कौन निभाता किसका साथ
आती है रह-रह कर यह बात
मर कर भी ना भूलें जो बातें
कोई बंधा दे अब ऐसी आस
गुज़रे लम्हों को लगे जिलाने
रो रो दिनभर कर ली है रात
सूना यह दिल किसे पुकारे
दया ना आती जिसको आज
आना होता अब तो आ जाता
अपनी कहने सुनने को पास
कह देता इतना मत रो अब
यह अपने आपस की बात
झूठी हसरत सुला कब्र में
सुबह हुई 'निर्जन' अब जाग
आती है रह-रह कर यह बात
कौन निभाता किसका साथ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (28-10-2013)
संतान के लिए गुज़ारिश : चर्चामंच 1412 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय -
मर कर भी जो न भूलें जो बातें, कोई बंधा दे अब ऐसी आस....................गहरी वेदना।
जवाब देंहटाएंसच्ची बात
जवाब देंहटाएंआना होता अब तो आ जाता
जवाब देंहटाएंअपनी कहने सुनने को पास
कह देता इतना मत रो अब
यह अपने आपस की बात.वाह वाह