बढ़ा हाथों को अपने झुका दो आसमां धरती पर
चीर सीना पाषाण का नदियाँ बहा दो पृथ्वी पर
थरथरा दो सब दिशाएं तुम्हारी एक हुंकार पर
प्राणों की आहुति सजा दो माटी की पुकार पर
प्रतिरोध कोई आड़े ना आए राह में बढ़ने पर
पाठ मुश्किलों को पढ़ा दो ठोकरों की मार पर
सफलता कभी मिलती नहीं है यारों मांगने पर
जीत को महबूबा बना लो खेल अपने मान पर
कोई हँसे ना अमन और शांति की बातों पर
दुश्मनों को ये बता दो एक ही ललकार पर
डरना फितरत में नहीं है शांति के नाम पर
डर को आईना दिखा दो क्रान्ति के दाम पर
फूल बंजर में खिला दो पृथ्वी के हर कोने पर
मेहनत कर सोना उगा दो खेतों की छाती पर
अब तो ज़रा मरहम लगा दो देश के ज़ख्मो पर
अब तो भरोसा जगा दो इंसानों का इंसानों पर
भेद-भाव को त्याग भाईचारे को अपनाने पर
जनता के ह्रदय में प्यार का भाव जगाने पर
जाति,ऊँच,नीच,भाषा,धर्म की बेडी तोड़ने पर
'निर्जन' देता ज़ोर मानव को मानवता से जोड़ने पर
--- तुषार राज रस्तोगी ---
सार्थक सन्देश देती रचना |
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिनांक 18/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-09-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1740 में दिया गया है ।
जवाब देंहटाएंआभार ।
देश का युवा अग यह पुकार सुन कर सन्नद्ध हो जाये तो क्या नहीं कर सकता !
जवाब देंहटाएंआप सभी गुनिजन का दिल से बहुत बहुत शुक्रिया :)
जवाब देंहटाएंBahut sunder Kavita. ..
जवाब देंहटाएंSunder sandesh deti shaandaar rachna...badhayi va shubhkaamnaayein..!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंपासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंलाजवाब कविता
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