही कहूँगा अब मैं, तुम से
मुझे इश्क़ रहेगा सदा ही, तुम से
--- तुषार राज रस्तोगी ---
गुरुवार, फ़रवरी 12, 2015
तेरी आँखें
बद्र-ए-बहार से सुर्ख तेरे चेहरे पर
बादः सी नशीली क़ातिलाना तेरी आँखें
मदहोश मदमस्त सूफ़ियाना नशीली
'अत्फ़-ओ-लुत्फ़ से भरी तेरी आँखें
वो पलकें उठें तो दीवाना कर दें
वो पलकें गिरें तो मस्ताना कर दें
मैं इनके करम का तालिब हूँ
मेरी तो हुब्ब-ए-वस्ल हैं तेरी आँखें
वो तड़पाती तरसाती आवारा बनाती हैं
करें कुछ तो ख़याल मेरा तेरी आँखें
हैं जीने-मरने का सबब मेरे
यह रूह-ए-घरक तेरी आँखें
आरा'इश पलकें आब-ए-आ'इना हैं
खुदा का कमाल-ओ-जमाल हैं तेरी आँखें
अक़ीदा-ए-तअश्शुक हैं अबसार तेरे
हैं काबिल-ए-परस्तिश तेरी आँखें
आशिक बहुत क़त्ल हुए होंगे 'निर्जन'
गुल-ए-हुस्न ज़रा अब संभाल तेरी आँखें
बद्र-ए-बहार - full moon glory, beauty & delight
बादः - wine & spirits
'अत्फ़ - kindness, affection
तालिब - seeker
हुब्ब - desire
वस्ल - union, meeting
रूह - spirit
घरक - drowning
आरा'इश - decorating, adoring, beauty
आब-ए-आ'इना - polish of a mirror
अक़ीदा - religion
तअश्शुक - love, affection
अबसार - eyes
परस्तिश - offering prayer
गुल - rose
हुस्न - beauty and elegance
--- तुषार राज रस्तोगी ---
चिप्पियाँ:
आँखें,
इश्क़ मोहब्बत,
उर्दू कविता,
ग़ज़ल,
तुषार,
निर्जन,
रूमानी
मंगलवार, फ़रवरी 03, 2015
सवाब-ए-इश्क़
अपने मुस्तकबिल में चाहता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए
इश्क़ से लबरेज़ दिल को मेरे
वो शान-ए-हाल मिल जाए
उनकी मदहोश आंखों में
मेरा खोया ख़्वाब मिल जाए
गुज़रते हुए लम्हातों में
इंतज़ार-ए-सौगात मिल जाए
सरगर्म मोहब्बत को मेरी
ख़ुशनुमा एहसास मिल जाए
अछाईयां जो हैं दामन में मेरे
उनका वो कारदार मिल जाए
आरज़ुओं से तरसती नज़रों को
वो गुल-ए-गुलज़ार मिल जाए
जो हैं ज़िन्दगी से ज्यादा अज़ीज़
वो यार-प्यार-दिलदार मिल जाए
अपने मुस्तकबिल में ढूँढता हूँ
जान-ए-इस्तिक्बाल में वही
ख़ुदाया सवाब-ए-इश्क़ मिल जाए
जान-ए-इस्तिक्बाल - Life of our future
सवाब - Blessing
शान-ए-हाल - Dignity of our present
सरगर्म - Diligent
कारदार - Manager
--- तुषार राज रस्तोगी ---
रविवार, दिसंबर 28, 2014
लगे हैं
इस साल के दिन जाने लगे हैं
नए साल के दिन आने लगे हैं
नए दिन देखो क्या आने लगे हैं
बीते दिन सब भूल जाने लगे हैं
बिछड़े बच्चे गुम जाने लगे हैं
अपनों के ग़म सताने लगे हैं
बाढ़ और प्रलय तड़पाने लगे हैं
पीड़ितों को बाबू जताने लगे हैं
सीमा पर आहुति चढ़ाने लगे हैं
उजड़ी मांगों को तरसाने लगे हैं
चुनावी दिवस अब आने लगे हैं
नेता भी अपनी खुजाने लगे हैं
चील गिद्ध बन मंडराने लगे हैं
ज़ख्मों को नोच खाने लगे हैं
गले सब के फड़फड़ाने लगे हैं
मौकापरस्त मेंढक टर्राने लगे हैं
सबको ग़लत गिनवाने लगे हैं
करनी अपनी छिपाने लगे हैं
दूसरों में दोष दिखाने लगे हैं
सब दूध से अब नहाने लगे हैं
भाषण से जनता बहलाने लगे हैं
टोपी सभी को पहनाने लगे हैं
दर्द और टीस के आने लगे हैं
'निर्जन' दाम पकड़ने लगे हैं
आदमखोर कितने सयाने लगे हैं
इंसा के दुःख को भुनाने लगे हैं
ज़ख्म पुराने यूँ भर जाने लगे हैं
ज़ख्म नए आवाज़ लगाने लगे हैं
--- तुषार राज रस्तोगी ---
शनिवार, दिसंबर 14, 2013
मुक़म्मल इंसान हो तुम
गैरों के एहसास
समझ सकते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
लोगों की परख
रखते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
बेबाक़ जज़्बात
बयां करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
आँखों से हर बात
कहा करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़ल्ब* को साफ़
किये चलते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
दिल से माफ़ी
दिया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
आशिक़ी बेबाक
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
लबों पर मुस्कान
लिए रहते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
खुल कर बात
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़त्ल बातों से
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़ौल* का पक्का
रहा करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
क़ायदा* गर्मजोशी
का रखते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
ज़बां पर ख़ामोशी
लिए रहते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
आफ़त को बिंदास
हुए सहते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
गुज़ारिश दिल से
किया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
ग़म को चुप्पी से
पिया करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
जिगर शेर का
रखा करते हो, तो
मुक़म्मल इंसान हो तुम
जज़्बा बचपन सा
लिए जीते हो, तो
'निर्जन' हो तुम...
मुक़म्मल - पूर्ण / Complete
क़ल्ब - दिल
क़ौल - बात
क़ायदा - तरीका
शुक्रवार, मार्च 08, 2013
पूर्ण पुरुष, युगपुरुष...
मानव जन्म क्या
एक बुदबुदा है
और उसका जीवन
एक कर्म,
कर्म अपूर्व कर्म पर
जब यह कर्म
अधूरा रह जाता है
किसी के प्रति, तब
एक कसमसाहट
कुछ यंत्रणाएँ
असहनीय तड़प
अव्यक्त पीड़ा
मन मस्तिष्क
में लिए
वो बुदबुदा
नया रूप लिए
फिर आता है
क्यों क्या, का
कर्म पूरा करने को
या किसी को, कर्म में
सहभागी बनाने को
नहीं जानता, जीवन
तू अपने नाम
में पूर्ण है, लेकिन
आत्मा में पूर्ण नहीं
वो तुझसे कहीं परे
अपने विस्तार
को बढ़ाये हुए
होने पर
सिमटी है
तुझमें छिपी है
शायद तुझे
मान, सम्मान
यश देने को
उस की आवाज़ सुन
उस की बात गुन
उस के संस्कार चुन
तभी तू पूर्ण जीवन
कहलायेगा,
कहलायेगा
पूर्ण पुरुष, युगपुरुष...
--- तुषार राज रस्तोगी ---
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