मौज उड़ा रहे हैं
बिस्तर पर पड़े
हम तो
पकोड़े खा रहे हैं
टीवी चला रहे हैं
मैच लगा रहे हैं
बल्ले पे बॉल आई
गुरु जी
धोते जा रहे हैं
लंच बना रहे हैं
परांठे सिकवा रहे हैं
लाल मिर्च निम्बू के
अचार से
चटखारे ले खा रहे हैं
रायता बिला रहे हैं
बूंदी मिला रहे हैं
फिर करछी आंच
पर रख हम
छौंका बना रहे हैं
बच्चों को पढ़ा रहे हैं
सर अपना खपा रहे हैं
हाथ में ले के डंडा
हम उनको
डरा धमका रहे हैं
सुस्ती दिखा रहे हैं
खटिया पे जा रहे हैं
लैपटॉप सामने रख
हम तो
उँगलियाँ चला रहे हैं
अब सोने जा रहे हैं
ख्व़ाब सजा रहे हैं
चादर ताने मुंह तक
हम अब
चुस्ती दिखा जा रहे हैं
शब्द सजा रहे हैं
सोच दौड़ा रहे हैं
कीबोर्ड यूज़ करके
हम अब
कवीता बना रहे हैं
जल्दी से लिख रहे हैं
पोस्ट बना रहे हैं
फेसबुक पर बैठे
हम ये
रचना पढ़वा रहे हैं
लोग भी आ रहे हैं
पढ़ पढ़ के जा रहे हैं
सिर्फ लाइक कर के
सब ये
बिना कमेंट किये जा रहे हैं
सन्डे मना रहे हैं
मौज उड़ा रहे हैं
बहुत सही कर रहे हैं आप!
जवाब देंहटाएं--
रचना भी अच्छी है!
bahut achhe .........................bilkul badhiya andaaj................@nand
जवाब देंहटाएंbahut achha andaaj ..............prastuti ka;............
जवाब देंहटाएं@nand
संडे मुबारक ...
जवाब देंहटाएंआपका हर संडे ऐसे ही बीते ... आमीन ..
सन्डे मना रहे हैं
जवाब देंहटाएंमौज उड़ा रहे हैं
कुछ अपनी बता रहे हैं
कुछ दूसरों की माखौल उड़ा रहे हैं
बेमिसाल
बहुत ही सुन्दर
आबाद रहें !!
वाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसुंदर कल्पना
बधाई
सुन्दर प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
आप की कविता,"संडे मना रहें हैं।" मजेदार कविता है।
जवाब देंहटाएंसच में आप ने रविवार मनाने का अच्छा तरीका अपनाया है।
मुझे सारी कविता में सब से अच्छी यह लाईनें लगीं--
लोग भी आ रहे हैं
पढ़-पढ़ के जा रहे हैं
सिर्फ लाईक कर के
सब ये
बिना कमेंट किये जा रहें हैं।
आप हल्के फुल्के शब्दों में सच्चाई का बयान कर जाते हैं।
विन्नी