हम बेसहारा ना रहे, ग़म के सहारे हो गए
तुम हमेशा ही रहे, बेगुनाहों की फेहरिस्त में
तुम्हारे जो भी थे गुनाह, अब नाम हमारे हो गए
आज हम भी जुड़ गए, रोटी को निकली भीड़ में
किस्मत के मारे जो थे हम, सड़कों के मारे हो गए
बंट गया वजूद अपना, कितने ही रिश्तों में अब
तन एक ही रह गया है, दिल के टुकड़े हो गए
तैराए दुआओं के जहाज़, उम्मीदों के समंदर में
हम तो बस डूबे रहे, बाक़ी सब किनारा हो गए
कल किसी ने नाम लेकर, दिल से पुकारा था हमें
अब तक थे जो अजनबी, अब जानेजाना हो गए
कहते थे जब हम ये बातें, पगला बताते थे हमें
आज वे बतलाने वाले, खुद ही पगले हो गए
दिल के ये जज़्बात तुमको, नज़र करने थे हमें
गाफ़िल मोहब्बत में रहे, हम खुद नजराना हो गए
इश्क जो करते हो तुम, आज बतला दो हमें
अब तलक बस हम थे अपने, अब से तुम्हारे हो गए
नींद भी गायब है अपनी, चैन भी टोके हमें
अश्क जो रातों में बहे थे, जुल्फों में अटके रह गए
है अधूरी ये ग़ज़ल, मुकम्मल तुम करदो इसे
वो चंद जो आशार थे, बहर से भटके रह गए
रात आई, ख्व़ाब सारे, चाँद तारे हो गए
हम बेसहारा ना रहे, ग़म के सहारे हो गए
यह ग़ज़ल शैली नामक कविता श्रद्धोन्मत्त के साथ मिलकर सम्पूर्ण की गई |
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
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आपकी पोस्ट की चर्चा आज शनिवार (06-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ...सादर!
शुक्रिया डाक्टर साहब |
हटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंgazab ki pratuti ....tushaar jee ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल रस्तोगी जी ... बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन सुंदर गजल !!!बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई तुसार जी,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: जुल्म
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंवो महकती पलकों की ओट से कोई तारा चमका था रात में
मेरी बंद मुट्ठी न खोलिए वही कोह-ए-नूर है हाथ में
आज हम भी जुड़ गए रोटी को निकली भीड़ से
जवाब देंहटाएंकिसमत के मारे थे सड़कों के मारे हो गए ...........लाजवाब।
बे-मिसाल !!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !!
तैराए दुआओं के जहाज, उम्मीदों के समंदर में
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब
बेहद उम्दा प्रस्तुति ... आभार
bahut achchhi ghazal lagi.
जवाब देंहटाएंpr kuchh lambi jayada hai.
लाजवाब गज़ल बन पड़ी है ... मस्त शेर हैं सभी ...
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