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शनिवार, मई 11, 2013

धोखेबाज़




















यारों इस बरस
तो गर्मी खूब है
इसी लिए अपने
दिमागी की बत्ती
एकदम फ्यूज है
कशमकश में
अपनी ज़िन्दगी है
दिल का करें
वो भी कन्फूज है
कनेक्ट करने की
जो कोशिश की
हर कनेक्शन का
फ्यूज भी लूज़ है
आलम अब तो
ज़िन्दगी का जे है की
अपनों के साथ भी
डिस-कनेक्शन
हो रहा है
कहीं भी कुछ भी
क्लिक नहीं हो रहा है
जीवन के इस  मोड़ पर
'निर्जन' तुझको ही क्यों
कठिनाइयाँ मिल रही हैं
भाग्य, समय, मानव
सब एक साथ मिलकर
चौक्कों-छक्कों सा
तुझे दबादब धो रहे है
गॉड जी के यहाँ भी
हो रहा है इलेक्शन
अपने जो खास थे
दिल के पास थे
बचपन में गुज़ारे
लम्हे जिनके साथ थे
चल दिए वो भी
करवा कर सिलेक्शन
उम्र आने से पहले ही
भर आये हैं यह
नॉमिनेशन फार्म
ताख पर रख कर
ज़िन्दगी के सारे नॉर्म
हो लिए अचानक से
गो, वेंट, गॉन
मैं खड़ा देखता रहा
बस हाथ मलता रहा
जीवन के मोती रहे
हाथों से मेरे रेत की
भांति फिसलते
सोचता हूँ बस
बैठ कर अकेला
अपने ही ऐसे
धोखेबाज़
क्यों हैं निकलते ?

बुधवार, मई 08, 2013

कर्म की मिठास














पग घुंघरू बाँध
मीरा नाची थी
केशव
की याद में, या
फिर केशव
के कर्म
रंग, रूप, गुण
की गंध में
मुग्ध हुई
मन वीणा, की
झंकार पर
नाची थी
हाँ
कर्म की
झंकार ही ने
मीरा को
बाध्य किया
नाचने पर
कर्म की मिठास ही
जीवन को सतरंगी
बनाती है 

बुधवार, मई 01, 2013

मज़दूर दिवस













आज एक मई है, दुनिया
मजदूर दिवस मना रही है
कोई उनसे जाकर भी पूछे
बेचारी मज़दूर की कौम, क्या
इस दिन से कुछ पा रही है ?
एक दिन मनाने से, क्या
भूखे पेट की आग
बुझ पा रही है ?
आज भी वही
बाजरे की रोटी,
लस्सन की चटनी,
और सूखी प्याज़
थल्ली में परसी जा रही है
क्या अपनी आब में ये
कोई इजाफा पा रहे हैं ?
अपने बच्चों के भविष्य
के लिए जगह जगह
हाथ फैला रहे हैं
हर पल हक़-इन्साफ
पाने को पिसते-तरसते
जा रहे हैं
सुना था कभी कहीं पर
इनको घर दिए जा रहे हैं
चोरों की कॉम सरकारी
अब रास्ते समझा रहे हैं
जिनको देखो, वो ही
लाला, पीले, नीले
सलाम ठोके जा रहे हैं
खा-पी हाथ चटका कर
बस आगे चले जा रहे हैं
मज़दूर 'कॉमरेड' बतला
शोषण किये जा रहे हैं
झूठे वादे, झूठी आस
झूठे सब्ज़बाग दिखा
उल्लू पर उल्लू
बना रहे हैं
बस औपचारिकता
के चलते
मज़दूरों की खातिर
मज़दूरों से ही
मज़दूर दिवस को
मज़दूरी करवा रहे हैं

सुन रहा है ना वो














कल मैंने आशिकी २ देखी | बहुत ही सुन्दर फिल्म बनाई टी-सीरीज ने | उसका एक गाना "सुन रहा है तू" बहुत ही सुरीला और उसके बोल दिल में अन्दर तक उतर गए हैं | अब तक मैं उस गाने को कम से कम ५० दफा सुन चुका हूँ पर क्या करूँ दिल ही नहीं करता बंद करने को | तो सोचा कुछ अपना ही लिख डालूं उस गाने की धुन पर  और रिकॉर्ड कर के प्रस्तुत करूँ | तो वही पेश कर रहा हूँ | गाने की धुन को सुनने के लिए और मेरे बोल उस पर सजाकर पढने के लिए गाने का लिंक यहाँ दे रहा हूँ | गाना मेल और फीमेल दोनों आवाज़ों में हैं तो मैंने दोनों ही पर अपने बोल लिखने की कोशिश की है | उम्मीद है आपको मेरी कोशिश पसंद आएगी |




मुझको गाने दे
शब्दों को माने दे
दुखती सज़ाओं के
वो लम्हे भुलाने दे
साँसों को आने दे
अब गुनगुनाने दे
खुशियों के साज़ो पर
नए गीत बजाने दे
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

फ़िज़ा भी, कह रही हैं
एक सुकूं, दिल को हुआ
काश वो, मिल जाए
मांगी है, जिसकी दुआ
वो दिल की चाहत है
वो मेरी अदावत है
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

बातें, खुशनुमा हैं
लिखी है, नई दास्तां
पाई, दिल ने मेरे
हैं, इतनी सी खुशियाँ
दिल अब भी, सलामत है
खुद ही से, खुशामत है

मुझको भुलाने दे
बीते ज़माने वे
तेरी पनाहों में जो
लम्हे गुज़ारे थे
दिल को बहलाने दे
हंसने दे, गाने दे,
बीती यादों को अब
दिल से मिटाने दे
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

फ़िज़ा भी, कह रही हैं
एक सुकूं, दिल को हुआ
काश वो, मिल जाए
मांगी है, जिसकी दुआ
वो दिल की चाहत है
वो मेरी अदावत है
उसके करम की वो जफ़ाएं
फेर ली उससे अब निगाहें

सुन रहा है ना वो
हंस रहा हूँ मैं
सुन रहा है ना वो
जो हंस रहा हूँ मैं

यारा...

रविवार, अप्रैल 28, 2013

कली














एक कली खिली चमन में
बन गई थी वो फूल
बड़ा गर्व हुआ अपने में
सबको गई थी वो भूल
कहा चमन ने फिर उससे
यहाँ रहता स्थिर नहीं कोई
मत कर तू गुमान इतना
उसको बहुत समझाया
आज तो यौवन है पर
कल तू ठूंठ भी हो जाएगी
तब कोई तेरे दर्द में
सहानुभूति न दिखलायेगा
हंसकर मिलजुल कर मिल
फिर से सब में खो जा तू
अलग बनाया अस्तित्व जो तूने
अपने से भी तू जायेगी
कोई माली, राहगीर ही
तुझको तोड़ ले जायेगा
मिट जायेगा जीवन तेरा, फिर
अन्तकाल तक तू पछताएगी

शुक्रवार, अप्रैल 26, 2013

डर लगता है















दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

लूटेरे हर जगह फिरते मुंडेरों पे, शाख़ो पे
बना कर भेस अपनों सा लपकते हैं लाखों पे

न लो रिस्क तुम बच के ही रहना दरिंदो से
दिखने में कबूतर हैं ये गिद्ध रुपी परिंदों से

भूलकर भी मत सुखाना अस्मत को तार पर
मंडराते फिरते है रक्तपिपासु वैम्पायर रातभर

इज़्ज़त तार कर देंगे तार पर देख अस्मत को
वापस फिर न आती लौट कर गई शुचिता जो

संभालो पवित्रता अपनी खुद अब दोनों हाथों से
खत्म कर दो हैवानो को जीवन की बारातों से

चलाओ बत्तीस बोर कर दो छेद इतने तुम इनमें
मरें जाके नाले में इंसानियत बची नहीं जिनमें

दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

मंगलवार, अप्रैल 23, 2013

कर्म और अकर्मण्यता














हे प्रभु! आपने तो
बचपन से ही
कर्म को प्रधानता दी
फिर यह मध्यकाल
आते-आते अकर्मण्यता
को क्यों बाँध लिया
अपने सर का
सेहरा बना कर,
बनाकर एक
अकमणयता की सेज
तुम्हारी ये निद्रा
तुम्हारे ही लिए नहीं
समस्त जन को
पीड़ा की सेज देगी
बैठा कर स्वजनों को
काँटों की सेज पर
पहना कर काँटों के
ताज को तुम ईशु
नहीं कहलाओगे
कहलाओगे सैय्याद
तुम अपनी निद्रा त्यागो
तुम कर्म की वो राह चुनो
जो पीडित स्वजनों को
रहत दे ऐसी राहत
जिसे सुनकर
मृत भी जी उठे

रविवार, अप्रैल 21, 2013

बकरचंद
















आज बने है सब बकरचंद
पखवाड़े मुंह थे सब के बंद
आज खिला रहे हैं सबको
बतोलबाज़ी के कलाकंद

बने हैं ज्ञानी सब लामबंद
पोस्ट रहे हैं दना-दन छंद
आक्रोश जताने का अब
क्या बस बचा यही है ढंग

बकर-बक करे से क्या हो
मिला है सबको बस रंज
बकरी सा मिमियाने पे
मिलते हैं सबको बस तंज़

ज़रुरत है उग्र-रौद्र हों
गर्जना से सब क्षुब्ध हों
दुराचारी-पापी जो बैठे हैं
अपनी धरा से विलुप्त हों

दिखा दो सब जोश आज
शस्त्र थाम लो अपने हाथ
दरिंदों, बलात्कारियों की
आओ सब मिल लूटें लाज

बहुत हो लिए अनशन
खत्म करो अब टेंशन
हाथों से करो फंक्शन
दिखा दो अब एक्शन

आया नहीं जो रिएक्शन
तो खून में है इन्फेक्शन
'निर्जन' कहे उठो मुर्दों
दिखा दो कुछ फ्रिक्शन

मत बनो तुम बकरचंद
कर दो छंद-वंद सब बंद
इस मंशा के साथ बढ़ो
कलयुग में आगे स्वछंद

मंगलवार, अप्रैल 16, 2013

बड़ी हुई बच्ची














कल कहीं पढ़ा था मैंने
कुछ लिखा किसी ने
ऐसा भी
बड़ा हुआ एक बच्चा
सच्ची बहुत बड़ा बच्चा
पाता है शादी कर के
पत्नी रूप में एक ग़च्चा
अम्मा बन सर बैठती है
झेलती है वो जीवन भर
नाज़ और नखरे अपने
अपना अस्तित्व
अरमान और सपने
स्वाह चूल्हे चौके में करती है
खुद सदा चुप रहकर वो
बच्चे के कसीदे पढ़ती है
पालती है वो मुन्ना को
लल्ला लल्ला करती है
'निर्जन' कहता
कलयुग में
क्या ?
सच्ची ऐसा होता है
उस अम्मा को सब ने झेला है
वो हिटलर की छाया रेखा है
वो भी बड़ी हुई बच्ची है
हाँ! बहुत बड़ी बच्ची है
माता पिता परेशां होकर
जो मुसीबत दान में देते हैं
सुख से न जीने देती है
न ख़ुशी से मरने देती है
सुबह सवेरे उठते ही
ऍफ़ एम् चालू करती है
लेडी वैम्पायर बन कर वो
जीवन के सब रस पीती है
भूल कभी कुछ हो जाये
दहाड़ मार कर रोती है
चुप करने में उसको फिर
जेब भी ढीली होती है
चैन नहीं तब भी आता
सर आसमान पर लेती है
बहस अकड़ के करती वो
है नहीं किसी से डरती वो
गलती चाहे बच्ची की हो
फिर भी है अम्मा बनती वो
उस बच्ची रुपी अम्मा में
अहम किसी से कम नही
आये कोई झुकाए मुझको
ऐसा किसी में दम नही
योगदान जो जीवन में
वो बच्चे के देती है
सही समय आने पर वो
ब्याज समेत वसूल लेती है
कम ना समझें बच्ची को
ये शातिर ख़िलाड़ी होती है
हत्थे इसके जो चढ़ जाओ
ये पटक पटक कर धोती है
कल कहीं....

रविवार, अप्रैल 14, 2013

क्या कहता

ख़ुदा जाने मैं क्या कहता, जो कहता मैं क्या कहता
सही के लिए क्या कहता, ग़लत के लिए क्या कहता

रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता
मिलते रहना ही क्या कहता, क्या है दिलमें क्या कहता

सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों हैं वीरां क्या कहता
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता

तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता

तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण क्या कहता

आखरी क़दम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिस्ती क्या कहता

लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता
हंसी मजाक जब क्या कहता, ह्रदय वेदना अब क्या कहता

तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता
कहता तो बस कहता रहता, ‘निर्जन’ दिल से दिल कहता

शुक्रिया तेरा

शुक्रिया तेरा
प्रत्येक जतन के लिए
हर पल सुनने के लिए
परवाह करने के लिए
प्यार करने के लिए
खुद को खुद की तरह
रखने के लिए

हैरान रह जाता हूँ मैं
कैसे रहती है तू
इतनी शांत
कहाँ से लाइ है
इतनी सहनशीलता
क्यों है तेरे पास
इतना धीरज

तू पास मेरे बैठ कर
बस सुनती रहती है
जब भी अनाड़ीपन से
मैं छलकाता हूँ दिल के
जज़्बात सामने तेरे और
मुस्कराती रहती है तू
आँख मूंदे मंद मंद

पर मैं भी
चाहता हूँ करूँ
तेरे लिए कुछ ऐसा ही
चल बता तू अपने डर
और बता दे जो भी
दिल में बसी हैं
चाहतें तेरी

वादा तो मैं करता नहीं
दे सकूँगा सब कुछ तुझे
आज, कल या जिंदगी भर
पर इतना कहूँगा बस तुझे
जब तक है जां में जां मेरे
कोशिश करूँगा खुश
रहे तू उम्र भर

शुक्रिया तेरा
सब कुछ है तू
मेरे लिए
शुक्रिया कहते
नहीं थकता है
'निर्जन' आज
बस तेरे लिए

कौन गलत था कौन सही

उस दिन क्यों सोचा मैंने
शायद इश्क मैं करता हूँ
आह! पर क्या वह मेरे
जीवन की सबसे बड़ी गलती थी
कुछ उतावले, बचकाने जज़्बातों ने
दिखलाये ना जाने मुझे कितने अवसाद

अरसा गुज़र गया तब से
पर रञ्ज आज भी करता हूँ
उसकी कपटी आँखों को
मैं सोच रातों को जगता हूँ
शर्मिंदा खुद से रहता हूँ
अब खुद को कोसा करता हूँ

मुद्दत हुई बिछड़े हुए, पर
दिल आज भी डरता है
वो नाम सामने आते ही
एक सन्नाटे से भरता है
गलती तो सबसे होती है
पर क्या कोई ऐसा भी करता है

कौन ग़लत था कौन सही
यह सवाल आज तक है बना
जीवन में इसके रहते ही
है रोष सामने रहा तना
मैं जब भी कुछ बतलाऊंगा
वो सोचेगा झूठ कही

जब सही वक़्त अब आएगा
वो स्वयं उसे समझाएगा
तब वो खुद ही पहचानेगा
गलती किसकी थी मानेगा
बस कुछ बरस की देर रही
सब जानेंगे और मानेंगे
कौन गलत था कौन सही

गुरुवार, अप्रैल 11, 2013

मत सोचा कर

फ़रहत शाहज़ाद साहब द्वारा लिखी उनकी कविता 'तनहा तनहा मत सोचा कर' को अपने अंदाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ। क्षमा प्रार्थी हूँ, मैं उनका या उनकी नज़्म का अपमान करने या दिल को ठेस पहुँचाने की गरज़ से यह हास्य कविता नहीं लिख रहा हूँ। सिर्फ़ मज़ाहिया तौर पर और हास्य व्यंग से लबरेज़ दिल की ख़ातिर ऐसा कर रहा हूँ।

अगड़म बगड़म मत सोचा कर
निपट जाएगा मत सोचा कर

औंगे पौंगे दोस्त बनाकर
काम आयेंगे मत सोचा कर

सपने कोरे देख देख कर
तर जायेगा मत सोचा कर

दिल लगा कर बंदी से तू
सुकूं पायेगा मत सोचा कर

सच्चा साथी किस्मत की बातें
करीना, कतरीना मत सोचा कर

इश्क विश्क में जीना मरना
धोखे खाकर मत सोचा कर

वो भी तुझसे प्यार करे है
इतना ऊंचा मत सोचा कर

ख़्वाब, हकीकत या अफसाना
क्या है दौलत मत सोचा कर

तेरे अपने क्या बहुत बुरे हैं
बेवकूफ़ी ये मत सोचा कर

अपनी टांग फंसा कर तूने
पाया है क्या मत सोचा कर

शाम को लंबा हो जाता है
क्यूँ मेरा साया? मत सोचा कर

मीट किलो भर भी बहुत है
बकरा भैंसा मत सोचा कर

हाय यह दारू चीज़ बुरी है
टल्ली होकर मत सोचा कर

राह कठिन और धूप कड़ी है
मांग ले छाता मत सोचा कर

बारिश में ज़्यादा भीग गया तो
खटिया पकडूँगा मत सोचा कर

मूँद के ऑंखें दौड़ चला चल
नाला गड्ढा मत सोचा कर

जिसकी किस्मत में पिटना हो
वो तो पिटेगा मत सोचा कर

जो लाया है लिखवाकर खटना
वो सदा खटेगा मत सोचा कर

सब ऐहमक फुकरे साथ हैं तेरे
ख़ुद को तनहा मत सोचा कर

उतार चढ़ाव जीवन का हिस्सा
हार जीत की मत सोचा कर

सोना दूभर हो जाएगा जाना
दीवाने इतना मत सोचा कर

खाया कर मेवा तू वर्ना
पछतायेगा मत सोचा कर

सोच सोच कर सोच में जीना
ऐसे मरने का मत सोचा कर

बुधवार, अप्रैल 10, 2013

मेरा बचपन

जीवन की पथरीली
राहों में चलते चलते
जीवन की सुलगती
आग में जलते जलते
जीवन की कंटीली
चुभन में घुटते घुटते
याद आती है
सुकोमल बचपन की
कर्तव्यों की बेड़ी में
जकड़े जीवन में
याद आती है
उस स्वछंदता की
सुकोमल स्वच्छ बचपन
सुगंधों से भरा बचपन
पाप, पुण्य से मुक्त बचपन
अब घिर गया है अनेक
समस्याओं में जीवन
साँसों की डोर जुड़ गई
अश्रु की लड़ी में
हे ईश्वर! कब टूटेगी
ये अश्रु की लड़ी
हे ईश्वर! कब छूटेगी
ये दुखों की झड़ी
हे ईश्वर! कब फूटेगी
मुरझाए होटों पर हंसी
कब वापस आएगा
सलोना बचपन
हर ग़म हर दर्द से दूर
अनजाना खिलखिलाता
बचपन
कभी कभी नानी की कहानी
कभी माँ का वो आँचल
स्वर्ग से ज्यादा हसीन\
था मेरा बचपन
एक धुंधली से छवि है
बचपन अब वो तेरी
खोजता जाता हूँ, कहाँ
छिप गया मेरा बचपन

सोमवार, अप्रैल 08, 2013

जय सियाराम

दिन ढल जाये, हाय
रात जो आये
शाम के आँचल में
तारे छिपाए
रात काली और अँधियारा गहराए
पूछूँ मैं खुद से, अब
कैसे जिया जाए
चाँद पास आए, और
मुझे समझाए
ज़िन्दगी के फलसफे
मुझे बतलाए
सुन बस दिल की
और दे अंजाम
बिगड़े हुए हैं जो
बनेंगे तेरे
जीवन के काम
हँस के गुज़ार तू
सुबह हो या शाम
ख़ुशी से तू मिल सबसे
ले प्रभु का नाम
ज़िन्दगी में पा जायेगा
सुख फिर तमाम
जीतेगा हर बाज़ी तू
कोई हो मैदान
डर ना किसी से अब
साथ हैं तेरे राम
बोलो सियावर रामचन्द्र
की जय!!!
बोलो बजरंगबली

की जय!!!

रविवार, अप्रैल 07, 2013

सन्डे मना रहे हैं

सन्डे मना रहे हैं
मौज उड़ा रहे हैं
बिस्तर पर पड़े
हम तो
पकोड़े खा रहे हैं

टीवी चला रहे हैं
मैच लगा रहे हैं
बल्ले पे बॉल आई
गुरु जी
धोते जा रहे हैं

लंच बना रहे हैं
परांठे सिकवा रहे हैं
लाल मिर्च निम्बू के
अचार से
चटखारे ले खा रहे हैं

रायता बिला रहे हैं
बूंदी मिला रहे हैं
फिर करछी आंच
पर रख हम
छौंका बना रहे हैं

बच्चों को पढ़ा रहे हैं
सर अपना खपा रहे हैं
हाथ में ले के डंडा
हम उनको
डरा धमका रहे हैं

सुस्ती दिखा रहे हैं
खटिया पे जा रहे हैं
लैपटॉप सामने रख
हम तो
उँगलियाँ चला रहे हैं

अब सोने जा रहे हैं
ख्व़ाब सजा रहे हैं
चादर ताने मुंह तक
हम अब
चुस्ती दिखा जा रहे हैं

शब्द सजा रहे हैं
सोच दौड़ा रहे हैं
कीबोर्ड यूज़ करके
हम अब
कवीता बना रहे हैं

जल्दी से लिख रहे हैं
पोस्ट बना रहे हैं
फेसबुक पर बैठे
हम ये
रचना पढ़वा रहे हैं

लोग भी आ रहे हैं
पढ़ पढ़ के जा रहे हैं
सिर्फ लाइक कर के
सब ये
बिना कमेंट किये जा रहे हैं

सन्डे मना रहे हैं
मौज उड़ा रहे हैं

मलिन सोच

सत्य वचन सुनाता है समझे
जग बीती बताता है समझे
दशा भयी कितनो की है यह   
'निर्जन' कथा दिखता है समझे

राह खड़ी फुसलावत है समझे 
कामुकता से रिझावत है समझे 
मकड़जाल में माया के यह 
फंसने पर छटपटावत है समझे 

ताज़ा ताज़ा दिल हारा है समझे  
बकरा कितना प्यारा है समझे 
जो मलिन सोच से बंधता है यह
जीवन में खुद का मारा है समझे

शादी अब कारोबार है समझे
सौदों की भरमार है समझे
दिल के रिश्तों को भी अब यह 
मिला नया बाज़ार है समझे

बातों को खरताल है समझे
सोना चांदी माल है समझे
जीवन में आव़ाज़ाही को यह   
बच्चों का खिलवाड़ है समझे

आते ही रंग दिखलाती है समझे
चप्पल जूते चलवाती है समझे
मासूम सदा बनकर जो है यह
घर में कलह करवाती है समझे

पौ फटते फ़रमाइश है समझे
जेब की भी नुमाइश है समझे
खर्चें हरी पत्तियां जो है यह
मेहनत की कमाई है समझे


व्यापार चौपट करवाती है समझे
दर दर धक्के खिलवाती है समझे 
व्यक्तित्वहीन सोच जो है यह 
मनुष्य को दरिंदा बनवाती है समझे 

नित नए स्वांग रचाती है समझे
जीवन चलचित्र बनाती है समझे
मान अपमान के मोल को यह
तफ़री में उड़ाती है समझे  

आँख निकाल गुर्राती है समझे
शोले रोज़ बरसाती है समझे
जीवन पावन पुस्तक को यह
क्रोधाग्नि में जलाती है समझे

तंतर-मंतर करवाती है समझे
दिल में फाँस गड़वाती है समझे
संबंधो में परस्पर प्रेम को यह  
सूली पर चढ़वाती है समझे

संतान विच्छेद करवाती है समझे
उलटी पट्टी पढ़वाती है समझे
अनुचित शिक्षा में माहिर है यह 
बालक भविष्य डुबाती है समझे 

पिता-पुत्र लड़वाती है समझे 
बहन-भाई भिड़वाती है समझे 
बैठे दूर तमाशबीन बन यह  
रिश्तों में फूट डलवाती है समझे 

मान मर्यादा भूली है समझे
क्रियाचारित्र पर झूली है समझे
अपमानित अभद्र व्यवहार से यह
मुंह काला कर भूली है समझे

माल समेट भागे है समझे
पता कहीं ना पावे है समझे
झूठे तर्क दिखाकर कर यह  
कोर्ट केस कर जावे है समझे

नर्क भ्रमण करवाती है समझे
यमलोक पहुंचती है समझे
सज्जन पुरुषों की तो यह
अर्थी तक बंधवाती है समझे

शुभचिंतक यही सुझाता है समझे
मलिन विचारणा में कभी न उलझे 
जिस क्षण दिल में आ जाती है यह
ऊर्जा नष्ट कर के जाती है समझे

इससे अब सब बचकर रहना 
ज़िंदगी में साथ न इसका देना 
जो यह कहीं मिल जाये तुमको 
रसीद तमाचा रखकर देना

शनिवार, मार्च 30, 2013

एकाकी












एकाकी जीवन है
मेरा
पर्वत तेरे जैसा
कभी लगे
झरने तेरे जैसा
कभी लगे
बादल तेरे जैसा
उमड़ घुमड़ कर
दुःख आते हैं
मन को दुःख दे
छल जाते हैं
कभी अंतः
सुख बरसाते हैं
दिल कहता है
दुःख नहीं चाहियें
अंतः कहता
सुख नहीं चाहियें
अंतः
मन दोनों एकाकी है
जीवन
तन दोनों एकाकी है
तब मैं भी तो
एकाकी हूँ
जीवन डोर
प्रभु को सौंपी
मन, अंतः को
दिया भुलाय
बादल तुझसे
झरने तुझसे
अपना जीवन
लिया मिलाय
बहते रहना
बरसते नयना को
अब लिया है
अपनाय...

शुक्रवार, मार्च 29, 2013

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है













कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है -

काश लोन लेकर शादी की होती -
तो ज़िन्दगी आबाद हो भी सकती थी

ये बेलन और झाड़ू से पिटाई बदन पे खाई है -
रिकवरी एजेंटों की दुआओं से खो भी सकती थी

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है -
के बीवी ही है, जिसे मेरा दम निकालने की जुस्तजू  ही है

गुज़र रही है कुछ इस तरह से ज़िन्दगी जैसे -
इससे वसूली वालों के सहारे की आरज़ू ही है

ना कोई राह, न मंज़िल, न रौशनी का सुराग -
गुज़र रही है हतौडों-थपेड़ों में ज़िन्दगी मेरी

इन्ही हतौडों-थपेड़ों से उठ जाऊंगा कभी सो कर -
मैं जानता हूँ मेरे ग़म-वफ़ात, मगर यूँही

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

बुधवार, मार्च 27, 2013

गोरी संग होरी

आज न छोड़ेंगे
तुझको हम गोरी
खेलेंगे तो से  होरी
खेलेंगे तो से होरी

चाहे रूठे
हमसे तू गोरिया
चाहे होवे ठिठोली
खेलेंगे तो से होरी

समझे खुद को
तू कितनी सायानी
प्रीत पड़ेगी निभानी
चले न तेरी मनमानी

भर पिचकारी
रंग देंगे तुझको
लाल, नीला, गुलाबी
बचके हमसे जो भागी

भीजेगी फिर
तोहरी चुनरिया
भीज जाएगी चोली
खेलेंगे तो से होरी

ऐसे हमको
नखरे दिखा न
हम ये जीतेंगे बाज़ी
दिखा न ऐसे नाराजी

चाहे लठ चलें
या नैन कटारें
पीछे हम न हटेंगे
खेलेंगे तो से होरी

आज न छोड़ेंगे
तुझको हम गोरी
खेलेंगे हम होरी
खेलेंगे हम होरी