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शनिवार, अगस्त 03, 2013

इंतज़ार उसका मुझे
















वो कहते हैं इश्क नहीं
होता पहली नज़र में
मैंने जिस से भी किया
आज भी निभा रहा हूँ

सुलगते जो दिल में
जज़्बात रहते हैं मेरे
आज लिखकर उन्हें
दिलसे बतला रहा हूँ

वो आया था नज़रों में
फिर दिल को भा गया
एक निगाह डाल कर
मुझे अपना बना गया

रंग ऐसा चढ़ा उसका
छुड़ाए छुट न सका
बाद मुददतों के भी
नाम मिट न सका

पतंगा बन कर रहा
आग में जलता रहा
बरसों 'निर्जन' यूँ ही
बस पिघलता रहा

इंतज़ार उसका मुझे
आज भी है ऐ दोस्त
उम्रभर इश्क को मेरे
जो बैठा परखता रहा

गुरुवार, अगस्त 01, 2013

लोगों की जान बचाएं














चम्मच चमचा जोड़, पार्टी लई बनाये
बन नेताजी अब, तेवर हैं दिखलाये
तेवर हैं दिखलाये, छुरी, कांटे भी है
जनता का लें ट्रस्ट, देते धोखा ही हैं

बैठ सवारी कार की, मारुती में आये
शुरुवात में पार्टी, कंगाली दिखलाये
कंगाली दिखलाये, मंशा स्वार्थी इनकी
ज्योही नकदी पाए, आ गई हौंडा सिटी

कहे वचन पुरजोर, करेंगे ये भी वो भी
करेका आया वक़्त, दिखाए ठेंगा ये भी
दिखाए ठेंगा ये भी, थे बड़े ही कपटी
तुरंत उछल बैठे, कुर्सी झट से झपटी

गलत नीति अपनाये, करते मनमानी
प्रत्याशी के रूप में, खड़े सेठ सेठानी
खड़े सेठ सेठानी, खीसा इनका भारी
कार्यकर्ता हैं त्रस्त, आई ये नई बीमारी

बीमारी दूर करे की, दवा जो बतलाई  
नेता हुए रुष्ट सबको, आँख दिखलाई
आँख दिखलाई, अहं की हुई लड़ाई
कार्यकर्ताओं से अपने, मुंह की खाई

गए स्वराजी भिड़, देखा न आगे पीछे
अब देखो नेताजी, आते हैं कब नीचे
आते हैं कब नीचे, गलत नीति दुखदाई
कोई तो समझाए, अक्ल क्या भैंस चराई

पार्टी का नुक्सान, बचना अब मुश्किल
छवि हो रही ख़राब, गिरेगी तिल तिल
गिरेगी तिल तिल, आओ सब मिल जाएं
ऐसे भ्रष्ट नेता से, लोगों की जान बचाएं

डाले नहीं हथियार, लड़ेंगे मिलकर
नेताजी मांगेगे माफ़ी, आगे चलकर
आगे चलकर, आएगा मोड़ एक ऐसा
तब नेताजी पाएंगे, जब जैसे को तैसा 

रविवार, जुलाई 28, 2013

दर्द और मैं

















दिल के दर्द क्यों दिखलाऊं
दिल की बातें क्यों बतलाऊं
दिल को अपने मैं समझाऊं
जीवन में बस चलता जाऊं
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दर्द मेरा बस मेरा ही है
दर्द तेरा बस मेरा भी है
दर्द से बनते रिश्तों में
एहसास बड़ा गहरा भी है
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खुशियाँ मेरी जब दी हैं
दुआएं दिल से तब ली हैं
ज़िन्दगी मेरी सब की है
हंसी लबों पर अब भी हैं
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रात काली थी चली गई
सुबह सुहानी दिखी नही
किस्मत का ये देखो ज़ोर
सन्नाटे में सुनता हूँ शोर
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बातें उनसे होती हैं कई
दिल फिर भी मिलते नहीं
बातें बस बातें ही रहती हैं
ख़ामोशी ही सच कहती हैं
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परदे के पीछे वो चुप है
परदे के आगे मैं चुप हूँ
आखीर क्यों वो चुप है
आखीर क्यों मैं चुप हूँ
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धोखा कोई देता नही
धोखा कोई खाता नही
सब किस्मत का खेला है
दर्द ही बस अकेला है
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सोमवार, जुलाई 22, 2013

स्वराज की मशाल





















मशाल लिए हाथ में 
हर एक खड़ा है 
ये आम आदमी है 
न छोटा है न बड़ा है 
हल्का ही सही 
तमाचा तो लगा है 
चमचों की मुहीम पर 
एक सांचा तो कसा है 
मान लो गर गलती 
तो छोड़ देंगे हम 
जो करेंगे चापलूसी 
उन्हें तोड़ देंगे हम 
'स्वराज' है 
हक हमारा 
इसे ला कर रहेंगे 
अपने विचारों को
अब खुलकर कहेंगे
दिलों में अपने 
जोश अब 
कम होने न पाए 
आओ सब मिलकर 
अब एक हो जाएँ 
आवाज़ सबके 
दिल से 'निर्जन' 
उठती है यही
स्वराज है 
स्वराज है 
हाँ स्वराज है यही

गुरुवार, जुलाई 18, 2013

यहाँ दिल अब पत्थर हैं




















व्यक्ति विशेष यहाँ ऐसे भी हैं
जिनमें शेष अब प्राण नहीं
विचारों से निष्प्राण हैं जो
उन्हें सही गलत का ज्ञान नहीं

कुछ लोग यहाँ ऐसे भी है
जो दोस्त बनकर डसते हैं
मुंह देखे मीठी बातें कर
पीठ पीछे से हँसते हैं

बातें करते हैं बड़ी बड़ी
कलम कागज़ पर घिसते हैं
पर शब्दों में वज़न नहीं
कोरी बातें ही लिखते हैं

कलयुग है यह वाजिब है
भरोसा और ऐतबार नहीं
लोगों के दिल अब पत्थर हैं
सूखे दिलों में प्यार नहीं

तू निरा मलंग है 'निर्जन'
ना जाने नफा नुक्सान है क्या
बस दिल से दोस्त बनाकर तू
क्यों खाता है धोखे ये बता?

ख़ामोशी है वीरानों सी
दिल में मगर विश्वास यही
एक दिन तो दोस्त मिलेगा वो
दिल जिसका बेजान नहीं 

रविवार, जुलाई 14, 2013

ऐसे हैं हम





















आदत में हम अपनी
स्वराज ले भिड़ते हैं
ऐसे स्वाराजी है हम

खून में हम अपने
गर्मी ले बढ़ते हैं
ऐसे जोशीले हैं हम

बदल सके जो हमको
ज़माना नहीं बना वो
ऐसे हठीले हैं हम

आसमानों में परिंदों
से आजाद उड़ते हैं
फौलादी हवाओं को
ले साथ फिरते हैं
गहराई सागरों की
मापते फिरते हैं
दोस्त हो या दुश्मन
गर्मजोशी से मिलते हैं

आँखों में हम अपनी
सपने ले जीते हैं
ऐसे मतवाले हैं हम

जिगर में हम अपने
आग ले जलते हैं
ऐसे लड़ाकू हैं हम

दिल में 'निर्जन' अपने
उम्मीद ले चलते हैं
ऐसे आशावादी हैं हम

गुरुवार, जुलाई 11, 2013

हंसी और ग़म



















होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कहीं ज्यादा है, कहीं पर कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
मुस्कान भी है, आँखे नम हैं

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
पास तो है, पर क्या दूरी कम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
क्या व्हिस्की और क्या रम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
कुछ चलता सा, कुछ कुछ थम है

होठों पे हंसी, दिल में ग़म है
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं

सोमवार, जुलाई 08, 2013

'स्वराज' की हुंकार















अंतर्मन चीत्कार कर
बहिर्मन प्रतिकार कर
प्रघोष महाघोष कर
निनाद महानाद कर
नाद कर नाद कर
'स्वराज' का प्रणाद कर

साम, दाम, दण्ड, भेद
ह्रदय में रह न जाये खेद
भुलाकर समस्त मतभेद
सीना दुश्मनों का छेद
प्रहार कर प्रहार कर
'स्वराज' की दहाड़ कर

मुल्क अब भी गुलाम है
चाटुकारी आम है
काट चमचो का सर
धरती को स्वाधीन कर
उद्घोष कर उद्घोष कर
'स्वराज' की हुंकार भर

कदम रुकेंगे नहीं
कदम डिगेंगे नहीं
अटल रहे अडिग रहे
सर उठा कर कहे
बढ़ चले बढ़ चले
'स्वराज' पथ पर चढ़े

रणफेरी की ललकार है
मच रहा हाहाकार है
रावणों की फ़ौज है
भक्षकों की मौज है
मार कर मार कर
'स्वराज' का वार कर

शनिवार, जुलाई 06, 2013

ख़ुशी और सुख

















ख़ुशी और सुख के
अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको 
वहां ठिकाने 
जहाँ तेरा ही 
बस डेरा हो 
जहाँ आनंद ने 
घेरा हो 
तेरे उस 
अथाह समुन्द्र में
क्या मैं 
डूब ना जाऊंगा 
उबरने की 
कोई जगह ना हो 
बस मुस्कानों में 
डूबता जाऊंगा  
ले चल मुझे 
एक अनोखे जहाँ में 
कपट, लोभ, नफरत से दूर 
जहाँ तू भी अकेला है 
यहाँ मैं भी अकेला हूँ 
'निर्जन' मीत तू बन ऐसे 
जैसे सागर में फेना है 
ओ मेरे सुख
बस इस दिल में 
एक तेरा ही बसेरा है 
जीवन दुःख से मुक्त हो 
आत्मा बंधन से रिक्त हो 
एक ऐसे खुशहाल संसार में 
जहाँ सिर्फ खुशियों का डेरा हो 
ओ सुख के अनमोल खज़ाने
ले चल मुझको वहां ठिकाने

शनिवार, जून 29, 2013

यह भारत है देश मेरा



यह भारत है देश मेरा
इस देश के लोग निराले हैं
कुछ मरने मिटने वाले हैं
कुछ करते घोटाले हैं

कुछ देश के भक्त यहाँ
कुछ के ठाठ निराले हैं
कुछ नेता के चमचे हैं
कुछ बाबर के साले हैं

जिहादी गुंडे कितने
देखो दाढ़ी वाले हैं
गंगा के घाट पे बैठे हैं
जितने कंठी वाले हैं

झुकते हैं कुछ काबे पर
कुछ मंदिर में जाते हैं
इंसानियत क्या होती है
ये इसका पता न पाते हैं

मैं करता बात 'स्वराज' की हूँ
इन सबमें सबसे काला हूँ
मैं 'निर्जन' भारत माता की
पावन मिटटी का पाला हूँ

यह भारत है देश मेरा...

'स्वराज' लिखूंगा












कलम उठा दीवारों पर, 'स्वराज' लिखूंगा
अपने दिल से उठती हर, आवाज़ लिखूंगा

मशाल उठा हाथों में, धर्म का ज्ञान कहूँगा
अपने शब्दों से क्रांति का, मान कहूँगा

बातें न कर के, अब बस मैं कर्म करूँगा
राष्ट्र-हित में सही है जो, वह धर्म करूँगा

गीता का पाठ, सिखाता है देश पर मिटना
भिड़ना दुश्मन से, और सर काट कर लड़ना  
 
अब न बैठो ठूंठ, समय मत और गंवाओ
युद्ध करो जवानों, जंग का बिगुल बजाओ

गर्म खून में जोश है कितना, कितनी है रवानी
'निर्जन' हो जा तयार, भारत की है लाज बचानी

शनिवार, जून 22, 2013

आवाज़ बुलंद अब करना है





















कमाल है धमाल है
लोकतंत्र बेमिसाल है
जनता का बुरा हाल है
ये सरकारी चाल है

भूखे गरीब मर रहे
धनवान तिजोरी भर रहे
महंगाई से लोग डर रहे
पप्पू मज़े हैं कर रहे

क़ुदरत भी आज ख़िलाफ़ है
कुकर्मों का अभिश्राप है
विपदा जो सर पर आई है
सरकार ही इसको लाई है

गिद्ध और बाज़ वो बन रहे
आसमान से दौरा कर रहे
लाशों के मंज़र देख रहे
चील सी आँखे सेंक रहे

प्रशासन बदहाल है
चांडालों की ढाल है
ज़ुल्मों से बेज़ार है
आम जनता ज़ार-ज़ार है

कुछ करोड़ हैं खर्च रहे
दिखावा चमचे कर रहे
मरने वाले हैं मर रहे
वो विदेशों में ऐश कर रहे

सवाल मेरा बस इतना है
घुट घुट कब तक मरना है?
कब तक हमको डरना है?
आज समय है हमको लड़ना है

आवाज़ बुलंद अब करना है...
आवाज़ बुलंद अब करना है...

गुरुवार, जून 13, 2013

चाटुकारी और चाटुकार
















चाटुकारी बड़ी महामारी
एक चाटुकार सौ पर भारी

अमानवता धर्म है इनका
थूक चाटना कर्म है इनका

तलवे चांटे, चलाए दिमाग
जय जय चापलूस विभाग

देशभक्त अब साइड हो गए
चाटुकार ही गाइड हो गए

पानी जैसा रक्त हो गया
नेता का गुर्गा भक्त हो गया

खुले कभी न इनकी पोल
कर लें चाहें कितने झोल

महा लिजलिजे लोभी आप
कर लो कुछ भी नहीं है पाप

महकमों में है आपका राज
चाहे होवे या ना होवे काज

चिकनी चुपड़ी से सब राज़ी हैं
चमचागिरी सर्वप्रिय बाज़ी है

चमचे आज होनहार हो गए
भारत की सरकार हो गए 

शनिवार, जून 08, 2013

घुंघरू













आज एक 
मूक घुंघरू भी 
कह उठा
मैं, मूक नहीं हूँ 
वो कहता है 
मेरा स्वर
प्रत्येक व्यक्ति के 
लिए नहीं है 
उस व्यक्ति के
लिए नहीं है 
जो मुझे जानने की 
इच्छा रखता है 
जो मुक्ता का 
स्वर जानता है 
दर्द पहचानता है 
उच्च स्वर का 
यन्त्र अचानक 
मौन कैसे हुआ 
जिसने संसार को 
अनेक स्वर दिए 
पर, बदले में 
मिला एक 
दाग भरा नाम
फिर वो मूक हुआ 
उसने अपनी शांति में 
ईश्वर को सुना 
बस अब तक तो 
वो बजता था 
तब, सब सुनते थे 
पर आज 
ईश्वर का स्वर स्वयं 
बजना है 
वो मूक बना 
उस स्वर का 
आनंद लेता है 
इस लिए ईश्वर को 
पाने वाला ही 'निर्जन'
उस घुंघरू की 
ताल और लय
सुन पायेगा

मंगलवार, जून 04, 2013

चाँद पूनम का

















चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा

रात चाँद की चांदनी में सिसकता बदल देखा
मैंने रात की आँखों से पिघलता काजल देखा

काजल सी रात में तेरी बातें करता रहा खुद से
गूंजते रहे अलफ़ाज़ तेरे जुदा हो गया मैं खुद से

घुमड़ आई यादों की घटा बदली बन दिल पर
भीगता रहा रात भर मैं अपने लब सिल कर

हौसला छीन लिया मुझसे ग़म-ए-जिंदगानी ने
ख़ाक कर दिया दिल जलाकर रात तूफानी ने

आबाद हो जायेगा 'निर्जन' फिर शायद मर कर
जो फकत देख लेती तू कजरारे नयनो से मुड़ के

चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा 

बुधवार, मई 29, 2013

आईपीएल की खुल गई पोल

















हल्ला बोल हल्ला बोल
आईपीएल की खुल गई पोल
अन्दर खाने कित्त्ते हैं झोल
हो रही सबकी सिट्टी गोल

ये मैच नहीं ये फिक्सिंग है
लगता मुझको तो मिक्सिंग है
बीमारी है अड़ियल अमीरों की
ये नसल है घटिया ज़मीरों की

नैतिकता ताख पे रक्खी हैं
ये खिलाड़ी हैं या झक्की हैं
जो चंद करोड़ पर नक्की हैं
लगते गोबर की मक्खी हैं

नारी गरिमा पर धुल पड़ी
आधी नंगी हो फूल खड़ी
चीयर गर्ल बन इतराती है
मैदान में कुल्हे मटकाती है

बस संत इनमें श्रीसंत हैं जी
आईयाश बड़े महंत हैं जी
फिक्सिंग में पकड़े जाते हैं जी
रंगरलियाँ खूब मनाते हैं जी

फ़िल्मी बकरे भी जमकर के
आईपिएल में मटर भुनाते हैं
विन्दु सरीखे पूत यहाँ पर
पिता की लाज गंवाते है

मैच के बाद की पार्टी में
आईयाशियों के दौर चलते हैं
दारु, लड़की, चिकन, कबाब
हर एक के साथ में सजते हैं

जीजा, साले, और सुसर यहाँ
एक दूजे की विकेट उड़ाते हैं
सट्टेबाजी के बाउंसर पर
बेटिंग अपनी दिखलाते हैं

मोहब्बत, जंग और राजनीति में
कहते हैं सबकुछ जायज़ है
आईपीएल की नई दुनिया में
सुना है खेल में सबकुछ जायज़ है

मैं पूछता हूँ अब आपसे यह
क्या जायज़ है ? क्या नाजायज़ है ?
जनता करेगी यह फैसला अब
कौन लायक है ? कौन नालायक है ?

बल्ला बोल बल्ला बोल
हल्ला बोल हल्ला बोल
आईपीएल की खुल गई पोल
आईपीएल की खुल गई पोल 

रविवार, मई 26, 2013

किसकी सज़ा है ?
















ऐ वादियों
मैं तुम से पूछता हूँ
झरनों में भी देखता हूँ
नदियों में ढूँढता हूँ
ये नयन न जाने
किसे खोजते हैं
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है
प्रभाकर जब आएगा
चमक उठेगा मन
डोल उठेगी आत्मा
पर्वतों पर कूदती
झरनों को लूटती
सरिता से फूटती
रौशनी समेटे
तब 'निर्जन'
दूंगा अंधियारे को सज़ा
किसकी सज़ा है
ये किसकी सज़ा है

गुरुवार, मई 23, 2013

दुःख




















दिल लगे तब दुःख होता है
दुःख होता है तो तू रोता है
जो रोता है तो चैन से सोता है
सोता है तो सपनो में खोता है

बातें जो तप चुकी दिन में
शब्द जो पक चुके मन में
अब सपनो में दिख जाते है
सियाह रात में बहे जाते है

बाल सफ़ेद हो गए तेरे
काले अनुभवों के लिए घेरे
कब तक तू यह सह पायेगा  ?
क्या आंसु से लकीरें बदल पाएगा ?

दुखी होना हल नहीं जीवन का
दुःख में जीना बल है जीवन का
कह दो बात जो कही नहीं जा रही
बतलाओ बात जो सही नहीं जा रही

मुंह से बोल कर ही निजात पायेगा
वरना घुट घुट का बिखर जायेगा
दुःख के बवंडर में घिरता जायेगा
'निर्जन' खुद को खुद से जुदा पायेगा

शनिवार, मई 11, 2013

धोखेबाज़




















यारों इस बरस
तो गर्मी खूब है
इसी लिए अपने
दिमागी की बत्ती
एकदम फ्यूज है
कशमकश में
अपनी ज़िन्दगी है
दिल का करें
वो भी कन्फूज है
कनेक्ट करने की
जो कोशिश की
हर कनेक्शन का
फ्यूज भी लूज़ है
आलम अब तो
ज़िन्दगी का जे है की
अपनों के साथ भी
डिस-कनेक्शन
हो रहा है
कहीं भी कुछ भी
क्लिक नहीं हो रहा है
जीवन के इस  मोड़ पर
'निर्जन' तुझको ही क्यों
कठिनाइयाँ मिल रही हैं
भाग्य, समय, मानव
सब एक साथ मिलकर
चौक्कों-छक्कों सा
तुझे दबादब धो रहे है
गॉड जी के यहाँ भी
हो रहा है इलेक्शन
अपने जो खास थे
दिल के पास थे
बचपन में गुज़ारे
लम्हे जिनके साथ थे
चल दिए वो भी
करवा कर सिलेक्शन
उम्र आने से पहले ही
भर आये हैं यह
नॉमिनेशन फार्म
ताख पर रख कर
ज़िन्दगी के सारे नॉर्म
हो लिए अचानक से
गो, वेंट, गॉन
मैं खड़ा देखता रहा
बस हाथ मलता रहा
जीवन के मोती रहे
हाथों से मेरे रेत की
भांति फिसलते
सोचता हूँ बस
बैठ कर अकेला
अपने ही ऐसे
धोखेबाज़
क्यों हैं निकलते ?

बुधवार, मई 08, 2013

कर्म की मिठास














पग घुंघरू बाँध
मीरा नाची थी
केशव
की याद में, या
फिर केशव
के कर्म
रंग, रूप, गुण
की गंध में
मुग्ध हुई
मन वीणा, की
झंकार पर
नाची थी
हाँ
कर्म की
झंकार ही ने
मीरा को
बाध्य किया
नाचने पर
कर्म की मिठास ही
जीवन को सतरंगी
बनाती है