आता है साल में एक बार
कहते जिसे 'हिंदी दिवस'
क्यों इसे मनाने के लिए
हम सभी होते हैं विवश
हिन्द की बदकिस्मती
हिंदी यहाँ लाचार है
पाती कोई दूजी ज़बां
यहाँ प्यार बेशुमार है
काश! हिंदी भी यहाँ
बिंदी बनकर चमकती
सूर्य की भाँती दमकती
अँधेरे में ना सिसकती
आओ मिलकर लें अहद
हिंदी को आगे लायेंगे
अपनी मातृभाषा को हम
माता समझ अपनाएंगे
शर्म न आये किसी को
अब हिंदी के उपयोग में
मान अब सब मिल करें
हिंदी के सदुपयोग में
हाथ जोड़े करता वंदन
'निर्जन' हिंदी भाषा को
अर्जी है हम आगे बढ़ाएं
राष्ट्रभाषा, मातृभाषा को
अत्यन्त सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहिंदी का दर्द बयाँ ,बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंlatest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
LATEST POSTअनुभूति : Teachers' Honour Award
है जिसने हमको जन्म दिया,हम आज उसे क्या कहते है ,
जवाब देंहटाएंक्या यही हमारा राष्र्ट वाद ,जिसका पथ दर्शन करते है
हे राष्ट्र स्वामिनी निराश्रिता,परिभाषा इसकी मत बदलो
हिन्दी है भारत माँ की भाषा ,हिंदी को हिंदी रहने दो .....
सुंदर सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति !!
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हिंदी दिवस को याद कर, राष्ट्र भाषा का सम्मान कर और अपनी भावनाओं को कविता के रूप में पेश करने पर आप का अभिनन्दन तथा बहुत बहुत धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएंआपको बहुत - बहुत बधाई व शुभकामनायें . बेहद उच्चस्तरीय , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना। आभार भईया।।
जवाब देंहटाएंनई कड़ियाँ : मकबूल फ़िदा हुसैन
राष्ट्रभाषा हिंदी : विचार और विमर्श
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
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