दफ्तर अपना खोल के
रिलैक्स हुए सब जाएँ
रख कंपनी दा नाम ये
बैठ स्वयं इतरायें
कुर्सी बड़ी बस एक है
जो दांव लगे सो बैठ
बाक़ी जो रह जाएँ है
हो जाएँ साइड में सैट
बन्दे अपने मुस्तैद हैं
बकरचंद सरनाम
दबा कर मीटिंग करें
कौनो नहीं और काम
काटम काटी पर लगे
एक दूजे की आप
काटें आपस में पेंच ये
फिर करते मेल मिलाप
मोटा मोटी खूब कहें
रिजल्ट मिले न कोये
एग्ज़ीक्यूटर फ्रसट्रेट है
प्लानर बैठा रोये
पढ़ो पढ़ो का राग है
प्रवक्ता जी समझाएं
दो मिनट ये पाएं जो
बात अपनी बतलाएं
पंडत जी बदनाम है
खाने पर जाते टूट
भैयन तेरी मौज है
जो लूट सके सो लूट
हम इमोशनल बालक हैं
करें ईमानदारी से काम
मेहनत कर के पाएंगे
हम अपना ईनाम
मसाला मिर्ची आचार हैं
तैड़ फैड़ का काम
काज सबरे निपटात हैं
न देखें फिर अंजाम
अपने भी शामिल हैं
इन लीग ऑफ़ जेंटलमैन
मुस्करा अवलोकन करें
बैठ उते दिन रैन
कुल जमा ‘निर्जन’ कहे
अब तक सब है ठीक
कभी कभी मायूस हो
हम भी जाते झीक
सच्चे सब इंसान यहाँ
रखते हैं सब ईमान
ना किसी से बैर भाव
ऐसे अपने मित्र महान
बढिया, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर,बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंरोचक लाजबाब रचना
जवाब देंहटाएंहंसी के गुलगुले से
बहुत सटीक, हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुंदर सटीक सृजन,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
सुन्दर शब्दावली....
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
latest post नेताजी फ़िक्र ना करो!
latest post नेता उवाच !!!
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंगुदगुदाते हुए :)
वाह बहुत ही सुंदर , ढेरो शुभकामनाये तुषार भाई
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे
असफल प्रयास
अच्छा है।
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