गुरुवार, जुलाई 18, 2013

यहाँ दिल अब पत्थर हैं




















व्यक्ति विशेष यहाँ ऐसे भी हैं
जिनमें शेष अब प्राण नहीं
विचारों से निष्प्राण हैं जो
उन्हें सही गलत का ज्ञान नहीं

कुछ लोग यहाँ ऐसे भी है
जो दोस्त बनकर डसते हैं
मुंह देखे मीठी बातें कर
पीठ पीछे से हँसते हैं

बातें करते हैं बड़ी बड़ी
कलम कागज़ पर घिसते हैं
पर शब्दों में वज़न नहीं
कोरी बातें ही लिखते हैं

कलयुग है यह वाजिब है
भरोसा और ऐतबार नहीं
लोगों के दिल अब पत्थर हैं
सूखे दिलों में प्यार नहीं

तू निरा मलंग है 'निर्जन'
ना जाने नफा नुक्सान है क्या
बस दिल से दोस्त बनाकर तू
क्यों खाता है धोखे ये बता?

ख़ामोशी है वीरानों सी
दिल में मगर विश्वास यही
एक दिन तो दोस्त मिलेगा वो
दिल जिसका बेजान नहीं 

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्‍दर। दोस्‍त आपको जरुर मिलेगा एक दिन, जो मनुष्‍य जैसा हो।

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  2. सुन्दर लेख

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  3. आपकी मार्मिक रचना पढकर यह पत्थर दिल पिघल गया :)

    ऐसी निराशा भी क्या, हर पतझड के बाद चमन खिलते है। :)

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  4. कलयुग है यह वाजिब है
    भरोसा और ऐतबार नहीं
    लोगों के दिल अब पत्थर हैं
    सूखे दिलों में प्यार नहीं

    सुन्दर रचना ............

    जवाब देंहटाएं
  5. जब इंसान का खून ही सुख गया हो तो पत्थर ही बचेंगे , और उनसे फिर क्या अपेक्षा,क्या मित्रता
    सुन्दर मार्मिक रचना ,सुन्दर भाव अभिव्यक्ति

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  6. कलियुग में भरोसा और ऐतबार ख़त्म मगर इसकी चाह हर दिल को है, कोई एक तो होगा जिसका दिल बेजान न होगा... सुन्दर रचना, बधाई.

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  7. शुभप्रभात
    बहुत सुंदर
    बहुत ही लाजवाब पोस्ट
    हार्दिक शुभकामनायें ....

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  8. और चोट कहाँ खा बैठे ??
    सटीक पोस्ट
    हार्दिक शुभकामनायें ....

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  9. आस विश्वास बना रहे... मिलेगा अवश्य वह दोस्त!

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  10. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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