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रविवार, जून 21, 2015

रहती है














लोग मिलते ही हैं औ महफ़िल भी जवां रहती है
वो साथ ना हो तो हुस्न-ए-शय में कमी रहती है

ग़रचे ये नहीं है ख़ुशी मनाने का मौसम तो फिर
जो ख़ुशी मनाऊं भी तो पलकों में नमी रहती है

हर किसी दिल में उफ़नता नहीं सर-ए-उल्फ़त
कुछ दिलों पर सदा गर्द-ए-मायूसी जमी रहती है

इश्क़ मसाफ़त-ए-हस्ती है ज़माने को क्या मालूम
कब तलक किसकी हमसफ़री हमक़दमी रहती है

तू भी उस हूरान-ए-ख़ुल्द पर फ़नाह है 'निर्जन'
जिसके लिए खुदा की धड़कन भी थमी रहती है

सर-ए-उल्फ़त - Madness for Love
गर्द-ए-मायूसी - Trifle of Sorrows
मसाफ़त-ए-हस्ती - Journey of Life
हूरान-ए-ख़ुल्द - Houris of Paradise


--- तुषार राज रस्तोगी ---