व्यक्ति विशेष यहाँ ऐसे भी हैं
जिनमें शेष अब प्राण नहीं
विचारों से निष्प्राण हैं जो
उन्हें सही गलत का ज्ञान नहीं
कुछ लोग यहाँ ऐसे भी है
जो दोस्त बनकर डसते हैं
मुंह देखे मीठी बातें कर
पीठ पीछे से हँसते हैं
बातें करते हैं बड़ी बड़ी
कलम कागज़ पर घिसते हैं
पर शब्दों में वज़न नहीं
कोरी बातें ही लिखते हैं
कलयुग है यह वाजिब है
भरोसा और ऐतबार नहीं
लोगों के दिल अब पत्थर हैं
सूखे दिलों में प्यार नहीं
तू निरा मलंग है 'निर्जन'
ना जाने नफा नुक्सान है क्या
बस दिल से दोस्त बनाकर तू
क्यों खाता है धोखे ये बता?
ख़ामोशी है वीरानों सी
दिल में मगर विश्वास यही
एक दिन तो दोस्त मिलेगा वो
दिल जिसका बेजान नहीं
सुन्दर। दोस्त आपको जरुर मिलेगा एक दिन, जो मनुष्य जैसा हो।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी मार्मिक रचना पढकर यह पत्थर दिल पिघल गया :)
जवाब देंहटाएंऐसी निराशा भी क्या, हर पतझड के बाद चमन खिलते है। :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,,,वाह !!!
RECENT POST : अभी भी आशा है,
कलयुग है यह वाजिब है
जवाब देंहटाएंभरोसा और ऐतबार नहीं
लोगों के दिल अब पत्थर हैं
सूखे दिलों में प्यार नहीं
सुन्दर रचना ............
सुन्दर रचना तुषार भाई।।
जवाब देंहटाएंनये लेख : "भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक" पर जारी 5 रुपये का सिक्का मिल ही गया!!
जब इंसान का खून ही सुख गया हो तो पत्थर ही बचेंगे , और उनसे फिर क्या अपेक्षा,क्या मित्रता
जवाब देंहटाएंसुन्दर मार्मिक रचना ,सुन्दर भाव अभिव्यक्ति
कलियुग में भरोसा और ऐतबार ख़त्म मगर इसकी चाह हर दिल को है, कोई एक तो होगा जिसका दिल बेजान न होगा... सुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत ही लाजवाब पोस्ट
हार्दिक शुभकामनायें ....
और चोट कहाँ खा बैठे ??
जवाब देंहटाएंसटीक पोस्ट
हार्दिक शुभकामनायें ....
ak achchi rachna ke liye hardik badhai
जवाब देंहटाएंआस विश्वास बना रहे... मिलेगा अवश्य वह दोस्त!
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंYou are right what you said.
जवाब देंहटाएंVinnie